प्रवेशद्वार:उड़ीसा

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उड़ीसा प्रवेशद्वार

उड़ीसा भारत का एक प्रान्त है जो भारत के पूर्वी तट पर बसा है। उड़ीसा उत्तर में झारखंड, उत्तर पूर्व में पश्चिम बंगाल दक्षिण में आंध्र प्रदेश और पश्चिम में छत्तेसगढ से घिरा है तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी है. भौगोलिक लिहाज से इसके उत्तर में छोटानागपुर का पठार है जो अपेक्षाकत कम उपजाऊ है लेकिन दक्षिण में महानदी, ब्रम्हाणी, कालिंदी और वैतरणी नदियों का उपजाऊ मैदान है. यह पूरा क्षेत्र मुख्य रुप से चावल उत्पादक क्षेत्र है.

पूर्वी तट पर बसे उड़ीसा की गिनती भारत के सबसे निर्धन राज्यों में से की जाती है. यहाँ की जनसंख्या लगभग ३२ मिलियन है जिसका ४० प्रतिशत अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का है. उड़ीसा का विकास दर अन्य राज्यों की तुलना में बिल्कुल खराब हालत में है. १९९० में उड़ीसा का विकास दर ४.३% था जबकि औसत विकास दर ६.७% है. उड़ीसा के कषि क्षेत्र का विकास में योगदान ३२ फीसदी है. राज्य में लगभग आधी से ज्यादा आबादी (१७.५ मिलियन) गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करती है और प्रति व्यक्ति औसत आय भी अच्छी नहीं है.

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चयनित लेख

छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा अंचल की सबसे बड़ी नदी है। प्राचीनकाल में महानदी का नाम चित्रोत्पला[क] था। महानन्दा एवं नीलोत्पला भी महानदी के ही नाम हैं। महानदी का उद्गम रायपुर के समीप धमतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी से हुआ है। महानदी का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की तरफ है। सिहावा से निकलकर राजिम में यह जब पैरी और सोढुल नदियों के जल को ग्रहण करती है तब तक विशाल रुप धारण कर चुकी होती है। ऐतिहासिक नगरी आरंग और उसके बाद सिरपुर में वह विकसित होकर शिवरीनारायण में अपने नाम के अनुरुप महानदी बन जाती है। महानदी की धारा इस धार्मिक स्थल से मुड़ जाती है और दक्षिण से उत्तर के बजाय यह पूर्व दिशा में बहने लगती है। संबलपुर में जिले में प्रवेश लेकर महानदी छ्त्तीसगढ़ से बिदा ले लेती है। अपनी पूरी यात्रा का आधे से अधिक भाग वह छत्तीसगढ़ में बिताती है। सिहावा से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरने तक महानदी लगभग 885 कि॰मी॰ की दूरी तय करती है। छत्तीसगढ़ में महानदी के तट पर धमतरी, कांकेर, चारामा, राजिम, चम्पारन, आरंग, सिरपुर, शिवरी नारायण और उड़ीसा में सम्बलपुर, बलांगीर, कटक आदि स्थान हैं तथा पैरी, सोंढुर, शिवनाथ, हसदेव, अरपा, जोंक, तेल आदि महानदी की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। महानदी का डेल्टा कटक नगर से लगभग सात मील पहले से शुरू होता है। यहाँ से यह कई धाराओं में विभक्त हो जाती है तथा बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इस पर बने प्रमुख बाँध हैं- रुद्री, गंगरेल तथा हीराकुंड। यह नदी पूर्वी मध्यप्रदेश और उड़ीसा की सीमाओं को भी निर्धारित करती है।
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चयनित चित्र

सम्बलपुरी साड़ी
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चयनित जीवनी

चैतन्य महाप्रभु भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी। भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनैतिक अस्थिरता के दिनों में हिंदू मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया, जाति-पांत, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त वृंदावन को फिर से बसाया और अपने जीवन का अंतिम भाग वहीं व्यतीत किया। चैतन्य महाप्रभु का जन्म सन १४८६ की फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को पश्चिम बंगाल के नवद्वीप (नादिया) नामक उस गांव में हुआ, जिसे अब मायापुर कहा जाता है। यपि बाल्यावस्था में इनका नाम विश्वंभर था, परंतु सभी इन्हें निमाई कहकर पुकारते थे। गौरवर्ण का होने के कारण लोग इन्हें गौरांग, गौर हरि, गौर सुंदर आदि भी कहते थे।चैतन्य महाप्रभु संन्यास लेने के बाद नीलांचल चले गए। इसके बाद दक्षिण भारत के श्री रंग क्षेत्रसेतु बंध आदि स्थानों पर भी रहे। इन्होंने देश के कोने-कोने में जाकर हरिनाम की महत्ता का प्रचार किया। सन १५१५ में वृंदावन आए। यहां इन्होंने इमली तला और अकूर घाट पर निवास किया।
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श्रेणियां

उपश्रेणियाँ नहीं हैं।
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चयनित पर्यटन स्थल

कोणार्क सूर्य मंदिर
कोणार्क सूर्य मंदिर
कोणार्क का सूर्य मंदिर (ब्लैक पगोडा), उड़ीसा राज्य के पुरी नामक शहर में स्थित है। इसे लाल बलुआ पत्थर एवं काले ग्रेनाइट पत्थर से १२३६-१२६४ ई.पू. में गंग वंश के राजा नृसिंहदेव द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर, भारत की सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। इसे युनेस्को द्वारा सन १९८४ में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। कलिंग शैली में निर्मित यह मंदिर सूर्य देव(अर्क) के रथ के रूप में निर्मित है। इस को पत्थर पर उत्कृष्ट नक्काशी करके बहुत ही सुंदर बनाया गया है। संपूर्ण मंदिर स्थल को एक बारह जोड़ी चक्रों वाले, सात घोड़ों से खींचे जाते सूर्य देव के रथ के रूप में बनाया है। मंदिर अपनी कामुक मुद्राओं वाली शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है। आज इसका काफी भाग ध्वस्त हो चुका है। इसका कारण वास्तु दोष एवं मुस्लिम आक्रमण रहे हैं। यहां सूर्य को बिरंचि-नारायण कहते थे। विस्तार में...
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उड़ीसा के व्यंजन

जगन्नाथ मंदिर में दिया जाने वाला दोपहर का प्रसाद
जगन्नाथ मंदिर में दिया जाने वाला दोपहर का प्रसाद
श्रेय : सुभाशिष पानगढ़ी
जगन्नाथ मंदिर का दोपहर बाद का प्रसाद
नाज़िया हसन
नाज़िया हसन
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संबंधित प्रवेशद्वार

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विकिपीडिया उड़िया में


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संबंधित विकिमीडिया




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