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कश्मीरी गेट, दिल्ली

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निर्देशांक: 28°40′00″N 77°13′45″E / 28.6665706°N 77.2290677°E / 28.6665706; 77.2290677

कश्मीरी दरवाजा

दिल्ली का कश्मीरी दरवाज़ा, २०१७ ई.
कश्मीरी गेट, दिल्ली is located in नई दिल्ली
कश्मीरी गेट, दिल्ली
India New Delhi के नक़्शे पर अवस्थिति
सामान्य जानकारी
कस्बा या शहर दिल्ली
देश भारत
निर्देशांक 28°40′00″N 77°13′45″E / 28.6665706°N 77.2290677°E / 28.6665706; 77.2290677
पूर्ण १८३५
डिजाइन और निर्माण
ग्राहक दिल्ली सरकार

कश्मीरी दरवाज़ा (या कश्मीरी गेट) दिल्ली के लाल किले के निकटस्थ पुराने दिल्ली शहर (शाहजहानाबाद) का एक उत्तर मुखी द्वार हुआ करता था। इसका निर्माण एक सैन्य अभियांत्रिक रॉबर्ट स्मिथ द्वारा १८३५ में करवाय़ा गया था, एवं इसके उत्तरी ओर कश्मीर प्रान्त को मुख होने के कारण इसे कश्मीरी दरवाजा कहा गया। यहां से निकलने वाली सड़क कश्मीर को जाती थी। वर्तमान में यह उत्तरी दिल्ली का एक मोहल्ला है, जो पुरानी दिल्ली क्षेत्र में आता है। यहां कुछ महत्त्वपूर्ण मार्ग मिलते हैं, जो लाल किले, महाराणा प्रताप अन्तर्राज्यीय बस टर्मिनल एवं दिल्ली जंक्शन रेलवे स्टेशन को जोड़ते हैं।

कश्मीरी दरवाजे पर लगा शिलालेख, जो १४ सितंबर, १८५७ में ब्रिटिश सेना द्वारा स्वाधीनता संग्राम के समय आक्रमण के बारे में बताता है।

यह पुरानी दिल्ली के उत्तरी द्वार के निकट का क्षेत्र था, जो लाल किले की ओर जाता था। उत्तर अर्थात कश्मीर की ओर मुख होने के कारण इसे कश्मीरी दरवाजा नाम मिला। इसी प्रकार दक्षिणी दरवाजा दिल्ली दरवाजा कहलाता था। जब ब्रिटिश लोगों ने १८०३ में दिल्ली में बसने कि शुरुआत की, तब उन्होंने देखा कि पुरानी दिल्ली अर्थात शाहजहानाबाद की दीवारें विशेषकर १८०४ में मराठा होल्कर के अधिकरण के बाद जीर्ण-शीर्ण अवस्था में थीं। तब उन्होंने दीवारों का मरम्मत कार्य करवाया। ब्रिटिश लोगों ने अपने निवास नगर के उत्तरी ओर वर्तमान कश्मीरी दरवाजे के निकट बनवाये, जहां कभी मुगल महलों एवं नवाबों, सामन्तों के निवास हुआ करते थे। [1][2] तभी उन्होंने इस दरवाजे का निर्माण करवाया। बाद में यह द्वार पुनः १८५७ के प्रथम भारतीय स्वाधीनता संग्राम के समय प्रकाश में आया। इस दरवाजे से ही भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश सेनाओं पर तोप के गोले बरसाये थे, तथा इस क्षेत्र को सबके एकत्रित होकर रणनीति तय करने एवं ब्रिटिश सेनाओं को प्रतिरोध देने की योजनाएं बनाने में प्रयोग किया करते थे।

अंग्रेज़ों ने इस दरवाजे को (उनके अनुसार) विद्रोहियों को नगर में प्रवेश से रोकने हेतु प्रयोग किया था। आज दिखाई देने वाली दीवार में उस समय के हमलों के साक्ष्य तोप के गोलों से हुई क्षति के निशानों के रूप में आज भी विदित हैं। कश्मीरी दरवाजा १८५७ के संग्राम के समय हुए एक महत्त्वपूर्ण ब्रिटिश हमले का साक्ष्य भी रहा था। इसमें १४ सितंबर, १८५७ की प्रातः ब्रिटिश सेनाओं ने एक पुल एवं दरवाजे का बायां भाग बारूद के प्रयोग से ध्वस्त कर उसमें रास्ता बनाकर दिल्ली को पुनराधिग्रहण किया था एवं इस विद्रोह (उनके अनुसार) का अन्त किया था। [3]

१८५७ के बाद ब्रिटिश सिविल लाइन्स क्षेत्र को चले गये एवं कश्मीरी दरवाजा क्षेत्र दिल्ली का व्यापारिक एवं फ़ैशन केन्द्र बना रहा। इस स्थान को ये पदवी १९३१ में नयी दिल्ली के बन जाने तक बरकरार रही। १९६५ में यातायात को सुगम बनाने हेतु कश्मीरी दरवाजे का एक भाग ध्वस्त कर दिया गया। तभी से इसे एक संरक्षित स्मारक भी घोषित किया गया तथा भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण विभाग को सौंप दिया गया।[1]

१९१० के दशक के आरम्भ में भरत सरकार प्रेस के कर्मचारीगण कश्मीरी गेट के निकटस्थ स्थापित हुए, जिनमें बंगाली समुदाय की उल्लेखनीय संख्या थी। तब उन्होंने यहाँ १९१० में ही दिल्ली दुर्गा पूजा समिति के द्वारा दुर्गा पूजा का आयोजन करना आरम्भ हुआ। यह दुर्गा पूजा आज दिल्ली की सबसे पुरानी दुर्गा पूजा ज्ञात है।[4] दिल्ली राज्य निर्वाचन कमीशन के कार्यालय की इमारत यहां के लोथियन मार्ग पर स्थित है। इसका निर्माण १८९०-९१ में हुआ था। सेंट स्टीफ़न्स कालेज की पुरानी द्विमंजिला इमारत भी यहीं १८९१ से बनी हुआ है और १९४१ तक प्रयोग में थी, जब ये महाविद्यालय यहां से अपने वर्तमान परिसर को स्थानांतरित हुआ।[5]

ऐतिहासिक स्थल

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निकटवर्ती

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सेंट जेम्स गिरजाघर

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सेंट जेम्स गिरजाघर, जिसे स्किनर्स चर्च भी कहते हैं, कश्मीरी गेट के निकट ही स्थित है।

सेंट जेम्स गिरजाघर, जिसे स्किनर्स चर्च भी कहते हैं, कश्मीरी गेट के निकट ही स्थित है। इसकी स्थापना कर्नल जेम्स स्किनर (१७७८-१८४१), कैवैलरी रेजिमेण्ट- स्किनर्स हॉर्स के एक प्रसिद्ध एंग्लो-इण्डियन सैन्य अधिकारी ने करवायी थी। इसकी अभिकल्पना मेजर रॉबर्ट स्मिथ ने की थी एवं निर्माण १८२६-३६ के बीच हुआ था। [6]

अन्तर्राज्यीय बस अड्डा

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महाराणा प्रताप अन्तर्राज्यीय बस अड्डा (आई.एस.बी.टी) भारत के सबसे पुराने बस एड्डों में से एक है एवं सबसे बड़ा बस अड्डा है। यहां से दिल्ली एवं ७ निकटवर्त्ती राज्यों- हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर तथा उत्तराखण्ड के लिये सभी तरह की बस सेवाएं उपलब्ध हैं। यह १९७६ में बना था।[7] यहां से निकट ही मजनूं का टीला क्षेत्र है, जो तिब्बती शरणार्थी कैम्प के लिये प्रसिद्ध है, तथा यहां १७८३ में बघेल सिंह द्वारा बनवाया गया गुरुद्वारा है। यह गुरुद्वारा उस टीले पर स्मारक रूप में बनवाया गया है, जहां १५०५ में प्रथम सिख गुरु नानक देव की भेंट एक सूफ़ी मजनूं से हुई थी। [8]

रेलवे स्टेशन

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पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन, या दिल्ली जंक्शन रेलवे स्टेशन, जिसकी इमारत किसी पुराने किले के द्वार कि भांति बनी हुई है, निकटवर्ती चांदनी चौक क्षेत्र में बना है, जिसकी पिछली ओर कश्मीरी गेट में ही खुलती है। ये दोनों क्षेत्र एक पैदल पार पुल से जुड़े होते थे[9][10], जिसे कौड़िया पुल कहा जाता था। कुछ वर्ष पूर्व हटा दिया गया है। कहते हैं इस पुल का निर्माण १८वीं शताब्दी में मुगल बादशाह शाह आलम के समय में उनके एक दरबारी शाद खां द्वारा कौड़ियों से करवाया गया था। बाद में ब्रिटिश राज में इसे पुनर्निर्माण किया गया था।[11]

मेट्रो स्टेशन

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दिल्ली मेट्रो का कश्मीरी गेट स्टेशन इसकी दो लाइनों: रेड लाइन (दिलशाद गार्डन-रिठाला) एवं येलो लाइन (जहांगीरपुरी-हुडा सिटी सेण्टर) पर पड़ता है। यह इन दोनों मार्गों, सबसे ऊपर -रेड लाइन एवं सबसे नीचे- येलो लाइन का अदला-बदली स्टेशन है। [12] कश्मीरी गेट में ही दिल्ली मेट्रो का मुख्यालय भी स्थित है।

इसी क्षेत्र में कश्मीरी दरवाजे के निकट ही भारतीय डाक विभाग का उत्तरी दिल्ली क्षेत्र का प्रधान डाकघर भी स्थित है। यह देश का सबसे पुराना प्रधान डाकघर है। मुगल राजकुमार, दारा शिकोह द्वारा स्थापित किया गया एक पुस्तकालय भी स्थित है। इसे पुरातात्त्विक संग्रहालय के रूप में भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण विभाग द्वारा प्रयोग किया जा रहा है।

इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय

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गुरु गोबिन्द सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय (जिसे पूर्व में इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय कहते थे), दिल्ली राज्य का एक विश्वविद्यालय है। यह कश्मिरी गेट क्षेत्र में ही स्थित है। यह यहां की एक पुरानी इमारत परिसर में स्थित है जहां पहले दिल्ली पॉलिटेक्निक फ़िर बाद में दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलिज एवं दिल्ली इन्स्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी होते थे। ये दोनों ही कॉलेज एक बड़े परिसर में स्थानांतरित हो चुके हैं, क्रमशः बवाना, रोहिणी तथा द्वारका सैक्टर-३ एवं सै-१४ एवं अब इस परिसर को अम्बेडकर विश्वविद्यालय को सौंप दिया गया है।

निकट ही श्यामनाथ मार्ग पर , इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय भी १९३८ से खुला हुआ है, जो अब दिल्ली विश्वद्यालय के अधीन है।

चित्र दीर्घा

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सन्दर्भ

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  1. देल्ही दिटी गाइड, : आयशर गुडार्थ लि., दिल्ली पर्यटन। प्रकाशक: आयशर गुडअर्थ लि., १९९८, ISBN 81-900601-2-0. पृ.२०१|
  2. दे गेव द न्यू कैपिटल, इंग्लिश टच Archived 2017-03-15 at the वेबैक मशीन।१ सितंबर, २०११। हिन्दुस्तान टाइम्स
  3. निवेदिता खाण्डेकर (३० सितंबर, २०१२). "अ गेट इन द सिटी वॉल". हिन्दुस्तान टाइम्स. मूल से 31 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 सितंबर 2013. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  4. "How community pujas came about". इण्डिया टुडे. सितंबर २५, २००३. मूल से 13 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 मार्च 2017.
  5. "College to poll office, a 123-year-old quiet journey". हिन्दुस्तान टाइम्स. मई १२, २०१३. मूल से 31 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 सितंबर 2013.
  6. No.3. स्किनर’स चर्च, दिल्ली Archived 2016-03-04 at the वेबैक मशीन, ब्रिटिश लाइब्रेरी
  7. नेक्स्ट ईयर-अ राइड आउट टू न्यू एज ट्रांस्पोर्ट हब्सइण्डियन एक्स्प्रेस, श्वेता दत्ता, दिसंबर १४, २०१०
  8. "A Gurdwara steeped in history". द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया. मार्च २५, २०१२. मूल से 12 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 मार्च 2017.
  9. शाहजहानाबाद रीडवलपमेंट कार्पोरेशन Archived 2017-03-15 at the वेबैक मशीन।२३-०३-२०१४।दिल्ली सरकार
  10. कश्मीरी गेट Archived 2017-03-15 at the वेबैक मशीन।दिल्ली इन्फ़ॉर्मेशन।
  11. ब्रिजिंग मिथ एण्ड रियलिटी Archived 2014-04-18 at the वेबैक मशीन। स्मिथ, आर.वी,द हिन्दू, ११-मार्च, २०१३
  12. "स्टेशन इन्फ़ॉर्मेशन Station Information". मूल से जून 19, 2010 को पुरालेखित.

बाहरी कड़ियाँ

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