सदस्य:Abishekrl15156/विजयनगर साम्राज्य की संस्कृति

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विजयनगर साम्राज्य की संस्कृति।

'विजयनगर साम्राज्य'
1336–1646

ध्वज

राजधानी हम्पी
शासन राजतंत्र
इतिहास
 -  स्थापित 1336
 -  अंत 1646
विजयनगर साम्राज्य - १५वीं सदी में
हम्पी

विजनगर साम्राज्य भारत का एक सबसे बडा धनी एवं सांस्क्रुतिक रुप से वैभवशाली राज्य था ।इसकी ख्याति एवं वैभव मध्यकालीन युग के यूरोपियन यात्री डोमिनो पेस, फरनाओ न्यून्स, ओर निकालो डा कोन्टी ने इसके बारे में , इस राज्य के शक्तिशाली एवं वैभवशाली होने का वर्णन किया है इस साम्राज्य का नाम इसकी राजधानी विजयनगर के नाम पर पडा है जिसके खंडघर आज हम्पी, जो आज के भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित है, में विदयमान हैंजो कि विश्व की एक ऐतिहासिक धरोहर है। इस साम्राज्य के कई स्थानों में आज भी विदयमान है जिन्हें हम्पी समूह कहा जाता है।प्राचीन भारत के मंदिरों का निर्माण की शैली एवं वास्तुकला इसी हम्पी पदधति से पूरे दक्षिण भारत में प्रसिदध हैं।इस शैली से प्रभावित होकर हिंदू मंदिरों का निर्माण इसी वास्तुशैली में किया गया है।इस साम्राज्य के प्रभाव से कन्नड ,तेलगु , तमिल एवं संस्क्रुत एवं ललित कला एवं गायन की आज की प्रभावशाली एवं गौरवशाली ऊचांइयों प्राप्त है ,वह इस साम्राज्य की देन है।विजयनगर राज्य ने दक्षिण भारत में एक नयी प्रभावशाली एवं गौरवपूर्ण दिशा दी जिसने हिंदूवाद को एक नया आयाम दिया है ।

संस्क्रुति[संपादित करें]

सामाजिक जीवन[संपादित करें]

[[|thumb| हम्पी]] विजयनगर राज्य के बारे में अधिकतर लिखित जानकारी उस समय इस राज्य में आने वाले यात्रिओं के द्वारा लिखी है / बताई गई है इसका सबूत है कि अनुसंधान दल ने बहुत सारी बातों को समाहित नहीं पाया है । उस समय हिंदू जाति पदधति को कडाई से पालन किया जाता था तथा स्थानिय समाज में उस जाति के एक प्रधान व्यक्ति को उस जाति का प्रतिनिधित्व दिया जाता था जो कि उस जाति के लिए मान्य होते थे तथा उसमें राजा की सहमति भी होती थी । अस्प्रुश्यता जाति व्यवस्था में उस समय विदयमान थी जिनका प्रतिनिधित्व उनके नेता ( कैवाडाडावारु ) द्वारा किया जाता था । मुस्लिम जाति कर्नाटक के सम्रुद्री किनारों पर अपना एक अलग समूह में थी जो स्वयं अपना प्रतिनिधित्व करती थी । यदयपि इनकी जाति व्यवस्था किसी जाति को हतोत्साहित करने के लिए नहीं थी बल्कि इनके कई लोग सेना एवं अन्य उच्च प्रशासनिक पदों पर भी तैनात थे । इस जाति व्यायस्था के कारण ब्राहण जाति को एक विशेश सम्मान था (वर्मा एवं सरवाजना जाति के साथ ), वे एक विशेश सम्मामनित जाति में शामिल थे।

सती प्रथा उस समय एक आम प्रथा थी यदयपि वह ऍच्छिक थी लेकिन उच्च जातियों में यह आम बात थी। इस प्रथा को सतिकाल (सति स्टोन) भी कहा जाता है जो सत्रियां इसे करती थी उसे देवी के समान माना जाता था तथा उस सती स्थल को सूर्य एवं चन्द्रमा के पत्थर की मूर्ति की तरह पूजा जाता था। उस समय सित्रियां प्रशासन , व्यापार, व्यवसाय एवं ललित कला के क्षेत्र में भी थी। उस समय की तिरूमालाम्बा, जिसने वरदाबिंका की रचना की, परिनायम एवं गंगा देवीह जिसने मधुवारिजयायम की रचना की, विख्यात कवियित्रियों में उनका नाम था। तंजोर में नायक के दरबार में कई विख्यात कवियित्रियां थी। देवदासी प्रथा नहीं थी तथा कई स्थनों में वेस्याव्रुति नहिं थी।

अधिकतर पुरूष अच्छी वेशभूषा में पेन्यन कुलावी परिधान में पघडी बाधकर सोने के आभूशण में सज्जित रहते थे।पुरुष एवं महिलाएं हाथ में अंगूटी,गले में हार,कानों में बलियां पेहनते थे विशेष त्योहारों में पुरुष एवं महिलाएं बालों में गजरा,शारीर मे गुलाब का इत्र,मुश्त एवं कस्तुरी का इत्र भी प्रयोग में लाते थे रानी एवं राजकुमारों की सेवा में रहने वाले नौकर विशिष्ट परिधानों में रोशनी के साथ उनके साथ रेहते थे।

धर्म[संपादित करें]

विरूपाक्ष मंदिर हम्पी

विजयनगर राज्य सभी धर्मो क आदर करता था जैसा कि विदेशी यात्रियों ने अपने संस्मरण में लिखा है।राज्य के संस्थापक हरीहरा १ एवक बुक्का राया १ भगवान शिव की उपासना करते थे परन्तु श्रुगेरी के वैष्णवों के आदेशों से दान भी दिया करते थे।एक चौथाई पुरातत्व विभाग की खुदाई में इस्लामिक क्वाटर प्राप्त हुए हें ना कि शाही क्वाटर।मध्य एशिया से तीमूरी राज्य के प्रतिनिधि भी विजयनगर आए थे।बाद में सालुवा तथा तुलुवा राजा अपने विश्वास के अनुसार वेष्ण्व हो गए लेकिन अपने विश्वास के कारण भागवान विष्णु के पैर विरुपाक्ष की पूजा हम्पी में तथा तिरुपति में भगवान विश्णु की पुजा करते थे।जमंबावती कलयानम नामक एक संस्क्रुत के विद्वान को रक्षा मणि (कर्नाटक राज्य की प्रतीक मणि)भी प्रदान की गई थी।राजा द्वारा साधु संतों का आदर देवता सद्रश किया जाता था।उस समय भक्ति आन्दोलन अपने चरन सीमा पर था और हरिहरा नामक संत उसके अग्रणी थे।राजा उन्हें अपना कुल देवता की तरह मानता था तथा उनके लेखन को बहुत सम्मान प्रदान करता था।आज के आंध्र प्रदेश तिरुपति में अन्नमाचार्य ने कई हजारों कीतर्न की रचना तेलगु भाषा में की है।

भाषा[संपादित करें]

धर्मेश्वर मंदिर हम्पी में तमिल में शिलालेख

साम्राजय में उस समय कन्नड,तेलगु एवं तमिल भाषा का प्रयोग होता था।करीब ३०० ताम्रपत्र आज प्राप्त हुए हैं जिसमें से करीब आधे कन्नड में एव्ं बाकी तेलुगु,तमिल एवं संस्क्रुत भाषा में हैं।साम्राजय द्वारा सोने एवं तांबे के सिक्कों की ढलाई हम्पी,पेन्नुगोंडा तथा नागरी में की जाती थी जो लगभग सोने,चांदी एवं तांबे के होते थे तथा राजा का नाम उस पर खुदा होता था।उन सिक्कों पर भगवान श्री क्रष्ण,वेंकेटेशवर एवं भू देवी एवं श्रीदेवी देवियों के चित्र तथा भगवान विष्णु के वाहनए बैंल एव्ं अन्य चिडियाओं के चित्र भी अंकित हुआ करते थे।उन पर तेलुगु में लिखावट प्राप्त अभिलेख एवं पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के द्वारा प्रमाणित होती है।

साहित्य[संपादित करें]

हम्पी में तांबे की प्लेट पर शिलालेख

विजयानगर साम्राज्य में कवियों,शोधकार्ताओं एवं विचारको तथा दार्शनिकों द्वारा मुख्यत: कन्नड भाषा प्रयोग की जाती थी।इसके अलावा तेलगु एव्ं संक्रुत भाषा का भी प्रयोग किया जाता था।जैसा कि क्षेत्र अनुसार तमिल में प्रबन्ध,संक्रुत,व्याकरण,औषधि एव्ं गणित में भी कन्नड, तेलुगु त्तथा तमिल भाषा का प्रयोग आम था।राज्य में प्रशासनिक एव्ं न्यायालय की भाषा कन्नड एवं तेलुगु थी।विजयानगर साम्राज्य के आखिरी दिनों में तेलुगु भाषा मुख्यत:साहित्य में एक आम भाषा का स्थान ले चुकी थी।तेलुगु भाषा उस समय अपने चरम बिंदु पर पहुची थी। संतो के अलावा राज्य के कुछ पारिवारिक सदस्यों के द्वारा जम्बावती इत्यादि नामक रचनाएं की गई एवं मदुरा विजयायम को राजकुमारी गंगादेवी ने रचित किया था।जिसे मदुरई राज्य के विजयानगरम राज्य द्वारा अधिग्रहण करते समय लिखा गाया था ऐसा माना जाता है। उस समय तेलुगु भाषा की चरम सीमा पर थी तथा मनुचरित्रमु की प्रबंधा स्टाइल में रचना की गई है।राजा क्रष्णनामदेवा ने तेलुगु स्कालर के तौर पर अमुककमालयादा की रचना की।यदयपि तमिल में कई रचनाएं प्राप्त हुई है जो कि पांडयन राज्य क्षेत्र से संबंधित थी जो तमिल भाषा को आगे बढाने में सहायक थी,कुछ रचनाओं में विजयानगर साम्राज्य की बढाई एवं प्रशंसा भी की गई है।

विचारणीय धर्म निरपेक्ष लेखन एवं संगीत की रचना विदयाराना संगीता, पोदा राया राटहरत्नाप्रभादीकाए सायना आयूर्वेदा एवं लक्षमा पंडिता कुछ महान रचनाएं उस समय की गई थी। माधव (१३४०-१४२५) के करीब केरल के महान खगोलविद एवं गणित ने इस राज्य में टेवनामिटरी एवं कलकुलस की रचना की तथा इस पर कई शोध भी प्रकाशित किए तथा ग्रहों की स्थिति के बारे में नीलकंट सोमाजी (१४४४-१५४५) ने बहुत कार्य किया।

वास्तुशिल्प[संपादित करें]

हम्पी के मंदिर में पत्थर रथ

जिविजयानगरम राज्य के समय चालुक्य, होयासाल, पांडया एवं चोल स्टाइल में कई कला क्रुतियों का निर्माण किया गया। उस समय कला साहित्य संगित आदि अपने चरम सीमा पर थी जो राज्य की समाप्ति के कई वर्शा पश्चात भी बनी रही। इस स्टाइल में शादी मंडप, रायगोपुरा जो बिना किसी पिलर के थे, निर्माण किए गए। वहां उपलब्ध गनाईट का ही वास्तु शिल्प में प्रयोग किया जाता था जो पूरे दक्षिण भारत के फैल गया। आश्चर्य नहीं है कि इस वास्तु शिल्प के कारण विगजयानजगर राज्य यूनेस्कों द्वारा विश्व की एक ऐतिहासिक स्थल माना जाता है। [[|thumb| विरूपाक्ष मंदिर के पत्थर रथ हम्पी ]]

विजयानगर राज्य अपनी दीवारों पर तैल चित्रों के कारण भी प्रसिद्ध था। दशावतार एवं पार्वती विवाह प्रसंग के तैल चित्र इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं विरूपाक्ष का हम्पी में मंदिर शिवपुराण की कहानियां विरभद्र मंदिर में तथा कामाक्षी एवं वरदराज मंदिर में जो तैल चित्र हैं, वे इस बात के साक्ष्य है कि विजयनगर राज्य तक नहीं था बल्कि पूरे द्क्षिण भारत में फैल गया तथा उसी तर्ज पर कई अन्य कलाक्रुतियों का निर्माण किया गया है। इन कलाक्रुतियों में इस्लामिक प्रभाव की भी छाप दिखाई देती है। इसमें कई मिनारे, मकबरे जैसे खंबे इसको दर्शाते हैं। मध्य एशिया के तुर्क के लिए महानवमी डिब्बा के अंक विदयमान है जो यह बताते हैं कि उस समय मध्य एशिया के तुर्क भी इस साम्राज्य में कार्यरत थे।

विजयनगर अवधि वीरभद्र मंदिर, लेपाक्षी की नक्काशी


संदर्भ[संपादित करें]

[1] [2] [3] [4] [5]

  1. https://en.wikipedia.org/wiki/Vijayanagara_Empire#Culture
  2. http://www.historyfiles.co.uk/KingListsFarEast/IndiaVijayanagar.htm
  3. http://aygrt.isrj.org/colorArticles/3807.pdf
  4. http://myupscprelims.blogspot.com/2016/06/the-vijayanagara-empire-and-its-socio.html
  5. http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/37819/11/11_chapter%205.pdf