"साहवा": अवतरणों में अंतर

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नीले आकाश के नीचे, बालू रेत से आवृत बड़े-बड़े टीले मानसून के साथ संलग्न भाग्य की रेखाएं। गर्मी में अधिक गर्म और शीत में ठिठुरन भरे जीवन से जुड़ा साहवा चूरू जिले के अंतिम छोर पर स्थित है एक गाँव <br />
आर्य पूजित कुलटा एंव सरस्वती के पाट के बीच जिसने आर्य संस्कार गृहण किये । देव मंदिरों पर धर्म ध्वजा, गुरुद्वारों से गूंजती गुरुवाणियाँ, मस्जिदों से अजान के स्वर, धर्म सहिष्णुता एंव भ्रातृत्व की असीम गहराई में डूबा साहवा। गाँव क्या स्वर्ग की सुषमा भी जिसके सामने फीकी लगे। ऐसा है ये साहवा <br /> <br />प्राचीन नाथद्वारा जिस भीतिचित्र एंव ऐतिहासिक तथ्यों का आलेख। भाड़ंग के थेह पर प्राचीन अब शेष जहाँ " लछासर रास " में जैनियों का ऐतिहासिक उत्थान, सहू, सहारण जाट जनपदों का उत्थान एंव पतन सिमटा है। अति प्राचीन यह भूभाग अनंत लहरों से भरे समुन्द्र में डूबा। भौगोलिक परिवर्तनों के बाद, सिन्धु, सरस्वती व कुलटा आदि वैदिक नदियों से घिरा रहा। रामायण का मरुकान्तर, महाभारत की कुरु जांगल व वे प्रवीण शाम्ब पांडिया का छाया क्षेत्र। राजपूत काल में जोधपुर से नयी रियासत स्थापना हेतु कांधल और बीका का पराक्रम क्षेत्र। कांधल, खेत सिंह, लाल सिंह आदि जैसे राठौड़ वीर पुरुषो ने भटनेर, भादरा, रावतसर, जैतपुर, चूरू इत्यादि ठिकाने स्थापित किये। मालदेव के सेनापति कूंचा एंव जैतसिंह के साथ साहवा में भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध की साक्षी रही यह पावन धरा जिस पर अंतिम युद्ध कांधल व सारंग खान के मध्य हुआ। साहवा की महानता के साथ यहाँ का ऐतिहासिक तालाब, जोगीआसन एंव गुरुद्वारा जुड़े हैं। तालाब पर गुरु गोविन्द सिंह का आगमन जहाँ इतिहास सम्पत है वहीँ पीपल की प्राचीनता एंव तालाब की प्राचीन दीवारों का निर्माण भी 500 वर्ष पूर्व का है। <br />
जोगीआसन में खालसा आक्रमण का उल्लेख दीवारों पर हुआ है जिसका जिक्र चूरू मंडल के शोधपूर्ण इतिहास में सम्मिलित है। खालसा आक्रमण की गवाही मठ की दीवारों पर लिखे वो लेख शायद और नयी सदियों तक साक्षी बने रहेंगे।<br/>साभार : श्री बंशीधर उपाध्याय <ref>{{Cite web|title=Village Code Directory: Rajasthan|publisher=Census of India|accessdate=December 17, 2010|url=http://www.censusindia.gov.in/2011-VillageDirectory/Directory/short_code_rural_08.pdf}}</ref>


'''साहवा''', [[भारत]] के [[राजस्थान]] राज्य के अंतर्गत [[चुरू जिला|चुरू]] जिले की [[तारानगर]] तहसील का एक गाँव है ।
==References==
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[[Category:चुरू जिले के गाँव ]]
आर्य पूजित कुलटा एंव सरस्वती के पाट के बीच जिसने आर्य संस्कार गृहण किये । देव मंदिरों पर धर्म ध्वजा, गुरुद्वारों से गूंजती गुरुवाणियाँ, मस्जिदों से अजान के स्वर, धर्म सहिष्णुता एंव भ्रातृत्व की असीम गहराई में डूबा गाँव है साहवा। गाँव क्या स्वर्ग की सुषमा भी जिसके सामने फीकी लगे, ऐसा है ये साहवा प्राचीन नाथद्वारा जिस भीतिचित्र एंव ऐतिहासिक तथ्यों का आलेख। भाड़ंग के थेह पर प्राचीन अब शेष जहाँ "लछासर रास" में जैनियों का ऐतिहासिक उत्थान, [[सहू]], [[सहारण]] जाट जनपदों का उत्थान एंव पतन सिमटा है। अति प्राचीन यह भूभाग अनंत लहरों से भरे समुन्द्र में डूबा। भौगोलिक परिवर्तनों के बाद, सिन्धु, सरस्वती व कुलटा आदि वैदिक नदियों से घिरा रहा। रामायण का मरुकान्तर, महाभारत की कुरु जांगल व प्रवीण शाम्ब पांडिया का छाया क्षेत्र। राजपूत काल में जोधपुर से नयी रियासत स्थापना हेतु कांधल और बीका का पराक्रम क्षेत्र। कांधल, खेत सिंह, लाल सिंह आदि जैसे राठौड़ वीर पुरुषो ने भटनेर, भादरा, रावतसर, जैतपुर, चूरू इत्यादि ठिकाने स्थापित किये। मालदेव के सेनापति कूंचा एंव जैतसिंह के साथ साहवा में भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध की साक्षी रही यह पावन धरा जिस पर अंतिम युद्ध कांधल व सारंग खान के मध्य हुआ। साहवा की महानता के साथ यहाँ का ऐतिहासिक तालाब, जोगीआसन एंव गुरुद्वारा जुड़े हैं। तालाब पर गुरु गोविन्द सिंह का आगमन जहाँ इतिहास सम्पत है वहीँ पीपल की प्राचीनता एंव तालाब की प्राचीन दीवारों का निर्माण भी 500 वर्ष पूर्व का है।<br />जोगीआसन में खालसा आक्रमण का उल्लेख दीवारों पर हुआ है जिसका जिक्र चूरू मंडल के शोधपूर्ण इतिहास में सम्मिलित है। खालसा आक्रमण की गवाही मठ की दीवारों पर लिखे वो लेख शायद और नयी सदियों तक साक्षी बने रहेंगे।<br/>साभार : श्री बंशीधर उपाध्याय

== बाहरी सूत्र ==
* [http://www.flickr.com/places/info/2290856 फ़्लिक्कर जिओ ए.पी.आइ. ऐक्सप्लोरेर: साहवा]
== संदर्भ ==
<references/>

[[श्रेणी:चुरू जिला]]
[[श्रेणी:राजस्थान के गाँव]]
{{राजस्थान}}
[[en:]]

11:49, 18 अगस्त 2011 का अवतरण

साहवा
—  क़स्बा  —
साहवा का गुरुद्वारा
साहवा का गुरुद्वारा
साहवा का गुरुद्वारा
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश  भारत
राज्य राजस्थान
तहसील तारानगर

निर्देशांक: 28°52′22″N 74°50′48″E / 28.8727°N 74.8466°E / 28.8727; 74.8466

साहवा, भारत के राजस्थान राज्य के अंतर्गत चुरू जिले की तारानगर तहसील का एक गाँव है ।

नीले आकाश के नीचे, बालू रेत से आवृत बड़े-बड़े टीले मानसून के साथ संलग्न भाग्य की रेखाएं, गर्मी में अधिक गर्म और शीत में ठिठुरन भरे जीवन से जुड़ा साहवा चूरू जिले के अंतिम छोर पर स्थित एक गाँव है।
आर्य पूजित कुलटा एंव सरस्वती के पाट के बीच जिसने आर्य संस्कार गृहण किये । देव मंदिरों पर धर्म ध्वजा, गुरुद्वारों से गूंजती गुरुवाणियाँ, मस्जिदों से अजान के स्वर, धर्म सहिष्णुता एंव भ्रातृत्व की असीम गहराई में डूबा गाँव है साहवा। गाँव क्या स्वर्ग की सुषमा भी जिसके सामने फीकी लगे, ऐसा है ये साहवा । प्राचीन नाथद्वारा जिस भीतिचित्र एंव ऐतिहासिक तथ्यों का आलेख। भाड़ंग के थेह पर प्राचीन अब शेष जहाँ "लछासर रास" में जैनियों का ऐतिहासिक उत्थान, सहू, सहारण जाट जनपदों का उत्थान एंव पतन सिमटा है। अति प्राचीन यह भूभाग अनंत लहरों से भरे समुन्द्र में डूबा। भौगोलिक परिवर्तनों के बाद, सिन्धु, सरस्वती व कुलटा आदि वैदिक नदियों से घिरा रहा। रामायण का मरुकान्तर, महाभारत की कुरु जांगल व प्रवीण शाम्ब पांडिया का छाया क्षेत्र। राजपूत काल में जोधपुर से नयी रियासत स्थापना हेतु कांधल और बीका का पराक्रम क्षेत्र। कांधल, खेत सिंह, लाल सिंह आदि जैसे राठौड़ वीर पुरुषो ने भटनेर, भादरा, रावतसर, जैतपुर, चूरू इत्यादि ठिकाने स्थापित किये। मालदेव के सेनापति कूंचा एंव जैतसिंह के साथ साहवा में भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध की साक्षी रही यह पावन धरा जिस पर अंतिम युद्ध कांधल व सारंग खान के मध्य हुआ। साहवा की महानता के साथ यहाँ का ऐतिहासिक तालाब, जोगीआसन एंव गुरुद्वारा जुड़े हैं। तालाब पर गुरु गोविन्द सिंह का आगमन जहाँ इतिहास सम्पत है वहीँ पीपल की प्राचीनता एंव तालाब की प्राचीन दीवारों का निर्माण भी 500 वर्ष पूर्व का है।
जोगीआसन में खालसा आक्रमण का उल्लेख दीवारों पर हुआ है जिसका जिक्र चूरू मंडल के शोधपूर्ण इतिहास में सम्मिलित है। खालसा आक्रमण की गवाही मठ की दीवारों पर लिखे वो लेख शायद और नयी सदियों तक साक्षी बने रहेंगे।
साभार : श्री बंशीधर उपाध्याय

बाहरी सूत्र

संदर्भ