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श्रावण

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(श्रावण मास से अनुप्रेषित)
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श्रावण हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह से प्रारंभ होने वाले वर्ष का पाँचवा मास है। भारत में इस माह में वर्षा ऋतु होती है और प्रायः बहुत अधिक गर्मी होती है। श्रावण मास, जिसे सावन का महीना भी कहा जाता है, भगवान शिव की पूजा करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए मनाया जाता है। सावन माह के दौरान सोमवार का दिन शुभ होता है और ऐसा माना जाता है कि यदि भक्त समर्पण के साथ भगवान शिव की पूजा करे तो भगवान शिव उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।[1]

श्रावण मास शिवजी को विशेष प्रिय है। भोलेनाथ ने स्वयं कहा है—

द्वादशस्वपि मासेषु श्रावणो मेऽतिवल्लभः ।
श्रवणार्हं यन्माहात्म्यं तेनासौ श्रवणो मत: ॥
श्रवणर्क्षं पौर्णमास्यां ततोऽपि श्रावण: स्मृतः।
यस्य श्रवणमात्रेण सिद्धिद: श्रावणोऽप्यतः ॥[2]

अर्थात मासों में श्रावण मुझे अत्यंत प्रिय है। इसका माहात्म्य सुनने योग्य है अतः इसे श्रावण कहा जाता है। इस मास में श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होती है इस कारण भी इसे श्रावण कहा जाता है। इसके माहात्म्य के श्रवण मात्र से यह सिद्धि प्रदान करने वाला है, इसलिए भी यह श्रावण संज्ञा वाला है।[3]

पर्व, त्यौहार एवं व्रत

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  • श्रावण कृष्ण(पक्ष) प्रतिपदा : पार्थिव शिव पूजन प्रारंभ
  • श्रावण कृष्ण(पक्ष) पञ्चमी : मौना पञ्चमी
  • श्रावण कृष्ण(पक्ष) एकादशी : कामदा एकादशी व्रत
  • श्रावण कृष्ण(पक्ष) त्रयोदशी : प्रदोष व्रत
  • श्रावण कृष्ण(पक्ष) अमावस्या : हरियाली अमावस्या/हरेली पर्व
  • श्रावण शुक्ल(पक्ष) तृतीया : हरियाली/मधुश्रावणी तीज
  • श्रावण शुक्ल(पक्ष) पञ्चमी : नाग पञ्चमी
  • श्रावण शुक्ल(पक्ष) एकादशी : पुत्रदा एकादशी व्रत
  • श्रावण शुल्क(पक्ष) पूर्णिमा: रक्षाबन्धन

पौराणिक कथा

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भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, सावन के इतिहास का पता समुद्र मंथन से लगाया जा सकता है जब देवता और असुर अमृत या अमरता के अमृत की तलाश में एक साथ समुद्र मंथन के लिए आए थे। समुद्र मंथन के दौरान आभूषण, पशु, देवी लक्ष्मी और धन्वंतरि सहित कई चीजें उत्पन्न हुईं। हालाँकि, जब हलाहल, एक घातक जहर सामने आया, तो इससे अराजकता फैल गई। जो भी इसके संपर्क में आया उसका विनाश होने लगा। इसके चलते भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु ने भगवान शिव से मदद मांगी। उन्होंने भगवान शिव से, जो इस शक्तिशाली जहर को सहन कर सकते थे, इसका सेवन करने का अनुरोध किया। जब शिव ने जहर पिया तो उनका कंठ और शरीर नीला पड़ गया। भगवान के पूरे शरीर में जहर फैलने से चिंतित देवी पार्वती ने उनके गले में प्रवेश किया और जहर को आगे फैलने से रोक दिया। इस प्रकार भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाने लगा।[4]ये घटनाएँ सावन के महीने में हुईं। इसलिए इस पूरे महीने सोमवार के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। हिंदू सावन महीने को शुभ मानते हैं क्योंकि इस दौरान कई महत्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं।

पूजा विधि

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ऐसी मान्यता है भोलेनाथ की पूजा और व्रत करने से वैवाहिक जीवन सुखमय होता है, वहीं अविवाहित लड़कियों को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है | शिव-पार्वती प्रतिमा की फूल, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, दही, पंच रस, इत्र, गंध रोली, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, पंच फल, पंच मेवा, मंदार पुष्प, कच्चा दूध, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शुद्ध देशी घी, मौली जनेऊ, पंच मिठाई, शहद, गंगाजल, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार सामग्री से पूजन करनी चाहिए |

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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सन्दर्भ

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  1. Kendra, Jyotish Ratan (2024-07-12). "Sawan 2024 कब शुरू होगा, जानें सावन में कैसे करें शिव जी को प्रसन्न". Jyotish Ratan Kendra (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-07-17. नामालूम प्राचल |dead-url= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  2. "श्रावण मास". मूल से 14 सितंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जून 2020.
  3. "शुभ और विशेष संयोग के साथ शिव उपासना का सबसे उतम महीना सावन 22 जुलाई से हो रहा शुरू". प्रभात खबर. अभिगमन तिथि २१ जुलाई २०२४.
  4. "Sawan 2024: Shravan start and end date; know Sawan Somwar calendar, history, significance, shubh muhurat, puja vidhi".