इंदिरा रायसम गोस्वामी

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इंदिरा गोस्वामी
जन्म14 नवम्बर 1942
गुवाहाटी, असम, ब्रितानी भारत
मौत29 नवम्बर 2011(2011-11-29) (उम्र 69)
गुवाहाटी, असम, भारत
पेशाअध्यापन, लेखन
भाषाअसमिया
राष्ट्रीयताभारतीय
विधागद्य
विषयकहानी, उपन्यास
उल्लेखनीय कामदक्षिणी कामरूप की गाथा, मामरे धरा तरोवाल अरु दुखन उपन्यास
खिताबपद्म श्री (2002), ज्ञानपीठ पुरस्कार (2000)

इंदिरा गोस्वामी (१४ नवम्बर १९४२ - नवम्बर, २०११) असमिया साहित्य की सशक्त हस्ताक्षर थीं। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित श्रीमती गोस्वामी असम की चरमपंथी संगठन उल्फा यानि युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम और भारत सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने की राजनैतिक पहल करने में अहम भूमिका निभाई। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास मामरे धरा तरोवाल अरु दुखन उपन्यास के लिये उन्हें सन् १९८२ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (असमिया) से सम्मानित किया गया।[1]


जीवन परिचय[संपादित करें]

इनका जन्म : १४ नवम्बर १९४३ गुवाहाटी असम में हुआ था और इसी गुवाहाटी में उन्होंने अंतिम सांस ली।

शिक्षा

गुवाहाटी विश्वविद्यालय से असमिया में एम ए तथा 'माधव कांदली एवं गोस्वामी तुलसीदास की रामायण का तुलनात्मक अध्ययन' पर पी एच डी।

सम्प्रति

दिल्ली विश्वविद्यालय के आधुनिक भारतीय भाषा विभाग में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत रहीं।

गोस्वामी को उनके मौलिक लेखन के लिए जाना जाता है। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर काफी लिखा था। उन्होंने भारत में महिला सशक्तीकरण पर जोर दिया था।

14 नवम्बर 1942 को जन्मी डॉ॰ गोस्वामी की प्रारंभिक शिक्षा शिलांग में हुई लेकिन बाद में वह गुवाहाटी आ गईं और आगे की पढ़ाई उन्होंने टी सी गर्ल्स हाईस्कूल और काटन काॅलेज एवं गुवाहाटी विश्वविद्यालय से पूरी की। उनकी लेखन प्रतिभा के दर्शन महज 20 साल में उस समय ही हो गए जब उनकी कहानियों का पहला संग्रह 1962 में प्रकाशित हुआ जबकि उनकी शिक्षा का क्रम अभी चल ही रहा था। वह देश के चुनिंदा प्रसिद्ध समकालीन लेखकों में से एक थीं। उन्हें उनके 'दोंतल हातिर उने खोवडा होवडा' ('द मोथ ईटन होवडाह ऑफ ए टस्कर'), 'पेजेज स्टेन्ड विद ब्लड और द मैन फ्रॉम छिन्नमस्ता' उपन्यासों के लिए जाना जाता है।

उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी का परिचय उनके आत्मकथात्मक उपन्यास 'द अनफिनिशड आटोबायोग्राफी'में मिलता है। इसमें उन्होंने अपनी जिन्दगी के तमाम संघर्षों पर रोशनी डाली है। यहां तक कि इस किताब में उन्होंने ऐसी घटना का भी जिक्र किया है कि दबाव में आकर उन्होंने आत्महत्या करने जैसा कदम उठाने का प्रयास किया था। तब उन्हें उनके बेपरवाह बचपन और पिता के पत्रों की यादों ने ही जीवन दिया। शायद इसी ईमानदारी तथा आत्मालोचना के बल ने उन्हें असम के अग्रणी लेखकों की पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया।

डॉ॰ गोस्वामी ने माधवन राईसोम आयंगर से 1966 में विवाह किया था लेकिन विवाह के महज डेढ़ साल बाद कश्मीर में हुई एक सड़क दुर्घटना में माधवन की हुई मौत ने उन्हें तोड़कर रख दिया। इसके बाद वह पूरी तरह से टूट गईं। एक समय तो वह वृंदावन जाने का मन बना लिया था, जिसे हिंदू विधवाओं के लिए एक गंतव्य माना जाता है। उन्हें इस सदमे से उबरने में काफी वक्त लगा। वह इससे बाहर तो आई लेकिन गमजदा होकर। यह तकलीफ उनके लेखन में सहज ही महसूस की जा सकती है।

उन्हें 1983 में उनके उपन्यास 'मामारे धारा तारवल' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। साल 1988 में उनकी आत्मकथा 'अधलिखा दस्तावेज' प्रकाशित हुई।

वह दिल्ली विश्वविद्यालय में असमिया भाषा विभाग में विभागाध्यक्ष भी रही। उनकी प्रतिष्ठा की चमक के कारण उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद मानद प्रोफेसर का दर्जा प्रदान किया। उन्हें डच सरकार का 'प्रिंसिपल प्रिंस क्लाउस लाउरेट' पुरस्कार भी प्रदान किया गया था।

उन्हें साल 2000 में साहित्य जगत का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला और 2008 में प्रिंसीपल प्रिंस क्लॉस लॉरिएट पुरस्कार मिला। उन्हें रामायण साहित्य में विशेषज्ञता के लिए साल 1999 में मियामी के फ्लोरिडा अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय से अंतर्राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार मिला था। गोस्वामी की किताबों का कई भारतीय व अंग्रेजी भाषाओं में अनुवाद हुआ है।

साहित्य पंजी[संपादित करें]

उपन्यास

  • चेनाबर स्रोत (१९७२)
  • नीलकण्ठी ब्रज (१९७६)
  • अहिरण (१९८०)
  • मामरे धरा तरोवाल आरु दुखन उपन्यास (१९८०)
  • दँताल हातीर उँये खोवा हाओदा (१९८८)
  • संस्कार, उदयभानुर चरित्र इत्यादि (१९८९)
  • ईश्बरी जखमी यात्री इत्यादि (१९९१)
  • तेज आरु धूलिरे धूसरित पृष्ठा (१९९४)
  • मामनि रयछम गोस्बामीर उपन्यास समग्र (१९९८)
  • दाशरथीर खोज (१९९९)
  • छिन्नमस्तार मानुहटो (२००१)
  • थेंफाख्री तहचिलदारर तामर तरोवाल (२००६)

चुटिगल्प (लघुकथा)

  • चिनाकि मरम (१९६२)
  • कइना (१९६६)
  • हृदय एक नदीर नाम (१९९०)
  • मामनि रयछमर स्बनिर्बाचित गल्प (१९९८)
  • मामनि रयछम गोस्बामीर प्रिय गल्प (१९९८)

आत्मकथा

  • आधा लिखा दस्ताबेज (१९८८)
  • दस्ताबेजर नतुन पृष्ठा (२००७)

जीवनी

  • महियसी कमला (१९९५)
  • मा (२००८)

अनुवाद

  • प्रेमचन्दर चुटिगल्प ((१९७५)
  • आधा घण्टा समय (१९७८)
  • जातक कथा (१९९६)
  • कलम (१९९६)
  • आह्निक (२०००)

अंग्रेजी

  • Ramayana from Ganga to Brahmaputra (१९९६)

सम्पादन

  • एरि अहा दिनबोर (ड° मलया खाउन्दर के साथ, १९९३)
  • Indian folklore

सम्मान[संपादित करें]

मुख्य[संपादित करें]

  • साहित्य अकादमी पुरस्कार १९८३
  • असम साहित्य सभा पुरस्कार १९८८
  • भारत निर्माण पुरस्कार १९८९
  • उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का सौहार्द पुरस्कार १९९२
  • कमलकुमारी फाउंडेशन पुरस्कार १९९६
  • अन्तर्राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार फ्लोरिडा यू एस ए १९९९

अन्य सम्मान[संपादित करें]

इसके अतिरिक्त "दक्षिणी कामरूप की गाथा" पर आधारित हिन्दी टी वी धारावाहिक तथा उक्त उपन्यास पर असमिया में निर्मित फिल्म "अदाज्य" को राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय ज्यूरी पुरस्कार प्राप्त।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "अकादमी पुरस्कार". साहित्य अकादमी. मूल से 15 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 सितंबर 2016.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]