गंधक
गंधक एक रासायनिक अधातुक तत्त्व है।
इतिहास[संपादित करें]
बहुत प्राचीन काल से यह ज्ञात है। तब औषधों और युद्धों में यह प्रयुक्त होता था। मध्ययुग के कोमियागरों को भी गंधक मालूम था और अनेक रासायनिक प्रक्रियाओं में प्रयुक्त होता था। वे गंधक को जलनीय वायु का सार समझते थे। फ्लाजिस्टन सिद्धांत से इसका घनिष्ठ संबंध रहा। लावाजिए ने पहले-पहल इसको रासायनिक तत्व की संज्ञा दी थी। गे लूसाक (Gay Lussac) और लुई थेनार्ड (Louis Thenard) ने 1809 ई. में इसकी पुष्टि की।
भौतिक गुण[संपादित करें]
गंधक हल्के पीले रंग का स्वादरहित और गंधरहित ठोस पदार्थ है। यह प्रधानतया तीन रूपों में पाया जाता है-
- समचतुर्भुजीय मणिभ,
- ऐल्फा गंधक और एकनत मणिभ,
- बीटा गंधक
समचतुर्भुजीय मणिभ सामान्य ताप पर स्थायी होता है। एकनत मणिभ उच्च ताप पर बनता और सामान्य ताप पर धीरे-धीरे समचतुर्भुजीय रूप में परिणत हो जाता है। क्रांतिक ताप 95.50 सें है। गंधक का एक चौथा रूप, गामा या प्लास्टिक गंधक है, जो रबर सा सुनम्य होता है। इन तीनों रूपों के बाह्य रूप मणिभ संरचना और भौतिक गुण विभिन्न होते हैं। ऐल्फा गंधक का विशिष्ट घनत्व 2.7 (200 सें पर), गलनांक 112.80 सें. और द्रवण उष्मा 11.9 कैलरी है। बीटा गंधक का आपेक्षिक घनत्व 1.95, गलनांक 118.90 सें. और प्लास्टिक गंधक का आपेक्षिक घनत्व 1.92 है। गरम करने से गंधक में कुछ विचित्र परिवर्तन होते हैं। इसके पिघलते ही हल्के पीले रंग का द्रव गंधक बनता है। गंधक का समचतुर्भुजीय रूप 112.80 सें. पर और एकनत रूप 118.90 सें पर पर पिघलता है। 1200 सें. के ऊपर गरम करने से लगभग 1570 सें. तक द्रव की श्यानता कम होती जाती है। 1690-1600 सें. से श्यानता बढ़ने लगती है और 1860-1880 सें. पर महत्तम हो जाती है। इस ताप के ऊपर श्यानता फिर कम होने लगती है ओर रंग में भी स्पष्ट परिवर्तन होते हैं। 1600 सें. से ऊपर रंग अधिक गाढ़ा होता है तथा 2500 सें. पर भूरा काला होता है। ठंढा करने पर ये परिवर्तन ठीक प्रतिकूल दिशा में उसी प्रकार होते हैं।
444.60 सें. पर गंधक उबलने लगता है। उबलने पर पहले संतरे जैसे पीले रंग का वाष्प बनता है। ये परिवर्तन गंधक के अणुओं में परिवर्तन होने के कारण होते हैं। विभिन्न दशाओं में अणुओं में परमाणु की संख्या भिन्न होती है और उनकी बनावट में भी भिन्नता होती है।
गंधक जल में अवलेय, पर कार्बन डाइ सल्फाइड नामक द्रव में अतिविलेय होता है। कार्बनिक विलायकों में गंधक न्यूनाधिक मात्रा में घुलता है।
रासायनिक गुण[संपादित करें]
गंधक सक्रिय तत्व है। स्वर्ण और प्लेटिनम को छोड़कर अन्य तत्वों के साथ यह संयोग करता तथा अनेक यौगिक बनाता है। इन यौगिकों में गंधक की संयोजकता दो, चार या छह रहती है। हाइड्रोजन के साथ इससे हाइड्रोजन सल्फाइड, ऑक्सीजन के साथ आक्साइड और धातुओं के साथ धातुओं के सल्फाइड बनते हैं। यह एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है, जिसका रासायनिक उद्योगों में उपयोग किया जाता है। यद्यपि इसके स्थान पर अनेक अन्य पदार्थ उपयोग में लाए जाने लगे हैं, तथापि आज भी इसकी खपत बहुत अधिक है। किसी भी राष्ट्र की रासायनिक उद्योगों की प्रगति का अनुमान सल्फ्यूरिक अम्ल की खपत से किया जा सकता है, जो गंधक द्वारा ही निर्मित होता है। सलफ्यूरिक अम्ल के अतिरिक्त गंधक के उपयोग कुछ अन्य उद्योगों, जैसे कीटनाशक पदार्थो, दियासलाई, बारूद, विस्फोटक पदार्थो आदि-आदि में भी होते हैं।
गंधक संयुक्त और असंयुक्त, दोनों रूपों में पाया जाता है। असंयुक्त गंधक कुछ देशों में, विशेषत: ज्वालामुखी और गंधकवाल झरनों के निकटवर्ती स्थानों में, पाया जाता है। विशेष रूप से यह सिसिली द्वीप, जापान, चिली और अमरीका के अनेक क्षेत्रों में पाया जाता है।
संयुक्त गंधक सल्फाइड (लोहे सल्फाइड : लौहमाक्षिक, जस्ते के सल्फइड : जिंक ब्लेंड, सीसे के सल्फाईड : गैलीना और ताँबे के सल्फाइड: ताम्रमाक्षिक) और सल्फेट (कैलसियम सल्फेट : जिपसम, बेरियम सल्फेट : बेराइछा, मैग्नीशियम सल्फेट : किसेराइट) के रूपों में पाया जाता है। कुछ झरनों के जलों में हाइड्रोजन सल्फेट मिलता है। समुद्र जल में कैलसियम और मैग्नीशियम के सल्फेट पाए जाते हैं। बाल, ऊन, ऐल्ब्युमिन, लहसुन, सरसों, मुली, करमकल्ला और कुछ प्रोटीन आदि कार्बनिक पदार्थों में गंधक रहता है। भूपृष्ठ की पर्पटी में 0.06 प्रतिशत गंधक विभिन्न रूपों में पाया जाता है।
खान से निकले गंधक के खनिज को भट्ठे के, जिसे कालकेरोनी (Calcaroni) कहते हैं। ढालवें तल पर जलाने से कुछ गंधक जलकर जो उष्मा उत्पन्न करता है उससे खनिज का शेष गंधक पिघल और बहकर अपद्रव्यों से अलग हो जाता है। इस प्रकिया में गंधक का एक तिहाई अंश जलकर नष्ट हो जाता है। फिर ऐसे भट्ठे बने जिनके एक भट्ठे की गरम गैसों से दूसरा भट्ठा गरम होता था इससे गंधक की हानि कुछ कम हो गई। जापान में खान से निकले गंधक को बंद भभके में गरम कर गंधक के वाष्प के आसवन से गंधक प्राप्त हद्मने लगा। भभकों को भाप से अथवा ऑटोक्लेब में अतितप्त जल से गरम करते थे। आजकल फ्रैश विधि (Frasch process) से अमरीका में खानों से गंधक निकाला जाता है वहां 200 से 2,000 फुट तक की गहराई में गंधक पाया जाता है। खानों में छेद करके संकेंद्रित नलीवाली पाइप बैठाई जाती है बाहर से अतितप्त जल प्रवाहित करने से गंधक पिघलकर गड्ढे में इकट्ठा होता है, जहाँ से संपीड़ित वायु के सहारे बीच की नली से पिघला गंधक बाहर निकालकर, लकड़ी के साँचों में डालकर, बत्ती के रूप में प्राप्त किया जाता है।
माक्षिकों (Pyrites) से गंधक प्राप्त करने के अनेक सफल प्रयत्न हुए हैं और अनेक भट्ठियाँ बनी हैं जिनमें उपोत्पाद के रूप में गंधक या सल्फर डाइआक्साइड प्राप्त होता है। इससे सलफ्यूरिक अम्ल बनाया जा सकता है।
भारत में प्राकृतिक गंधक का कोई भी विशाल निक्षेप नहीं है। भारत विभाजन से पूर्व बलूचिस्तान में कोह-ए-सुल्तान (Koh-i-Sultan) के समीप शिथिल ज्वालामुखी से गंधक प्राप्त होने के संकेत मिले थे, किंतु इसपर कोई विशेष कार्य नहीं किया गया। विश्वयुद्ध में भी अनेक बार इस प्रकार के प्रयत्न किए गए जिससे वाणिज्य स्तर पर गंधक इस स्रोत से प्राप्त किया जा सके, किंतु कभी भी सफलता हाथ न लगी तथा युद्ध समाप्त होने पर पुन: आयात आरंभ कर दिया गया। इस प्रकार वर्तमान समय में भारत में कोई भी ऐसा स्रोत नहीं है जो प्राकृतिक गंधक की आवश्यकता-पूर्ति कर सके।
गंधक के अतिरिक्त कुछ यौगिक ऐसे भी है जिनमें गंधक का कुछ भाग होता है तथा जो सलफ्यूरिक अम्ल के निर्माण में प्रयुक्त किए जा सकते हैं। मुख्यत: ये लौहपाइराइट तथा चाल्कोपाइराइट (Chalchopyrites) हैं। चाल्कोपाइराइट लौह, ताँबा तथा गंधक का यौगिक है, जिसके उत्तम निक्षेप सिंहभूम (झारखण्ड) में मोसाबानी के समीप स्थित हैं। चाल्कोपाइराइट से ताँबे का शोधन करने पर प्रतिवर्ष कई हजार टन सल्फर डाइआक्साइड गैस निकलती है, जो व्यर्थ ही वायु में विलीन हो जाती है। कुछ देशों में इस प्रकार प्राप्त गैस को सलफ्यूरिक अम्ल के निर्माण में प्रयुक्त किया जाता है। कैनाडा में इस गैस से गंधक की प्राप्ति की जाती है।
चाल्कोपाइराइट के अतिरिक्त पाइराइट भी गंधक का मुख्य स्रोत है तथा सलफ्यूरिक अम्ल के निर्माण में प्रयुक्त होता है। भारत में बिहार, बंबई, मैसूर तथा पंजाब के अनेक भागों में इसके निक्षेप मिले हैं। एक उत्तम निक्षेप तारदेव स्टेशन (शिमला) के समीप हिमाचल घाटी में और दूसरा निक्षेप अमजोर (शाहाबाद, बिहार) में है। इसमें 40% गंधक की मात्रा विद्यमान है, कुल भंडारों की अनुमित मात्रा 7,50,000 टन है। मैसूर के चित्तालदुर्ग जिले में तथा मद्रास के नीलगिरि जिले में भी व्यापक कार्य किया गया है तथा इनसे भी आशाजनक सफलता प्राप्त हुई है।
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
- Sulfur phase diagram
- WebElements.com – Sulfur
- chemicalelements.com/sulfur
- Crystalline, liquid and polymerization of sulphur on Vulcano Island, Italy
- Sulfur and its use as a pesticide
- The Sulphur Institute
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4 Be |
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6 C |
7 N |
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14 Si |
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22 Ti |
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30 Zn |
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32 Ge |
33 As |
34 Se |
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41 Nb |
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49 In |
50 Sn |
51 Sb |
52 Te |
53 I |
54 Xe | ||
6 | 55 Cs |
56 Ba |
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72 Hf |
73 Ta |
74 W |
75 Re |
76 Os |
77 Ir |
78 Pt |
79 Au |
80 Hg |
81 Tl |
82 Pb |
83 Bi |
84 Po |
85 At |
86 Rn | ||
7 | 87 Fr |
88 Ra |
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104 Rf |
105 Db |
106 Sg |
107 Bh |
108 Hs |
109 Mt |
110 Ds |
111 Rg |
112 Cn |
113 Uut |
114 Uuq |
115 Uup |
116 Uuh |
117 Uus |
118 Uuo | ||
* लैन्थनाइड | 57 La |
58 Ce |
59 Pr |
60 Nd |
61 Pm |
62 Sm |
63 Eu |
64 Gd |
65 Tb |
66 Dy |
67 Ho |
68 Er |
69 Tm |
70 Yb |
71 Lu | |||||
** ऐक्टिनाइड | 89 Ac |
90 Th |
91 Pa |
92 U |
93 Np |
94 Pu |
95 Am |
96 Cm |
97 Bk |
98 Cf |
99 Es |
100 Fm |
101 Md |
102 No |
103 Lr |
आवर्त सारणी के इस प्रचलित प्रबन्ध में लैन्थनाइड और ऐक्टिनाइड को अन्य धातुओं से अलग रखा गया है। विस्तृत और अति-विस्तृत आवर्त सारणीओं में f-ब्लॉक और g-ब्लॉक धातुओं को भी एक साथ प्रबन्धित किया जाता है।
आवर्त सारणी में तत्त्वों की श्रेणियाँ
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