सामग्री पर जाएँ

चन्दौली जिला

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
चन्दौली ज़िला
Chandauli district
मानचित्र जिसमें चन्दौली ज़िला Chandauli district हाइलाइटेड है
सूचना
राजधानी : चन्दौली
क्षेत्रफल : 2,484.70 किमी²
जनसंख्या(2011):
 • घनत्व :
19,52,713
 790/किमी²
उपविभागों के नाम: तहसील
उपविभागों की संख्या: ?
मुख्य भाषा(एँ): हिन्दी भोजपुरी


चन्दौली ज़िला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय चन्दौली है।[1][2]

सन् 1997 मे वाराणसी जिले के एक हिस्से को अलग करके चन्दौली जिले का निर्माण किया गया ।

प्रशासनिक

[संपादित करें]

यह वाराणसी मण्डल का भाग है और उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में बिहार की सीमा से लगा हुआ है। इस जिले में कुल 4 विधानसभा सैयदराजा, चकिया ,सकलडीहा, पं दीनदयाल उपाध्याय नगर (मुगलसराय) तथा एक लोकसभा संसदीय क्षेत्र चंदौली है।

प्रशासनिक उद्देश्य से चन्दौली जनपद का निर्माण वाराणसी जनपद से अलग करके वर्ष 1997 में हुआ। यह जनपद पवित्र गंगा नदी के पूर्वी और दक्षिणी दिशा की ओर स्थित है। इस ज़िले नाम अपने तहसील मुख्यालय के नाम पर रखा गया है। यह पूरा जिला प्राचीन काशी राज्य के अधिकार में था। इस जिले से सम्बन्धित अनेकों कथाओं के अतिरिक्त यहाँ प्राचीन काल की मूल्यवान धरोहरों के प्रमाण भी पाये गए हैं और ईंट आदि के अवशेष भी जहाँ तहाँ पूरे ज़िले में बिखरे पड़े हैं। इस जिले के jhehबहुत से भागों का इतिहास अभी अज्ञात है। जिले की तहसीलों में कुछ उजाड़खंड स्थान हैं, तालाब और कुण्ड हैं और उनके बारे में कई लोक-कथाएँ हैं। एक बहुत ही प्राचीन क्षेत्र बलुआ है जो सकलडीहा तहसील से 22 कि०मी० दक्षिण गंगा नदी के तट पर स्थित है। गंगा यहाँ पूरब से पश्चिम दिशा की ओर बहती हैं। हिन्दुओं का एक धार्मिक मेला हर वर्ष माघ महीने में मौनी अमावस्या के दिन लगता है। यह ’पश्चिम वाहिनी मेला’ के रूप में जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि गंगा पूरे देश में केवल दो ही जगह पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं- एक प्रयागराज (इलाहाबाद) में और दूसरा बलुआ में।

सकलडीहा तहसील का रामगढ़ गाँव एक महान अघोरेश्वर संत बाबा कीनाराम की जन्मभूमि है। यह चहनियाँ से मात्र 06 कि०मी० की दूरी पर स्थित है। संत कीनाराम वैष्णव धर्म के महान अनुयायी थे। इनका शिव और शक्ति में गहरा विश्वास था और दैवीय शक्ति में भी दृढ़ विश्वास था। अपना पूरा जीवन इन्होंने मानव जाति की सेवा में लगा दिया। यह स्थान हिन्दुत्व का एक पवित्र स्थल बन गया है।

जिले का एक प्राचीन स्थान है हेतमपुर गाँव। यहाँ एक किला है जिसे ’हेतमपुर किला’ कहा जाता है। जिला मुख्यालय से 22 कि०मी० उत्तर पूर्व में यह स्थित है। इस किले के अवशेष 22 बीघे के क्षेत्र तक फैले हुए हैं। कहा जाता है, 14वीं से 15वीं शताब्दी के बीच टोडरमल खत्री के द्वारा इसको आकार दिया गया था जो शेरशाह सूरी के राज्य में निर्माण पर्यवेक्षक थे। मुगल काल के बाद तालुकेदार तथा जागीरदार हेतम खाँ ने इसपर कब्जा कर लिया। यहाँ पाँच मुख्य ध्वस्त वीरान कोट हैं जिन्हें भुलैनी कोट, भितरी कोट, बिचली कोट, उत्तरी कोट और दक्षिणी कोट कहा जाता है। यह यात्रियों को बहुत आकर्षित करती हैं। कुछ लोग कहते हैं कि यह हेतम खाँ के द्वारा स्वयं बनवायी गयी थीं।

काशी राज्य का हिस्सा होने के कारण चन्दौली का भी इतिहास वही है जो वाराणसी जिले का और काशी राज्य का है। भगवान बुद्ध के जन्म के पहले ईसा पूर्व छठीं शताब्दी में भारतवर्ष 16 महाजनपदों में विभाजित था। इनमें काशी एक था जिसकी राजधानी वाराणसी थी। वर्तमान का बनारस अपने चारों ओर के क्षेत्रों के साथ काशी महाजनपद कहा जाता था। वाराणसी नगर भारत के प्राचीनतम नगरों में से एक है। प्राचीन काल से ही यह विद्या का केन्द्र है। पुराणों में, महाभारत में और रामायण में इसका नाम आया है। यह हिन्दुओं का, साथ ही साथ बौद्धों और जैनों का भी पवित्र स्थान है। यह नाम राजा काशी के नाम पर पड़ा है जो इस वंश परम्परा का सातवाँ राजा था। सातवीं पीढ़ी के बाद एक विख्यात राजा धनवंतरी ने यहाँ शासन किया जिनका नाम आयुर्वेद के संस्थापक मुख्य चिकित्सक के रूप में स्मरण किया जाता है।

काशी राज्य पर महाभारत के पूर्व की शताब्दी में मगध वंश परम्परा के शासक ब्रह्मदत्त का प्रभुत्व था। किन्तु ब्रह्मदत्त की वंशावली का उत्थान महाभारत युद्ध के बाद देखा गया। इस वंश परम्परा के करीब सैकड़ों राजाओं ने इस राज्य पर अपना शासन किया। इसके कुछ शासक तो चक्रवर्ती सम्राट हुआ करते थे। काशी के राजा मनोज ने कोशल, अंग और मगध की राजधानियों को जीत कर अपने राज्य में मिला लिया। जैन धर्मग्रंथों के अनुसार अश्वसेवा नाम के काशी के राजा थे जो 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पिता थे।

सन् 1775 में काशी राज्य ब्रिटिश शासकों के अधिकार में आ गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बनारस स्टेट का भारत में विलय हो जाने पर इस पीढ़ी के सबसे अंतिम राजा महाराज विभूति नारायण सिंह थे जिन्होंने करीब आठ साल तक शासन किया।

बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह, चंदौली (तत्कालीन वाराणसी) जनपद के प्रथम स्नातक के साथ-साथ जनपद के प्रथम जन प्रतिनिधि थे। श्री सिंह बनारस डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के प्रथम चेयरमैन थे। बाबु प्रसिद्ध नारायण सिंह चंदौली जनपद के कादिराबाद गावँ के मूल निवासी थे। राजा बनारस द्वारा नौगढ़ में श्री सिंह को जमीन दान स्वरूप दिया गया था जहाँ पर श्री सिंह ने शमशेरपुर नामक गावँ स्थापित किया और आदिवासी समाज के उत्थान में काफी सहयोग किया।[उद्धरण चाहिए]

जनपद चन्दौली वाराणसी से ३० कि०मी० दूरी पर पूर्व-दक्षिण-पूर्व में अक्षांश २४° ५६' से २५° ३५' उत्तर एवं ८१° १४' से ८४° २४' पूर्व में स्थित है। भौगोलिक संरचना की दृष्टि से जिले की औसत ऊंचाई ७० मीटर (२२९ फीट) तथा क्षेत्रफल २४८४.७० किमी है।[3] चन्दौली पूर्व दिशा में बिहार राज्य, उत्तर-पूर्व में गाजीपुर जनपद, दक्षिण में सोनभद्र जनपद, दक्षिण-पूर्व में बिहार राज्य एवं दक्षिण-पश्चिम में मिर्ज़ापुर जनपद की सीमाओं से घिरा है। कर्मनाशा नदी इस जनपद और बिहार राज्य के मध्य की विभाजन रेखा है। गंगा, कर्मनाशा और चन्द्रप्रभा नदियाँ इस जनपद की भौगोलिक और आर्थिक परिस्थितियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव रखती हैं। चंदौली को चावल का कटोरा के रूप में भी जाना जाता है।

जनांकिक

[संपादित करें]

2001 के रूप में भारत चंदौली 20,071 की आबादी थी। पुरुषों आबादी और 45% महिलाओं की 55% का गठन. 74% की पुरुष साक्षरता और 55% की महिला साक्षरता के साथ, चंदौली 66% की एक औसत साक्षरता दर 59.5% के राष्ट्रीय औसत से अधिक है। जनसंख्या का 16% उम्र के 6 वर्ष से कम है।

जिले के प्रमुख व्यक्तित्व

[संपादित करें]

काशीनाथ सिंह (जन्म- 1 जनवरी, 1937 ई०) हिन्दी साहित्य की साठोत्तरी पीढ़ी के प्रमुख कहानीकार, उपन्यासकार एवं संस्मरण-लेखक हैं। काशीनाथ सिंह ने लंबे समय तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हिन्दी साहित्य के प्रोफेसर के रूप में अध्यापन कार्य किया। सन् 2011 में उन्हें रेहन पर रग्घू (उपन्यास) के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राज्य में साहित्य के सर्वोच्च सम्मान भारत भारती से भी सम्मानित किया जा चुका है।

  • गोलेन्द्र पटेल, हिन्दी साहित्य की नई पीढ़ी के प्रमुख स्तम्भों में से एक एवं कवि
  • कमला कांत मिश्र
  • अनुराग कश्यप
  • विमला देवी "अप्पा जी"
  • प्यारे लाल यादव (गीतकार)
  • कैलाश गौतम (कवि एवं रेडियो कलाकार)
  • बाबा कीनाराम उत्तर भारतीय संत परंपरा के एक प्रसिद्ध संत थे, जिनकी यश-सुरभि परवर्ती काल में संपूर्ण भारत में फैल गई। वाराणसी के पास चंदौली जिले के ग्राम रामगढ़ में एक कुलीन रघुवंशी क्षत्रिय परिवार में सन् 1601 ई. में इनका जन्म हुआ था। बचपन से ही इनमें आध्यात्मिक संस्कार अत्यंत प्रबल थे। तत्कालीन रीति के अनुसार बारह वर्षों के अल्प आयु में, इनकी घोर अनिच्छा रहते हुए भी, विवाह कर दिया गया किंतु दो तीन वर्षों बाद द्विरागमन की पूर्व संध्या को इन्होंने हठपूर्वक माँ से माँगकर दूध-भात खाया। ध्यातव्य है कि सनातन धर्म में मृतक संस्कार के बाद दूध-भात एक कर्मकांड है। बाबा के दूध-भात खाने के अगले दिन सबेरे ही वधू के देहांत का समाचार आ गया। सबको आश्चर्य हुआ कि इन्हें पत्नी की मृत्यु का पूर्वाभास कैसे हो गया। अघोर पंथ के ज्वलंत संत के बारे में ऐक कथानक प्रसिद्ध है,कि ऐक बार काशी नरेश अपने हाथी पर सवार होकर शिवाला स्थित आश्रम से जा रहे थे,उन्होनें बाबा किनाराम के तरफ तल्खी नजरों से देखा,तत्काल बाबा किनाराम ने आदेश दिया दिवाल चल आगे,इतना कहना कि दिवाल चल दिया और काशी नरेश की हाथी के आगे - आगे चलने लगा। तब काशी नरेश को अपने अभिमान का बोध हो गया और तत्काल बाबा किनाराम जी के चरणों में गिर गये।
  • रामजियावन दास ( बावला ) भोजपुरी कवि
  • अखिलेश सिंह छोटे (कवि) प्रभुपुर
  • सत्यनारायन राय आर्य (ये एक स्वतन्त्रता सेनानी थें जो कि तहसील चंदौली के कांटा ग्राम से थें। ये काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदनमोहन मालवीय जी के परम शिष्य थें व मालवीय जी के पुत्र गोविंद मालवीय जी के साथ एक ही कमरे में रहकर अध्ययन करते थें, तथा आगे चलकर आचार्य सीताराम चतुर्वेदी जी के साथ बलिया के एक कालेज में अध्यापक रहें जहां पर इनके शिष्य पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी रहें। सत्यनारायण राय आर्य ने पंडित मदनमोहन मालवीय जी की आज्ञा से मोतिहारी में एक कालेज की स्थापना भी की। पंडित सत्यनारायण राय जी उस समय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कांग्रेस के छात्र संगठन के लगातार 7 सालों तक अध्यक्ष रहें। परतंत्र भारत में आचार्य सत्यनारायण राय जी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से संबद्ध डीएवी पीजी कालेज में तथा अपने ग्रामसभा कांटा में तिरंगा झंडा फहराने वाले प्रथम थें। आचार्य जी ने भारत सरकार द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों को दिया जाने वाला पेंशन भत्ता लेने से मना कर दिया व उसे जरूरतमंद को देने का आग्रह किया। इनके जानने वालों में बाबू जगजीवन राम, आचार्य नरेन्द्र देवराम मनोहर लोहिया जी शामिल थें।)

इन्हें भी देखें

[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ

[संपादित करें]

सन्दर्भ

[संपादित करें]
  1. "Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716
  2. "Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance Archived 2017-04-23 at the वेबैक मशीन," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975
  3. "Falling Rain Genomics, Inc - Chandauli". मूल से 10 अप्रैल 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 मई 2011.