सरगासूली

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चित्र:जयपुर शहर की सबसे ऊंची मीनार
महाराजा ईश्वरीसिंह द्वारा सन 1749 ईस्वी में बनवाया युद्ध-विजय-स्मारक: सात खण्डों की मीनार 'सरगासूली' उर्फ़ 'ईसरलाट'

अठारहवीं सदी में 1749 में सात खण्डों की इस भव्य जयपुर शहर की सबसे ऊंची मीनार मीनार 'ईसरलाट' उर्फ़ 'सरगासूली' का निर्माण महाराजा ईश्वरी सिंह ने जयपुर के गृहयुद्धों में विरोधी सात दुश्मनों पर अपनी तीन विजयों के बाद करवाया था।

ईसरलाट उर्फ़ सरगासूली[संपादित करें]

इस मीनार का निर्माण चूंकि महाराजा ईश्वरीसिंह ने कराया था, इसीलिए इसका नाम 'ईसरलाट' रखा गया ; पर 'स्वर्ग को छूती हुई सी मीनार' प्रतीत होने के कारण स्थानीय भाषा में इसे 'सरगासूली' के नाम से अधिक जाना जाता है। 'त्रिपोलिया बाजार' में दिखने वाली यह मीनार वास्तव में त्रिपोलिया में न हो कर, इसके पीछे स्थित 'आतिशबाज़ार' की दुकानों के ऊपर बनी है। परकोटा इलाके में त्रिपोलिया बाजार से दिखाई देती इस सात मंजिला अष्टकोणीय मीनार को वर्ष 1749 में राजा ईश्वरीसिंह ने दरबार के एक राजशिल्पी गणेश खोवान के नक़्शे के अनुरूप बनवाया था। 'ईसरलाट' के छोटे प्रवेश-द्वार में प्रविष्ट होने के बाद, संकरी गोलाकार सीढियां क्रमशः घूमती हुई ऊपर की ओर बढ़ती है। स्तम्भ की हर मंजिल पर एक द्वार बना है, जो मीनार की बालकनी में खुलता है। सात खण्डों में बनी इस इमारत की निर्माण-शैली राजपूत और मुगल-वास्तु-शैलियों का सम्मिश्रण है। मुगल शैली में मस्जिदों के चार कोनों पर बनने वाली मीनारों से मिलती जुलती यह वास्तुरचना, शीर्षभाग पर एक गोलाकार छतरी लिए हुए हैं। 'गुलाबी-नगर' में (यानि परकोटा इलाके के बीच स्थित होते हुए भी) इसका रंग गहरा 'पीला' है। अनेक दशकों तक इसमें जनता का प्रवेश वर्जित था- पर पर्यटन विकास के लिए अब इसे टिकट लगा कर आम दर्शक के लिए खोल दिया गया है, क्यों कि लाट के शिखर पर जो गोलाकार, अष्टकोणीय छतरी है, वहां से पुराने जयपुर शहर का नयनाभिराम नजारा दिखाई देता है। कविशिरोमणि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने जयपुर वैभवम में इस स्मारक के बारे में अतिशयोक्ति अलंकार का उपयोग करते अपनी एक प्रशंसात्मक कविता में ये भाव व्यक्त किये हैं-" सोने के कलश वाली जिसकी ऊपरी गुम्बज ऊंचाई के कारण आकाश का जैसे आलिंगन कर रही है, देवताओं के साथ जैसे ईश्वर मंत्रणा करते हैं, मानो देवताओं से बातचीत के लिए, ईश्वरीसिंह जी ने जिसे इतना ऊंचा बनवाया है कि सूर्य-किरण तक जिस पर बमुश्किल पहुँच पाती है"....." संस्कृत और ब्रजभाषा के महाकवि श्रीकृष्णभट्ट कविकलानिधि ने भी अपने जयपुर पर लिखे इतिहास-काव्यग्रंथ ईश्वरविलास महाकाव्य में अन्य राजपुरुषों के अलावा ईश्वरीसिंह के भी 'जीवन-चरित्र' का वर्णन किया है।

सरगासूली और कुछ किंवदंतियाँ[संपादित करें]

जयपुर के इतिहास से जुड़े साहित्य में इस मीनार 'ईसरलाट' से संबंधित कुछ रोचक किंवदंतियां हैं। स्थानीय लोगों में ये धारणा आमफहम है कि 'महाराजा यहां बैठ कर पास की हवेली की किसी सुन्दरी को एकटक देखा करते थे।' लेकिन यह शायद सत्य नहीं। दरअसल बूंदी, जयपुर से युद्धों में पराजित राज्यों में से एक था। वहां के ख्यातनाम चारण राजकवि थे सूर्यमल्ल मिश्रण। सूर्यमल्ल ने अपने पिंगल भाषा के काव्यग्रन्थ वंश भास्कर में जयपुर की बूंदी पर जीत से 'अप्रसन्न' जिस कविता की रचना की, उसमें यह बात लिख दी कि "राजा ईश्वरीसिंह ने सरगासूली का निर्माण अपने सेनापति हरगोविंद नाटाणी की बहुत सुन्दर बेटी को ‘देखने’ के लिए कराया है।" हालांकि जयपुर-इतिहास के अनजाने पृष्ठ पढ़ कर यह जानकारी ज़रूर होती है कि 'राजा अपने सेनापति हरगोविंद की अनिंद्य रूपसी कन्या पर अनुरक्त है यह महान राजा नहीं था , नटनियो से डरता था

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

महाराजा ईश्वरी सिंह