"पलामू जिला": अवतरणों में अंतर

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==प्रखंड बिश्रामपुर==
==प्रखंड बिश्रामपुर==
मेदिनीनगर, चैनपुर, रायगढ़, सतबरवा, लेस्लीगंज, पांकी, पाटन, पंडवा, नावाबाजार, विश्रामपुर, पांडू, उंटारी, मोहम्मदगंज, हैदरनगर, हुसैनाबाद, छतरपुर, नौडीहा, हरिहरगंज और पिपरा।
मेदिनीनगर, चैनपुर, रायगढ़, सतबरवा, लेस्लीगंज, पांकी, पाटन, पंडवा, नावाबाजार, विश्रामपुर, पांडू, उंटारी, मोहम्मदगंज, हैदरनगर, हुसैनाबाद, छतरपुर, नौडीहा, हरिहरगंज और पिपरा।{{झारखंड के जिले}}

== बाहरी कड़ियाँ ==
* [https://www.prabhatkhabar.com/state/jharkhand/palamu पलामू जिला के ब्रेकिंग न्यूज़]
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{{झारखंड के जिले}}





11:35, 29 अप्रैल 2024 का अवतरण

पलामू ज़िला
ᱯᱟᱞᱟᱢᱩ ᱦᱚᱱᱚᱛ
Palamu district
मानचित्र जिसमें पलामू ज़िला ᱯᱟᱞᱟᱢᱩ ᱦᱚᱱᱚᱛ Palamu district हाइलाइटेड है
सूचना
राजधानी : मेदिनीनगर
क्षेत्रफल : 5,044 किमी²
जनसंख्या(2011):
 • घनत्व :
19,36,319
 483/किमी²
उपविभागों के नाम: मण्डल
उपविभागों की संख्या: 21
मुख्य भाषा(एँ): हिन्दी,मगही


पलामू भारतीय राज्य झारखंड का उत्तर-पश्चिमी जिला है।जो 1892 में ब्रिटिश राज के दौरान स्तापित हुआ था। जिले का मुख्यालय मेदिनीनगर है जो उत्तर कोयल नदी के दाहिने तट पर स्थित है और 1962 का बसा हुआ है। पलामू जिला झारखंड का सबसे पश्चिमी जिला है और इसकी सीमा पर बिहार राज्य के साथ मिलती है। यह चोटीयों, नदियों और वन्यजन से भरा हुआ है। क्षेत्रफल - 5043.8 वर्ग कि.मी. जनसंख्या - 1936319(2011 जनगणना) साक्षरता - 65.5% एस. टी. डी (STD) कोड - 06562 जिलाधिकारी - (सितम्बर 2006 में) समुद्र तल से उचाई 222 मीटर - अक्षांश - 23*50’ - 24*8’ उत्तर देशांतर - 83*55’ - 84*30’ पूर्व औसत वर्षा 1356 - मि.मी. प्रखंड -मेदिनीनगर, चैनपुर, रामगढ़़, सतबरवा, लेस्लीगंज, पांकी, तलहसी, मनातू, पाटन, पंडवा, विश्रामपुर, नावा बाजार, पांडू, उंटारी, मोहम्मदगंज, हैदरनगर, हुसैनाबाद, छतरपुर, हरिहरगंज, नौडीहा और पिपरा । पलामू जिला एक ऐतिहासिक स्थल है जिसमें चित्रित हैंडिडाग किला, पाल की खोई गई राजधानी, और बेतलघाट, जो पुरातात्विक स्मारक हैं।

पलामू के लोग

नागपुरी भाषा यहां कि स्थानीय बोली है। पलामू के प्रमुख जनजातियों में खेरवार, चेरो, उरांव, बिरजिया और बिरहोर शामिल हैं। जनजातीय विश्वास और रीति-रिवाज जंगल के प्रति लोगों के बर्ताव को निर्धारित करते हैं। पलामू के जनजातीय समुदाय पवित्र वनों की पूजा करते हैं (सरणा पूजा)। वे करम वृक्ष (एडीना कोर्डिफोलिआ) को पवित्र मानते हैं और वर्ष में एक बार करमा पूजा के अवसर पर उसकी आराधना करते हैं। हाथी, कछुआ, सांप आदि अनेक जीव-जंतुओं की भी पूजा होती है। इन प्राचीन मान्यताओं के कारण सदियों से यहां की जैविक विविधता पोषित होती आ रही है।

सोने की सबसे पुरानी दुकान

मुंद्रिका साव यहां सबसे पुरानी ज्वैलरी शॉप है, यह वर्तमान समय में हमीदगंज में स्थित है, मुंद्रिका साव के पोते रवि रौशन ने इस ज्वैलरी स्टोर बिजनेस को संभालकर संभाला है,जो की १९४५ से हमीदगंज में अवस्थित है

खेरवार

ये अपने-आपको सूर्यवंशी क्षत्रिय मानते हैं और अपना उद्गम अयोध्या से बताते हैं। करुसा वैवस्वत मनु का छठा बेटा था। उसके वंशजों को खरवार कहते हैं।

ऐतरेय अरण्यक

इनमें चेरों का काफी गुणगान हुआ है, यद्यपि वे वैदिक कर्मकांड में विश्वास रखते थे चेरो अपने वंश कि उत्पत्ति ऋषि च्यवन से मानते हैं।

वन्यजीवन

पलामू जैविक विविधता की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। पलामू में हैं :

  • पौधों की लगभग ९७० जातियां, जिनमें शामिल हैं :
  • १३९ जड़ी-बूटियां
  • घासों की १७ जातियां
  • स्तनधारियों की ४७ जातियां
  • पक्षियों की १७४ जातियां
  • छोटे जीवधारियों की असंख्य जातियां

पलामू के इस विविध जीव-समुदाय को सहारा देने के लिए वहां वास-स्थलों और पारिस्थितिक तंत्रों की पर्याप्त विविधता है।

वन सम्पदा

पेड़-पौधों की दृष्टि से पलामू अत्यंत समृद्ध है। यहां लगभग ९७० प्रकार के पेड़-पौधे हैं, जिनमें शामिल हैं १३९ जड़ी-बूटियां। पलामू के प्रमुख वनस्पतियों में शामिल हैं साल, पलाश, महुआ, आम, आंवला और बांस। बांस हाथी और गौर समेत अनेक तृणभक्षियों का मुख्य आहार है।

झारखंड के प्रतीक

साल झारखंड राज्य का प्रतीक वृक्ष है। झारखंड राज्य का प्रतीक पुष्प पलाश है। पलाश गर्मियों में फूलता है और तब उसके बड़े आकार के लाल फूलों से सारा जंगल लाल हो उठता है, मानो जंगल में आग लग गई हो। इसीलिए पलाश को जंगल की ज्वाला के नाम से भी जाना जाता है। उसके अन्य नाम हैं टेसू और ढाक।

पलामू के वन

पलामू में निम्नलिखित प्रकार के वन पाए जाते हैं:

शुष्क मिश्रित वन

पहाड़ियों की खुली चोटियों में और पहाड़ों के दक्षिण और पश्चिम भागों में जहां कम बारिश होती है, ऐसे पेड़-पौधे पाए जाते हैं जो शुष्क जलवायु को बर्दाश्त कर सकते हैं। मैदानों में बेल वृक्ष के वन हैं। इन वनों में अन्य प्रकार के वृक्ष कम ही होते हैं। यह झूम खेती के कारण है। इन मिश्रित वनों में साल के पेड़ लगभग नहीं होते। चूंकि पेड़ों की डालें बार-बार काटी जाती हैं और अति चराई और आग का खतरा बराबर बना रहता है, इसलिए पेड़ बौने और मुड़े-तुड़े होते हैं और उनकी ऊंचाई ६-७ मीटर से अधिक नहीं होती।

साल वन

तीन प्रकार के साल वन पलामू में मौजूद हैं।

  • शुष्क साल वन

मैदानों, नीची पहाड़ियों और पहाड़ों के पूर्वी और उत्तरी भागों में मिलते हैं। यद्यपि इन वनों में साल वृक्ष का आधिपत्य है, फिर भी वृक्ष २५ मीटर से अधिक ऊंचाई नहीं प्राप्त करते।

  • नम साल वन

पहाड़ों की निचली ढलानों, विशेषकर कोयल नदी के दक्षिण में स्थित बरेसांद वनखंड की घाटियों में मिलते हैं। इन वनों में साल अच्छी तरह बढ़ता है और ३५ मीटर से अधिक ऊंचा होता है। इन वनों के बीच में जगह-जगह खाली स्थान नजर आते हैं। यहां पहले खेत हुआ करते थे।

  • पठारी इलाकों का साल वन

नेत्रहाट पठार में १,००० मीटर की ऊंचाई पर मिलता है। यहां केवल साल वृक्षों के विस्तृत वन हैं। यह वन मूल वन के काटे जाने के बाद उग आया वन है।

नम मिश्रित वन

इस प्रकार के वन घाटियों के निचले भागों और बड़ी नदियों के मोड़ों के पासवाले समतल इलाकों में मिलते हैं। यहां सब मिट्टी में अतिरिक्त नमी रहती है जो गर्मियों के दिनों भी बनी रहती है। यहां वृक्षों की घटा पूर्ण होती है इसलिए जमीन तक अधिक रोशनी नहीं पहुंचती, जिससे जमीन पर घास कम होती है।

प्रखंड बिश्रामपुर

मेदिनीनगर, चैनपुर, रायगढ़, सतबरवा, लेस्लीगंज, पांकी, पाटन, पंडवा, नावाबाजार, विश्रामपुर, पांडू, उंटारी, मोहम्मदगंज, हैदरनगर, हुसैनाबाद, छतरपुर, नौडीहा, हरिहरगंज और पिपरा।