हिंदी शब्दसागर
हिंदी शब्दसागर, हिन्दी भाषा के लिए बनाया गया एक बृहत् शब्द-संग्रह तथा प्रथम मानक कोश है। इसका निर्माण नागरी प्रचारिणी सभा, काशी ने किया था। इसका प्रथम प्रकाशन १९२२-१९२९ के बीच हुआ था । यह वैज्ञानिक एवम् विधिवत् शब्दकोश मूल रूप में चार खण्डों में बना। इसके प्रधान सम्पादक श्यामसुन्दर दास थे तथा बालकृष्ण भट्ट, लाला भगवानदीन, अमीर सिंह एवं जगन्मोहन वर्मा सहसम्पादक थे। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल एवं आचार्य रामचंद्र वर्मा ने भी इस महान कार्य में सर्वश्रेष्ठ योगदान किया। इसमें j एक लाख शब्द थे। बाद में सन् १९६५-१९७६ के बीच इसका परिवर्धित संस्करण ११ खण्डों में प्रकाशित हुआ।
संक्षिप्त इतिहास
[संपादित करें]- हिंदी में सर्वांगपूर्ण और बृहत् कोश का अभाव नागरी प्रचारिणी सभा के संचालकों को १८९३ ई० में ही खटका था और उन्होंने एक उत्तम कोश बनाने के विचार से आर्थिक सहायता के लिये दरभंगानरेश महाराजा सर लक्ष्मीश्वर सिंह जी से प्रार्थना की थी। महाराजा ने भी शिशु सभा के उद्देश्य की सराहना करते हुए १२५ रूपए उसकी सहायता के लिये भेजे थे और उसके साथ सहानुभूति प्रकट की थी।
- २३ अगस्त सन् १९०७ को सभा के परम हितैषी और उत्साही सदस्य श्रीयुक्त रेवरेंड ई० ग्रीव्स ने सभा की प्रबंधकारिणी समिति में यह प्रस्ताव उपस्थित किया कि हिंदी के एक बृहत् और सर्वांगपूर्ण कोश बनाने का भार सभा अपने ऊपर ले और साथ ही यह भी बतलाया कि यह कार्य किस प्रणाली से किया जाए। सभा ने मि० ग्रीव्स के प्रस्ताव पर विचार करके इस विषय में उचित परामर्श देने के लिए निम्नलिखित सज्जनों की एक उपसमिति नियत कर दी-रेवरेंड ई० ग्रीव्स, महामहोपाध्याय पंडित सुधाकर द्विवेदी, पंडित रामनारायण मिश्र बी० ए०, बाबू गोविंददास, बाबू इंद्रनारायण सिंह एम० ए०, छोटेलाला, मुंशी संकटाप्रसाद, पंडित माधवप्रसाद पाठक और श्यामसुन्दर दास।
- ९ नवम्बर १९०७ को इस उपसमिति ने अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें सभा को परामर्श दिया गया कि सभा हिंदीभाषा के दो बड़े कोश बनवाए जिनमें से एक में तो हिंदी शब्दों के अर्थ हिंदी में ही रहें और दूसरे में हिंदी शब्दों के अर्थ अँग्रेजी में हों।
- सभा ने इस कार्य के लिये अनेक राजा-महाराजों से आर्थिक सहायता प्राप्त की।
- सभा ने निश्चित किया कि शब्दसंग्रह का काम वेतन देकर कुछ लोगो से कराया जाए। तदनुसार प्रायः १६-१७ आदमी शब्दसंग्रह के काम के लिये नियुक्त कर दिए गए और एक निश्चित प्रणाली पर शब्दसंग्रह का काम होने लगा।
- आरंभ में कोश के सहायक संपादक पंडित बालकृष्ण भट्ट, पंडित रामचंद्र शुक्ल, लाला भगवानदीन और बाबू अमीर सिंह के अतिरिक्त बाबू जगन्मोहन वर्मा, बाबू रामचंद्र वर्मा, पंडित वासुदेव मिश्र, पंडित रामवचनेश मिश्र, पंडित ब्रजभूषण ओझा, श्रीयुत् वेशी कवि आदि अनेक सज्जन भी इस शब्दसंग्रह के काम में सम्मिलित थे। आरंभ में सभा ने यह निश्चित नहीं किया था कि कोश का संपादक किसे बनाया जाए, पर दूसरे वर्ष सभा ने श्यामसुन्दर दास को कोश का प्रधान संपादक बनाना निश्चित किया।
- सन् १९१० के आरंभ में शब्दसंग्रह का कार्य समाप्त हो गया। जिन स्लिपों पर शब्द लिखे गए थे, उनकी संख्या अनुमानतः १० लाख थी, जिनमें से आशा की गई थी कि प्रायः १ लाख (बिना दुहराए) शब्द निकलेंगे और प्रायः यही बात अंत में हुई भी।
- मई, १९१२ में छपाई का कार्य आरंभ हुआ और एक ही वर्ष के अंदर ९६-९६ पृष्ठों की चार संख्याएँ छपकर प्रकाशित हो गई, जिनमें ८६६६ शब्द थे। सर्वसाधारण में इन प्रकाशित संख्याओं का बहुत आदर हुआ।
- इस प्रकार १९१७ तक बराबर काम चलता रहा और कोश की १५ संख्याएँ छपकर प्रकाशित हो गई तथा ग्राहक संख्या में बहुत कुछ वृद्धि हो गई।
- सन् १९२४ में कोश के संबंध में एक दुर्घटना हो गई थी। आरंभ में शब्दसंग्रह की जो स्लिपें तैयार हुई थी, उनके २२ बंडल कोश कार्यालय से चोरी हो गए। उनमें 'विव्वोक' से 'शं' तक की और 'शय' से 'सही' तक की स्लिपें थी।
- जनवरी, १९२९ को यह कार्य समाप्त हुआ।
- इस प्रकार यह बृहत् आयोजन २० वर्ष के निरंतर उद्योग, परिश्रम और अध्यवसाय के अनंतर समाप्त हुआ। इससें सब मिलाकर ९३,११५ शब्दों के अर्थ तथा विवरण दिए गए थे और आरंभ में हिंदी भाषा और साहित्य के विकास का इतिहास भी दे दिया गया था जिसे आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने तैयार किया था। इस समस्त कार्य में सभा का तबतक १०,२७३५ रूपये हुए, जिसमें छपाई आदि का भी व्यय सम्मिलित है।
परिचय
[संपादित करें]डॉ॰ श्यामसुंदर दास के नेतृत्व में और आचार्य रामचंद्र शक्ल जैसे मर्मज्ञ आलोचक और हिदी साहित्यविज्ञ के सहायकत्व में तथा बालकृष्ण भट्ट श्री अमीर सिह, श्री जगन्मोहन वर्मा श्री (लाला) भगवानदीन और श्री रामचंद्र वर्मा के संपादकत्व में अनेक विद्वानों, कार्यकर्ताओं के सहयोग से संपादित और निर्मित यह कोश एक महान प्रयास था। साधन और परिस्थितियों के विचार से इस महाकोश के संपादन में सभा के कर्णधारों और कोश के कार्यकर्ताओं को महान सफलता प्राप्त हुई। इसकी कुछ उपलब्धियाँ है जो स्तुत्य और अभिनंदनीय हैं। यह भी कहा जा सकता है कि हिदी शब्दसागर के अनंतर बने हिदी के सभी छोटे बड़े कोशों का यही महाकोश उपजीव्य और आधार रहा।
हिंदी कोशकला के लब्धप्रतिष्ठ संपादक श्री रामचंद्र वर्मा के इस प्रशंसनीय कार्य का उपजीव्य भी मुख्यतः हिन्दी शब्दसागर ही है। उसका मूल कलेवर तात्विक रूप में शब्दसागर से ही अधिकांशतः परिकलित है। हिंदी के अन्य कोशों में भी अधिकांश सामग्री इसी कोश से ली गई है।
पूर्ववर्ती अधिकांश हिंदी कोशों की भाँति हिन्दी शब्दसागर एक व्यक्ति द्वारा निर्मित न होकर भाषा और साहित्य के मर्मज्ञ अनेक सुधियों द्वारा तैयार किया गया। शब्दसंकलन के लिये केवल पुराने कोशों का ही आधार न लेकर ग्रंथों और व्यवहारयुक्त भाषा और बोलियों के प्रायः समस्त उपलब्ध सामान्य और विशेष शब्दों के संग्रह का उसमे प्रयास हुआ। प्रायः प्रत्येक शब्द का मूल स्रोत देखने के प्रयास के साथ साथ विभिन्न भाषामूलक स्रोतों का निर्देश करने की चेष्टा हुई। व्युत्पत्तियाँ यद्यपि बहुत-सी ऐसी हैं जो संदिग्ध और भ्रामक अथवा कहीं कहीं अशुद्ध भी हैं तथापि उसके लिये यथासाधन और यथाशक्ति जो प्रयास है वह भी अपने आपमे बड़ा महत्त्व रखता है।
व्याकरणमूलक व्यवस्था और तदनुसार शब्द एवं अर्थ के व्यवस्थित निर्देश का हिंदी शब्दसागर में अत्यंत प्रौढ़ विनियोजन दिखाई देता है। पर्याय-निर्देशन पर जहाँ एक ओर संस्कृत कोशों का व्यापक प्रभाव है और प्रायः अधिकाधिक यौगिक पदो का उल्लेख भी संस्कृत व्याकरण पर अधिकतः आधारित है वहाँ दूसरी ओर हिंदी की प्रकृति और प्रयोग-परंपरा का आकलन और संकलन भी बड़े यत्न और मनोयोग के साथ किया गया है। हिंदी के मुहावरों और लोकोक्तियों या प्रयोगों अथवा क्रियाप्रयोगों की प्रयागपरंपरा से आगत अर्थों की व्याख्या भी इसमें पर्याप्त प्रौढ़ है।
शब्दसागर में अर्थनिर्धारण में व्याख्यात्मक पद्धति अपनाई गई है। पर साथ ही मुख्य शब्दों के अंतर्गत अधिकतः पर्याय भी रख दिए गए हैं। इस कारण कभी कभी ऐसा भी लगता है कि यह कोश आधुनिक ढंग का पर्यायवाची और नानार्थक कोश एक साथ बन गया है। व्याख्यात्मक पद्धति के अंतर्गत व्यक्ति, विषय, वस्तु आदि का पौराणिक, ऐतिहासिक, शास्त्रीय और परंपरागत अनेक प्रकार के परिचय एवं विवरण यथास्थान दिए गए है। इस कारण यह कोश विश्वकोश, ज्ञानकोश, चरितकोश और पारिभाषिक कोश के परिवेश का भी यत्र-तत्र स्पर्श करता देखाई देता है।
इसमें कुछ कमियाँ भी गिनाई जा सकतीं हैं। शब्दों के समस्त अर्थों की प्रयोगपुष्टि और प्रामाणिकता के निमित सर्वत्र उदाहरण नहीं हैं। जहाँ हैं वहाँ भी बहुधा ग्रंथों के नाममात्र ही निर्दिष्ट हैं। उनेक प्रसंगस्थल और संस्करण का उल्लेख नहीं है। अनेक स्थलों पर बोलचाल के स्वनिर्मित उदाहरण भी नियोजित किए गए हैं। सब मिलाकर इसमें शब्दसंग्रह और अर्थविवृति दोनों की परिधि को यथासंभव व्यापक और विस्तृत बनाया गया है। इस क्षेत्र में विभिन्न पेशों और वर्ग के जनजीवन से संगृहीत शब्दभण्डार की संयोजना से इस कोश का महत्त्व बहुत बढ़ गया है।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- हिन्दी शब्दसागर (ऑनलाइन) - हिन्दी शब्द देवनागरी या रोमन में लिखकर उनके अर्थ ढूँढिए।
- बाल-शब्दसागर
- बाल-शब्दसागर
- विस्तार से हिन्दी शब्दसागर की भूमिका, सम्पादकीय प्रस्तावना, प्रकाशिका एवं संकेतिका
- हिन्दी शब्दसागर (परिवर्धित, संशोधित, नवीन संस्करण) प्रथम भाग (१९८६ ई॰)
- हिन्दी शब्दसागर (परिवर्धित, संशोधित, नवीन संस्करण) द्वितीय भाग (१९८७ ई॰)
- हिन्दी शब्दसागर (परिवर्धित, संशोधित, नवीन संस्करण) तृतीय भाग (१९९२ ई॰)
- हिन्दी शब्दसागर (परिवर्धित, संशोधित, नवीन संस्करण) चतुर्थ भाग (१९९५ ई॰)
- हिन्दी शब्दसागर (परिवर्धित, संशोधित, नवीन संस्करण) पंचम भाग (१९९५ ई॰)
- हिन्दी शब्दसागर (परिवर्धित, संशोधित, नवीन संस्करण) छठा भाग (१९६९ ई॰)
- हिन्दी शब्दसागर (परिवर्धित, संशोधित, नवीन संस्करण) सातवाँ भाग (१९७० ई॰)
- हिन्दी शब्दसागर (परिवर्धित, संशोधित, नवीन संस्करण) आठवाँ भाग (१९७१ ई॰)
- हिन्दी शब्दसागर (परिवर्धित, संशोधित, नवीन संस्करण) नौवाँ भाग (१९७२ ई॰)
- हिन्दी शब्दसागर (परिवर्धित, संशोधित, नवीन संस्करण) दसवाँ भाग (१९७३ ई॰)
- हिन्दी शब्दसागर (परिवर्धित, संशोधित, नवीन संस्करण) ग्यारहवाँ भाग (१९७५ ई॰)