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मैथिल ब्राह्मण

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मैथिल ब्राह्मणों का नाम मिथिला के नाम पर पड़ा है। मिथिला के ब्राह्मणो को मैथिल ब्राह्मण कहा जाता है। मिथिला प्राचीन काल में भारत का एक राज्य था। मिथिला वर्तमान में एक सांस्कृतिक क्षेत्र है जिसमे बिहार के तिरहुत, दरभंगा, मुंगेर, कोसी, पूर्णिया और भागलपुर प्रमंडल तथा झारखंड के संथाल परगना प्रमंडल[1]के साथ-साथ नेपाल के प्रदेश संख्या २, प्रदेश संख्या १ के कुछ जिले और प्रदेश संख्या ३ का चितवन जिला भी शामिल हैं। जनकपुर , दरभंगा और मधुबनी मैथिल ब्राह्मणो का प्रमुख सांस्कृतिक केंन्द्र है। मैथिल ब्राह्मण बिहार , नेपाल , उत्तर प्रदेश के केन्द्रीय ब्रज क्षेत्र के आगरा,अलीगढ़,हाथरस और मथुरा, झारखण्ड प्रदेश के देवघर व देवघर के आस-पास के क्षेत्रों में अधिक हैं। मैथिल ब्राह्मण पंच गौड़ ब्राह्मणों में से एक हैं। पंच गौड़ ब्राह्मणों के अंतर्गत मैथिल ब्राह्मण , कान्यकुब्ज ब्राह्मण , सारस्वत ब्राह्मण , गौड़ ब्राह्मण , उत्कल ब्राह्मण हैं[2][3][4] |

मिथिला क्षेत्र के कुछ राजवंश परिवार, जैसे ओइनवार वंश, दरभंगा राज ( खण्डवाल ) मैथिल ब्राह्मण थें और मैथिल संस्कृति के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध थे।[5]

1960 और 1970 के दशक में बिहार में मैथिल ब्राह्मण राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बन गए। पं. बिनोदानंद झा और ललित नारायण मिश्र समुदाय के प्रमुख राजनीतिक नेताओं के रूप में उभरे। डॉ. जगन्नाथ मिश्र के मुख्यमंत्री के समय कई मैथिल ब्राह्मणों ने बिहार में महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर विचार किया।[6]

धार्मिक परम्पराएँ

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मैथिल ब्राह्मण मुख्य रूप से शाक्त हैं, हालांकि वैष्णव और शैव भी हैं।[7] मैथिल ब्राह्मण जो शाक्त हैं, भगवती (शक्ति) की पूजा करते हैं।[8]

वैदिक संहिता के अनुसार, मैथिल ब्राह्मणों को छान्दोग्य(सामवेद) और बाजसनेयी(यजुर्वेद) में विभाजित किया गया है और प्रत्येक समूह सख्ती से अतिरंजित है। उन्हें आगे भी चार मुख्य श्रेणियों श्रोत्रिय, योग्य, पंजी और जयवार द्वारा वर्गीकृत किया गया है [9]

उल्लेखनीय व्यक्ति

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ब्रजस्थ मैथिल ब्राह्मण

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ब्रजस्थ मैथिल ब्राह्मण वे ब्राह्मण हैं जो गयासुद्दीन तुग़लक़ से लेकर अकबर के शासन काल तक तिरहुत (मिथिला) से भारत की तत्कालीन राजधानी आगरा में बसे तथा समयोपरान्त केन्द्रीय ब्रज के तीन जिलो मे औरंजेब के कुशासन से प्रताड़ित होकर बस गये। ब्रज मे पाये जाने वाले मैथिल ब्राह्मण उसी समय से ब्रज मे प्रवास कर रहे हैं। जो कि मिथिला के गणमान्य विद्वानो द्वारा शोधोपरान्त ब्रजस्थ मैथिल ब्राह्मणो के नाम से ज्ञात हुए। ये ब्राह्मण ब्रज क्षेत्र के आगरा, अलीगढ़, मथुरा,और हाथरस मे प्रमुख रूप से रहते हैं। यहा से भी प्रवासित होकर यह दिल्ली, अजमेर, जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, बड़ोदा, दाहौद, लख्ननऊ, कानपुर आदि स्थानो पर रह रहे हैं। गयासुद्दीन तुगलक से लेकर अकबर के शासन काल और दारा शिकोह के समय तक मिथिला से आगरा राजधानी में राजनैतिक, धार्मिक, तांत्रिक, और साहित्यिक अनुष्ठानों हेतु पधारे इन ब्राह्मणों को औरंगज़ेब के शासन काल में प्रताड़ित होने पर आगरा छोड़कर अलीगढ, मथुरा, हाथरस और आगरा के निकटवर्ती ग्रामों में लम्बे समय तक छुपकर रहना पड़ा । ब्रज प्रदेश में रहने वाले मैथिलों का मिथिलावासी मैथिलों से आवागमन भी बंद हो गया। ऐसा १६५८ ई० से लेकर १८५७ की क्रान्ति तक चलता रहा . १८५७ ई० के बाद भारतीय समाज सुधारकों ने एक आजाद भारत का सपना देखा था। मिथिला का ब्राह्मण समाज भी आजाद भारत का सपना देखने लगा। 'स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती ने ठीक इसी समय जाती उत्थान की आवाज को बुलंद किया। उन्होंने जाती उत्थान के लिए सम्पूर्ण भारत में बसे मिथिला वासियों से संपर्क किया जिसका परिणाम यह हुआ की औरंगज़ेब के समय में मिथिलावासी और प्रवासी मैथिल ब्राह्मणों  के जो सम्बन्ध टूट गए थे वह फिर से चालू हो गए। उन्हीं के प्रयासों से अलीगढ़ के मैथिल ब्राह्मणों  का मिथिला जाना और मिथिलावासियों का अलीगढ़ आना संभव हुआ। इसी समय स्वामी जी ने मिथिला से लौटकर अलीगढ़ में मैथिल सिद्धांत सभा का आयोजन किया। सिद्धांत सभा के कार्यकर्ताओं और मिथिलावासी रुना झा द्वारा १८८२ से १८८६ के बीच  पत्र व्यवहार आरम्भ हुआ।

पंजी व्यवस्था

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मैथिल ब्राह्मणो में पंजी (मिथिला) पंजी -व्यवस्था है, जो मैथिल ब्राह्मणों और मैथिल कायस्थों की वंशावली लिखित रूप से रखती है। आजकल यह प्रथा समाप्त हो रही है।

सन्दर्भ

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  • मैथिल ब्राह्मणो की पंजी व्यवस्था लेखक पं गजेन्द्र ठाकुर
  • Christopher Alan Bayly, Rulers, Townsmen,

and Bazaars: North Indian Society in the Age of British Expansion, 1770–1870, Cambridge University Press, 1983.

  • Anand A. Yang, Bazaar India: Markets,

Society, and the Colonial State in Bihar, University of California Press, 1999. "A History of brahmin calan" by Pt. Dorilal sharma shrotriya., "Hamaare Pravaas ka itihaas" by Pt. phool bihari sharma. "Vidhyapati dairy"1972 Granthalaya Prakashan Darbhanga, "Ain-a-Akbari" By Abul fazal

  1. Jha, Pankaj Kumar (2010). Sushasan Ke Aaine Mein Naya Bihar. Bihar (India): Prabhat Prakashan. Archived from the original on 28 मार्च 2019. Retrieved 9 दिसंबर 2018. {{cite book}}: Check date values in: |access-date= (help)
  2. James G. Lochtefeld (2002). The Illustrated Encyclopedia of Hinduism: N-Z. Rosen. pp. 490–491. ISBN 9780823931804. Archived from the original on 8 मई 2016. Retrieved 10 दिसंबर 2018. {{cite book}}: Check date values in: |access-date= (help)
  3. D. Shyam Babu and Ravindra S. Khare, ed. (2011). Caste in Life: Experiencing Inequalities. Pearson Education India. p. 168. ISBN 9788131754399.
  4. "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 1 जनवरी 2019. Retrieved 31 दिसंबर 2018. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= (help)
  5. "Civilizational Regions of Mithila & Mahakoshal". p. 64.
  6. Verma, Ravindra Kumar (May 1991). "Caste and Bihar Politics". Economic and Political Weekly. 26 (18). Sameeksha Trust: 1142–4. Retrieved 28 March 2013.
  7. Jha, Makhan (1997). Anthropology of Ancient Hindu Kingdoms: A Study in Civilizational Perspective. M.D. Publications Pvt. Ltd. pp. 38–. ISBN 978-81-7533-034-4. Archived from the original on 22 मई 2016. Retrieved 2 जनवरी 2019.
  8. Maitra, Asim (1986). Religious Life of the Brahman: A Case Study of Maithil Brahmans. Inter-India Publications. p. 54. Archived from the original on 17 जुलाई 2018. Retrieved 2 जनवरी 2019.
  9. Jha, Makhan (1997). Anthropology of Ancient Hindu Kingdoms: A Study in Civilizational Perspective. p. 32. ISBN 9788175330344. Retrieved 6 April 2017.