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ससंसद महाराज

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यूनाइटेड किंगडम
की राजनीति और सरकार

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ससंसद संप्रभु, ससंसाद महाराज (या ससंसाद महारानी) का सिद्धांत राष्ट्रमंडल प्रजाभूमियों में संवैधानिक विधि का एक तकनीकी शब्द है जो राजमुकुट (राजसत्ता) की विधायी भूमिका का बोध करता है, जिसके अनुसार राजमुकुट संसद की (दोनों सदनों सहित) सलाह और सहमति के साथ विधायी कार्य करता है। राष्ट्रमंडल प्रजाभूमियों तथा वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित व्यवस्थाओं में, देश की तमाम विधायी, न्यायिक एवं कार्यकारी शक्तियों का स्रोत संप्रभु (अथवा राष्ट्रप्रमुख) को माना जाता है, जबकि विभिन्न विधानों और परम्पराओं के तहत संप्रभु अपनी इन शक्तियों का कार्यान्वयन करने हेतु अन्य संवैधानिय संस्थानों की सलाह अनुसार कार्य करने पर बाध्य होते हैं। इसी सन्दर्भ में विधायी मामलों में राजमुकुट, संसदीय स्वीकृति के संग विधान पारित करने हेतु बाध्य होते हैं; अतः संसद समेत राजमुकुट के इसी विधायी भुमका को विधायी दस्तावेजों और विधिशास्त्र में "ससंसाद संप्रभु" कहा जाता है। राष्ट्रमंडल प्रजाभूमियों में विधेयकों को पारित व लागू होने हेतु, संप्रभु, या उनके प्रतिनिधि (गवर्नर-जनरल, लेफ्टिनेंट-गवर्नर या गवर्नर) के द्वारा शाही स्वीकृति (रॉयल असेंट) प्राप्त करना आवश्यक होता है। ऐसी स्वीकृति के लिए विधेयकों को तभी भेज जाता है जब उन विधेयकों को संसद में पारित कर दिया गया हो। शाही स्वीकृति एवं संसदीय स्वीकृति से एक विधेयक अधिनियम बनता है। कानून के इन प्राथमिक कृत्यों को संसदीय कृत्यों के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा एक अधिनियम माध्यमिक विधान भी प्रदान कर सकता है, जिसे राजमुकुट द्वारा "संसद की अस्वीकृति के अभाव में" या साधारण अनुमोदन के आधार पर बनाया जा सकता है।

वेस्टमिंस्टर प्रणाली के अनुयायी कई गणतांत्रिक देशों में, यूनाइटेड किंगडम से अपनी स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, ससंसाद राष्ट्रपति की प्रणाली के तहत काम करते हैं, जिसमें राजमुकुट के जगह औपचारिक रूप से उस देश के राष्ट्रपति को संसद के एक घटक के रूप में सदन या दो सदनों के साथ नामित किया जाता है। ऐसा भारत, दक्षिण अफ्रीका, इत्यादि में देखा जा सकता है।[1]

राजमुकुट और अधिकारों का संलयन

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राजमुकुट की संकल्पना का ब्रिटेन तथा अन्य राष्ट्रमण्डल प्रदेशों के विधिशास्त्र तथा राजतांत्रिक व्यवस्था में अतिमहत्वपूर्ण भूमिका है। इस सोच के अनुसार राजमुकुट को प्रशासन के समस्त अंगों तथा हर आयाम में राज्य तथा शासन के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, तथा ब्रिटिश संप्रभु को राजमुकुट के सतत अवतार के रूप में देखा जाता है। अतः ब्रिटेन तथा राष्ट्रमण्डल प्रदेशों मे इस शब्दावली को राजसत्ता के लिए एक उपशब्द के रूप में भी उपयोग किया जाता है, या सीधे-सीधे यह राजतंत्र को ही संबोधित करने का एक दूसरा तरीका है।[2] इस संकल्पना का विकास इंग्लैण्ड राज्य में सामंतवादी काल के दौरान शाब्दिक मुकुट तथा राष्ट्रीय संपदाओं को संप्रभु(नरेश) तथा उनके/उनकी व्यक्तिगत संपत्ति से विभक्त कर संबोधित करने हेतु हुआ था।

राजमुकुट का, संसद का ही भाग होने की धारणा शक्तियों के संलयन के विचार से संबंधित है, जिसका अर्थ है कि सरकार की कार्यकारी शाखा और विधायी शाखा एक साथ जुड़े हुए हैं। यह वेस्टमिंस्टर प्रणाली की एक प्रमुख सिद्धांत है, जो इंग्लैंड में विकसित किया गया और आज समस्त राष्ट्रमंडल में इस्तेमाल किया जाता है। यह शक्तियों के पृथक्करण के विचार के विपरीत है। राष्ट्रमंडल विधिशास्त्र में प्रयुक्त ससंसाद "राजमुकुट", "महाराज", या "महारानी" की विशिष्ट भाषा उस संवैधानिक सिद्धांत का भी पालन करती है कि देश पर शासन का अंतिम अधिकार या संप्रभुता का स्रोत अंत्यतः राजशाही (राजा) के पास होती है, लेकिन यह अधिकार निर्वाचित और नियुक्त अधिकारियों के ऊपर सौंपा जाता है, जिनके सलाह पर ही राजमुकुट कार्य करता है।

आधिकारिक उपयोग में

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महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय और राजकुमार फ़िलिप, एडिनबर्ग के ड्यूक कनाडा की संसद में उद्घाटन संबोधन देते हुए

संसदीय अधिनियमों में संप्रभु के अधिकार का उल्लेख राष्ट्रमंडल देशों के विधायी संस्थानों द्वारा पारित अधिनियमों के घोषणापत्रों में देखा जा सकते है जिनके शुरूआती वाक्यांश इस बात का उल्लेख करते हैं की उक्त अधिनियम किसके अधिकार से पारित किया जा रहा है। इस शुरूआती वाक्यांश को अधिनियम खंड कहा जाता है। कानूनों के अधिनिर्णय में संप्रभु के स्थान के कारण, संसद के अधिनियम के अधिनियमन खंड में उनका या उनके साथ-साथ संसद के सदनों का उल्लेख हो सकता है। उदाहरण के लिए ब्रिटिश अधिनियम का घोषणापत्र इस प्रकार शुरू होता है:"महारानी की सबसे उत्कृष्ट महिमा द्वारा, लॉर्ड्स आध्यात्मिक और लौकिक एवं कॉमन्स की सलाह और सहमति से, इस वर्तमान एकत्रित संसद द्वारा, उनकी अधिकार से इस प्रकार अधिनियमित हो कि ... "[3] इसी तरह, कनाडाई संसद के अधिनियम में आम तौर पर निम्नलिखित अधिनियमितियां शामिल होती हैं: "अब अतः, महामहिम महारानी, कनाडा के सीनेट और हाउस ऑफ कॉमन्स की सलाह और सहमति से, निम्नानुसार अधिनियमित करती हैं की ..."[4] बहरहाल, ऑस्ट्रेलियाई संसद के विधानों में, यह मानते हुए की संप्रभु संसद का ही एक हिस्सा है, अतः १९०९ के बाद के विधानों में संप्रभु के अधिकार का उल्लेख अलग से नहीं किया जाता, अतः ऑस्ट्रेलिया में संसदीय अधिनियमों के अधिनियमन खंड इस प्रकार होते हैं: "ऑस्ट्रेलिया की संसद यह अधिनियमित करती है की ..."

इसके अलावा क्यूबेक, जो वेस्टमिंस्टर शैली के अधिनियमन खंड का उपयोग नहीं करता है। वह इसके बजाय प्रांतीय क़ानून खंड का उपयोग इस प्रकार करते हैं: "क्यूबेक की संसद निम्नानुसार लागू करती है: ..."।[5] एक विशिष्टता स्कॉटलैंड की संसद के विधानों में भी देखने को मिलता है, जिसकी विधायी शक्तियाँ ब्रिटिश संसद से अवक्रमित हो कर आयी हैं, संप्रभु से प्रत्यक्ष रूप से नहीं। यद्यपि इसके अधिनियमों के लिए शाही स्वीकृति की आवश्यकता होती है मगर स्कॉटिश संसद का अधिकार यूनाइटेड किंगडम की संसद से प्रत्यायोजित किया जाता है, और "ससंसाद (स्कॉटिश) महारानी" के समकक्ष धारणा स्कॉटिश विधिशास्त्र में नहीं है अतः स्कॉटिश संसद के अधिनियम ब्रिटिश संसदीय शैली के लंबे शीर्षक के बजाय निम्नलिखित पाठ का उपयोग करता है: "स्कॉटिश संसद के इस अधिनियम का विधेयक संसद द्वारा (तारीख) को पारित किया गया था और इस पर (तारीख) पर शाही स्वीकृति प्राप्त हुई थी: ..."।[6]

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. Rhodes, R. A.W.; Wanna, John; Weller, Patrick (2009). Comparing Westminster. Oxford University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0191609817.
  2. Jackson, Michael D (2013), The Crown and Canadian Federalism, Toronto: Dundurn Press, पृ॰ 20, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781459709898, मूल से 11 अप्रैल 2016 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 20 मई 2020
  3. "Academies Act 2010", en:legislation.gov.uk, राष्ट्रीय ग्रंथागार (यूके), 2010 c. 32
  4. Fair and Efficient Criminal Trials Act, S.C. 2011, c. 16
  5. An Act respecting the sectoral parameters of certain fiscal measures, S.Q. 2012, c. 1
  6. स्कोटिश संसद (नवम्बर 16, 2005). "Licensing (Scotland) Act 2005". मूल से 11 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि जुलाई 22, 2012.

बाहरी कड़ियाँ

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