"अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार'": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
सही श्रेणी
पंक्ति 24: पंक्ति 24:


== आरंभिक जीवन ==
== आरंभिक जीवन ==
शहरयार का जन्म उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में १९३६ में हुआ।
१९६१ में उर्दू में स्नातकोत्तर डिग्री लेने के बाद उन्होंने १९६६ में [[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय]] में उर्दू के व्याख्याता के तौर पर काम शुरू किया। वह यहीं से उर्दू के विभागाध्यक्ष के तौर पर १९९६ में सेवानिवृत्त हुए।
१९६१ में उर्दू में स्नातकोत्तर डिग्री लेने के बाद उन्होंने १९६६ में [[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय]] में उर्दू के व्याख्याता के तौर पर काम शुरू किया। वह यहीं से उर्दू के विभागाध्यक्ष के तौर पर १९९६ में सेवानिवृत्त हुए।
शहरयार को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, दिल्ली उर्दू पुरस्कार और फ़िराक़ सम्मान सहित कई पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है।
शहरयार उर्दू के चौथे साहित्यकार हैं जिन्हें ज्ञानपीठ सम्मान मिला। इससे पहले फ़िराक गोरखपुरी, क़ुर्रतुल-एन-हैदर और अली सरदार जाफ़री को ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका है।


== कार्य ==
== कार्य ==

07:54, 2 नवम्बर 2013 का अवतरण

अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान
'शहरयार'
जन्म16 जून 1936
बरेली, उत्तर प्रदेश
मौत13 फ़रवरी 2012(2012-02-13) (उम्र 75)
अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
दूसरे नामशहरयार
पेशागीतकार, कवि
राष्ट्रीयताभारतीय
विधाग़ज़ल
विषयप्रेम, दर्शन

अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान (१६ जून १९३६ – १३ फरवरी २०१२[1]), जिन्हें उनके तख़ल्लुस या उपनाम शहरयार से ही पहचाना जाना जाता है, एक भारतीय शिक्षाविद्, और भारत में उर्दू शायरी के दिग्गज थे।

आरंभिक जीवन

शहरयार का जन्म उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में १९३६ में हुआ। १९६१ में उर्दू में स्नातकोत्तर डिग्री लेने के बाद उन्होंने १९६६ में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उर्दू के व्याख्याता के तौर पर काम शुरू किया। वह यहीं से उर्दू के विभागाध्यक्ष के तौर पर १९९६ में सेवानिवृत्त हुए। शहरयार को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, दिल्ली उर्दू पुरस्कार और फ़िराक़ सम्मान सहित कई पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है। शहरयार उर्दू के चौथे साहित्यकार हैं जिन्हें ज्ञानपीठ सम्मान मिला। इससे पहले फ़िराक गोरखपुरी, क़ुर्रतुल-एन-हैदर और अली सरदार जाफ़री को ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका है।

कार्य

बेहद जानकार और विद्वान शायर के तौर पर अपनी रचनाओं के जरिए वह स्व-अनुभूतियों और आधुनिक वक्त की समस्याओं को समझने की कोशिश करते नजर आते हैं। शहरयार ने गमन और आहिस्ता-आहिस्ता आदि कुछ हिंदी फ़िल्मों में गीत लिखे, लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा लोकप्रियता १९८१ में बनी फ़िल्म उमराव जान से मिली। "इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं," "जुस्तजू जिस की थी उसको तो न पाया हमने," "दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये," "कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता" - जैसे गीत लिख कर हिंदी फ़िल्म जगत में शहरयार बेहद लोकप्रिय हुए हैं।[2]

पुरस्कार एवं सम्मान

यह वर्ष २००८ के लिए ४४वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजे गये। समकालीन उर्दू शायरी के जगत में अहम भूमिका निभाने वाले शहरयार को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, दिल्ली उर्दू पुरस्कार और फ़िराक सम्मान सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया।[3]

संदर्भ

  1. "शायरी के शहजादे सुपुर्द-ए-खाक". अलीगढ़: दैनिक जागरण. 14 February 2012. अभिगमन तिथि 14 February 2012.
  2. "जमीं की गोद में सदा के लिए सो गया शब्दों का चितेरा". अलीगढ़: आईबीएन-7. 14 February 2012. अभिगमन तिथि 14 February 2012.
  3. "मशहूर शायर शहरयार नहीं रहे". अलीगढ़: जनसत्ता. 14 February 2012. अभिगमन तिथि 14 February 2012.