शिरडी साईं बाबा

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शिरडी साईं बाबा
शिरडी साईं बाबा
श्री साईं बाबा का असली छायाचित्र
मृत्यु 15 अक्टूबर 1918[1]
शिरडी
धर्म सनातन
दर्शन अल्लाह मालिक, श्रद्धा और सबुरी
शिरडी साईं बाबा सेल्फी प्वाइंट (शिरडी में)

साईंबाबा (जन्म: अधिकृत जानकारी उपलब्ध नही[2], निर्वाण: १५ अक्टूबर १९१८)[3] जिन्हें शिरडी साईंबाबा भी कहा जाता है, एक भारतीय गुरु, संत एवं फ़क़ीर के रूप में बहुमान्य हैं। उनके अनुयायी उन्हें सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापी मानते हैं।[4]

जीवन-परिचय

श्रीसाईमहानिर्वाण पश्चात निर्मित हुए जन्मस्थान

साईं बाबा का जन्म कब और कहाँ हुआ था एवं उनके माता-पिता कौन थे ये बातें अज्ञात हैं। किसी दस्तावेज से इसका प्रामाणिक पता नहीं चलता है। स्वयं शिरडी साईं ने इसके बारे में कुछ नहीं बताया है।[2] श्री साईं बाबा के जीवनकाल में लिखे गए संतकवि दासगणु महाराजकृत भक्तिलीलामृत ( वर्ष १९०६ शके १८२८ ) और संतकथामृत ( वर्ष १९०८ शके १८३० ) इन दोनों ग्रंथोमें तथा समकालीन महत्वपूर्ण दस्तावेजोंमें बाबा के जन्म स्थानके बारेमें कोई जानकारी नहीं है । साईभक्तोके दृष्टीसे प्रमाण ग्रंथ श्री साईसच्चरितमें, श्री साई बाबा के जन्मस्थान का कोई जिक्र नहीं है । श्री साईबाबा के जन्मस्थान का प्रथम वर्णन वर्ष १९२५ में प्रकाशित श्री साईलीला वर्ष तृतीय चैत्र शके १८४७ के प्रथम अंक में मिलता है[5], परन्तु भक्त म्हालसापति द्वारा स्वयं बताये गये बाबा के अनुभवोमें इस विषय का वर्णन नहीं किया गया है । दासगणूकृत भक्तिलीलामृत के अलावा संतकथामृत का पाठ बाबा के समक्ष नहीं किया जाता था । भक्तिसारामृत ग्रंथ, जिसमें बाबा के गुरू और बाबा के जन्मकी कथा है, वो भी श्री साईं के महानिर्वाण के बाद लिखा गया था । श्री साईसच्चरित ग्रंथ भी अध्याय ५३ ओवी १७९ अनुसार वर्ष १९२२ से १९२९ इस कालखंड के दौरान यानी बाबा के महासमाधीके बादही लिखा गया है ।[6] साईं के कथित जन्मस्थान के खोजकर्ता वि.बी.खेर का दावा है कि गोपालराव महाराज, जिन्हें दासगणू महाराज बाबा का गुरु कहते हैं, वो बाबा के गुरु नहीं हो सकते । दासगणू महाराज की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाते हुए उन्होंने द इटरनल साक्षी इस प्रकरणमें बाबा के गुरु सूफी फकीर रहे होंगे यह बात लिखी है ।[7] श्रीपादवल्लभचरित्रामृत में लिखा है कि बाबा का जन्म पाथरी में हुआ था, लेकीन बाबा के जन्मस्थान के रूप में पाथरी का उल्लेख पेहली बार वर्ष 1925 में साईलीला पत्रिका के माध्यम से ही किया गया था । भक्तिसारामृतकार दासगणु महाराज और महाराज के अनुभवोके लेखक काकासाहेब दीक्षित जिन्होंने साईं सच्चरित्रका उपोद्धातभी लिखा था, इन दोनोद्वारा लिखे गये वाङ्मयमें श्री साईंबाबा का जन्म पाथरी के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था यह बात बाबाके महानिर्वाणपश्चात लिखी गई है । आगे इस वाङ्मयसे प्रेरित लेखनही अनेक लेखको द्वारा किया गया है । मगर १९२५ से पेहले बाबाके जन्मस्थान के विषयमें कोईभी जानकारी प्रकाशित नही हुई । जून २०१४ में द्वारका और ज्योतिष पीठके शंकराचार्य जगद्गुरू स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीने साईबाबाकी पूजा नही करनी चाहिए यह बयान साझा किया ।[8] इस बयानसे प्रेरित होकर बाबा चांद मिया थे ऐसी असत्य एवं तथ्यहीन बाते केहकर बाबाकी छवि धुमिल करनेका प्रयास आज भी जारी है । ऐसी अनेक अफवाओसे आहत होते हुए भी, सकलमतोका आदर करनेवाला साईभक्त आज श्रद्धा और सबुरी लेकर शांती के पथ पर अग्रेसर है । श्री साई के समकालीन सरकारी दस्तावेजों में श्री साईबाबाका वर्णन अवलियाके रूपमें किया गया है । उस समय, खुफिया एजेंसी और अधिकारियोंद्वारा लिखी रिपोर्ट[9] एवं आदेशों में स्पष्ट किया था कि श्री साईं बाबा का मूल अज्ञात है । अतः बाबा के जन्म के बारे में कहीं भी कोई विश्वसनीय जानकारी नहीं मिल सकती है ये अधिकृत जानकारी " जन्म बाबांचा कोण्या देशी । अथवा कोण्या पवित्र वंशी । कोण्या मातापितरांच्या कुशी । हे कोणासी ठावे ना ।। " इस मराठी मूल श्री साईसच्चरित के अध्याय 4 ओवी 113 में बताई गयी है ।

माता-पिता

जन्मतिथि एवं स्थान की तरह ही साईं के माता-पिता के बारे में भी प्रमाणिक रूप से कुछ भी ज्ञात नहीं है। श्री सत्य साईं बाबा द्वारा दिये गये पूर्वोक्त विवरण के अनुरूप उनके पिता का नाम श्री गंगा बावड़िया एवं उनकी माता का नाम देवगिरि अम्मा माना जाता है। ये दोनों शिव-पार्वती के उपासक थे तथा शिव के आशीर्वाद से ही उनके संतान हुई थी। कहा जाता है कि जब साईं अपनी माँ के गर्भ में थे उसी समय उनके पिता के मन में ब्रह्म की खोज में अरण्यवास की अभिलाषा तीव्र हो गयी थी। वे अपना सब कुछ त्याग कर जंगल में निकल पड़े थे। उनके साथ उनकी पत्नी भी थी। मार्ग में ही उन्होंने बच्चे को जन्म दिया था और पति के आदेश के अनुसार उसे वृक्ष के नीचे छोड़ कर चली गयी थी। एक मुस्लिम फकीर उधर से निकले जो निःसंतान थे। उन्होंने ही उस बच्चे को अपना लिया और प्यार से 'बाबा' नाम रखकर उन्होंने उसका पालन-पोषण किया।[10]

बचपन एवं चाँद पाटिल का आश्रय

बाबा का लालन-पालन एक मुसलमान फकीर के द्वारा हुआ था, परंतु बचपन से ही उनका झुकाव विभिन्न धर्मों की ओर था लेकिन किसी एक धर्म के प्रति उनकी एकनिष्ठ आस्था नहीं थी। कभी वे हिन्दुओं के मंदिर में घुस जाते थे तो कभी मस्जिद में जाकर शिवलिंग की स्थापना करने लगते थे। इससे न तो गाँव के हिन्दू उनसे प्रसन्न थे और न मुसलमान। निरंतर उनकी शिकायतें आने के कारण उनको पालने वाले फकीर ने उन्हें अपने घर से निकाल दिया।[11] साईं के जितने वृत्तांत प्राप्त हैं वे सभी उनके किसी न किसी चमत्कार से जुड़े हुए हैं। ऐसे ही एक वृत्तांत के अनुसार औरंगाबाद जिले के धूप गाँव के एक धनाढ्य मुस्लिम सज्जन की खोयी घोड़ी बाबा के कथनानुसार मिल जाने से उन्होंने प्रभावित होकर बाबा को आश्रय दिया और कुछ समय तक बाबा वहीं रहे।[12]

शिरडी में आगमन

चामत्कारिक कथा के तौर पर ही कहा जाता है कि बाबा पहली बार सोलह वर्ष की उम्र में शिरडी में एक नीम के पेड़ के तले पाये गये थे। उनके इस निवास के बारे में कुछ चामत्कारिक कथाएँ प्रचलित हैं।[13] कुछ समय बाद वे वहाँ से अदृश्य हो गये थे। पुनः शिरडी आने एवं उसे निवास स्थान बनाने के संदर्भ में कथा है कि चाँद पाटिल के आश्रय में कुछ समय तक रहने के बाद एक बार पाटिल के एक निकट सम्बन्धी की बारात शिरडी गाँव गयी जिसके साथ बाबा भी गये। विवाह संपन्न हो जाने के बाद बारात तो वापस लौट गयी परंतु बाबा को वह जगह काफी पसंद आयी और वे वही एक जीर्ण-शीर्ण मस्जिद में रहने लगे और जीवनपर्यन्त वहीं रहे।[12]

'साईं' नाम की प्राप्ति

कहा जाता है कि चाँद पाटिल के सम्बन्धी की बारात जब शिरडी गाँव पहुँची थी तो खंडोबा के मंदिर के सामने ही बैल गाड़ियाँ खोल दी गयी थीं और बारात के लोग उतरने लगे थे। वहीं एक श्रद्धालु व्यक्ति म्हालसापति ने तरुण फकीर के तेजस्वी व्यक्तित्व से अभिभूत होकर उन्हें 'साईं' कहकर सम्बोधित किया। धीरे-धीरे शिरडी में सभी लोग उन्हें 'साईं' या 'साईं बाबा' के नाम से ही पुकारने लगे और इस प्रकार वे 'साईं' नाम से प्रसिद्ध हो गये।[12][11]

धार्मिक मान्यता

साईं बाबा का पालन-पोषण मुसलमान फकीर के द्वारा हुआ था और बाद में भी वे प्रायः मस्जिदों में ही रहे। उन्हें लोग सामान्यतया मुस्लिम फकीर के रूप में ही जानते थे। वे निरंतर अल्लाह का स्मरण करते थे। वे 'अल्लाह मालिक' कहा करते थे।[14] हालाँकि उन्होंने सभी धर्मों की एकता पर बल दिया है और विभिन्न धर्मावलंबियों को अपने आश्रय में स्थान देते थे। उनके अनुयायी हिन्दू और मुसलमान दोनों थे। उनके आश्रयस्थल (द्वारकामाई ) में हिन्दुओं के विभिन्न धार्मिक पर्व भी मनाये जाते थे और मुसलमानों के भी। उन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रन्थों के अध्ययन को भी प्रश्रय दिया था। उस समय भारत के कई प्रदेशों में हिन्दू-मुस्लिम द्वेष व्याप्त था, परंतु उनका संदेश था :

"राम और रहीम दोनों एक ही हैं और उनमें किंचित् मात्र भी भेद नहीं है। फिर तुम उनके अनुयायी होकर क्यों परस्पर झगड़ते हो। अज्ञानी लोगों में एकता साधकर दोनों जातियों को मिलजुल कर रहना चाहिए।"[15]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. "Shirdi Sai Baba's 97th death anniversary: The one who was revered by all". इंडिया टुडे. 15 अक्टूबर 2015. मूल से 31 मई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 नवम्बर 2017.
  2. दाभोलकर, गोविंद. "श्री साईसच्चरित ( मराठी )" (PDF). श्री साईबाबा संस्थान विश्वस्तव्यवस्था, शिर्डी.
  3. Ruhela, Satya Pal (1998). The Spiritual Philosophy Of Shri Shirdi Sai Baba (अंग्रेज़ी में). Diamond Pocket Books (P) Ltd. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788171820900. मूल से 4 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 जुलाई 2018.
  4. शिरडी साईं बाबा : दिव्य महिमा, गणपति चन्द्र गुप्त, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय (पेपरबैक) संस्करण-2011, पृष्ठ-17 एवं 127-131.
  5. अधिकृत पत्रिका, साईलीला (१९२५). "साईलीला वर्ष १९२५ का अंक" (PDF). श्री साईबाबा संस्थान विश्वस्तव्यवस्था, शिर्डी.
  6. दाभोलकर, गोविंद (१९२९). "श्री साईसच्चरित ( मराठी ) अध्याय ५३" (PDF). श्री साईबाबा संस्थान विश्वस्तव्यवस्था, शिर्डी.
  7. Kher, V. B. (1991). Sai Baba of Shirdi (English) (अंग्रेज़ी में). Jaico Publishing House. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7224-030-1.
  8. "Swaroopanand Saraswati tender apology before MPHC for controversial statement against Shirdi's Sai Baba". The Times of India. 2015-09-24. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0971-8257. अभिगमन तिथि 2023-06-23.
  9. "Weekly Reports of the Director, Criminal Intelligence, on the Political Situation, during August 1912". INDIAN CULTURE (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-06-23.
  10. शिरडी साईं बाबा : दिव्य महिमा, गणपति चन्द्र गुप्त, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय (पेपरबैक) संस्करण-2011, पृष्ठ-12.
  11. शिरडी साईं बाबा : दिव्य महिमा, गणपति चन्द्र गुप्त, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय (पेपरबैक) संस्करण-2011, पृष्ठ-13.
  12. श्री साई सच्चरित्र, श्री गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर (हेमाड़ पंत), हिन्दी अनुवाद- श्री शिवराम ठाकुर, श्री साईं बाबा संस्थान, शिरडी, १७वाँ संस्करण-१९९९, पृष्ठ-२०.
  13. श्री साई सच्चरित्र, श्री गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर (हेमाड़ पंत), हिन्दी अनुवाद- श्री शिवराम ठाकुर, श्री साईं बाबा संस्थान, शिरडी, १७वाँ संस्करण-१९९९, पृष्ठ-१८-१९.
  14. श्री साई सच्चरित्र, श्री गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर (हेमाड़ पंत), हिन्दी अनुवाद- श्री शिवराम ठाकुर, श्री साईं बाबा संस्थान, शिरडी, १७वाँ संस्करण-१९९९, पृष्ठ-१६.
  15. शिरडी साईं बाबा : दिव्य महिमा, गणपति चन्द्र गुप्त, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय (पेपरबैक) संस्करण-2011, पृष्ठ-14-15.

बाहरी कड़ियाँ