भांगरे वंश

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भांगरे महाराष्ट्र मे पाई जाने वाली कोली जाती का गोत्र (वंश) है। ब्रिटिश कालीन कुछ दस्तावेजों मे भांगरे शब्द को कभी-कभी भांगरिया भी लिखा गया है। भांगरे गोत्र के कोली मराठा काल से लेकर ब्रिटिश काल तक अपनी मौजूदगी दाख़िल करते आए हैं। भांगरे कोलीयों ने पेशवा के खिलाफ, हैदराबाद के निज़ाम, अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाए थे।

भांगरे एवं भांगरिया
कोलीयों की जव्हार रियासत का ध्वज
विशेष निवासक्षेत्र
महाराष्ट्र, गोवा, हैदराबाद
भाषाएँ
मराठी भाषा, कोंकणी भाषा, वर्हाडी बोली, आगरी बोली, मालवनी बोली
धर्म
हिन्दू

मराठा साम्राज्य मे भांगरे कोली नायक और सरदार भी थे। लेकिन उनका उल्लेख मुख्यत विरोधी के रुप मे ही मिला है।

राघोजी भांगरे जयंती २००७ महाराष्ट्र पुलिस

इतिहास एवं विद्रोह[संपादित करें]

राघोजी भांगरे की प्रतिमा अहमदनगर, महाराष्ट्र

भांगरे कोलीयों ने काफी उद्दंड इतिहास बनाया है क्योंकि वो हमेसा से लगते ही आए है। जिनमे से एक तो यह है की १७६१ गामाजी भांगरे नाम के एक साधारण से कोली ने हैदराबाद के निज़ाम के खिलाफ मोर्चा खोला था। गामाजी भांगरे ने अन्य कोलीयों के सिथ मिलकर निज़ाम से ट्रिम्बक किला छीन लिया और पेशवा के हवाले कर दिया फलस्वरूप ने काफी प्रशंसा की पेशवा ने भांगरे को काफी जमीन दी और देशमुख की उपाधि से सम्मानित किया।[1][2]

१७७६ मे खोड भांगरे नाम के एक कोली ने जावजी बोमले के साथ मिलकर पेशवा से तीन किले छीन लिए जो बाद मे इंदौर के महाराजा तूकोजी होलकर के कहने पर बापिस लोटा दिए।[3][4]

१७९८ मे वालोजी भांगरे नाम के कोली ने अपने दो भाई मानाजी भांगरे और गोविंदजी भांगरे के साथ मिलकर पेशवा के विरुद्ध हथियार उठाए और तीनो भाईयों को मार दिया गया। वालोजी भांगरे को जुन्नर के सूबेदार ने तोप से उड़ा दिया था जिसके बाद वालोजी के भतीजे और मानाजी के बेटे रामजी भांगरे ने विद्रोह को व्यापक रुप दे दिया और पेशवा की सारी व्यवस्था हिला के रख दि।[5]

१८१८ मे ब्रिटिश सरकार से मराठाओं के हार जाने के बाद रामजी भांगरे ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हल्ला बोल दिया। रामजी एक क्रांतिकारी के रूप में उभरा और रामजी को ब्रिटिश सरकार ने काले पानी की सजा सुनाई और अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह पर स्थित सेल्यूलर जेल मे भेज दिया।[6][7]

१८४४ मे रामजी के बेटे बापूजी भांगरे ने अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाए। बापूजी ने ब्रिटिश अधिक्रत क्षेत्रों मे हमला किया और सरकारी खजाने को लूट लिया। १८४५ मे कैप्टन गिवर्न के नेतृत्व मे अंग्रेजी सेना ने हमला किया और फांसी की सज़ा सुनाई गई।[1][8]

इसके बाद सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी राघोजी भांगरे ने अंग्रेजों की कमर तोड के रख दी। राचोजी ने सतारा रियासत के शासक छत्रपति प्रतापसिंहजी भोंसले को सतारा की राजगद्दी पर पुनःस्थापित करने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राघोजी भांगरे ने अंग्रेजों का साथ दे रहे वनिया, पारसी और तेली लोगों के कान और नाक काट दिए थे। अंग्रेजी सरकार ने राघोजी पर ५००० का इनाम घोषित किया था जिंदा या मुर्दा। २ मई १८४८ को ब्रिटिश सरकार ने राघोजी भांगरे को फांसी दे दी।[1][9]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Hardiman, David (2006). Histories for the subordinated (अंग्रेज़ी में). Permanent Black. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7824-099-2.
  2. Gazetteer of the Bombay Presidency: Ahmadnagar (अंग्रेज़ी में). Government Central Press. 1884.
  3. Guha, Sumit (2006-11-02). Environment and Ethnicity in India, 1200-1991 (अंग्रेज़ी में). Cambridge University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-521-02870-7.
  4. The Indian Historical Quarterly (अंग्रेज़ी में). Calcutta Oriental Press. 1939.
  5. Hardiman, David (2007). Histories for the Subordinated (अंग्रेज़ी में). Seagull Books. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-905422-38-8.
  6. Hassan, Syed Siraj ul (1989). The Castes and Tribes of H.E.H. the Nizam's Dominions (अंग्रेज़ी में). Asian Educational Services. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-206-0488-9. मूल से 31 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 अप्रैल 2020.
  7. Nand, Brahma (2003). Fields and farmers in western India, 1850-1950 (अंग्रेज़ी में). Bibliomatrix.
  8. Hardiman, David (1996). Feeding the Baniya: Peasants and Usurers in Western India (अंग्रेज़ी में). Oxford University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-563956-8.
  9. Keer, Dhananjay (1997). Mahatma Jotirao Phooley: Father of the Indian Social Revolution (अंग्रेज़ी में). Popular Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7154-066-2.