लहू के दो रंग (1979 फ़िल्म)
लहू के दो रंग | |
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लहू के दो रंग का पोस्टर | |
निर्देशक | महेश भट्ट |
लेखक | सूरज सनिम |
निर्माता |
सीरू दरयाणी भगवान एस॰ सी॰ |
अभिनेता |
विनोद खन्ना, शबाना आज़मी, डैनी डेन्जोंगपा, हेलन |
छायाकार | प्रवीण भट्ट |
संगीतकार | बप्पी लहरी |
प्रदर्शन तिथियाँ |
28 सितंबर, 1979 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
लहू के दो रंग 1979 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इसका निर्देशन महेश भट्ट ने किया और विनोद खन्ना, हेलन, डैनी डेन्जोंगपा, शबाना आज़मी, रंजीत और प्रेमा नारायण ने अभिनय किया। फिल्म के संगीत और बोल क्रमशः बप्पी लहरी और फारूक क़ैसर द्वारा हैं।
फिल्म की कहानी, पटकथा और संवाद सूरज सनिम ने लिखे हैं। फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर "हिट" का दर्जा दिया गया था।
संक्षेप
[संपादित करें]शमशेर सिंह (विनोद खन्ना) अंग्रेजों से लड़ने के लिए सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली भारतीय सेना का हिस्सा है। हांगकांग में उसे पकड़ने के लिए जब अंग्रेज पीछे होते हैं, उसे सूज़ी (हेलन) द्वारा बचाया गया और मदद की गई। उसके प्यार में पड़कर सूज़ी शमशेर के बच्चे के साथ गर्भवती हो जाती है। लेकिन वह शमशेर को भारत वापस जाने की अनुमति देती है और उसे और उसके बच्चे को भारत ले जाने के लिए वापस आने को कहती है। भारत में, शमशेर पहले से ही लाडजो (इन्द्रानी मुखर्जी) से शादी कर चुका है। इन दोनों का एक बेटा है जिसका नाम राज है।
शमशेर के दोस्त शंकर (रंजीत) ने मैक (मैक मोहन) की मदद से उन सभी को धोखा दिया और शमशेर को मार डाला। लेकिन मैक भी शंकर को धोखा देता है और लूटे गए सोने को शंकर को बताए बिना कहीं छिपा देता है।
बरसों बाद शमशेर का बेटा राज सिंह (विनोद खन्ना) भी पुलिस बल में शामिल हो जाता है और इंस्पेक्टर बन जाता है। वह अब अपने पिता के हत्यारों को खोजने में रुचि रखता है। मैक, जो अपनी कैद का समय पूरा करता है, रिहा हो जाता है। उसको शंकर द्वारा पकड़ लिया जाता है। शंकर ने अब अपना नाम देवी दयाल रख लिया है। मैक, देवी दयाल को खुलासा करता है कि सोना एक कार में दफन है जो एक गहरी झील के तल पर है। सोने को निकालने के लिए, वे उत्कृष्ट गोताखोर सूरज (डैनी डेन्जोंगपा) को काम पर रखता है। सूरज शमशेर और सूज़ी का नाजायज़ बेटा है और इस बात से नाराज़ है कि उसकी माँ सूज़ी को शमशेर ने कैसे धोखा दिया और कैसे वह उन्हें लाने के लिए कभी नहीं लौटा।
हत्या के एक मामले को सुलझाने की अपनी खोज पर, राज दार्जिलिंग जाता है, जहाँ वह रोमा (शबाना आज़मी) से मिलता है और उससे प्यार कर बैठता है। सूरज भी अपनी नये काम के लिये दार्जिलिंग में हैं, जिसे देवी दयाल ने उसे दिया है। सूरज को भी रोमा से प्यार हो जाता है, लेकिन वह उसे बताने में बहुत संकोच करता है। रोमा, राज को बताती है कि किस तरह उसकी माँ को देवी दयाल ने ड्रग्स का आदी बना दिया था। घटनाओं की एक श्रृंखला सभी रहस्यों को उजागर करती है और राज और सूरज अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए एकजुट होते हैं।
मुख्य कलाकार
[संपादित करें]- विनोद खन्ना — इंस्पेक्टर राज सिंह / शमशेर सिंह
- शबाना आज़मी — रोमा
- डैनी डेन्जोंगपा — सूरज
- हेलन — सूज़ी
- रंजीत — शंकर लुथरिया / देवी दयाल
- प्रेमा नारायण — अनीता / मीना
- मैक मोहन — मैक
- इन्द्रानी मुखर्जी — लाडजो
- गोगा कपूर — गोगा
- मोहन शेरी
संगीत
[संपादित करें]सभी गीत फारूक कैसर द्वारा लिखित; सारा संगीत बप्पी लहरी द्वारा रचित।
क्र॰ | शीर्षक | गायक | अवधि |
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1. | "मुस्कुराता हुआ गुल खिलाता हुआ" | किशोर कुमार | 6:50 |
2. | "माथे की बिंदिया बोले" (I) | अनुराधा पौडवाल, मोहम्मद रफी | 6:07 |
3. | "हम से तुम मिले" | डैनी डेन्जोंगपा, चंद्रानी मुखर्जी | 4:19 |
4. | "जिद ना करो अब तो रुको" (महिला) | लता मंगेशकर | 4:24 |
5. | "जिद ना करो अब तो रुको" (पुरुष) | येशुदास | 4:25 |
6. | "मस्ती में जो निकली मुँह से" | किशोर कुमार, सुलक्षणा पंडित | 4:32 |
7. | "चाहिये थोड़ा प्यार" | किशोर कुमार | 5:25 |
8. | "माथे की बिंदिया बोले" (II) | मोहम्मद रफी, अनुराधा पौडवाल | 4:05 |
नामांकन और पुरस्कार
[संपादित करें]प्राप्तकर्ता और नामांकित व्यक्ति | पुरस्कार वितरण समारोह | श्रेणी | परिणाम |
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हेलन | फिल्मफेयर पुरस्कार | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कार | जीत |