सारंगपुर
दिखावट
सारंगपुर Sarangpur | |
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निर्देशांक: 23°34′N 76°28′E / 23.57°N 76.47°Eनिर्देशांक: 23°34′N 76°28′E / 23.57°N 76.47°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | मध्य प्रदेश |
ज़िला | राजगढ़ ज़िला |
ऊँचाई | 410 मी (1,350 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 37,435 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 465697 |
सारंगपुर (Sarangpur) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के राजगढ़ ज़िले में स्थित एक नगर है। यह काली सिन्ध नदी के तट पर बसा हुआ है और इसी नाम की तहसील का मुख्यालय भी है।[1][2]
आवागमन
[संपादित करें]- सड़क - राष्ट्रीय राजमार्ग 52 इसे सड़क द्वारा कई स्थानों से जोड़ता है।
- रेल - भारतीय रेल के पश्चिम मध्य रेलवे का सारंगपुर रेलवे स्टेशन यहाँ स्थित है।
इतिहास
[संपादित करें]यह शहर किसी समय में माण्डु कि राजधानी हुआ करता था। यहाँ पर रानी रूपमती की कब्र भी है। यह माण्डु के शासक बाजबहादुर कि पत्नी थी।
१४३७ में सारंगपुर की लड़ाई में महाराणा कुम्भा ने सुल्तान महमूद खिलजी को हराया और उसे बंधी बनाया था।
पर्यटन स्थल
[संपादित करें]- प्राचीन श्रीराम मंदिर- सारंगपुर बहुत ही प्राचीन नगरी है. यहां पर बहुत सारे पुराने मंदिर भी है. जानकारी एवं विश्वास के अनुसार सबसे प्राचीन मंदिर राम मंदिर है. कपिलेश्वर महादेव मंदिर के सामने छोटा बजरंगबली का मंदिर है. वहीं से हम बांध की विपरीत दिशा में चलना प्रारंभ करेंगे. अभी वहां पर गौशाला बन गई है. नदी किनारे पगडंडी पर चलकर या बाइक से लगभग आधा किलोमीटर बाद घनी झाड़ियों में एक खंडहर दिखाई देता है . खंडहर के समीप जाने पर हमें वहां पर प्राचीन मंदिर के अवशेष मिलते हैं. इस मंदिर की जानकारी बहुत कम लोगों को है क्योंकि यहां पर मूर्ति भी नहीं है लेकिन मूर्ति स्थान है. मंदिर की छत भी क्षतिग्रस्त दिखाई देती थी. वह मंदिर किसने बनाया कब बनाया इसकी किसी को जानकारी नहीं है किंतु देखने पर वह 500 वर्ष से अधिक पुराना दिखाई देता है. यह ईट का बना हुआ है. देखने पर राजपूत शैली भी दिखाई देती है. मंदिर छोटा भी है. मंदिर का गर्भ ग्रह छोटा ही है. खंडहर के अंदर जाना बहुत रिस्की है. पुराने लोगों ने बताया कि यहां पर राम मंदिर था. देखने पर भी ऐसा प्रतीत होता है क्योंकि मूर्ति का सिंहासन मैं राम जानकी एवं लक्ष्मण की मूर्ति रखने का पर्याप्त स्थान है.
- पुराना कालीसिंध नदी का पुल -सारंगपुर में कालीसिंध नदी पर पुराना पुल 1933 में बनकर तैयार हुआ. इसका निर्माण वर्ष भी लिखा हुआ है. इसके पूर्व वहां पर रपट हुआ करती थी जोकि पुराने बांध के पास में दिखाई देती है. सारंगपुर में जल यातायात के रूप में नाव का उपयोग किया जाता हो ऐसा पुराने लोग नहीं बताते है. उस दौर में अंग्रेजों द्वारा कई स्थलों पर अस्थाई लकड़ी के पुल बनाएं थे किंतु सारंगपुर में इस प्रकार का पुल का उल्लेख नहीं है. उस दौर में एक गलत परंपरा भी थी जिसमें पुल निर्माण के पूर्व छोटे बच्चे की बलि दी जाती थी. सारंगपुर में पुराने लोग इस बात को स्वीकार करते थे किंतु इसका कोई सबूत नहीं है. वर्ष 1940 के आसपास जब अंग्रेजों की सेना सारंगपुर से गुजरती थी तो लोग उन्हें देखते थे. यह पुल सकरा है. एक बार मैं बस या ट्रक ही गुजर सकते हैं. इसके दोनों और जाली लगाई गई थी जिसे बारिश में हटा लिया जाता था. लगातार बारिश में जब पुल के ऊपर पानी आ जाता था तो पूरा गांव उसे देखने के लिए जाता था. पिछले साल बारिश में पुल क्षतिग्रस्त हो गया था.
- सारंगपुर के महाराजा का कार्य क्षेत्र - सारंगपुर मैं दो महाराजा थे. जी हां सारंगपुर पर दो महाराजा राज करते थे. चलिए थोड़ा इतिहास में चलते हैं. मराठा सामराज्य के समय पेशवा बाजीराव जो 1720 मैं पेशवा बने थे ने अपने सरदारों जैसे सिंधिया को ग्वालियर, पवार को धार, होलकर को इंदौर एवं पवार को देवास राज्य दीया. आधा सारंगपुर देवास राज्य के अधीन था. 1728 मैं देवास में दो भाइयों ने अपनी स्टेट का बंटवारा कर लिया. देवास सीनियर महाराजा तूकोजी राव पवार एवं देवास जूनियर महाराजा जीवाजी राव पवार बने. सारंगपुर भी दो भागों में विभाजित हो गया. आधा भेरू दरवाजा देवास सीनियर में और आधा देवास जूनियर में आ गया. सारंगपुर के लोग इसे बड़ी पाती और छोटी पाती कहते थे .सन 1947 में जब देश आजाद हुआ तो देवास सीनियर महाराजा कृष्णा जी राव पवार थे और देवास जूनियर महाराजा यशवंत राव पवार थे. यह दोनों राजा सारंगपुर के अंतिम राजा थे. इन दोनों ने अपनी स्टेट को भारत सरकार में विलय कर दिया. देवास सीनियर महाराजा कृष्णा जी राव पवार के पुत्र श्री तुकोजीरा व पवार जो देवास विधायक और सरकार में मंत्री रह चुके हैं .
- मकबरे- सारंगपुर निम्न मकबरे हे - 1. रानी रुपमती का मकबरा 2. रानी रुपमती के आगे सामने की ओर लाल मकबरा. 3. लाल मकबरा के पास में एक और मकबरा. 4. श्मशान रोड पर छनयारी मकबरा 5. श्मशान रोड पर पनिहारी मकबरा 6. हायर सेकंडरी मैदान में मकबरा
- पुरानी शुगर मिल- सारंगपुर में शुगर मिल गोपालपुरा के पास में थी. पहले सारंगपुर और इसके आसपास गन्ने की खेती बहुत होती थी. इंदौर के श्री देव कुमार कासलीवाल ने सरकार से जमीन लेकर शुगर मिल की स्थापना की. श्री देव कुमार जी सर सेठ हुकुमचंद जी के भतीजे थे. इंदौर के देवश्री अनूप आस्था टॉकीज आदि इन्हीं के थे. इनका निवास एमजी रोड पर था वर्तमान में वहां पर कासलीवाल होंडा है. वहां इनके पुत्र श्री प्रदीप कासलीवाल का है. शुगर मिल के प्रबंध का काम अजमेरा साहब देखते थे जिनका घर कंचनबाग में कहीं पर है. शुगर मिल बंद होने के बाद जमीन की देखरेख गोपालपुरा के श्री श्याम सिंह जी द्वारा की जाती थी. बाद में सरकार ने उस जमीन को पुनः अधिग्रहण कर लिया. वर्तमान में अभी वहां पर रेशम केंद्र संचालित है और जमीन में रेशम के पौधे उगाए जाते हैं. शुगर मिल के खंडहर आज भी दिखाई देते हैं. इस स्थान पर रेशम केंद्र देखने लायक है.
- पुराना दशहरा मैदान -सारंगपुर में दशहरा मैदान काफी दूर है. हम सदर बाजार से गेट की विपरीत दिशा में चलते हैं तो आखिरी में जामा मस्जिद चौराहा आता है. जामा मस्जिद की और ना जाते हुए उस के विपरीत दिशा की ओर चलेंगे. बीच में चांदमल जी जैन साहब की पुरानी आई ल मिल आएगी. लगभग 2 किलोमीटर चलने के बाद एक बजरंगबली का मंदिर आता है जो निर्माणाधीन है, अभी बना है कि नहीं इसकी क्लियर जानकारी नहीं है. मंदिर के सामने मैदान में रावण दहन कार्यक्रम किया जाता है. यह सार्वजनिक हिंदू उत्सव समिति द्वारा किया जाता है. दशहरे के दिन रामजी लक्ष्मण जी दो बालकों को तैयार कर रावण दहन हेतु जुलूस के रूप में लाया जाता है. पुराने समय में हर गांव के बाहर दक्षिण दिशा में रावण दहन कार्यक्रम किया. संभवतया इसीलिए इस स्थल का चयन पूर्वजों द्वारा किया गया. इसके आगे लगभग 500 मीटर चलने पर शमी का वृक्ष आता है. दशहरे में सोना पत्ती इसी की दी जाती है. 1990 के आसपास डॉ भल्ला द्वारा हायर सेकंडरी मैदान पर रावण दहन कार्यक्रम किया गया. वर्तमान में अधिकांश लोग वहीं पर जाते हैं. पुराने लोग पुराने दशहरे मैदान में भी जाते हैं. पुरानी दशहरा मैदान के आस पास बहुत अतिक्रमण हो गया है.
- जामा मस्जिद- सारंगपुर में मुझे सबसे पुरानी मस्जिद जामा मस्जिद ही लगती थी, क्योकि उसका स्ट्रक्चर काफी पुराना दीखता हे. यह मालवा काल या मुग़ल काल की दिखती हे. इसके निर्माण के समय की एक कहानी पुराने लोग बताते हे. जामा मस्जिद के निर्माण में लगे मजदूर जब निर्माण कार्य के बाद नदी पर नहाने जाते थे, तो उन्होंने अपनी नमाज पढने के लिए एक मस्जिद का निर्माण किया. यह मस्जिद काले पत्थरो की बनाई थी, इसलिए इसका नाम काली मस्जिद पड़ा. जब तक जामा मस्जिद का निर्माण कार्य चला तब तक मजदूरों ने काली मस्जिद में ही नमाज पढ़ी. यह मस्जिद भी पत्थरो की बनी हे और बहुत पुराना निर्माण प्रतीत होता हे. यह मस्जिद पुराने बाँध के पास में हे. यदि यह कहानी सही हे तो सबसे पुरानी मस्जिद काली मस्जिद हो सकती हे.
- खान पान - सारंगपुर के लोग खान पान के बहुत शौकीन है यहाँ का सबसे प्रचलित खाना दाल बाटी है। यहाँ पर होटल के नाम पर कुछ अच्छी होटल व रेस्टोरेंट भी है जिनमे कम दाम मैं अच्छा खाना मिल जाता है व साथ ही रात्रि विश्राम की भी अच्छी व्यवस्था है।
- होटल व रेस्टोरेंट - कुटिया फेमली रेस्टोरेंट व लाज, भावना होटल, नीलकंठ भोजनालय, राष्ट्रीय भोजनालय
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Inde du Nord: Madhya Pradesh et Chhattisgarh Archived 2019-07-03 at the वेबैक मशीन," Lonely Planet, 2016, ISBN 9782816159172
- ↑ "Tourism in the Economy of Madhya Pradesh," Rajiv Dube, Daya Publishing House, 1987, ISBN 9788170350293