"कैथी": अवतरणों में अंतर
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'''कैथी''', जिसे "कयथी" के नाम से भी जाना जाता है एक ऐतिहासिक [[लिपि]] है जो पूरे उत्तर [[भारत]] में प्रयोग की जाती थी, खासकर पूर्ववर्ती [[उत्तर-पश्चिम प्रांत]], [[मिथिला]], [[बंगाल]], [[उड़ीसा]] और [[अवध]] में। इसका प्रयोग खासकर न्यायिक, प्रशासनिक एवं निजी आँकड़ों के संग्रहण में किया जाता था. |
'''कैथी''', जिसे "कयथी" के नाम से भी जाना जाता है एक ऐतिहासिक [[लिपि]] है जो पूरे उत्तर [[भारत]] में प्रयोग की जाती थी, खासकर पूर्ववर्ती [[उत्तर-पश्चिम प्रांत]], [[मिथिला]], [[बंगाल]], [[उड़ीसा]] और [[अवध]] में। इसका प्रयोग खासकर न्यायिक, प्रशासनिक एवं निजी आँकड़ों के संग्रहण में किया जाता था. |
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18:24, 24 अप्रैल 2011 का अवतरण
ब्राह्मी |
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ब्राह्मी तथा उससे व्युत्पन्न लिपियाँ |
कैथी, जिसे "कयथी" के नाम से भी जाना जाता है एक ऐतिहासिक लिपि है जो पूरे उत्तर भारत में प्रयोग की जाती थी, खासकर पूर्ववर्ती उत्तर-पश्चिम प्रांत, मिथिला, बंगाल, उड़ीसा और अवध में। इसका प्रयोग खासकर न्यायिक, प्रशासनिक एवं निजी आँकड़ों के संग्रहण में किया जाता था.
उत्पत्ति
कैथी की उतपत्ति कायस्थ शब्द से हुई है जो कि उत्तर भारत का एक सामाजिक समूह है। कायस्थ समुदाय का पुराने रजवाड़ों एवं ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों से काफी नजदीक का रिश्ता रहा है। ये उनके यहाँ विभिन्न प्रकार के आँकड़ों का प्रबंधन एवं भंडारण करने के लिये नियुक्त किये जाते थे। कायस्थों द्वारा प्रयुक्त इस लिपि को बाद में कैथी के नाम से जाना जाने लगा। अभी भी बिहार समेत देश के उत्तर पूर्वी राज्यों में इस लिपि में लिखे हजारों अभिलेख हैं। समस्या तब होती है जब इन अभिलेखों से संबंधित कानूनी अडचनें आती हैं। दैनिक जागरण के पटना संस्करण में नौ सितंबर 2009 को पेज बीस पर बक्सर से छपी कंचन किशोर की एक खबर का संदर्भ लें तो इस लिपि के जानकार अब उस जिले में केवल दो लोग बचे हैं। दोनों काफी उम्रदराज हैं। ऐसे में निकट भविष्य में इस लिपि को जानने वाला शायद कोई न बचेगा और तक इस लिपि में लिखे भू'अभिलेखों का अनुवाद आज की प्रचलित लिपियों में करना कितना कठिन होगा इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। भाषा के जानकारों के अनुसार यही स्थिति सभी जगह है। ऐसे में जरूरत है इस लिपि के संरक्षण की।
इतिहास
कैथी एक पुरानी लिपी है जिसका प्रयोग कम से कम 16 वी सदी मे धड़ल्ले से होता था। मुगल सल्तनत के दौरान इसका प्रयोग काफी व्यापक था। 1880 के दशक में ब्रिटिश राज के दौरान इसे प्राचीन बिहार के न्यायलयों में आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया था।
संदर्भ