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गुरु जम्भेश्वर

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गुरू श्री जम्भेश्वर विशनोई धर्म के संस्थापक थे। वे गुरू जाम्भोजी के नाम से भी जाने जाते है। इन्होंने विक्रमी संवत् 1542 ईस्वी सन् 1485 मे बिश्नोई पंथ की स्थापना की। इन्होनें अपने अनुयायियों को निराकार परमात्मा 'विसन' का जाप करने का उपदेस दिया। इस विसन नाम के कारण एवं बीस और नौ नियमों के कारण इस धर्म का नाम विशनोई/बिशनोई पड़ा। गुरू जाम्भोजी ने निराकार परमात्मा (विसन) का जाप करने, पाखंड से दूर रहने एवं वन्य जीवों तथा हरे वृक्षों की रक्षा करने का उपदेश दिया था। शुद्ध शाकाहारी भोजना करने तथा नशे से दूर रहने का संदेश दिया था।

गुरू जाम्भोजी का जन्म राजस्थान के नागौर परगने के पीपासर गांव में एक पंवार परिवार में विक्रमी संवत् 1508 भादवा वदी अष्टमी को अर्धरात्रि कृतिका नक्षत्र में हुआ था।
गुरु जम्भेश्वर का मन्दिर मुकाम, बीकानेर, राजस्थान

जाम्भोजी ने अपने जीवनकाल में अनेक वचन कहे किन्तु अब 120 शब्द ही प्रचलन में हैं जो वर्तमान में शब्दवाणी के नाम से जाने जाते हैं।[1] गुरु जम्भेश्वरजी द्वारा स्थापित बिश्नोई पंथ में 29 नियम[2] प्रचलित हैं जो धर्म, नैतिकता, पर्यावरण और मानवीय मूल्यों से संबंधित हैं।

बिश्नोई समुदाय

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बिश्नोई धर्म स्वतंत्र रूप से एक अच्छे विचार वाला समुदाय है, इनका मुख्य व्यवसाय खेती है एवं पशु पालन हैं,बिश्नोई समाज की स्थापना गुरु जम्भेश्वर भगवान ने विक्रमी संवत 1542 सन 1485 में 34 वर्ष की अवस्था में बीकानेर जिले के समराथल धोरे पर कार्तिक वदी अष्ट को पाहल बनाकर की थी। गुुरू जंभेश्वर भगवान द्वारा बनाये गये 29 नियम का पालन करने पर इस समाज के 20 + 9 लोग = 29 (बीस+नौ) बिश्नोई कहलाये। अर्थात बिश्नोई समाज का अर्थ है '29 नियमों को धारण करने वाला' यह समाज वन्य जीवों को अपना सगा संबधी जैसा मानते है तथा उनकी रक्षा करते है। वन्य जीव रक्षा करते-करते कई लोग वीरगति को प्राप्त भी हुए है। यह समाज प्रकृति प्रेमी भी है। अधिकांश बिश्नोई जाट जाति से है।[3]

खेजड़ली का बलिदान

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खेजड़ी राजस्थान का राज्य वृक्ष है

खेजड़ली वृक्षार्थ बलिदान स्थल

खेजड़ली एक गांव है जो राजस्थान के जोधपुर ज़िले में स्थित है यह दक्षिण-पूर्व से जोधपुर शहर से 26 किलोमीटर दूर है। खेजड़ली गांव का नाम खेजड़ी (Prosopis cineraria) पर रखा गया। तत्कालीन जोधपुर महाराजा अभय सिंह(1724-1749 ईसवीं) जी के मंत्री गिरधरदास जी ने अपने सैनिकों को चुना पकाने के लिए लकड़ी लाने का आदेश दिया वह सैनिक लकड़िया लेने के लिए खेजडली गाँव पहुंचे।

12 सितम्बर विक्रमी संवत 1787 सन 1730 में इस गांव में खेजड़ी को बचाने के लिए अमृता देवी बिश्नोई व उनके पति रामोजी वह उनकी तीन बेटियों सहित कुल 363 बिश्नोई समाज के लोगों ने (भगवान जांभोजी के बताए गए 29 नियमों में वर्णित एक नियम हरा वृक्ष नहीं काटना का अनुसरण करते हुए ) बलिदान दिया था। अमृता देवी ने कहा था कि " सिर साटे रुख रहे तो भी सस्ता जान" यह चिपको आंदोलन की पहली घटना थी जिसमें पेड़ों की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया गया।।चोरासी गांव के बिश्नोई समाज के लोग खेजड़ली बलिदान में शहीद होने के लिए शामिल हुए थे।[4] बिश्नोई समाज के चोरासी गांवों का सामाजिक न्यायिक मुख्यालय खैजड़ली शहीद स्थल हैं।

यह एक ऐसा उदाहरण है जब लोग पर्यावरण का प और ग्लोबल वार्मिंग का ग नहीं जानते थे तब विश्नोई समाज ने पेड़ों को बचाने लिए इतनी बड़ी संख्या में बलिदान दिया।

363 शहीदों की याद में भाद्रपद शुक्ल दशमी को विशाल वन मेला भरता है ।

सन्दर्भ

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  1. "श्री गुरु जम्भेश्वर शब्दवाणी". श्री गुरु जम्भेश्वर शब्दवाणी. अभिगमन तिथि 2020-10-23.
  2. "29 Principles of Bishnoi Religion (29 Rules)" (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2020-10-23.
  3. www.google.com/amp/s/www.hindustantimes.com/punjab/bishnoi-faces-bumpy-ride-in-jat-vs-non-jat-contest/story-O67GzOTye68l3Af2h99d3L_amp.html
  4. चोरासी गांव की सूची,सामाजिक न्यायिक मुख्यालय।

[1]

इन्हें भी देखें

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  1. Bishnoi, Rajkumar godara (2024). गुरू जाम्भोजी एवं सबदवाणी. Jodhpur: Self published. पृ॰ 15. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9798893632415.