खीचन
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खीचन | |
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गाँव | |
किलोमीटर साइन बोर्ड किलोमीटर साइन बोर्ड | |
निर्देशांक: 27°08′06″N 72°24′54″E / 27.135°N 72.415°Eनिर्देशांक: 27°08′06″N 72°24′54″E / 27.135°N 72.415°E | |
देश | भारत |
राज्य | राजस्थान |
जिला | फलोदी |
शासन | |
• सभा | पंचायत |
ऊँचाई | 219 मी (719 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 7,025 |
भाषाएँ | |
• आधिकारिक | मारवाड़ी |
समय मण्डल | आईएसटी (यूटीसी+5:30) |
आई॰एस॰ओ॰ ३१६६ कोड | RJ-IN |
खीचन भारत के राजस्थान राज्य का एक गाँव है। यह फलोदी जिले में स्थित है। यह गाँव बड़ी संख्या में कुरजां (डेमोइसेल क्रेन) के लिए जाना जाता है जो हर सर्दियों में यहां आते हैं। पक्षियों के आने का यह सिलसिला १९७० के दशक में लगभग १०० कुरजों के साथ शुरू हुआ जब एक स्थानीय दंपति ने कबूतरों को दाना खिलाना शुरू किया था। अन्य ग्रामीण भी उनके इस प्रयास में शामिल हुए, और २०१४ की रिपोर्ट के अनुसार खीचन में अब हर साल अगस्त के शुरुआती दिनों में २०,००० से अधिक डेमोइसेल क्रेन आती है और अगले वर्ष के मार्च महीने तक रहती है।
जनसांख्यिकीय
[संपादित करें]भारत की २०११ की जनगणना के अनुसार, गांव की आबादी ७०२५ है, जिसमें ३७२९ पुरुष और ३२९६ महिलाएं शामिल हैं। इस गाँव में कुल ११९० परिवारों के घर हैं।
गाँव में कई मारवाड़ी परिवार हैं। यह ग्राम जोधपुर राजा के द्वारा राजपुरोहित को जागीरी में मिला है। यहाँ पर राजपुरोहित की चार उपजाति ( अखेराजोत,थानक,सिया,मुथा) निवास करते है। स्थानकवासी जैन संत मुनि प्रकाशचंद (ज्ञान गच्छ संप्रदाय के आचार्य) और मुनि उत्तमचंदजी (सामरथ गच्छ संप्रदाय के आचार्य) का जन्म इसी गाँव में हुआ था।
परिवहन
[संपादित करें]खीचन जोधपुर शहर से १५० किलोमीटर पश्चिम में स्थित एक रेगिस्तानी गाँव है। फलोदी निकटतम कस्बा है, जो ३.४ किलोमीटर दूर स्थित है। फलोदी में ब्रॉड गेज लाइन पर एक रेलवे स्टेशन भी है जो राजस्थान के सभी महत्वपूर्ण शहरों को जोड़ता है। फलोदी रेलवे स्टेशन दिल्ली - जैसलमेर और बीकानेर - जैसलमर ब्रॉड गेज लाइन पर स्थित है। यहाँ जोधपुर से तीन और जैसलमेर से तीन ट्रेनें चलती हैं। इसके अलावा दिल्ली से सीधी ट्रेन भी चलती है। जोधपुर हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है और वहाँ से गाँव सड़क (१३९ किलोमीटर) द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। बीकानेर (१५६ किलोमीटर उत्तर की ओर), नागौर (पूर्व में १४५ किलोमीटर) और जैसलमेर (पश्चिम में १६५ किलोमीटर) गाँव से दूर हैं। जबकि गाँव से पाकिस्तान की सीमा लगभग १०० किलोमीटर दूर है।
डेमोइसेल क्रेन
[संपादित करें]१९७० के दशक में, उड़ीसा में काम कर रहे खीचन के मूल निवासी रतनलाल मालू गांव लौट आए थे। चूंकि उनके पास काम नहीं था, इसलिए उनके चाचा ने उन्हें कबूतरों को दाना खिलाने का काम दिया। धर्मनिष्ठ जैन होने के कारण, रतनलाल और उनकी पत्नी ने कार्य स्वीकार कर लिया। इस तरह रतनलाल रोज कबूतरों को अनाज देने जाते और उसकी पत्नी उसे जमीन पर अनाज फैलाने में मदद करती थी। कई कबूतर, गौरैया और गिलहरी जगह-जगह से अनाज चुगने आने लगे; मोर भी कभी-कभी उस स्थान पर जाते थे। सितंबर महीने में, एक दर्जन डेमोइसेल क्रेन (राजस्थानी में कुरजां कहा जाता है) भी अन्य पक्षियों में शामिल हो गए। इन पक्षियों को पहले खीचन के खेतों में देखा गया था। सितंबर-फरवरी के दौरान, लगभग १०० वहाँ अनाज चुगने आयी थीं।
अगली सर्दियों के दौरान, लगभग १५० क्रेन उस जगह देखी गयी थी। जैसे-जैसे क्रेन की संख्या में बढ़ोतरी हुई, वैसे-वैसे स्थानीय कुत्तों ने उनका शिकार करना शुरू कर दिया। इसलिए, रतन लाल ने गाँव की सरहद पर कुछ जमीन आवंटित करने के लिए ग्राम पंचायत को कहा। ग्रामीणों में से कुछ ने मिलकर चुग्गा घर ("पक्षी को अनाज खिलाने का घर") का निर्माण किया, जिसमें एक दानेदार और एक बाड़ है। ग्रामीणों ने अनाज की आपूर्ति करके इस पहल का समर्थन किया। शुरू में कुछ दर्जन पक्षियाँ आया करती थी लेकिन अब अगस्त से मार्च के महीनों के दौरान, साल-दर-साल हजारों की संख्या में क्रेन आती है। गाँव वालों द्वारा पक्षियों के पूर्ण रूप से ठहरने पर अगस्त से मार्च और पीक सीजन नवंबर से फरवरी में दिन में दो बार प्राकृतिक भोजन खिलाया जाता है।
२००८ में, एक अनुमान के अनुसार पक्षियों को अनाज खिलाने में प्रतिदिन ३,००० किलोग्राम (६,६०० पौंड) अनाज की खपत होती है। २०१० में, खीचन आने वाले डेमोइसेल क्रेनों की संख्या १५,००० अनुमानित थी। गाँव ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान तब हासिल की जब इसे बर्डिंग वर्ल्ड पत्रिका में "खीचन - द डेमोइसेल क्रेन विलेज" नामक लेख छपा था। यह गाँव अब पक्षी दर्शकों के स्थान के लिए काफी लोकप्रिय हो गया है।
आजकल बढ़ते हुए विकास के कारण बिजली के बड़े-बड़े खंबे लग रहे हैं, जिसके कारण कई कुरजां पक्षी विद्युत लाइन में फंसने से मर रही हैं, तो कई घायल हो जाती हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार नें पंचायत को त्वरित उपचार के लिए अस्पताल पहुंचाने हेतु पंचायत को पक्षी एम्बुलेंस उपलब्ध करायी है, ताकि पक्षियों को त्वरित उपचार दिया जा सके। [1]
सन्दर्भ
[संपादित करें]यह लेख भौगोलिक अवस्थिति सम्बंधित एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |