जयपुर-वैभवम
जयपुरवैभवम्, भट्ट मथुरानाथ शास्त्री (23 मार्च 1889 - 4 जून 1964) द्वारा भारत की स्वाधीनता से तत्काल पूर्व सन 1947 में 476 पृष्ठों में प्रकाशित एक काव्य-ग्रन्थ है।[1] जो जयपुर के नगर-सौंदर्य, दर्शनीय स्थानों, देवालयों, मार्गों, उद्यानों, सम्मानित नागरिकों, उत्सवों, यहाँ की कविता-परम्परा और प्रमुख त्योहारों आदि पर केन्द्रित है [2]
पुस्तक पर सम्मतियाँ
[संपादित करें]१० फ़रवरी १९४७ को इस काव्य-ग्रन्थ[ [https://web.archive.org/web/20140724200859/https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A3%E0%A5%80%3A%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5%5D%5D%E0%A4%95%E0%A5%80 पांच पृष्ठीय (अंग्रेज़ी में लिखी) भूमिका की शुरुआत जयपुर के राजगुरु पंडित गोपीनाथ द्रविड़ एम. ए., एलएल.बी., ने अपने इन शब्दों से की थी- "यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे भट्ट मथुरानाथजी जैसे संस्कृत कविता के प्रसिद्ध हस्ताक्षर द्वारा रचित इस उत्कृष्ट कृति के लिए एक परिचयात्मक आलेख लिख पाने का विरल सम्मान मिला | इस ग्रन्थ की अनुक्रमणिका के सरसरे अवलोकन मात्र से पाठक को ज्ञात हो जाएगा कि लेखक ने इस कृति में न जाने कितनी ही घटनाओं, व्यक्तित्वों और स्थानों का चित्रण किया है।...." जहाँ संस्कृत में ५६ पृष्ठ में इस पुस्तक की विस्तृत प्रस्तावना " किमपि प्रास्ताविकम" शीर्षक से महामहोपाध्याय श्री गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी ने लिखी थी वहीं बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के Ancient Middle History and Antiquities के प्रोफ़ेसर डॉ॰ प्राणनाथ, डी.एससी.(लन्दन) पीएच.डी.(वियना) ने भट्ट जी के इस कृति के रूप में काव्यात्मक अवदान का बड़े सम्मान से स्मरण किया।[1]
'जयपुर वैभवम्' की लेखकीय भूमिका
[संपादित करें]कविशिरोमणि भट्टजी ने ९७ पृष्ठों की अपनी लेखकीय भूमिका 'आमुखम' में साहित्य, काव्यशास्त्र, काव्य-परंपरा, ब्रजभाषा के विकास, इसके पद-माधुर्य, अपभ्रंश से इसके अंतर्संबंध, इसके छंदशास्त्र, संस्कृत और ब्रज-भाषा के काव्य की तुलना, प्रस्तुत ग्रन्थ के स्वरुप, उर्दू भाषा के छंदों, हिन्दी की खड़ी बोली, संस्कृत-उर्दू अंतर्संबंध, जयपुर राज्य के नरेशों, संस्कृत-व्याकरण और कविता, न जाने कितने सांस्कृतिक-विषयों का तलस्पर्शी विवेचन किया है।[2]
'जयपुर वैभवम्' की विषयवस्तु
[संपादित करें]अकेले १० पृष्ठों में तो इस पुस्तक की विषयसूची ही है- जिस में 'आमुख वीथी/चतुष्पदी चत्वरः, मंगल-चत्वरः, नगरवीथी, राजवीथी, उत्सववीथी, नागरिकवीथी, उद्यानवीथी, अभिनन्दनवीथी और व्रजकवितावीथी जैसे अध्याय हैं। 'नागरिक वीथी' खंड में ६६ से अधिक जिन सुप्रतिष्ठित जयपुर-नागरिकों के बारे में काव्यात्मक विवरण दिया गया है, वे राजनीति, प्रशासन, ज्योतिष, शिक्षा, धर्म, राज्य-सेवा, व्याकरण, समाज-सुधार, आयुर्वेद, चिकित्सा, नगर-नियोजन, वैदिक-साहित्य, विज्ञान, खगोलशास्त्र, साहित्य आदि अनेकानेक क्षेत्रों के जाने माने व्यक्तित्व रहे हैं।[3]
भट्ट जी ने यह ग्रन्थ लिख कर जैसे अपने समय के जयपुर पर एक अतुल सन्दर्भ-ग्रन्थ या 'विश्वकोश' ही बना डाला है। संस्कृत की आधुनिक कविता, ब्रजभाषा के परंपरागत सौंदर्य और जयपुर का इतिहास जानने के उत्सुक हर पाठक के लिए उनकी यह सरस कृति अपने विषय के आधिकारिक-विवरण, जगहों और लोगों के वर्णन की विश्वसनीयता और संस्कृत/ब्रजभाषा काव्य के माधुर्य के लिए स्मरण की जाएगी- 'नगरीय-इतिहास' के शोधकर्ताओं के लिए इस कृति का सदर्भ-ग्रन्थ के रूप में अपना महत्त्व तो है ही.
संस्कृत के अलावा पद्यों का हिन्दी-अनुवाद
[संपादित करें]मूल संस्कृत में रचित अनेक महत्वपूर्ण अंशों का सरल हिन्दी अनुवाद, जो स्वयं भट्ट जी ने ही 'मित्रों के अनुरोध पर' किया है- संस्कृत न जानने वाले पाठक के लिए भी बड़ा उपयोगी बन पड़ा है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ 1.प्रथम संस्करण/ जयपुर में स्वयं कवि द्वारा प्रकाशित (निःशुल्क वितरण के लिए); दूसरा संस्करण : 'राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, जयपुर से/२०१०)
- ↑ "संग्रहीत प्रति" (PDF). मूल (PDF) से 26 नवंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 जून 2014.
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]कविशिरोमणि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री