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हवामहल

हवा महल, जयपुर, 16 दिसम्बर 2008
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सामान्य विवरण
वास्तुकला शैली राजस्थानी वास्तुकला एवं मुगल स्थापत्य का मिश्रण
शहर जयपुर
राष्ट्र भारत
निर्देशांक 26°55′25″N 75°49′36″E / 26.923611°N 75.826667°E / 26.923611; 75.826667
निर्माण सम्पन्न 1799
ग्राहक महाराजा सवाई प्रताप सिंह
प्राविधिक विवरण
संरचनात्मक प्रणाली लाल एवं गुलाबी बलुआ पत्थर
योजना एवं निर्माण
वास्तुकार लाल चंद उस्ताद
हवामहल

हवा महल भारतीय राज्य राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक राजसी-महल है। इसे सन 1798 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने बनवाया था और इसे किसी 'राजमुकुट' की तरह वास्तुकार लाल चंद उस्ता द्वारा डिजाइन किया गया था। इसकी अद्वितीय पांच-मंजिला इमारत जो ऊपर से तो केवल डेढ़ फुट चौड़ी है, बाहर से देखने पर मधुमक्खी के छत्ते के समान दिखाई देती है, जिसमें ९५३ बेहद खूबसूरत और आकर्षक छोटी-छोटी जालीदार खिड़कियाँ हैं, जिन्हें झरोखा कहते हैं। इन खिडकियों को जालीदार बनाने के पीछे मूल भावना यह थी कि बिना किसी की निगाह पड़े "पर्दा प्रथा" का सख्ती से पालन करतीं राजघराने की महिलायें इन खिडकियों से महल के नीचे सडकों के समारोह व गलियारों में होने वाली रोजमर्रा की जिंदगी की गतिविधियों का अवलोकन कर सकें। इसके अतिरिक्त, "वेंचुरी प्रभाव" के कारण इन जटिल संरचना वाले जालीदार झरोखों से सदा ठंडी हवा, महल के भीतर आती रहती है, जिसके कारण तेज़ गर्मी में भी महल सदा वातानुकूलित सा ही रहता है।

चूने, लाल और गुलाबी बलुआ पत्थर से निर्मित यह महल जयपुर के व्यापारिक केंद्र के हृदयस्थल में मुख्य मार्ग पर स्थित है। यह सिटी पैलेस का ही हिस्सा है और ज़नाना कक्ष या महिला कक्ष तक फैला हुआ है। सुबह-सुबह सूर्य की सुनहरी रोशनी में इसे दमकते हुए देखना एक अनूठा एहसास देता है।

स्थापत्य

हवा महल की सबसे ऊपर की दो मंजिलों का खूबसूरत नजारा

हवामहल पांच-मंजिला स्मारक है जिसकी अपने मुख्य आधार से ऊंचाई ५० फीट (१५ मी.) है। महल की सबसे ऊपरी तीन मंजिलों की चौड़ाई का आयाम एक कमरे जितना है जबकि नीचे की दो मंजिलों के सामने खुला आँगन भी है, जो कि महल के पिछले हिस्से में बना हुआ है। महल का सामने का हिस्सा, जो हवा महल के सामने की मुख्य सड़क से देखा जाता है। इसकी प्रत्येक छोटी खिड़की पर बलुआ पत्थर की बेहद आकर्षक और खूबसूरत नक्काशीदार जालियां, कंगूरे और गुम्बद बने हुए हैं। यह बेजोड़ संरचना अपने आप में अनेकों अर्द्ध अष्टभुजाकार झरोखों को समेटे हुए है, जो इसे दुनिया भर में बेमिसाल बनाते हैं। इमारत के पीछे की ओर के भीतरी भाग में अलग-अलग आवश्यकताओं के अनुसार कक्ष बने हुए हैं जिनका निर्माण बहुत कम अलंकरण वाले खम्भों व गलियारों के साथ किया गया है और ये भवन की शीर्ष मंजिल तक इसी प्रकार हैं।

लाल चंद उस्ता इस अनूठे भवन का वास्तुकार था, जिसने जयपुर शहर की भी शिल्प व वास्तु योजना तैयार करने में सहयोग दिया था। शहर में अन्य स्मारकों की सजावट को ध्यान में रखते हुए लाल और गुलाबी रंग के बलुआ-पत्थरों से बने इस महल का रंग जयपुर को दी गयी 'गुलाबी नगर' की उपाधि के लिए एक पूर्ण प्रमाण है। हवा महल का सामने का हिस्सा ९५३ अद्वितीय नक्काशीदार झरोखों से सजा हुआ है (जिनमे से कुछ लकड़ी से भी बने हैं) और यह हवा महल के पिछले हिस्से से इस मायने में ठीक विपरीत है, क्योंकि हवा महल का पिछला हिस्सा एकदम सादा है। इसकी सांस्कृतिक और शिल्प सम्बन्धी विरासत हिन्दू राजपूत शिल्प कला और मुग़ल शैली का एक अनूठा मिश्रण है, उदाहरण के लिए इसमें फूल-पत्तियों का आकर्षक काम, गुम्बद और विशाल खम्भे राजपूत शिल्प कला का बेजोड़ उदाहरण हैं, तो साथ ही साथ, पत्थर पर की गयी मुग़ल शैली की नक्काशी, सुन्दर मेहराब आदि मुग़ल शिल्प के नायाब उदाहरण हैं।

सिटी पैलेस की ओर से हवा महल में शाही दरवाजे से प्रवेश किया जा सकता है। यह एक विशाल आँगन में खुलता है, जिसके तीन ओर दो-मंजिला इमारतें हैं और पूर्व की और भव्य हवा महल स्थित है। इस आँगन में एक पुरातात्विक संग्रहालय भी है।

हवा महल महाराजा जय सिंह का विश्राम करने का पसंदीदा स्थान था क्योंकि इसकी आतंरिक साज-सज्जा बेहद खूबसूरत है। इसके सभी कक्षों में, सामने के हिस्से में स्थित ९५३ झरोखों से सदा ही ठंडी हवा बहती रहती थी, जिसकी ठंडक का प्रभाव गर्मियों में और बढाने के लिए सभी कक्षों के सामने के दालान में फव्वारों की व्यवस्था भी है।

हवा महल की सबसे ऊपरी दो मंजिलों में जाने के लिए केवल खुर्रों की व्यवस्था है। ऐसा कहा जाता है कि रानियों को लम्बे घेरदार घाघरे पहन कर सीडियां चढ़ने में होने वाली असुविधा को ध्यान में रख कर इसकी ऊपरी दो मंजिलों में प्रवेश के लिए सीढियों की जगह खुर्रों का प्रावधान किया गया था।

मरम्मत और नवीनीकरण

हवा महल की देख-रेख राजस्थान सरकार का पुरातात्विक विभाग करता है। वर्ष २००५ में, करीब ५० वर्षों के लम्बे अंतराल के बाद बड़े स्तर पर महल की मरम्मत और नवीनीकरण का कार्य किया गया, जिसकी अनुमानित लागत ४५६७९ लाख रुपये आई थी। कुछ कॉर्पोरेट घराने भी अब जयपुर के पुरातात्विक स्मारकों के रखरखाव के लिए आगे आ रहे हैं, जिसका एक उदहारण "यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया" है जिसने हवा महल की सार-संभाल का बीड़ा उठाया है।

पर्यटन संबंधी जानकारी

हवा महल, जयपुर शहर के दक्षिणी हिस्से में बड़ी चौपड़ पर स्थित है। जयपुर शहर भारत के समस्त प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग, रेल मार्ग व हवाई मार्ग से सीधा जुड़ा हुआ है। जयपुर का रेलवे स्टेशन भारतीय रेल सेवा की ब्रॉडगेज लाइन नेटवर्क का केंद्रीय स्टेशन है।

हवा महल में सीधे सामने की और से प्रवेश की व्यवस्था नहीं हैं। हवा महल में प्रवेश के लिए, महल के दायीं व बायीं ओर से बने मार्गों से प्रवेश की व्यवस्था है, जहाँ से आप महल के पिछले हिस्से से महल में प्रवेश पाते हैं।

चित्र दीर्घा