टोंक जिला

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
टोंक ज़िला
Tonk district
मानचित्र जिसमें टोंक ज़िला Tonk district हाइलाइटेड है
सूचना
राजधानी : टोंक
क्षेत्रफल : 7,194 किमी²
जनसंख्या(2011):
 • घनत्व :
14,21,326
 198/किमी²
उपविभागों के नाम: तहसील
उपविभागों की संख्या: 9 (नई तहसील-नगर फोर्ट बनी 31 मई 2021 को )
मुख्य भाषा(एँ): हिन्दी,नागर चोल,चौरासी, ढूंढाड़ी राजस्थानी


टोंक ज़िले का एक दृश्य
ज़िले का एक चरवाहा

टोंक ज़िला भारत के राजस्थान राज्य का एक ज़िला है|

इतिहास[संपादित करें]

भले ही इस शहर के इतिहास की कोई लम्बी–चौड़ी तहरीर जिला गजेटियर, जनगणना-दस्तावेजों और इतिहास के ग्रंथों में न अंकित न हो, यह बात निर्विवाद है कि टोंक, जयपुर से पुराना है। हनुमान सिंघल ने साहित्य-कला-संगम द्वारा प्रकाशित अपनी एक पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ़ टोंक’ में यहाँ के इतिहास पर प्रकाश डाला है । यहाँ से कुछ दूर रणथम्भोर जाने वाले मार्ग में ग्राम ‘ककोड़’ में विशाल ग्रेनाइट शिला से निर्मित एक विशालकाय हाथी, जो 12वीं सदी की रचना है, इस इलाके में सभ्यता की पुरानी रिहाइश का सबूत है ... भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित एक ही चट्टान (Monolithic Rock) में से उत्कीर्ण इस वास्तविक ऊंचाई के हाथी के दाहिने कान में इस बड़े सारे मूर्तिशिल्प के निर्माण की तिथि अंकित है!

महाभारत काल में टोंक को ‘संवाद लक्ष्य’ के नाम से जाना जाता था। मौर्य शासन में यह मौर्यों के अधीन था और फिर इसे मालवा राज्य में मिला दिया गया था। यह अधिकांश काल तक हर्षवर्धन के अधीन रहा । चीन के आगंतुक यात्री ह्वेन त्सांग के अनुसार, यह तब बैराठ राज्य के अधीन आता था। राजपूतों के शासन में, यह राज्य टोडा के सोलंकी शासकों के अधीन रहा और बाद में इस पर कछवाहों ने कब्जा कर लिया जब राजा मानसिंह ने टोडारायसिंह के राव को हराया। मानसिंह के बाद, यह होल्कर और सिंधिया के शासन में आ गया । स्थानीय अभिलेखों के अनुसार अकबर के शासन-काल में ‘टोडी’ और ‘टोंकड़ा’ नाम के दो जिले आमेर के राजा मुग़ल- सेनापति मानसिंह ने पिंडारियों और अन्य कब्जेदारों से जीते थे, जिनमें से ‘टोंकड़ा’ इलाके के 12 बेचिराग गाँव (जो गैर-आबाद गाँव थे) भोला नाम के किसी ब्राह्मण को भूमि-दान में दे दिए गए थे, जिसने अपने इस इलाके का नया नामकरण टोंकड़ा’ से ‘टोंक’ किया! 25 मार्च 1948 को एक राज्य के रूप में राजस्थान-निर्माण से पहले टोंक 4 निज़ामतों- टोंक, पिड़ावा, सिरोंज, निम्बाहेड़ा, छबड़ा, और एक नायब-निज़ामत, अलीगढ़ (उनियारा) से मिल कर बना था, आज टोंक के उत्तर में जयपुर, दक्षिण में कोटा, बूंदी और भीलवाड़ा, पूर्व में सवाई माधोपुर और पश्चिम में अजमेर हैं।

टोंक निजामत (राज्य) के संस्थापक थे- नवाब मुहम्मद अमीर खान (1769-1834), जो पश्तून वंश के एक साहसी सैन्य नेता थे। अमीर खान 1798 में मराठा साम्राज्य के यशवंतराव होल्कर की सेवा में एक सैन्य कमांडर बन गये। 1806 में, अमीर खान ने यशवंतराव होल्कर से टोंक का राज्य प्राप्त किया था 1817 में, तीसरे आंग्ल-मराठा युद्ध के बाद, अमीर खान ने अपना राज्य ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया। नतीजतन, उन्होंने टोंक को अपना इलाका बनाए रखा और नवाब की उपाधि भी प्राप्त की। टोंक राज्य आंतरिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए और ब्रिटिश साम्राज्य ख़त्म होने पर राजस्थान का हिस्सा रहा जिसमें छह अलग-अलग जिले शामिल थे। इनमें से तीन तो राजपूताना एजेंसी के अधीन थे, टोंक, अलीगढ़ (पूर्व में रामपुरा) और निम्बाहेड़ा। अन्य तीन, छाबड़ा, पिरावा और सिरोंज सेंट्रल इंडिया एजेंसी में शामिल थे। टोंक राज्य के एक पूर्व मंत्री साहिबज़ादा ओबेदुल्ला खान को 1897 के तिराह अभियान के दौरान पेशावर में राजनीतिक दायित्व पर प्रतिनियुक्त किया गया था। नवाब सर मुहम्मद इब्राहिम अली खान जीसीआईई (शासनकाल 1867-1930) उन कुछ प्रमुखों में से एक थे जिन्होंने 1877 में लॉर्ड लिटन के दरबार और 1903 के दिल्ली दरबार में शासक के रूप में भाग लिया था । 1899-1900 में, टोंक राज्य को सूखे के कारण बहुत संकट का सामना करना पड़ा। यहाँ की रियासत की सालाना आमदनी 1883-84 में 1,28,546 पोंड थी! सन् 1817 में टोंक एक ब्रिटिश संरक्षित राज्य बन गया था । 1947 में, भारत के विभाजन पर, जिससे भारत और पाकिस्तान को स्वतंत्रता मिली, टोंक के नवाब ने भारत में शामिल होने का फैसला किया। इसके बाद, टोंक राज्य के अधिकांश क्षेत्र को राजस्थान राज्य में एकीकृत किया गया, जबकि इसके कुछ पूर्वी परिक्षेत्र मध्य प्रदेश का हिस्सा बन गए। भारत की स्वतंत्रता के बाद, टोंक 25 मार्च 1948 को भारतीय गणराज्य में शामिल हो गया।

शासक[संपादित करें]

राज्य के शासक, टोंक के सालारजई नवाब, पश्तून तारकानी जनजाति से थे। वे ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा 17 तोपों की सलामी के हकदार थे। भारतीय स्वतंत्रता से पहले के अंतिम शासक, नवाब मुहम्मद इस्माइल अली खान के कोई संतान नहीं हुई ।


टोंक के नवाब[संपादित करें]

मुहम्मद आमिर खान (1806-1834) मुहम्मद वज़ीर खान (1834-1864) नवाब मुहम्मद अली खान (1864-1867) नवाब मुहम्मद इब्राहिम अली खान (1867 - 23 जून 1930) नवाब मुहम्मद सआदत अली खान (23 जून 1930 - 31 मई 1947) नवाब मुहम्मद फारूक अली खान (1947-1948)

नामधारी नवाब[संपादित करें]

नवाब मुहम्मद इस्माइल अली खान (1948-1974) नवाब मासूम अली खान (1974-1994) नवाब आफताब अली खान (1994-)

अन्य तथ्य[संपादित करें]

टोंक राज्य के क्षेत्रफल का 2.10 प्रतिशत और इसकी आबादी का 2.43 प्रतिशत हिस्सा है। एक समय इस रियासत का कुल क्षेत्रफल 2553 वर्गमील था, 1901 में जिसकी कुल जनसंख्या 273,201 थी। एक पतंग जैसी शक्ल के इस जिले का भौगोलिक क्षेत्रफल आज 7,163 वर्ग किलोमीटर है और समुद्र-तल से ऊंचाई कोई 264 मीटर! गर्मियों में बला की गर्मी पड़ती है और सर्दियों में खासी ठंड ...घनी वनस्पतियों के अभाव से टोंक जिले की अधिकांश पहाड़ियाँ रूखी-सूखी और बेजान हैं- सिर्फ बरसात का मौसम ही इस इलाके को तर और हरा बनाता है, वन केवल 3 प्रतिशत के करीब भू-भाग में हैं और आदर्श वनक्षेत्र 30 प्रतिशत से बहुत कम हैं ... 2011 की भारतीय जनगणना के अनुसार टोंक जिले की जनसंख्या 1, 65,294 थी, जिसमें 48% महिलाएँ थीं। जनसंख्या का 14% छह वर्ष और उससे कम आयु का है। टोंक की औसत साक्षरता दर 68.62%: पुरुषों में 77.68% और महिलाओं में 59.18% है।एक समय अनाज, कपास, अफीम और खाल राज्य के प्रमुख उत्पाद और निर्यात थे।


टोंक के उपनाम : नवाबों की नगरी , राजस्थान का लखनऊ, अदब का गुलशन, अख्तर शेर्यंश की नगरी, मीठे खरबूजे का चमन, हिन्दू मुस्लिम एकता का मुखौटा प्राचीन नाम: प्राचीन भारत का टाटानगर, स्वादलक्ष [1][2]

तथ्य[संपादित करें]

सन् 2011 में ज़िले की जनसंख्या 14.21 लाख थी, जिसमें से 7.28 लाख पुरुष और 6.93 लाख महिलाएँ थीं, यानि लिंगानुपात 952 था। पूरी आबादी में से ग्रामीण निवासी 11.038 लाख और नगरीय निवासी 3,17,843 थे। ज़िले का साक्षरता दर 62.46% था। यहाँ का दूरभाष कोड 01432, पिनकोड 304001 और वाहन रेजिस्ट्रेशन कोड RJ-26 है।

भूगोल[संपादित करें]

ज़िले की औसत ऊँचाई समुद्रतल से लगभग 264.32 मीटर है। ज़िला 25°41" से 26°34" उत्तरी अक्षांश तथा 75°70" से 76°19" पूर्वी रेखांश के बीच विस्तारित है। यहाँ वार्षिक औसत वर्षा 61.36 मिमी होती है।

अरावली पहाड़ों को बनास नदी इस जिले में दो हिस्सों में काटती है, जो जिले की सबसे प्रमुख नदी है! बनास के अलावा यहाँ छोटी छोटी बरसाती नदियाँ और और हैं- दाई, माशी, सोहदरा, और ढील। बनास जिले की सबसे बड़ी नदी है- जिसका मूल नाम कभी ‘वनाशा’ (वन की आशा) , ‘वर्णाशा’, या ‘वशिष्ठि’ भी था। इस की कुल लम्बाई है - 480 कि.मी. और बेड़च, मेनाल, खारी, कोठारी, और मोरेल नाम की नदियां इसी बनास में आ मिलती हैं। राजस्थान में पूर्णतः प्रवाह की दृष्टि से सर्वाधिक लम्बी इस बनास नदी का उद्गम राजसमंद (उदयपुर संभाग) से होता है, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, अजमेर, और टोंक जिलों से हो कर बहती हुई अन्त में सवाई माधोपुर जिले में ‘रामेश्वरम्’ नामक स्थान पर यह हमारी महान् एकमात्र बड़ी नदीचम्बल में विलीन हो जाती है। बनास, जो आकृति में सर्पिलाकार है पर दो सिंचाई बांध बनाए गए हैं - • बीसलपुर बांध (तहसील टोडारायसिंह कस्बा टोंक), औसत गहराई : 115.50 मीटर • ईसरदा बांध (सवाई माधोपुर) जो पूरा नहीं हुआ है ईसरदा सवाई माधोपुर जिले का वह ठिकाना है जहाँ से जयपुर रियासत के कई भूतपूर्व राजा गोद आये क्यों कि जयपुर राजाओं को अपना वंश चलने को दत्तक पुत्र यहीं से मिले... बीसलपुर बांध से जयपुर और अजमेर जिलों को पीने का पानी सप्लाई किया जाता है, भारतीय पुराणों के पन्नों के अनुसार कभी यहाँ के एक गुफा-मंदिर में लंकाधिपति रावण ने शिव-कृपा के लिए तपस्या की थी और ‘गोकर्णेश्वर महादेव’ का स्वयंभू शिवलिंग शिव से ही प्राप्त किया था। वही शिवलिंग आज भी यहाँ बाँध के ठीक नीचे बने प्राचीन गुफानुमा मंदिर में पूजित है !

अन्य मंदिर/ दर्शनीय स्थल और मेले[संपादित करें]

  • श्री देवनारायण भगवान मंदिर जोधपुरिया- माशी बांध मनोहरपुरा के त्रिवेणी(मांशी, बांडी, केराकशी) स्थल पर स्थित भव्य मन्दिर है जहा इनका मेला भरता है।
  • चान्दली माता मन्दिर - देवली के राजा चान्दली गाँव मे हिंगलाज माता का मंदिर ।
  • डिग्गी कल्याण मन्दिर, डिग्गी (मालपुरा) - यहाँ पर भाद्रपद सुक्ल एकादशी को विशाल मेला लगता है।
  • अरबी फारसी शोध संस्थान (टोंक) - इसकी स्थपना 4 दिसंबर 1978 को हुई और यहाँ पर विश्व की सबसे बड़ी कुरान बनाई गई है।
  • सुनहरी कोठी (टोंक) - यह टोंक में बड़े कुए के पास नज़रबाग में रतन, कांच व सोने की झाल देकर बनवाई गई। पहले इसे "शीशमहल" के नाम से जाना जाता था।
  • कल्पवृक्ष बालुन्दा (नगर दुर्ग के पास)
  • माण्डव ऋषि की तपोभूमि (मांडकला) - इसे लघु-पुष्कर भी कहा जाता है। यह नगर दुर्ग के पास स्थित है। यहाँ पर 15 दिवसीय विशाल पशु मेला कार्तिक पूर्णिमा से लगता है, यह गांव उनियारा तहसील में पड़ता है।
  • श्री चामुण्डा देवी का मन्दिर नगर (मालपुरा)
  • माशी बांध मनोहरपुरा - मिट्टी का बना हुआ हैं जिसको 1981 में बनाया गया था ।
  • बीसलपुर बांध - यह राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा बांध है, जो टोंक जिले की देवली तहसील के राजमहल में तीन नदियों - बनास, खारी, डाई - के संगम पर बना हुआ है। यह राजस्थान की सबसे बड़ी जल पेयजल परियोजना है।
  • टोरडी सागर बांध - इस बांध के सभी गेट खोलने पर एक बूंद भी जल नहीं बचता है।
  • ककोड़ का किला - यह टोंक से 20 कि.मी. दूर NH 116 पर ककोड़ ( उनियारा तहसील) में एक ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है।
  • पचेवर का किला (मालपुरा) जो अब एक हेरिटेज होटल है
  • बगडी का किला- बगड़ी (निवाई)
  • हाथीभाटा - यह ककोड़ के पास 5 कि.मी. दूर उनियारा तहसील के गुमानपुरा गांव में विशाल पत्थर को काट कर बनाया गया एक हाथी है।
  • रक्तांचल पर्वत निवाई में भृगु ऋषि की गुफा, नाथ सम्प्रदाय का जलंधरनाथ मंदिर, सतीमाता का मंदिर, पर्वत के पीछे हरियाली अमावस्या का मेला भरता है
  • केंद्रीय भेड़ व उन अनुसंधान केंद्र - यह मालपुरा तहसील के अविकाकनगर में 4000 एकड़ ज़मीन पर बना हुआ है।
  • रेड - यह जगह टोंक में निवाई के पास ढील नदी स्थित है, इसे "प्राचीन भारत का टाटानगर" के नाम से जाना जाता है, जहाँ पंचमार्क सिक्कों का बड़ा भंडार मिला।
  • खातोली - उनियारा से 10 किमी दूर इस जगह सरसो के बचे वेस्ट भाग से विद्युत बनाई जाती है जिसका नाम "कल्पतरु पावर प्लांट (खातोली)"है।
  • लखडेश्वर महादेव मंदिर - ऊम ग्राम में टोंक से 15 km दक्षिण, नगरफोर्ट के रास्ते ।
  • संत पीपाजी की गुफा (टोड़ारायसिंह)
  • हाड़ी रानी का कुंड (टोड़ारायसिंह)
  • रानीपुरा - काले हिरणों के लिए प्रसिद्ध गांव जो उनियारा तहसील में पड़ता हैं
  • मंदिर व गुरूद्वारा धन्ना भगत (धुआँ कलाँ)
  • मोती सागर बांध, धुआँ कलाँ, जलदेवी मंदिर बावड़ी गाव टोड़ारायसिंह
  • गलवा बांध - उनियारा में स्थित


मंदिर.. प्रसिद्ध श्री भैरूजी महाराज मन्दिर कुराड़ (मालपुरा)[संपादित करें]

जहाँ पर पश्चिमी क्षेत्र पाइप लाइन को घुमाया गया जो पाइप लाइन कही पर भी घूमी हुई नहीं थी

वह कुराड़ गाँव के भैरूजी की बन्नी मे घूम गई है

उनकी बन्नी से कोई कुछ भी नही ला सकता

700 बीघा जमीन है वहाँ पर जिसमे गाँव वाले अपने पशु औ को चराते है।


श्री डिग्गी कल्याण जी का मंदिर

तिलभांडेश्वर मंदिर तिलाजू नगरी।

चांदली माता जी का मंदिर ,चांदली (देवली)

लखडेश्वर महादेव मंदिर , ऊम ( टोंक) टोंक से 15 km दक्षिण में

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Lonely Planet Rajasthan, Delhi & Agra," Michael Benanav, Abigail Blasi, Lindsay Brown, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012332
  2. "Berlitz Pocket Guide Rajasthan," Insight Guides, Apa Publications (UK) Limited, 2019, ISBN 9781785731990