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दैलेख जिला

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दैलेख
दैलेख जिल्ला
जिला
दैलेख जिला प्रवेस द्वार
दैलेख जिला प्रवेस द्वार
निर्देशांक: 28°50′15″N 81°42′28″E / 28.83750°N 81.70778°E / 28.83750; 81.70778
देश नेपाल
प्रदेशकर्णाली
स्थापित वर्षविसं 2018
जिला मुख्यालयदैलेख (नारायण)
स्थानीय तह
शासन
 • प्रणालीसमन्वय समिति
 • सभाजिसस, दैलेख
 • प्रमूख जिलाधिकारीप्रेमबहादुर थापा
 • प्रतिनिधि सभा2 क्षेत्र
 • प्रदेश सभा4 क्षेत्र
क्षेत्रफल
 • कुल1505 किमी2 (581 वर्गमील)
अधिकतम उच्चता4168 मी (13,675 फीट)
निम्नतम उच्चता544 मी (1,785 फीट)
जनसंख्या (2011[1])
 • कुल260,855
 • घनत्व170 किमी2 (450 वर्गमील)
जनसांख्यिकी
 • मुख्य जातियांक्षेत्री, हरिजन, ठकुरी, ब्राह्मण, मगर
 • महिला 51%
 • पुरुष 49%
मानव विकास सूचकांक
 • साक्षरता62%
समय मण्डलनेपाल समय (यूटीसी+5:45)
डाक सूचक संख्या21600, 21602, 21603, 21604, 21605, 21607..., 21610
टेलिफोन कोड089
मुख्य भाषाएँनेपाली
मुख्य सडकमध्य-पहाडी (निर्माणाधिन)
वेबसाइटddcdailekh.gov.np

दैलेख जिला नेपाल के भेरी अंचल का एक जिला है। दैलेख नेपाल के मध्य पश्चिमांचल विकास क्षेत्र व भेरी अंचल का एक जिला है। यह एक विकट पहाड़ी जिलों की श्रेणी मे गिना जाता है। इस जिले की आकृति त्रिभुजाकार है। यहां की सबसे उंची चोटी "महाबुलेक" और सबसे कम उचाईंवाला स्थान "तल्लो डुंगेश्वर" नामक स्थान है। इस जिले की सीमायें पूर्व में भेरी अंचल के जाजरकोट जिला, पश्चिम में सेती अंचल के अछाम जिला दक्षिण में भेरी अंचल के सुर्खेत जिला और उत्तर में कर्णाली अंचल के कालिकोट जिले के साथ जुड़ी हुई हैं। इस जिले की भौगोलिक बनावट को मुख्यतया तीन हिस्सों में बांटा जाता है।

  1. नदी तटीय क्षेत्र तथा मैदानी क्षेत्र
  2. मध्य पहाड़ी तथा महाभारत पर्वत श्रृंखला क्षेत्र
  3. उच्च पहाड़ी तथा हिमालयी क्षेत्र

इस जिले का नाम इसके जिला मुख्यालय दैलेख नामक शहर के नाम पर रखा गया है।[2] इस स्थान का नाम "दैलेख" कैसे पड़ा इस सम्बन्ध में कई कहानियां प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल में यह स्थान महर्षि दधीचि की तपोभूमि था इस आधार पर इसे "दधिलेख" कहा गया, बाद में इसका नाम बदलकर दैलेख कर दिया गया।

दूसरी कथा यह है कि प्राचीन काल में यह स्थान देवताओं का निवास स्थान था इसलिए इसे देवलोक कहा जाता था बाद में यह अपभ्रंशित होकर दैलेख में परिवर्तित हो गया। एक तीसरी व्युत्पत्ति यह भी है कि यहां पर तमाम दही दूध मिलता है इसलिए इसे दैलेख कहा गया।

दैलेख जिला बाइसे राज्यकाल में खस राज्य का शीतकालीन राजधानी के रूप में परिचित दुल्लु और बेलासपुर दो राज्यओं में विभाजित था। प्राचीन और मध्यकाल मे दो राज्यओं में विभाजित इस जिलेको शाहकालीन नेपाल पुर्नएकीकरण अभियान में गोरखाली राजकुमार बहादुर शाह ने सन 1789 के आसपास नेपाल में जोडा गया तथ्य ऐतिहासिक वर्णनों मे उल्लेख है।[2] जिलाके विभिन्न जगह पर रहे मन्दिर, देवल, शिलालेख आदि इस जिले का ऐतिहासिक परिचय देरहे हें। कहा जाता है की दैलेख जिला मुख्यालय पुरानो बजार स्थित प्रसिद्ध कोतगढी पुराना युद्धकिल्ला के रूप में था। वि॰सं॰ 2009 साल पहिले अछाम, सुर्खेत और जाजरकोट जिलाओं के कुछ क्षेत्र इस में जुडे हुए थे।[2] राजा रजौटा उन्मुलन ऐन वि॰सं॰ 2016 के बाद आधुनिक नेपाल का प्रशासनिक ढाँचा बमोजिम गौडा और वि॰सं॰ 2018 साल बाद यह जिला पूर्व मे भैरीलेक और कट्टीभंज्यांग उत्तर में महाबुलेक, पश्चिम में कर्णाली नदी, दक्षिण में तीनचुला भितर का भूभाग को दैलेख जिला का सिमांकन किया गया था।[2] दैलेख जिला का दुल्लु क्षेत्र राणा कालिन प्रधान मन्त्री जंग बहादुर राणा का बाल्यकाल बिती जगह है।

दैलेख जिला ने वि॰सं॰ 2007 साल की क्रान्ति में पश्चिम नेपाल में अग्रीम स्थान हासिल किया है। तत्कालीन भुमीगत नेपाली कांग्रेस पाटी के दैलैख नाउले कटुवाल निवासी शेर सिंह खड्का ने कालिकोट, जुम्ला, अछाम, डोटी आदी पश्चिमी जिलों को कब्जा किया था। इसी तरह वि॰सं॰ 2036 का जनमत संग्रह में और 2046 का जन आन्दोलन में भी दैलेख के रंग बहादुर शाही, बिनोद कुमार शाह, मणी राज रेग्मी गणेश बहादुर खड्का, शिव राज जोशी, रंग नाथ जोशी, गोविन्द बन्दी, हेम बहादुर शाही, हर्क बहादुर शाही, पुर्ण ब. शाही, भद्र ब. शाही, तर्क ब. बडुवाल, बजिर सिंह बि.क. चिदानन्द स्वामी आगी अधिकांश नेताओं ने साथ दिया था और वि॰सं॰2063 का जन आन्दोलन में भी उपर नाम दिएगए व्यक्तिओं के साथ मिलकर कुछ नएं नेता जैसे:- थिर ब. कार्की, रत्नेश श्रेष्ठ, कृष्ण बी.सी. राज ब. बुढा, राम प्रसाद जैसी आदी नेताओं साथ दिया था।[2]

हवाइ जहाज से लिया गया दैलेख जिला का चित्र
  • अक्षांस: 28.35" से 29.8" उत्तर
  • देशान्तर: 81.25" से 81.53" पूर्व
  • सिमाना: पूर्व जाजरकोट, पश्चिम अछाम, उत्तर कालिकोट, दक्षिण सुर्खेत जिला
  • क्षेत्रफल: 1502 वर्ग कि.मि. (देश का कुल भू-भाग का 1.02%)
  • सब से होचा स्थान: समुद्र सतह से 544 मिटर (तल्लो डुंगेश्वर)
  • सब से उंचा स्थान: 4168 मिटर (महाबुलेक)

राजनैतिक हिसाव से दैलेख जिला को 49 गा.वि.स., 2 नगरपालिका, 2 निर्वाचन क्षेत्र और 11 इलाकाओं में विभाजित किया गया है:- [2] नदी तट से हिमालय तक फैले यहां का धरातलीय स्वरूप को निम्न लिखित 3 हिस्सों में विभाजित कियाजाता है[2]

  • नदी निर्मित तट (544–1000मि.),
  • मध्य पहाडी क्षेत्र (1000–2100मि.)
  • महाभारत श्रृंखला एवं पर्वतीय भू-भाग (2100 मि. से उपर)

यह धरातलीय स्वरूप ने जिला का क्रमसः करिव 10%, 37% और 53% भू-भाग घेर रखा है। मध्य पहाडी क्षेत्र में जिला का 85% से भी ज्याद जनसंख्या एवं बस्ती केन्द्रित है।[2]

प्रशासनिक विभाजन

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  • निर्वाचन क्षेत्र संख्या=2
  • इलाका क्षेत्र संख्या=11

दैलेख जिला में पहले कुल 60 गा.वि.स. (ग्राम पंचायत) थे। 5 गा.वि.स.को जोडकर नारायण नगरपालिका बनाया गया और 6 गा.वि.स. को जोडकर दुल्लु नगरपालिका बनाया गया हैं। हाल इस जिला में 49 गा.वि.स. और दो नगरपालिका रहे हे।

संस्कृती

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दैलेख जिले में बिभिन्न जातीयों तथा बिभिन्न धर्मावलम्बीयों का बसोवास है। फीर भी यहां पर हिन्दू धर्मावलम्बीयों की बिशेष बाहुल्यता है। यहां पर हिन्दूओं के सभी त्योहार मनाये जाते हें। जैसे:- दशैं, तिहार, माघी, होरी, नयां बर्ष, रक्षावंधन, हरितालीका आदी सभी त्यौहारों को हिन्दू धर्मावलम्बी के अलावा अन्य धर्म के लोग भी मनाते हुए देखा जाता है। यह जिला बहु जाती बहु भाषी हुने के बावजुद भी यहां हिन्दू संस्कृती को ही ज्यादा मान्यता दिया जाता है। हिन्दू त्यौहारों के दिनों में सरकारी छुट्टीयां पडती हें और जगह जगह पर मेले वगहरा लगते हें।

दैलेख जिला एक बिकट पहाडी जिला जरुर है पर यह जिला पर्यटकों के लिए अती रमणीय स्थान है। यहां पुराने जमाने के बने देवल, किले, दरगाह आदी जिले के हर स्थानों पर देखाई देते हैं। जैसे:-

  1. जिला मुख्यालय नयां बजार स्थित प्रशिद्ध कोत गढी एक पुराना किला है।
  2. भुर्ती गांव व रावतकोट स्थित पंच देवलों को पाण्डवोंने बनाया हुए निसानी कहा जाता है।
  3. यहां "पंचकोशी" नामक एक तिर्थ स्थल है जहां पर पांच अलग अलग जगह पर मन्दिर हैं जिसे पंचकोशी कहा जाता है। "पादुका", "नाभीस्थान", "श्रीस्थान", "कोटिला", "धुलेश्वर" पंचकोशी तिर्थ के मुख्य स्थान हैं। यिन स्थानों पर कोही न कोही दैविक गति विधियां जरुर देखा जाता है। किस ही स्थानों पर पानी में आग की ज्योती जलती हुई देखा जाता है तो किस ही स्थान पर जमिन से धुल निकलता देखा जाता है। कहा जाता है महाभारत काल में युधिष्ठीर का मुकावला नागरुप के राजा नहुष के साथ पंचकोशी स्थान पर हुआ था। राजा युधिष्ठीर ने नाग रुपी नहुक को ज्ञान दिया तब नहुक मुक्ती को प्राप्त हुए नाग रुपी नहुष का शिर श्रीस्थान पर पाउ पादुका पर नाभ नाभिस्थान पर कक्ष कोटिला पर था इस हि तरह धुलेश्वर पर धुल गिरा था। [3]

यिस के साथ ही दैलेख जिला में कई पर्यटकिय स्थल हें जो पर्यटकों का मन चुरा सकते हें।दैलेख के शिरस्थान, नाभिस्थान, पादुका लगायत के क्षेत्रों में सदियों से ज्वाला के रुप में पेट्रोलियम पदार्थ जलरहा है। धार्मिक दृष्टीकोण से पंचकोशी क्षेत्र के रुप में परिचय बनाने में सफल ईस क्षेत्र में पिछलो दिनों पर्यटकों की उल्यख्य उपस्थिति होरही है । मुगु जिले का राराताल देखकर आनेवाले अधिकांश पर्यटक दैलेख के पंचकोशी क्षेत्र में पहुँचकर लौटा करते हें । अब ईस क्षेत्र में मिथेन ग्यास उत्खनन प्रारम्भ होरहा है ।[4]

नेपाली भाषा का प्रथम शिलालेख (दामु पाल का शिलालेख)

जिला के मध्यपश्चिम होते बहती छामगाड और पूर्व के तर्फ बहती लोहोरे दो नदीयों का संगमस्थल चुप्रा दैलेख जिलाका अती आकर्षक भौगोलिक स्थल माना जाता है। खस राजा नागराज का हिमाली राज्य का शीतकालीन राजधानी दैलेख दुल्लुक्षेत्र में अवस्थित पंचकोशी तीर्थस्थल मध्ये श्रीस्थान र नाभिस्थान के भितर नित्य प्रज्वलित ज्वाला जी नेपाल का राष्ट्रिय स्तर का धार्मिक, ऐतिहासिक तथा पर्यटकीय स्थल के रूप में चर्चित हें। दैलेख जिला भुर्ती गांव इस्थित एक साथ रहे 22 देवलों को विश्व सम्पदा सम्भाव्य सूची में राखे गए हें और रावतकोट गावं में रहे पंचदेवल दैलेख जिला मुख्यालय में रहा कोत गढी र दुल्लु क्षेत्र में रहे कीर्ति खम्बा, सात खम्बा, पटंगेनी दरबार, जंगबहादुर राणा के पिता बाल नरसिंह कुवँर का समाधी स्थल बालेश्वर मन्दिर जिस की चिनाइ पुराने जमाने में उदड़ का आटा भिगोकर लिउन (तगार) बनाकर की गयी है। यह लगायत अनेक पौराणिक शिलालेख यहां के प्रमुख पर्यटकिय स्थान हें।[2]

दैलेख जिला के पर्यटकिय स्थान

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दैलेख जिला में अवस्थित पंचकोशी तिर्थस्थल का एक मन्दिर जिस का नाम है धुलेश्वर मन्दिर

दैलेख भौगोलिक दृष्टी से एक पहाडी जिला होने से यहां बहुत सारे पर्यटकिय क्षेत्र रहे हें। नेपाल का प्रमूख माना जनेवाली पंचकोशी तिर्थस्थल इसि जिला में अवस्थित है। इस के साथ ही नेपाली भाषा का पहला शिलालेख दुल्लु स्थित दामुपाल का शिलालेख और वैज्ञानिकों के अनुसार मृत ज्वालामुखि मानागया धुलेश्वर इस जिला में अवस्थित हें। इस के साथ ही नेपाल का एक मात्र पेट्रोल, ग्याँस तथा मिट्टितेल की खानि भी इस जिला में मिलने की सम्भावना है। प्राचिन मत अनुसार डुंगेश्वर में दधिचि ऋषि का आश्रम रहा विश्वास किया जाता है। इसी तरह बैक का लेक को महाभारत के पात्र द्रोणाचार्य की तपोभूमी द्रोणाचल पर्वत कहाजाता है।[2]

धार्मिक सम्पदा

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पश्चिम दैलेख का तोलीपाटा गांव स्थित थामा चौघरा मैया के मन्दिर में लगी भक्तजनों की कतार

दैलेख जिल्ला देवताओं का वास स्थान है यहां पर कई धार्मिक सम्पदायें रहे हें। यहां के कुछ धार्मिक सम्पदाओं का नाम प्रकार हें।

दैलेख जिला का लयाँटी विन्द्रासैनी गा.वि.स. मे रहा विन्द्रसैनी देवी का मन्दिर
  • बुकि मैया स्थान
  • भ्वानी स्थान
  • पंचकोशी
  • शिरस्थान
  • नाभिस्थान
  • पादुकास्थान
  • धुलेश्वर
  • डुंगेश्वर
  • कोटिलास्थान
  • थामा चौघेरा मैया स्थान
  • विन्द्रासैनी मन्दिर
  • तियाडी स्थान नेपा
  • धर्मगद्दी दुल्लु
  • बालेश्वर मन्दिर दुल्लु
  • विलासपुर मन्दिर
  • नारायण मन्दिर
  • शिखर द्वारि (घोडा दाउनि)

सांस्कृतिक सम्पदा तथा देवल

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भुर्ती गांव स्थित देवल

नुवाकोट से भारत का गढ़वाल तक के भू-भाग में विभिन्न जगह में प्राचिन काल में देवल निर्माण किए गए हें। परन्तु सब से ज्यादा संख्या मे देवल दैलेख जिला में निर्माण किए हें। स्थानिय जन विश्वास अनुसार महाभारत काल के पात्र पाण्डवों द्वारा निर्माण किए बताए गए ये देवल क्यों और किस प्रयोजन के लिय निर्माण किएगए हें, इस का आज तक कोही ठोस प्रमाण नहीं है। दैलेख जिला के विभिन्न क्षेत्रों में रहे देवल और अन्य सम्पदा निम्न प्रकार हें।

  • भूर्ति में रहे देवल
  • रावतकोट में रहे देवल
  • रानीवन के देवल
  • अन्य विभिन्न गा. वि. स. में रहे देवल
  • किर्ति खम्ब शिलालेख दुल्लु
  • भैरबी
  • दुल्लु दरबार पटांगिनी के देवल तथा अभिलेख
  • दामुपाल का शिलालेख
  • सातखम्ब गमौडी
  • प्राचिन दुल्लुकोट
  • दैलेख बजार स्थित कोतगडी

पर्यटकीय दृष्टिकोण से उपर उल्लिखित सभी सम्पदा स्थित स्थानों में सडक की पहुंच है। शित काल में सवारी साधन से यात्रा करना सम्भव है। यह सम्पदाएं तक पहुंचने के लिय जिला विकास समिति और गावं विकास समिति के ओर से निरन्तर लगानी होरही है। जितना पहुंच के लिए सडक में लगानी हुइ है, इस तुलना में यह सम्पदाओं का संरक्षण और सम्बर्धन में लगानी हो नही पारहा है। स्थानीय समुदाय को भी इनकी महत्वा के विषय में समझ नहोने के कारण यह अमूल्य सम्पदायें जीर्ण अवस्था में पहुंचे हें।

दैलेख जिला से उद्गम हुए विभिन्न जातीयां

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दैलेख जिला को विभिन्न जात जातीओं का उद्गम स्थल के रूप में भी लिया जाता है क्यों की इस जिले के विभिन्न स्थानों से उद्गम हुए जाती के लोग नेपाल और भारत के विभिन्न जगहों पर बसे हुए हें। जैसे की :-

  • दुल्लु से दुलाल
  • बासी से बस्याल
  • बड से बराल और बडाल
  • लम्जी से लम्जेल
  • नेपा से नेपाल जाती
  • लामीछानी से लामिछाने
  • लयाँटी से लुईँटेल
  • भुर्ती से भुर्तेल
  • दवडा से दवाडी
  • पराजुल से पराजुली
  • दह से दाहाल
  • कट्टी से कट्टेल
  • रिजु से रिजाल
  • हुमेगांव से हुमागाई
  • लम्सु से लम्साल

इत्यादी जगहों से उपर उल्लेखित जातीयों का उद्गम हुआ माना जाता है। उपर उल्लेखित जात के लोग संसार के किसी भी कोने में बसे हुए हों वह लोग अपना उद्गम स्थान के रूप में दैलेख जिला को पहचानते हें।[2]

दैलेख जिला प्रशासनिक विभाजन

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दैलेख जिला के गा.वि.स. और नगर पालिकाओं का मान चित्र

दैलेख जिला को 49 गा. वि. स. (गाउं विकाश समिती/ ग्राम पंचायत), 2 नगर पालिका, 2 सांसदीय क्षेत्र और 11 ब्लॉकों में विभाजीत किया गया है। दैलेख जिला के गा. वि. स./नगरपालिका के नाम सूची:-

  • नगरपालिका
  1. नारायण
  2. दुल्लु
  • गा.वि.स.

सन्दर्भ

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  1. General Bureau of Statistics, Kathmandu, Nepal, Nov. 2012
  2. "ddc Dailekh". मूल से 6 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जून 2014.
  3. जन कहानियां
  4. "दैलेखमा वैशाखदेखि मिथेन ग्यास उत्खनन् गरिने" (नेपाली में). उज्यालो अनलाइन. मूल से 28 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 मार्च 2019.