सलीम तृतीय

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
सलीम तृतीय
سليم ثالث
इस्लाम के ख़लीफ़ा
अमीरुल मुमिनीन
उस्मानी साम्राज्य के सुल्तान
कैसर-ए रूम
ख़ादिम उल हरमैन अश्शरीफ़ैन
28वें उस्मानी सुल्तान (बादशाह)
शासनावधि7 अप्रैल1789 – 29 मई 1807
पूर्ववर्तीअब्दुल हमीद द्वितीय
उत्तरवर्तीमुस्तफ़ा चतुर्थ
जन्म24 दिसम्बर 1761
तोपकापी महल, क़ुस्तुंतुनिया, उस्मानिया
निधन28 जुलाई 1808(1808-07-28) (उम्र 46)
तोपकापी महल, क़ुस्तुंतुनिया, उस्मानिया
समाधि
ललेली मस्जिद, इस्तांबुल
पत्नियाँसफ़ीज़र क़ादन Kadın
अयनसफ़ा कादन
ज़िबिफ़र क़ादन
तबसफ़ा क़ादन
रफ़त क़ादन
नूरशम्स क़ादन
हुस्नुमाह क़ादन
शाही ख़ानदानउस्मानी
पितामुस्तफ़ा तृतीय
मातामहरशाह सुल्तान
धर्मसुन्नी इस्लाम
तुग़रासलीम तृतीय سليم ثالث के हस्ताक्षर

सलीम तृतीय (उस्मानी तुर्कीयाई: سليم ثالث सेलिम-इ सालिस) (24 दिसम्बर 1761 – 28 जुलाई 1808) 1789 से 1807 तक उस्मानी साम्राज्य के सुल्तान रहे। अपने सुधारवादी नीतियों की वजह से यनीचरियों ने उन्हें बंदी बना लिया और अंत में उनकी हुकूमत को तख़्तापलट किया गया था। बाद में यनीचरियों ने उनके चचेरे भाई मुस्तफ़ा चतुर्थ को तख़्त पर बिठा दिया। अनजान हत्यारों द्वारा सलीम की हत्या की गई थी।

जीवनी[संपादित करें]

सलीम तृतीय मुस्तफ़ा तृतीय और महरशाह सुल्तान के बेटे थे। उनकी माँ जॉर्जिया में पैदा हुई और वालिदा सुल्तान के ओहदे संभालती हुई वे हुकूमती शालाओं के सुधार आंदोलन में शामिल थीं। सलीम तृतीय के पिता सुल्तान मुस्तफ़ा तृतीय बहुत शिक्षित थे और उनका मानना था कि साम्राज्य में सुधार आंदोलन चलाना निहायत ज़रूरी थी। शिक्षित और क़ाबिल सिपाहियों के साथ उन्होंने एक ताक़तवर सेना बनाने की कोशिश की। उन्होंने सेना पर ज़ोर दिया क्योंकि उनका डर था कि रूसी साम्राज्य की ओर से उस्मानिया पर आक्रमण हो जाएगा। रूसियों और उस्मानियों के 1774 युद्ध के दौरान दिल के दौरे की वजह से उनकी मौत हुई। सुल्तान मुस्तफ़ा जानते थे कि सेना में सुधार लाने की निहायत ज़रूरत थी। उन्होंने नई सैन्य विधियाँ क़ायम की और उन्होंने नई समुद्री और तोपख़ाने अकादमियों की स्थापना की।

सुल्तान मुस्तफ़ा पर रहस्यवाद का गहरा असर रहा। उनके भविष्यवक्तों के मुताबिक़ उनके बेटे सलीम जहान पर फ़तेह करेंगे और इसकी ख़ुशी में उन्होंने सात दिनों की शानदार दावत का इंतज़ाम किया। राजमहल में ही सलीम की शिक्षा हुई। सुल्तन मुस्तफ़ा ने सलीम को अपने वलीअहद के तौर पर नियुक्त किया लेकिन मुस्तफ़ा की मौत के बाद सलीम के चाचा अब्दुल हमीद प्रथम तख़्त पर बिठाया गया था।

अब्दुल हमीद की मौत के बाद 7 अप्रैल 1789 को, 27 सालों से कम सालों की उम्र में सलीम तख़्त पर आसीन हुए। सलीम तृतीय साहित्य और सुलेखन के प्रेमी थे। उन्होंने कई कविताएँ रची, ख़ासकर क्रीमिया पर रूस की फ़तेह के बारे में। वे एक कवि थे और ललित कलाओं के शौक़ीन थे। सुल्तान सलीम तृतीय एक आधुनिकतावादी और सुधारवादी शासक थे।

सन्दर्भ[संपादित करें]