सदस्य:Vaishnavi 2110461/प्रयोगपृष्ठ

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सारस्वत व्यंजन[संपादित करें]

भारत के पश्चिमी तट के कोंकण क्षेत्र मैं रहने वाले सारस्वत ब्राह्मणों के खानपान को कोंकण व्यंजन के नाम से जाना जाता है। सारस्वत ब्राह्मणों की उपखंडों के व्यंजनों में अनेक क्षेत्र के अनुसार भिन्नता पाई जाती है। उत्तर कन्नड़ ,दक्षिण कन्नड़, उडुपी जिला, दमन और गोवा, कोंकण क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं और कोंकणी व्यंजन इन क्षेत्रों में पाया जाता है। भारत देश के पश्चिमी तट पर स्थित बेंगलुरु, मुंबई जैसे प्रसिद्ध शहरों के भोजनालय में कोंकण व्यंजनों को परोसा जाता है जोकि काफ़ी प्रचलित है। विभिन्न क्षेत्रों कि अपनी विविध स्थानीय फल, शाका वर्ग की उपलब्धि के कारण हर क्षेत्र का कोंकण व्यंजन अपने में एक अनूठा रुचि प्रदान करता हैं। कोंकण व्यंजन सामान्यतः शाकावर्ग और मत्स्य वर्ग पर आधारित है सिवाय यहां के आचार्य और पुरोहित जो कि शुद्ध सात्विक शाकाहारी भोजन का पालन करते हैं। कोंकण लोकसाहित्य का मानना है कि समुद्र से प्राप्त होने वाले जलचर या मत्स्य वर्ग जल के शाका उपज हैं। इसलिए मछली इत्यादि इनके लिए शाकाहारी माना जाता है। ऐतिहासिक काल से इन्होंने सामान्यतः भूवर्ग स्थित पशु पक्षियों का सेवन का त्यजन किया है।

दुग्ध वर्ग युक्त शाकाहारी सारस्वत व्यंजन[संपादित करें]

इस प्रकार का व्यंजन बहुतः दक्षिण भारतीय व्यंजनों से प्रभावित हुआ है और अधिकतर नारियल, नारियल का तेल, इमली, कोकम, करीपत्ता जैसे सामग्री का उपयोग अपने कड़ी में करते हैं। कोंकण व्यंजन और मालवीय व्यंजन जो दक्षिण कोंकण प्रांत की है, और उडुपी या मंगलोर व्यंजन के बीच काफी समानता देखने को मिलती है। इनके व्यंजनों में कम तीखा होता है और इन पर पुर्तगाल का कम प्रभाव दिखता है। जबकि गोवा के रोमन कैथोलिक व्यंजन पर पुर्तगाल का काफी प्रभाव नजर आता है। गोवा के सारस्वत ब्राह्मणों का मूल भोजन " हूम्मण अणि शीत" यानी कि लाल-चावल और मछली कडी है। वहीं पर महाराष्ट्र के सारस्वत ब्राह्मण ज्यादातर रोटी, पूरी, चपाती और पराठा का सेवन करते हैं। जो सारस्वत ब्राह्मण शुद्ध शाकाहारी सात्विक भोजन करते हैं वह अपने खानपान में ऐसा कोई तरकारी का प्रयोग नहीं करते जो मिट्टी के नीचे उगाया जाता है जैसे प्याज, लहसुन, आलू, इत्यादि। ऐसे व्यंजनों को "सावालेम रान्दप" कहा जाता है जिससे अर्चक, पुरोहित और रूढ़िवादी गौड़ सारस्वत ब्राह्मण और चित्रापुर सरस्वत ब्राहमण अपने घरों में अनुसरण करते हैं। ऐसा शुद्ध सात्विक भोजन हर वर्ग के सारस्वत अपने घरों में विशेष पवित्र पर्व जैसे गणेश चतुर्थी के अवसर पर पालन करते हैं। सप्ताह के कुछ विशेष दिन जैसे सोमवार को हर सारस्वत ब्राह्मण केवल शाकाहारी भोजन खाते हैं। विशेषता उन घरों में जिन के कुलदेवता मंगेश, नागेशी या फिर महादेव शिव का कोई अन्य रूप है। पंजाब और जम्मू में स्थित सारस्वत ब्राह्मण सदैव शुद्ध शाकाहारी भोजन का पालन करते हैं।

विभिन्न सारस्वत व्यंजन[संपादित करें]

राजापुर सारस्वत व्यंजन[संपादित करें]

यह दुग्ध शाकाहारी प्रकार का एक व्यंजन है। इसमें गोवा, उड़पी और मालवानी व्यंजन का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। खटखटे/ खदखदे नाम का एक प्रसिद्ध कडी है जिसमें कम से कम छह सब्जियों का प्रयोग होता है। इसके अलावा भाजी या शाक (विभिन्न सब्जी और फलों से बनाया जाता है) , वाल भाजी ( जैसे सहजन की पत्ती से बनाया जाता है) , उसली ( जिसे दालों को मसाले के साथ पतली तरल के रूप में बनाया जाता है), मिसल ( जिसमे उसल को फरसाण के साथ खाया जाता है), तोंडाक ( जिसमें फलियों की सब्जी को काजू के साथ बनाया जाता है) रस्सा या रॉस ( जिसमें नारियल का दूध का प्रयोग किया जाता है) ,उन्डारि ( जिसे चावल का आटा, गुड और नारियल से बनाया जाता है), घवण ( विशेष प्रकार का चावल का दोसा जिसे तुलु प्रदेश में नीर दोसा कहा जाता है), हुम्मण ( कडी), करम्( तरकारी सलाड) , लोंचे ( आचार), हप्पला (पापड़), इत्यादि राजापुर सारस्वत ब्राह्मण के प्रसिद्ध भोजन है। मूंगाची घट्टी ( मूंग दाल की कडी) ,बटाट्याचे पातल भाजी( आलू की कडी) और दाल से बनी रोस/ लांस भी झट से तैयार होने वाले व्यंजन है।

चित्रापुर सरस्वत व्यंजन[संपादित करें]

चित्रापुर सरस्वत व्यंजन अनोखा है और इसके कई प्रकार के व्यंजन रसचंद्रिका नाम के पुस्तक में मराठी व अंग्रेजी में प्रकाशित हुई है। यह व्यंजनों के बनाने की विधि मां के द्वारा अपनी बेटी और बहू को हस्तांतरित हुआ करती थी । ताजा पिसा हुआ नारियल, तड़का लगाया हुआ फलिया, अंकुरित धान्य दाल इत्यादि का प्रयोग कर कड़ी या फिर सब्जियां बनाई जाती है। हालांकि आजकल स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर किसा हुआ नारियल का कम से कम प्रयोग किया जाता है। भानाप या अमची ( चित्रापुर सरस्वत स्वयं को इस तरह संबोधित करते हैं) व्यंजन इस तरह है :

  • बटाटा सोंग ( इमली प्यास लहसुन मिर्ची का चूर्ण और हल्दी में पकाया गया आलू)
  • अंबाट
  • दाली तोय
  • पातोलीयो
  • पत्रोडे
  • सुरनोली
  • कायरस ( पिसा हुआ नारियल के साथ मसाले, शिमला मिर्च ,आलू ,इमली, मूंगफली और काजू)
  • सुक्के ( पिसा हुआ नारियल के साथ मसाला और आलू जैसी सब्जियां)
  • नोलखोल ( गांठगोबी ), मटर, फूल गोभी ,भिंडी
  • घशी
  • आम का अचार जिसे कच्चे अप्पेमिडी से बनाया जाता है

मत्स्य वर्ग युक्त शाकाहारी व्यंजन[संपादित करें]

ज्यादातर कोंकणी सारस्वत ब्राह्मण शाकाहारी होते हुए भी मछली का प्रयोग भोजन में करते हैं। मछली को मांसाहारी नहीं माना जाता है। दंतकथा के अनुसार जब सरस्वती नदी सूख गई और सारस्वत कृषि ना कर पाए तब समुद्र से मिलने वाली मछली को खाने की अनुमति दी गई। मछलियों को शिष्ट भाषा में समुद्र की तरकारी उपज या झलकें ( जल-काप) कहा गया। सीप को समुद्र फल के नाम से जाना गया। सामान्यतः सारस्वत घर के नाश्ते में लाल चावल का बना कांजी, आचार और पापड़ होता हैं। अमीर घरों में दोसा ,इडली ( दक्षिण केनरा, कर्नाटक और दक्षिण भारत के दूसरे बागों में) सन्ना ( गोवा में) चटनी या सांभर के साथ परोसा जाता है। इसके अलावा शेविया पन्ना और पांव ( पोहे) परोसा जाता है। रोटी और भाकरी को तोंडाक या फिर बटाटा भाजी ( आलू की सब्जी) के साथ खाया जाता है। दोरके ( या गौड सारस्वत ब्राह्मण) अपने दोपहर और रात के खाने में शीत- दालीतोय ( चावल दाल) खाना पसंद करते हैं। वहीं पर भानाप ( चित्रापुर सरस्वत ब्राह्मण) चावल को अंबाट के साथ मिलाकर खाना पसंद करते हैं। सारस्वत खाने में शीत ( चावल), राॅस या वरण होता है। और अगर वह सारस्वत शाकाहारी नहीं है तो हुम्मन, भाजी, तोंडक, लोंचे,पापड़, तोय या कड़ी लेता है। कड़ी यहां पर 2 तरह से काम करती है - तीखे खाने के बाद मुख के स्वाद को शुद्ध करता है और साथ ही में इसमें डले हुए हींग ,अजवाइन, जीरा, सौंफ खाना को जीर्ण करने में मदद करता है। कभी-कभी कड़ी सिर्फ राई या सरसों और करीपत्ता का तड़का से बनता है। यह एक तरलीय पेय है जिसे हाथों की अंजुलि में लेकर भोजन के शुरू में पिया जाता है और अंत में चावल के साथ मिलाकर खाया जाता है। कोंकण सारस्वत ब्राह्मणों का मनपसंदीदा कड़ी कोकम कड़ी है। कोकम ( वृक्षाम्ला ) एक ऐसा फल है जो भारत के पश्चिमी कोंकण तट पर पाया और उगाया जाता है और उनके व्यंजन का एक प्रमुख हिस्सा है। माना जाता है कि कोकम कड़ी के बिना भोजन अपूर्ण है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]