"मास्ती वेंकटेश अयंगार": अवतरणों में अंतर

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==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
मस्ती वेंकटेश आयंगर ६ जून १८९१ में कर्नाटक के [[कोलार जिला]] के होंगेनल्ली नामक ग्राम में जन्म हुआ। वे एक [[तमिल]] अयंगार परिवार में जन्मे थे। उनके उपनाम "मास्ती" अपने बचपन के ज्यादातर समय बिताये हुए गाँव से लिया गया है। उन्होंने १९१४ में [[मद्रास विश्वविद्यालय]] से [[अंग्रेजी साहित्य]] में मास्टर डिग्री प्राप्त की। [[भारतीय सिविल सेवा]] परीक्षा उतीर्ण करके उन्होने कर्नाटक में सभी ओर विविध पदों पर कार्य किया। अंत में वे जिला आयुक्त के स्तर तक पहुंचे। २६ वर्ष की सेवा के बाद जब उनको मंत्री के बराबर का पद नहीं मिला और जब उनके एक कनिष्ट को पदोन्नत कर दिया गया तब मास्तीजी ने प्रतिवादस्वरूप अपने पद से इस्तीफा दे दिया। वे "श्रिनिवास" नामक से उपनाम से लिखा करते थे।
मस्ती वेंकटेश आयंगर ६ जून १८९१ में कर्नाटक के [[कोलार जिला]] के होंगेनल्ली नामक ग्राम में जन्म हुआ। वे एक [[तमिल]] अयंगार परिवार में जन्मे थे। उनके उपनाम "मास्ती" अपने बचपन के ज्यादातर समय बिताये हुए गाँव से लिया गया है। अपने बचपन वे बहुत ही कठिन परिस्थिति में बिताये।
उन्होंने १९१४ में [[मद्रास विश्वविद्यालय]] से [[अंग्रेजी साहित्य]] में मास्टर डिग्री सवर्ण पदकके सात प्राप्त की। उनके पिता के मरण के बाद वे अपने माता को अपनी योग्यता से पायी गई छात्रवृत्ति से सहारा दिया। मैसोर प्रशासन सेवा के परीक्षा में वे पहला पदवी हासिल किया। [[भारतीय सिविल सेवा]] परीक्षा उतीर्ण करके उन्होने कर्नाटक में सभी ओर विविध पदों पर कार्य किया। सहायक आयुक्त के पद से अपने जीविका शुरु करके वे आबकारी आयुक्त से, अंत में वे जिला आयुक्त के स्तर तक पहुंचे। २६ वर्ष की सेवा के बाद जब उनको मंत्री के बराबर का पद नहीं मिला और जब उनके एक कनिष्ट को पदोन्नत कर दिया गया तब मास्तीजी ने प्रतिवादस्वरूप अपने पद से इस्तीफा दे दिया। मास्तिजी पंकजम्मा नामक नारी से विवाहित थे,उनके ६ बेटियाँ थी। वे ''श्रिनिवास'' नामक से उपनाम से लिखा करते थे।
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[[Senate House, Madras - Tucks Oileete (1911).jpg|सेनेटघर,मद्रास विश्वविद्यालय]]

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==कार्य==
==कार्य==
मास्तीजी उनके गुरु [[बी.एम. श्री]] से बहुत प्रभावित थे। जब श्रीजी ने कन्नड साहित्य के पुनरुत्थान करने के लिये बुलाया, मास्तीजी पूरी तरह से संचलन में शामिल हो गये, बाद में इस संचलन को 'नवोदय' का नाम दिया गया, जिसका मतलब 'पुनर्जन्म' है। श्रिनिवास नामक उपनाम के नीचे उन्होने १९१० में अपने पहले क्षुद्र कहानी "रंगन मदुवे" को प्रकाशित किया, उनके आखिरी कथा "मातुगारा रामन्ना" सन १९८५ में प्र्काशित किया गया था।<ref> http://www.poemhunter.com/masti-venkatesha-iyengar/biography/</ref> "केलवु सन्ना कथेगलु" उनके सबसे स्मरणीय लेख था। वे सामाजिक, दार्शनिक और सौंदर्यात्मक विषयों पर अपने कविताओं को लिखा करते थे। मास्तीजी ने अनेक महत्त्वपूर्ण नाटको का अनुवाद किया, वे "जीवना" नामक मैगजीन का संपादक सन १९४४ से १९६५ रहे। आवेशपूर्ण कवि होने के कारण उन्होने कुल मिलाके १२३ पुस्तक कन्नड भाषा में और १७ पुस्तक अंग्रेजी भाषा में लिखे थे।
मास्तीजी उनके गुरु बी.एम. श्री से बहुत प्रभावित थे। जब श्रीजी ने कन्नड साहित्य के पुनरुत्थान करने के लिये बुलाया, मास्तीजी पूरी तरह से संचलन में शामिल हो गये, बाद में इस संचलन को ''नवोदय'' का नाम दिया गया, जिसका मतलब 'पुनर्जन्म' है। श्रिनिवास नामक उपनाम के नीचे उन्होने १९१० में अपने पहले क्षुद्र कहानी ''रंगन मदुवे'' को प्रकाशित किया, उनके आखिरी कथा ''मातुगारा रामन्ना'' सन १९८५ में प्र्काशित किया गया था।<ref> http://www.poemhunter.com/masti-venkatesha-iyengar/biography/</ref>
''केलवु सन्ना कथेगलु'' उनके सबसे स्मरणीय लेख था। वे सामाजिक, दार्शनिक और सौंदर्यात्मक विषयों पर अपने कविताओं को लिखा करते थे। मास्तीजी ने अनेक महत्त्वपूर्ण नाटको का अनुवाद किया, वे ''जीवना'' नामक मैगजीन का संपादक सन १९४४ से १९६५ रहे। आवेशपूर्ण कवि होने के कारण उन्होने कुल मिलाके १२३ पुस्तक कन्नड भाषा में और १७ पुस्तक अंग्रेजी भाषा में, लगभग ७० वर्ष के अंदर रचित किया। ''सुबन्ना, शेशम्मा, चेन्नबसवनायका'' व ''चिक्कवीर राजेंद्रा'' नामक उपन्यासों का रचना की, आखिरी दो ऐतिहासिक रचनाओं थे।
कर्नाटका से वे पहले व्यक्ती रहे है, जिन्होने [[बसवन्ना]] के वचन को अंग्रेजी में अनुवाद किया।






15:29, 9 सितंबर 2015 का अवतरण

मास्ती वेंकटेश अयंगार

मास्ती वेंकटेश अयंगार (६ जून १८९१ - ६ जून १९८६) कन्नड भाषा के एक जाने माने साहित्यकार थे। वे भारत के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किये गये है। यह सम्मान पाने वाले वे कर्नाटक के चौथे लेखक थे।

'चिक्कवीरा राजेंद्र' नामक कथा के लिये उनको सन् १९८३ में ज्ञानपीठ पंचाट से प्रशंसित किया गया था।मास्तीजी ने कुल मिलकर १३७ पुस्तकें लिखीं जिसमे से १२० कन्नड भाषा में थीं तथा शेष अंग्रेज़ी में। उनके ग्रन्थ सामाजिक, दार्शनिक, सौंदर्यात्मक विषयों पर आधारित हैं। कन्नड भाषा के लोकप्रिय साहित्यिक संचलन, "नवोदया" में वे एक प्रमुख लेखक थे। वे अपनी क्षुद्र कहानियों के लिये बहुत प्रसिद्ध थे। वे अपनी सारी रचनाओं को 'श्रीनिवास' उपनाम से लिखते थे। मास्तीजी को प्यार से मास्ती कन्नडदा आस्ती कहा नजाता था, क्योंकि उनको कर्नाटक के एक अनमोल रत्न माना जाता था। मैसूर के माहाराजा नलवाडी कृष्णराजा वडियर ने उनको राजसेवासकता के पदवी से सम्मानित किया था।।[1]

जीवन परिचय

मस्ती वेंकटेश आयंगर ६ जून १८९१ में कर्नाटक के कोलार जिला के होंगेनल्ली नामक ग्राम में जन्म हुआ। वे एक तमिल अयंगार परिवार में जन्मे थे। उनके उपनाम "मास्ती" अपने बचपन के ज्यादातर समय बिताये हुए गाँव से लिया गया है। अपने बचपन वे बहुत ही कठिन परिस्थिति में बिताये। उन्होंने १९१४ में मद्रास विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर डिग्री सवर्ण पदकके सात प्राप्त की। उनके पिता के मरण के बाद वे अपने माता को अपनी योग्यता से पायी गई छात्रवृत्ति से सहारा दिया। मैसोर प्रशासन सेवा के परीक्षा में वे पहला पदवी हासिल किया। भारतीय सिविल सेवा परीक्षा उतीर्ण करके उन्होने कर्नाटक में सभी ओर विविध पदों पर कार्य किया। सहायक आयुक्त के पद से अपने जीविका शुरु करके वे आबकारी आयुक्त से, अंत में वे जिला आयुक्त के स्तर तक पहुंचे। २६ वर्ष की सेवा के बाद जब उनको मंत्री के बराबर का पद नहीं मिला और जब उनके एक कनिष्ट को पदोन्नत कर दिया गया तब मास्तीजी ने प्रतिवादस्वरूप अपने पद से इस्तीफा दे दिया। मास्तिजी पंकजम्मा नामक नारी से विवाहित थे,उनके ६ बेटियाँ थी। वे श्रिनिवास नामक से उपनाम से लिखा करते थे।

कार्य

मास्तीजी उनके गुरु बी.एम. श्री से बहुत प्रभावित थे। जब श्रीजी ने कन्नड साहित्य के पुनरुत्थान करने के लिये बुलाया, मास्तीजी पूरी तरह से संचलन में शामिल हो गये, बाद में इस संचलन को नवोदय का नाम दिया गया, जिसका मतलब 'पुनर्जन्म' है। श्रिनिवास नामक उपनाम के नीचे उन्होने १९१० में अपने पहले क्षुद्र कहानी रंगन मदुवे को प्रकाशित किया, उनके आखिरी कथा मातुगारा रामन्ना सन १९८५ में प्र्काशित किया गया था।[2] केलवु सन्ना कथेगलु उनके सबसे स्मरणीय लेख था। वे सामाजिक, दार्शनिक और सौंदर्यात्मक विषयों पर अपने कविताओं को लिखा करते थे। मास्तीजी ने अनेक महत्त्वपूर्ण नाटको का अनुवाद किया, वे जीवना नामक मैगजीन का संपादक सन १९४४ से १९६५ रहे। आवेशपूर्ण कवि होने के कारण उन्होने कुल मिलाके १२३ पुस्तक कन्नड भाषा में और १७ पुस्तक अंग्रेजी भाषा में, लगभग ७० वर्ष के अंदर रचित किया। सुबन्ना, शेशम्मा, चेन्नबसवनायकाचिक्कवीर राजेंद्रा नामक उपन्यासों का रचना की, आखिरी दो ऐतिहासिक रचनाओं थे। कर्नाटका से वे पहले व्यक्ती रहे है, जिन्होने बसवन्ना के वचन को अंग्रेजी में अनुवाद किया।



सन्दर्भ