रघुविलास
रघुविलास एक संस्कृत नाटक है जिसके रचयिता जैन नाट्यकार रामचन्द्र सूरि थे। वे आचार्य हेमचंद्र के शिष्य थे। रामचन्द्र सूरि का समय संवत ११४५ से १२३० का है। उन्होंने संस्कृत में ११ नाटक लिखे है। उनके अनुसार यह उनकी चार सर्वोतम कृतियों में से एक है।
कथासार
[संपादित करें]प्रथम अंक - सूत्रधार और चन्द्रक रघुविलास की घोषणा करते हैं। गंधर्वक राम के अभिषेक से प्रसन्न था और गीत कि की तैयारी कर रहा था की तभी दुर्मुख उसे रोकता है। इसके बाद सुमित्रा और कौशल्या का प्रवेश होता हैं। गंधर्वक उनके साथ दशरथ के कक्ष में जाता है। सुबुद्धि उन्हे दशरथ की दयनीय हालत बताते है। जब सुमित्रा इस का कारण पुछती है तब दशरथ उन्हे कैकेयी का पत्र देता है जिसमें कैकेयी भरत के लिए राज्य और राम के लिए सोलह वर्ष का वनवास मांगती है। दशरथ बहुत दुःखी थे।
द्वितीय अंक - तापस , वैनतेय और प्रभंजन बातचीत करते है कि लक्ष्मण ने शम्बूक को मार डाला और उस की माता चन्द्रनखा राम का शीलभंग करने आती है किंतु राम-लक्ष्मण उसे भगा देते हैं। तभी पुष्पक विमान पर रावण प्रहस्त के साथ प्रवेश करता है जो सीता को देखता है और सीता के अपहरण कि योजना बनाता है। रावण प्रहस्त दण्डकवन के नागरिक बनकर राम से मिलते है। प्रहस्त विनीता और रावण विराघ बनकर कहता है कि उनका राज्य रावण ने छीन लिया है। तभी रावण का मित्र प्रभंजन तापस बनकर कहता है कि खरदूषण और रावणने आश्रम पर आक्रमण किया है। विराघ रुपी रावण राम की मदद माँगते है। लक्ष्मण आश्रम को बचाने जाता है। रावण अपनी सहघर्मचारीणी पत्रलेखा सीता के हवाले छोड़ कर 'लक्ष्मण की सहायता के जा रहा हूं' ऐसा झूठ बोलकर निकल जाता है। रावण अवलोकनी शक्ति द्वारा सिंहनाद करवाया इसलिए सीता राम को लक्ष्मण की मदद करने को कहेती है पर राम नहीं माने। प्रहस्त छूपकर कहेता है कि खर लक्ष्मण पर आक्रमण कर रहा है इसलिए राम लक्ष्मण की मदद को जाते है। तभी रावण सीता का हरण कर लेता है।
तृतीय अंक - वैनतेय को तालजंघ से खबर मिली कि राम ने खर दूषण को मार डाला। तभी राम-लक्ष्मण खाली पर्णकुटी देखते है। जटायु उन्हें रावण के बारे में बताते हैं। तभी रावण विराघ बनकर राम से पत्रलेखा के बारे में पुछते है तभी तालजंघ तापस बनकर कहता है कि रावण उसे ले गया। राम के कहने पर विराघरूपी रावण पत्रलेखा को ढूंढने जंगल में चला जाता है। तभी चित्रागंद राम की मदद मांगने आता है क्योंकि किसी नकली सुग्रीव ने असली सुग्रीव का राज्य छिन लिया था। राम मदद के लिए सहमत होते है।
चतृर्थ अंक - रावण , कुंतलक और कलकण्ठ लंका दहन पर बात कर रहे थे। रावण सीता से मिलता है और कहेता है कि कुंभकर्ण ने राम को मारकर लक्ष्मण बंदी बना दिया है। रावण नकली लक्ष्मण को प्रस्तुत करता है किंतु सीता उस पर विश्वास नहीं करती।
पंचम अंक - विभीषण , मारीच और कुंद रावण से सीता को छोड़ देने को कहते है लेकिन क्रोधित रावण विभीषण को निकाल देता है। प्रहस्त रावण को बताता है कि विभीषण राम के पक्ष में जा चुका है। तभी वाली का पुत्र चन्द्रराशि रामदूत बनकर रावण से मिलता है। तभी हनुमान के पिता पवनंजय रावण की सेवा को प्रस्तुत होता है। रावण पवनंजय को कहता है कि कुंभकर्ण की मदद से किष्किन्धा ग्रहण करे। चन्द्रराशि को इससे आश्चर्य होता है तभी सीता रावण की सेवा में प्रस्तुत होती है। सीता चन्द्रराशि को कहती है वह राम के पास वापस लौट जाए। तभी प्रतीहार कहता है कि कुंभकर्ण ने किष्किन्धा जीत लिया है और चन्द्रराशि वापस लौट जाता है।
षष्ठ अंक - विभीषण चन्द्रराशि से कहता है कि पवनंजय और सीता रावण की माया थीं। तभी गोमुख जाम्बवान को बताता है कि लक्ष्मण को रावण की शक्ति लगी है। राम बहुत विलाप करते है तभी सीता का भाई भामंडल अपने साथ प्रतिचन्द्र को लाता है। प्रतिचन्द्र ने उपाय दिया की कैकेयी के भाई र्द्रोणघन की पुत्री विशल्या के स्नान जल से लक्ष्मण ठीक हो सकता है। इस प्रकार लक्ष्मण ठीक होता है।
सप्तम अंक - मय , मारीच और मंदोदरी रावण को समझाने का प्रयत्न करते है किंतु वे असफल रहे।
अष्टम अंक - राम रावण का युद्ध होता है कि तभी आकाशवाणी होती है कि सीता की रक्षा करो। तभी त्रिजटा रावण को कहती है कि देवताओं न सीता कहा कि राम मारे गए हैं इसलिए सीता प्राण त्याग करना चाहती है। राम दुःखी होते है कि तभी विभीषण नेपथ्य से कहता है कि यह रावण की माया है। राम हनुमान को सीता कि खबर लाने भेजते है। रावण अपनी माया पकड़े जाने पर प्रहस्त को माल्यवान के पास भेजता है और माल्यवान ने सारण से कहा कि चक्रपाद और सर्पकर्ण को कहो कि दुसरी योजना का समय आ चुका है। अब सीता और त्रिजटा का प्रवेश होता है तभी नेपथ्य से चक्रपाद कहता है कि रावण कि जीत हुए। तभी माया जनक आकर कहता है कि रावण कि जीत हुए सो दुःखी सीता अग्निप्रवेश का निर्णय लेती है उसी क्षण नेपथ्य से विभीषण कहता है कि लक्ष्मण ने रावण को मार दिया , सीता समझ जाती है कि यह जनक निशाचरों कि माया थीं तभी विजयी राम और उनका पक्ष वहाँ आता है। विभीषण जनक को देखकर कहता है कि यह जनक नहीं सर्पकर्ण है , सर्पकर्ण कहता है कि यह रावण का आदेश था। अंत में राम-सीता का मिलन हुआ और जाम्बवन्त ने सबका कल्याण हो इस भरतवाक्य से नाटक को पूर्ण किया।
भिन्नता
[संपादित करें]- कैकेयी राम को सोलह वर्ष का वनवास देती है जबकि वाल्मीकि रामायण में चौदह वर्ष के वनवास का उल्लेख है।
- यहाँ पर लक्ष्मण शंबूक को मारते है वो चन्द्रनखा का पुत्र था यह कथा वाल्मीकि रामायण की न होकर जैन रामायण की है।
- चन्द्रनखा वास्तव में वाल्मीकि रामायण की शूर्पणखा है।
- रावण का विराघ बनकर राम से मिलना काल्पनिक है।
- रावण द्वारा अवलोकनी शक्ति का प्रयोग जैन रामायण पर आधारित है।
- वाल्मीकि रामायण में लक्ष्मण, राम की सहायता को जाते है पर यहाँ राम, लक्ष्मण की सहायता को जाते हैं।
- वाल्मीकि रामायण में बालि सुग्रीव से राज्य छीनता है पर यहाँ नकली सुग्रीव असली सुग्रीव से राज्य छीनता है।
- चतुर्थ और पंचम अंक में प्रयुक्त माया नाट्यकार की देन है।
- वाल्मीकि रामायण में बालि के पुत्र का नाम अंगद है पर यहाँ उसका नाम चन्द्रराशि है।
- वाल्मीकि रामायण में लक्ष्मण औषधि से ठीक होता है जबकि इस नाटक में स्नान जल से।
- यहाँ सीता का भाई भामंडल है जो जैन रामायण पर आधारित है।
- अष्टम अंक में आकाशवाणी होना, माया जनक का प्रयोग, रावण की जीत, सीता का अग्निप्रवेश का निर्णय नाट्यकार कि कल्पना है।
- वाल्मीकि रामायण में राम, रावण को मारते है परंतु यहाँ लक्ष्मण रावण को मारते है जो जैन रामायण से लिया गया है।