"प्रदोष व्रत": अवतरणों में अंतर
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[[हिन्दू धर्म]] के अनुसार, '''प्रदोष व्रत''' <ref>{{Cite web |url=http://essenceofastro.blogspot.in/2016/08/pradosh-vrat.html |title=संग्रहीत प्रति |access-date=23 नवंबर 2016 |archive-url=https://web.archive.org/web/20161124025114/http://essenceofastro.blogspot.in/2016/08/pradosh-vrat.html |archive-date=24 नवंबर 2016 |url-status=dead }}</ref> कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करनेवाला होता है। माह की [[त्रयोदशी]] तिथि में सायं काल को '''प्रदोष काल''' कहा जाता है।<ref>http://www.bhaskar.com/news/referer/521/JM-JKR-DHAJ-today-25-octobersunday-do-ravi-pradosh-vrat-by-this-method-5149095-NOR.html?referrer_url=https%3A%2F%2Fwww.google.co.in%2Fm%3Fq%3D%25E0%25A4%25AA%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25A6%25E0%25A5%258B%25E0%25A4%25B6%2B%25E0%25A4%25B5%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25A4</ref> मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेव [[कैलास पर्वत|कैलाश पर्वत]] के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। जो भी लोग अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत रख सकते हैं। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है। सप्ताह केसातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व है।<ref>[http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/tayaarinews/67-67-124698.html 9 जुलाई: प्रदोष व्रत]। हिन्दुस्तान लाइव। २ जुलाई २०१०</ref> |
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प्रदोष व्रत विधि के अनुसार दोनों पक्षों की प्रदोषकालीन त्रयोदशी को मनुष्य निराहार रहे। निर्जल तथा निराहार व्रत सर्वोत्तम है परंतु अगर यह संभव न हो तो नक्तव्रत करे। पूरे दिन सामर्थ्यानुसार या तो कुछ न खाये या फल ले। अन्न पूरे दिन नहीं खाना। सूर्यास्त के कम से कम 72 मिनट बाद हविष्यान्न ग्रहण कर सकते हैं। शिव पार्वती युगल दम्पति का ध्यान करके पूजा करके। प्रदोषकाल में घी के दीपक जलायें। कम से कम एक अथवा 32 अथवा 100 अथवा 1000 । <ref>{{cite web |title=प्रदोष व्रत विधि |url=https://essenceofastro.blogspot.com/2016/08/pradosh-vrat.html |access-date=16 जून 2020 |archive-url=https://web.archive.org/web/20200616201521/https://essenceofastro.blogspot.com/2016/08/pradosh-vrat.html |archive-date=16 जून 2020 |url-status=dead }}</ref> |
प्रदोष व्रत विधि के अनुसार दोनों पक्षों की प्रदोषकालीन त्रयोदशी को मनुष्य निराहार रहे। निर्जल तथा निराहार व्रत सर्वोत्तम है परंतु अगर यह संभव न हो तो नक्तव्रत करे। पूरे दिन सामर्थ्यानुसार या तो कुछ न खाये या फल ले। अन्न पूरे दिन नहीं खाना। सूर्यास्त के कम से कम 72 मिनट बाद हविष्यान्न ग्रहण कर सकते हैं। शिव पार्वती युगल दम्पति का ध्यान करके पूजा करके। प्रदोषकाल में घी के दीपक जलायें। कम से कम एक अथवा 32 अथवा 100 अथवा 1000 । <ref>{{cite web |title=प्रदोष व्रत विधि |url=https://essenceofastro.blogspot.com/2016/08/pradosh-vrat.html |access-date=16 जून 2020 |archive-url=https://web.archive.org/web/20200616201521/https://essenceofastro.blogspot.com/2016/08/pradosh-vrat.html |archive-date=16 जून 2020 |url-status=dead }}</ref> |
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== सप्ताहिक दिवसानुसार == |
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प्रदोष व्रत के विषय में गया है कि अगर |
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* मंगलवार कोप्रदोष व्रत रखने से रोग से मुक्ति मिलती है और आप स्वस्थ रहते हैं।<ref>{{Cite web |url=http://m.amarujala.com/news/religion-festivals/mangal-dosha-remedy-from-pradosh-vrat/ |title=संग्रहीत प्रति |access-date=27 अक्तूबर 2015 |archive-url=https://web.archive.org/web/20160304211506/http://m.amarujala.com/news/religion-festivals/mangal-dosha-remedy-from-pradosh-vrat/ |archive-date=4 मार्च 2016 |url-status=dead }}</ref> |
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== बाहरी कड़ियाँ == |
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[https://www.domkawla.com/shani-pradosh-vrat-katha/ शनि प्रदोष और उसका माहात्म्य]{{हिन्दू पर्व-त्यौहार}} |
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10:28, 4 सितंबर 2021 का अवतरण
प्रदोष व्रत | |
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आधिकारिक नाम | प्रदोष व्रत |
अनुयायी | हिन्दू, भारतीय, भारतीय प्रवासी |
प्रकार | Hindu |
उद्देश्य | सर्वकामना पूर्ति |
तिथि | सप्ताह काकोई भी दिवस |
हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रदोष व्रत [1] कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करनेवाला होता है। माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है।[2] मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। जो भी लोग अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत रख सकते हैं। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है। सप्ताह केसातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व है।[3]
प्रदोष व्रत विधि के अनुसार दोनों पक्षों की प्रदोषकालीन त्रयोदशी को मनुष्य निराहार रहे। निर्जल तथा निराहार व्रत सर्वोत्तम है परंतु अगर यह संभव न हो तो नक्तव्रत करे। पूरे दिन सामर्थ्यानुसार या तो कुछ न खाये या फल ले। अन्न पूरे दिन नहीं खाना। सूर्यास्त के कम से कम 72 मिनट बाद हविष्यान्न ग्रहण कर सकते हैं। शिव पार्वती युगल दम्पति का ध्यान करके पूजा करके। प्रदोषकाल में घी के दीपक जलायें। कम से कम एक अथवा 32 अथवा 100 अथवा 1000 । [4]
सप्ताहिक दिवसानुसार
प्रदोष व्रत के विषय में गया है कि अगर
- रविवार के दिन प्रदोष व्रत आप रखते हैं तो सदा नीरोग रहेंगे। [5]
- सोमवार के दिन व्रत करने से आपकी इच्छा फलितहोती है। [6]
- मंगलवार कोप्रदोष व्रत रखने से रोग से मुक्ति मिलती है और आप स्वस्थ रहते हैं।[7]
- बुधवार के दिन इस व्रत का पालन करने से सभी प्रकार की कामना सिद्ध होतीहै। [8]
- बृहस्पतिवार के व्रत से शत्रु का नाश होता है। शुक्र प्रदोष व्रत सेसौभाग्य की वृद्धि होती है। [9]
- शनि प्रदोष व्रत से पुत्र की प्राप्ति होती है।[10] [11]
पौराणिक सन्दर्भ
[12] इस व्रत के महात्म्य को गंगा के तट पर किसी समय वेदों के ज्ञाता और भगवान केभक्त सूतजी ने शौनकादि ऋषियों को सुनाया था। सूतजी ने कहा है कि कलियुग में जब मनुष्य धर्म के आचरण से हटकर अधर्म की राह पर जा रहा होगा,हर तरफ अन्याय और अनाचार का बोलबाला होगा। मानव अपने कर्तव्य से विमुख होकर नीच कर्म में संलग्न होगा उस समय प्रदोष व्रत ऐसा व्रत होगा जो मानव को शिव की कृपा का पात्र बनाएगा और नीच गति से मुक्त होकर मनुष्य उत्तम लोक को प्राप्त होगा। [13]सूत जी ने शौनकादि ऋषियों को यह भी कहा कि प्रदोष व्रत से पुण्य से कलियुग में मनुष्य के सभी प्रकार के कष्ट और पाप नष्ट हो जाएंगे। यह व्रत अति कल्याणकारी है इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होगी। इस व्रत में अलग-अलग दिन के प्रदोष व्रत से क्या लाभ मिलता है यह भी सूत जी ने बताया। सूत जी ने शौनकादि ऋषियों को बताया कि इस व्रत के महात्मय को सर्वप्रथम भगवान शंकर ने माता सती को सुनाया था। मुझे यही कथा महात्मय महर्षि वेदव्यास जी ने सुनाया और यह उत्तम व्रत महात्म्य मैने आपको सुनाया है। प्रदोष व्रत विधानसूत जी ने कहा है प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहते हैं। सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस व्रत में महादेव भोले शंकर की पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल अक्षत धूप दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्रती को पुण्य मिलता है।
सन्दर्भ
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 24 नवंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 नवंबर 2016.
- ↑ http://www.bhaskar.com/news/referer/521/JM-JKR-DHAJ-today-25-octobersunday-do-ravi-pradosh-vrat-by-this-method-5149095-NOR.html?referrer_url=https%3A%2F%2Fwww.google.co.in%2Fm%3Fq%3D%25E0%25A4%25AA%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25A6%25E0%25A5%258B%25E0%25A4%25B6%2B%25E0%25A4%25B5%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25A4
- ↑ 9 जुलाई: प्रदोष व्रत। हिन्दुस्तान लाइव। २ जुलाई २०१०
- ↑ "प्रदोष व्रत विधि". मूल से 16 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जून 2020.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 27 अक्तूबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 अक्तूबर 2015.
- ↑ http://religion.bhaskar.com/news/utsav--every-wish-are-fulfill-to-this-som-fast-story-2989998.html
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 अक्तूबर 2015.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 1 अगस्त 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 अक्तूबर 2015.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 अक्तूबर 2015.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 27 दिसंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 अक्तूबर 2015.
- ↑ https://archive.org/details/shani-pradosham शनि प्रदोष का विस्तृत विवरण। पुराणों से संकलित
- ↑ स्कन्द पुराण
- ↑ हेमाद्रि (व्रत0 2, 18,भविष्यपुराण से उद्धरण)