गिरीश कर्नाड
गिरीश कर्नाड | |
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गिरीश कार्नाड कॉर्नेल विश्वविद्यालय में, 2009 | |
जन्म | गिरीश रघुनाथ कार्नाड 19 मई 1938 माथेरान, ब्रिटिश भारत (वर्तमान में महाराष्ट्र, भारत) |
मृत्यु | (10 june 2019, Age=81 years) बैंगलोर |
व्यवसाय | नाटककार, निर्देशक, अभिनेता, कवि |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
उच्च शिक्षा | ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय |
विधा | कथा साहित्य |
साहित्यिक आन्दोलन | नव्या |
उल्लेखनीय कार्यs | तुग़लक 1964 तलेदंड (हिन्दी: रक्त कल्याण) |
गिरीश कार्नाड ( १९३८-१० जून २०१९,माथेरान, महाराष्ट्र) भारत के जाने माने समकालीन लेखक, अभिनेता, फ़िल्म निर्देशक और नाटककार थे। कन्नड़ और अंग्रेजी भाषा दोनों में इनकी लेखनी समानाधिकार से चलती थी। 1998 में ज्ञानपीठ सहित पद्मश्री व पद्मभूषण जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों के विजेता कर्नाड द्वारा रचित तुगलक, हयवदन, तलेदंड, नागमंडल व ययाति जैसे नाटक अत्यंत लोकप्रिय हुये और भारत की अनेकों भाषाओं में इनका अनुवाद व मंचन हुआ है। प्रमुख भारतीय निदेशको - इब्राहीम अलकाजी, प्रसन्ना, अरविन्द गौड़ और बी.वी. कारंत ने इनका अलग- अलग तरीके से प्रभावी व यादगार निर्देशन किया हैं।
आरंभिक जीवन[संपादित करें]
एक कोंकणी भाषी परिवार में जन्में कार्नाड ने १९५८ में धारवाड़ स्थित कर्नाटक विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि ली। इसके पश्चात वे एक रोड्स स्कॉलर के रूप में इंग्लैंड चले गए जहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड के लिंकॉन तथा मॅगडेलन महाविद्यालयों से दर्शनशास्त्र, राजनीतिशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। वे शिकागो विश्वविद्यालय के फुलब्राइट महाविद्यालय में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर भी रहे।
कार्य[संपादित करें]
साहित्य[संपादित करें]
कार्नाड की प्रसिद्धि एक नाटककार के रूप में ज्यादा है। कन्नड़ भाषा में लिखे उनके नाटकों का अंग्रेजी समेत कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। एक खास बात ये है कि उन्होंने लिखने के लिए ना तो अंग्रेज़ी को चुना, जिस भाषा में उन्होंने एक समय विश्वप्रसिद्ध होने के अरमान संजोए थे और ना ही अपनी मातृभाषा कोंकणी को। जिस समय उन्होंने कन्नड़ में लिखना शुरू किया उस समय कन्नड़ लेखकों पर पश्चिमी साहित्यिक पुनर्जागरण का गहरा प्रभाव था। लेखकों के बीच किसी ऐसी चीज के बारे में लिखने की होड़ थी जो स्थानीय लोगों के लिए बिल्कुल नयी थी। इसी समय कार्नाड ने ऐतिहासिक तथा पौराणिक पात्रों से तत्कालीन व्यवस्था को दर्शाने का तरीका अपनाया तथा काफी लोकप्रिय हुए। उनके नाटक ययाति (1961, प्रथम नाटक) तथा तुग़लक़ (1964) ऐसे ही नाटकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। तुगलक से कार्नाड को बहुत प्रसिद्धि मिली और इसका कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ।
सिनेमा[संपादित करें]
वंशवृक्ष नामक कन्नड़ फ़िल्म से इन्होंने निर्देशन की दुनिया में कदम रखा। इसके बाद इन्होंने कई कन्नड़ तथा हिन्दी फ़िल्मों का निर्देशन तथा अभिनय भी किया।
प्रमुख फ़िल्में[संपादित करें]
- जीवन मुक्त (1977) - अमरजीत (पात्र)
- इकबाल टाइगर जिंदा है ,एक था टाइगर
कृतियां[संपादित करें]
नाटक[संपादित करें]
- ययाति - गिरीश कार्नाड का चर्चित नाटक। देशभर में निदेशको द्वारा मंचन।
- तुग़लक - हिंदुस्तानी मे अनुवाद - स्व. बी.वी. कारंत। निदेशक इब्राहीम अलकाजी, प्रसन्ना, अरविन्द गौड़ और दिनेश ठाकुर ने इसका निर्देशन किया।
- अग्नि मत्तु मळे
- ओदकलु बिम्ब
- अंजुमल्लिगे - रानावि के लिए प्रसन्ना द्वारा निर्देशन।
- मा निषाद
- टिप्पुविन कनसुगळु
- तलेदंड - रानावि के पूर्व निर्देशक राम गोपाल बजाज द्वारा हिन्दी अनुवाद रक्त कल्याण - रानावि के लिए इब्राहीम अलकाजी और फिर अस्मिता नाटय संस्था द्वारा अरविंद गौड़ के निदेशन में १९९५ से २००९ तक १५० से ज्यादा मंचन।[1]
- हित्तिन हुंज
- नागमंडल - सबसे चर्चित नाटक। देशभर में प्रमुख भारतीय निदेशको द्वारा मंचन।
- हयवदन - स्व.बी.वी. कारंत द्वारा निदेशन।
पुरस्कार तथा उपाधियाँ[संपादित करें]
साहित्य के लिए[संपादित करें]
- 1972: संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
- 1974: पद्मश्री
- 1992: पद्मभूषण तथा कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार
- 1994: साहित्य अकादमी पुरस्कार
- 1998: ज्ञानपीठ पुरस्कार
सिनेमा के क्षेत्र में[संपादित करें]
- 1980 फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ पटकथा - गोधुली (बी.वी. कारंत के साथ)
- इसके अतिरिक्त कई राज्य स्तरीय तथा राष्ट्रीय पुरस्कार।