सामग्री पर जाएँ

मोरी राजपूत

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
मोरी राजपूत

मोरीय क्षत्रिय राजवंश
ल. 5वी शताब्दी–ल. 7ठी शताब्दी
धवल मोरी (संस्कृत - मौर्य) का साम्राज्य अपने शीर्ष शिखर पर । इस साम्राज्य के संस्थापक चित्रांगद थे ।
धवल मोरी (संस्कृत - मौर्य) का साम्राज्य अपने शीर्ष शिखर पर । इस साम्राज्य के संस्थापक चित्रांगद थे ।
राजधानीचित्तौड़गढ़
( पूर्व नाम चित्रकोट था , राजा चित्रांग मौर्य के नाम पर )
प्रचलित भाषाएँपाली
मागधी प्राकृत
राजस्थानी
धर्म
हिन्दू धर्म , जैन धर्म
सरकारचाणक्य के अर्थशास्त्र और राजमण्डल
में वर्णित राजतंत्र[1]
शासन काल और सम्राट  
• 550-590 ई.
सम्राट चित्रांग मौर्य
• 590–610 ई.
  • -अज्ञात
सम्राट वराहगुप्त मोरीय
• 644–670 ई.
सम्राट धवल मोरी
• 670 ई.
महाराज महारत मोरी
• 
राजा महेश्वर मोरी
• 
राजा भीम मोरी
• 
राजा भोज मोरी
• 770 ई.
राजा मान मोरी
ऐतिहासिक युगराजपूत काल
ल. 5वी शताब्दी
• बप्पा रावल द्वारा राजा मान मोरी की हत्या
ल. 7ठी शताब्दी
क्षेत्रफल
• कुल
346,000 कि॰मी2 (134,000 वर्ग मील)
जनसंख्या
• अनुमानित [2]
40,00,000
मुद्रापण
अब जिस देश का हिस्सा हैभारत

मोरी प्राचीन मौर्यवंशी सम्राट सम्प्रति से निकली हुई शाखा है[5] जिसने प्राचीन काल में चित्तौड़ किले को नियंत्रित किया था।[6] प्रतिहारों के उदय से पहले इस क्षेत्र में मोरी राजपूत शायद सबसे शक्तिशाली शक्ति थे।परमार को मोरी का एक उप वंश माना जाता है। [7] [8] 13 वी सदी में मेरुतुंग ने स्थिरावली की रचना की थी[9] जिसमे उज्जैन के सम्राट गंधर्वसेन को जो विक्रमादित्य परमार के पिता थे उन्हें मौर्य सम्राट सम्प्रति का पौत्र लिखा था।[10]

एक मोरी शासक चित्रांगद मोरी ने चित्तौड़गढ़ के किले की नींव रखी। [11] चित्तौड़ के एक मोरी शासक ने तुर्क आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ाई में चाहमना राजा विसल्देव की सहायता करने के लिए जाना है, शायद सुल्तान खुसरो शाह या गजना के बहराम शाह के नेतृत्व में। मोरी ने एम्बर के कछवाहा के साथ भी गठबंधन किया। चित्तौड़ के एक मोरी राजा महलोत का उल्लेख चचनामा में राय राजवंश के रिश्तेदार के रूप में किया गया है[12]

चित्तोड़ का क़िला मौर्य राजा चित्रांग (चित्रांगद) का बनवाया हुआ है ऐसा प्रसिद्ध है जो राजप्रस्ति अभिलेख और जैन ग्रंथों में भी लिखा मिलता है ।

तत्र चित्राङ्गदश्चक्रे दुर्ग चित्रनगोपरि ।। १० ।। नगरं चित्रकूटाख्यं देवेनतदधिष्ठितम् ।। ११ ।।

चित्तोड़ पर का एक तालाव चित्रांग ( चित्रांगद ) मोरी का बनवाया हुआ है और उसको 'चत्रंग' कहते हैं। मेवाड़ के राजा समरसिंह के समय के वि० सं० १३४४ ( ई० स० १२८७) के चित्तोड़ के शिलालेख में 'चित्रंग तड़ाग' नाम से उसका उल्लेख हुआ है। चित्तोड़गढ़ से कुछ दूर मानसरोवर नामक तालाव पर राजा मान का है, एक शिलालेख वि० सं० ७७० ( ई० ८० ७१३) का कर्नल टॉड को मिला, जिसमें माहेश्वर, भीम, भोज और मान ये चार मौर्य राजाओं के नाम क्रमशः दिये हैं। राजा मान वि० सं० ७७० ( ई० स० ७१३) में विद्यमान था और उसी ने वह तालाघ बनवाया था। राजपूताने में ऐसी प्रसिद्धि है कि मेवाड़ के गुहिलवंशी राजा बप्पा ( कालभोज ) ने मान मोरी से चित्तोड़गढ़ लिया था ।

गुहिला वंश से पहले मोरीयो ने चित्तौड़ किले और आसपास के क्षेत्र को नियंत्रित किया था । चित्तौड़ का किला 8वीं शताब्दी में मोरी के अधीन एक सुस्थापित गढ़ था। [13] [14] 713 ई. का चित्तौड़गढ़ शिलालेख चित्तौड़ के मोरी राजपूत शासकों के चार नाम देता है। [15]। मोरी शासक मालवा के शासक थे। [16] [17]

हेमचंद्र रायचौधरी द्वारा निर्मित मौर्य वंशावली, आखिरी में धवल मोरी का नाम[18]

लखनऊ विश्वविद्यालय के श्याम मनोहर मिश्रा ने सिद्धांत दिया कि बप्पा रावल मूल रूप से अंतिम मोरी शासक मनुराजा उर्फ मान सिंह मोरी के जागीरदार थे। मनुराज की पहचान मन से की जाती है, जिसका उल्लेख 713 ईस्वी के चित्तौड़गढ़ मान-सरोवर शिलालेख में मिलता है। मान को भोज के पुत्र के रूप में वर्णित किया गया था। [19] मान के परदादा का नाम महेश्वर था। [20]।।।

बप्पा ने अरबों के खिलाफ मौर्यो के अभियान का नेतृत्व किया, जिसने उन्हें एक प्रसिद्ध नाम बना दिया। बाद में, उनको माममोरी अर्थात् मनुराज मौर्य द्वारा पदच्युत कर दिया और अन्य रईसों की मदद से चित्तौड़ का राजा बन गया [21] या मनुराज के निःसंतान होने के बाद राजा बन गए। [22] बप्पा रावल द्वारा मोरियो को चित्तौड़गढ़ से निष्कासित कर दिया गया था। [23] [24]।।।

मानमोरी का संस्कृत मे लिखा अभिलेख चित्तौड़ के पास मानसरोवर झील के तट से कर्नल टॉड को मिला था।[25] [26]जिसका हिन्दी अनुवाद निम्न प्रकार है -

-मानमोरी अभिलेख (हिन्दी अनुवाद )

[संपादित करें]

जलेश्वर के स्वामी की कृपा से तुम्हारा सुरक्षा हो! समुंदर के समान कौन है? जिसके किनारों पर मधु पैदा करने वाले पेड़ों के लाल बुद्धिमान मधुमक्ख द्वारा छुपा जाता है, जिसकी सुंदरता बहुत सी धाराओं के मिलने से बढ़ती है। समुंदर की तरह क्या है, जिसने मजबूर होकर यात्रा की यात्रा के रूप में मद, धन और अमृत को दान में दिया? ऐसा ही समुंदर है! - वह तुम्हें सुरक्षित रखे।

एक महाशक्ति दान का यह स्मारक है। इस झील ने दर्शकों के मनोबल को बंदी बना दिया, जिसके पार विविध प्रकार के पंखों वाले पक्षियों ने आनंद से तैरा और जिसके किनारों पर हर प्रकार के पेड़ बिछे हुए हैं। ऊंची शिखर वाले पहाड़ से गिरकर जगह की सुंदरता को बढ़ाता है, तटकों के साथ बाढ़ की ओर बहता है। मानो महाशंकु समुंदर को छलने के बाद थक कर इस झील पर आराम के लिए पहुँच गया।

इस पृथ्वी पर जब महाराज महेश्वर थे, वह एक महान राजा थे , जिनके शासन के दौरान उनके दुश्मन का नाम कभी नहीं सुना गया; जिनकी ख्याति आठ दिशाओं मे थी ; जिनका बाजू युद्ध जीत के लिए था। वह भूमि का प्रकाश थे।उनके वंश की प्रशंसा ब्रह्मा के खुद के मुँह से निर्धारित हुई थी।

महाराज भीम ऐसे थे की उनका स्वरूप गौरव से भरपूर था, जो अपने पाले बतखों को अपने हाथों से खिलाते थे , जिनके मुख पर हमेशा तेज रहता था ,वे महाराज भीम थे, युद्ध के समुंदर में कुशल तैराक, जहाँ गंगा अपनी बहाव डालती है, वहाँ तक वे जाते थे युद्ध के लिए। जिनका निवास अवंति है। चाँद के समान चमकदार चेहरों वाले, जिनके होंठों पर उनके दांतों के निशान थे, उन्होने अपने दुश्मनों की पत्नियों को अपनी पटरानियाँ बनाई , वे सब भीम महाराज के दिल में बसी रहती थी । उन्होंने अपने दुश्मनों के भय को दूर किया; इसके लिए उन्होने उन्हें पूर्णरूप से मिटा दिया जिसे वे अपनी भूलों के रूप में मानते थे। वे ऐसे लगते थे जैसे आग से बनाए गए हों। वे समुंदर के स्वामी को भी शिक्षा देने में सक्षम थे।

उनसे राजा भोज का जन्म हुआ। वह कैसे वर्णन किया जा सकता है, वही जिसने युद्ध के मैदान में अपनी तलवार से हाथी के सिर को विभाजित किया, उस हाथी के दिमाग से एक मोती निकला, जिसका अब उनके हृदय पर आभूषण बन गया है : जो राहू के समान अपने दुश्मनों को खा जाते है,जो अंतरिक्ष के सूर्य और चंद्रमा के रूप के जैसे तेजवान है ।

उसके बेटे का नाम मान था, जो गुणों से भरपूर और भाग्यवान है । एक दिन वह एक बूढ़े आदमी से मिले उसका रूप देखने पर उन्हे यह विचार करने पर मजबूर किया कि इसकी शरीर छाया की तरह अल्पकालिक है, जिसका आत्मा सुगंधित कदम के बीज की तरह है; जो राज्य की धन की भंडार स्वाभाविक हैं, जैसे एक घास की कटार, और व्यक्ति दिन के प्रकाश में प्रकट किए जाने वाले दीपक की तरह होता है। ऐसे विचार करते हुए उन्होने अपने पूर्वजों के लिए और अच्छे कर्म करने के लिए सोचा तब उन्होंने इस झील को बनाया, जिसके पानी विशाल भूमि पर हैं और गहराई अपरिमित है। जब मैं इस समुंदर-सा झील को देखता हूँ, तो मैं खुद से पूछता हूँ, क्या यही वह है जो आख़िरकार प्रलय का कारण बनेगा।

राजा मान के योद्धा और मुखिया कौशलयुक्त और वीर हैं - उनके जीवन में शुद्धता है और वफादारी है। राजा मान गुणों का ढेर है - जो उसके पक्ष के मुख्य उपहारों को प्राप्त कर सकता है। जब सिर को उनके कमल चरण पर झुकाया जाता है, तब जो रेत की दानिया वहाँ चिपकता है वह आभूषण की तरह है , यह झील चारों ओर पेड़ों से छाया गया ,वो सब पेड़ पक्षियों से मढ़ित रहते है , जिसे भाग्यवान श्रीमान राजा मान ने बड़ी मेहनत से बनवाया है । इसके स्वामी के नाम "मान" से ही इस सरोवर की दुनिया में पहचान है।

राजा धवल मोरी एक मौर्यवंशी राजा थे जिनके विषय में जानकारी कोटा के कंसवा शिलालेख और दबोक, मेवाड़ शिलालेख से मिलती है ।[27]कंसवा शिलालेख में एक प्राचीन शिव मंदिर तीर्थस्थल उल्लेखित करने के साथ ही लिखा हुआ है कि यह कण्व ऋषि का प्राचीन आश्रम है जहाँ शकुंतला का पालन पोषण हुआ था। यह माना जाता है कि इस स्थान की धार्मिक महत्ता को समझकर चित्तौड़गढ़ के राजा धवल मौर्य के सामंत शिवगण ने विक्रमी संवत 795 में यहाँ इस मंदिर का निर्माण कराया था। [28]शिवगण एक ब्राह्मण था और उसने यहाँ भव्य शिवमंदिर का निर्माण करवा कर वैदिक कालीन महर्षि कण्व के आश्रम को अमरत्व प्रदान किया। इस मंदिर का समय समय पर कोटा के हाड़ा वंशीय शासकों ने भी जीर्णोद्धार कराया था।[29]

धवल मोरी के परदादा चित्रांगद मौर्य द्वारा बनवाया गया चित्तौड़गढ़ किला

(कंसवा शिलालेख[30]):

धवलमोरी का कंसवा शिलालेख

[संपादित करें]

५ भूभृतां इ दूर-अभ्यगत-वाहिनी-परिकरो रत्न-प्रकार्-[ज*]ज्वलः श्रीमान्। इत्थम्-अदार-सागर-समो मौर्य-अन्वयो दृश्यते ॥ दिज्ञागा इव जात्य-सम्भृत-मुदो दान-०[ज*]ज्वलैर्-आननैर्->विस्र(श्र)म्भेन रमन्त्य्-अभीत-मनसो मान्-उद्धुरास्-सर्वतः। सद्वंशत्व-वस-प्रसिद्ध-यससो यस्मिन् प्रसिद्ध गुणैः श्लाघ्या भद्रतया॥

६ छ सत्त्व-बहुल-ब पक्षैस्-ससम् (मम्) भूभृतः इत्थम् भवत्सु भुपेषु भुम्जत्सु सकलां महीम् धवल-आत्मा नृपस्-तत्त्र यससा धवलो-भवत् ॥ कय्-आदि-प्रकत्-आर्जितैर्-अहर्-अह[ब*] स्वैर्-एव दोषैः सदा निर्व्वस्त्रा[*] सतत-क्षुध[ह*] प्रति-दिनम् स्पष्टीभवय् (द)-यातनाः। रात्रि-सरिचरना भृसं पर-गृहेष्व्=इत्थम् विजित्य=आरयोः येन् आद्य== आपि नरेन्द्र-

Translation (in English):

(Line 5). The rulers (born) in this Mauryan race , like the elephants of the quarters, filling the noble with joy by (their) faces bright with generosity (as with rutting-juice) together with their adherents confidently take delight everywhere, undaunted of mind (and) exulting in (their) pride, of known renown on account of (their) good lineage (and) known for (their) virtues, praiseworthy for probity and full of energy.

(Line 6). Among these kings, who were such (and) who ruled the whole earth, there was a prince who, Dhavala as he was, was dazzling by (his) fame. For their own sins, which day by day they always openly brought on themselves by their bodies and so forth, he defeated (his) enemies and reduced the wretches to such a state that, like evil spirits, naked (and) ever famishing (and thus) day by day revealing the punishment (meted out to them, and) again and again wandering at night to strangers' houses, they even now are kings.

अरब आक्रमण

[संपादित करें]

नवसारी के एक चालुक्यों संबंधी शिलालेख से है पता लगता है कि अरबों ने शुरवाती आक्रमण मौर्यों पर किया था।[31][32]चालुक्यों के नवसारी शिलालेख के अनुसार अरबों ने मौर्यों पर हमला किया था। चित्तौड़ में मिले शिलालेख संवत 770 अर्थात् राजा मान सन् 713 ई० में राज्य करता था।[33] जब अरबों ने ७२५ के आसपास उत्तर-पश्चिमी भारत पर आक्रमण किया था। [34] तब अरबों ने मोरीयो को हराया जिस युद्व में मौर्यो के साथ बप्पा रावल सेनापति के रूप में शामिल थे। [35] [36]

चित्तौड़ के एक मोरी शासक ने चौहान राजपूत विग्रहराज की सहायता सुल्तान खुसरु मलिक तुर्क आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ाई में, मोरियों ने कछवाहा राजपूतों के साथ गठबंधन भी किया।[37]

मोरी वंश के आख़िरी राजा मान सिंह मोरी थे जिन्होंने अरब आक्रमण के ख़िलाफ लड़ा। क़ासिम मथुरा के माध्यम से चित्तौड़ पर हमला किया था। तब गुहिल वंश के बप्पा रावल मान मोरी के सेनापति थे । [38]क़ासिम को हराने के बाद, बप्पा रावल ने 734 ई में मान सिंह मोरी से चित्तौड़ को दहेज में प्राप्त किया। [39]परंतु कई जैन व राजस्थानी लोक साहित्य के अनुसार उन्होने भीलों की सहता से मान मोरी का मार्कर चित्तौड़ का सिंहासन हड़प लिया था । इसके बाद से चित्तौड़ का शासन गुहिल सीसोदिया राजपूतों के द्वारा शासित किया गया। बाद में मोरी और परमार राजपूतों ने मिलकर मालवा पर शासन किया, लेकिन मुस्लिम आक्रमणों के बाद, वे मध्य भारत में छोटे राज्यों और जगीरदारों के रूप में बने रहे।[40] आजकल वे मध्य प्रदेश के वर्तमान राज्यों में धार, उज्जैन, इंदौर, भोपाल, नरसिंहपुर और राइसेन में बसे हुए हैं। चित्तौड़ राज्य का अन्त होने पर मौर्यों का एक दल खोबे राव मौर्य के नेतृत्व में वहां से चलकर हस्तिनापुर पहुंचा। वहां से गंगा नदी पार करके भारशिव शासक से विजयनगर गढ़ पर युद्ध किया। चार दिन के घोर युद्ध के बाद वहां के भारशिवों को जीत लिया।पास के संबंधी मौर्य राजवंशी रायों का सिन्ध राज्य को चच्च ब्राह्मण ने अपने स्वामी राजा को विश्वासघात करके मार दिया और उनके राज्यों पर अधिकार कर लिया। परन्तु पण्डित रामदेव भट्ट ने अपने स्वामी मौर्य राजा के राज्य को वापिस दिलाकर स्वामीभक्ति का एक आदर्श उदाहरण भी प्रस्तुत किया। एक शाखा उड़ीसा चली गयी। वहां के राजा धरणीवराह के वंशज रंक उदावाराह के प्राचीन लेख में उन्होंने सातवी सदी में चित्तौड या चित्रकूट से आना लिखा है।[41]

अरबों द्वारा बार-बार आक्रमण के कारण हाडौती, 690 ई., मेवाड़ 753 ई. और बाड़मेर 837 ई. में इन क्षेत्र के मोरिय राजपूत्र का शासन खत्म हो गया। अधिकांश मौर्य परमार पहचान में समाहित हो गए हैं, कुछ मध्य प्रदेश, और सौराष्ट्र मैं पाए जाते हैं। 1783 में कई अन्य मोरिय या मोरी राजपूत धरमपुर, वलसाड जिले में चले गए, जहाँ उन्हें धरमपुर के गुहिलोट शासक द्वारा 66 गाँवों की सूबेदारियाँ दी गईं। इन्हें नारोली, सिलवासा और गुजरात में भी वितरित पाया जाता है।

राजा जसवन्त सिंह के राज्यकाल में मारवाड़ के दीवान मुहणोंत नैणसी ने भी "मोरी दल मारेव राज रायांकुर लीधौ" अपनी ख्यात में लिखकर इसी सत्यता को पुष्ट किया है।

यह भी देखें

[संपादित करें]
  1. Avari, Burjor (2007). India, the Ancient Past: A History of the Indian Sub-continent from C. 7000 BC to AD 1200 Archived 2020-05-11 at the वेबैक मशीन Taylor & Francis. ISBN 0415356156. pp. 188-189.
  2. Thanjan, Davis K. (2011). Pebbles (अंग्रेज़ी में). Bookstand Publishing. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781589098176.
  3. Taagepera, Rein (1979). "Size and Duration of Empires: Growth-Decline Curves, 600 B.C. to 600 A.D.". Social Science History. 3 (3/4): 132. JSTOR 1170959. डीओआइ:10.2307/1170959.
  4. Turchin, Peter; Adams, Jonathan M.; Hall, Thomas D (दिसंबर 2006). "East-West Orientation of Historical Empires". Journal of World-Systems Research. 12 (2): 223. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 1076-156X. मूल से 20 मई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 सितम्बर 2016.
  5. Vidyalankar, Satyaketu (1977). ब्राटियैया इतिहास का पूर्व-मध्य युग. श्री सरस्वती सन.
  6. Ulian, Eva (2010-03-23). Rajput (अंग्रेज़ी में). WestBow Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-4497-0061-4.
  7. Shukla, Dinesh Chandra (1978). Early History of Rajasthan (अंग्रेज़ी में). Delhi: Bharatiya Vidya Prakashan. पपृ॰ 185–186. In the seventh century or in the beginning of the eighth century, the Mauryas, evidently the same as the Mori Rajputs, had a strong prinicipality in S.E. Rajasthanसीएस1 रखरखाव: तिथि और वर्ष (link)
  8. Sharma, Dasharatha (1966). Rajasthan Through the Ages: From the earliest times to 1316 A.D (अंग्रेज़ी में). Rajasthan State Archives. पपृ॰ 226–228.सीएस1 रखरखाव: तिथि और वर्ष (link)
  9. Jain, Lokesh (2020-01-23). "राजस्थान साहित्य के महत्वपूर्ण प्रश्न 15". Govtfever (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-08-13.
  10. Asiatic Society (Calcutta, India), Asiatic Society (Calcutta, India) (1834). Journal Vol. III. Asiatic Society. पृ॰ 343.
  11. Singh Chib, Sukhdev (1979). Rajasthan. The University of Michigan. पृ॰ 118.
  12. Dahiya, Bhim Singh (1980). Jats, the Ancient Rulers A Clan Study. Sterling. पृ॰ 144.
  13. Bakker, Hans (2015-06-29). The World of the Skandapurāṇa (अंग्रेज़ी में). BRILL. पृ॰ 129. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-90-04-27714-4.
  14. India Tourism Development Corporation, India Tourism Development Corporation (1975). Guide to Rajasthan. India Tourism Development Corporation. पृ॰ 169.
  15. Rajasthan State Gazetteer, Rajasthan State Gazetteer (1995). Rajasthan State Gazetteer: History and culture. Directorate, District Gazetteers, Government of Rajasthan. पृ॰ 322.
  16. Rajputana (Agency), Rajputana (Agency) (1880). The Rajputana Gazetteer Volume 3. Harvard University. पृ॰ 16.
  17. Bakker, Hans (2015-06-29). The World of the Skandapurāṇa (अंग्रेज़ी में). BRILL. पृ॰ 129. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-90-04-27714-4.
  18. Hemchandra Raychaudhari. प्राचीन भारत का इतिहास. पृ॰ 323.
  19. Calcutta Sanskrit College Research Series, Calcutta Sanskrit College Research Series (1965). Calcutta Sanskrit College Research Series. The University of California. पृ॰ 52.
  20. Singh, R.B (1975). Origin of the Rajputs. Sahitya Sansar Prakashan. पृ॰ 40.
  21. Rajputana (Agency), Rajputana (Agency) (1880). The Rajputana Gazetteer Volume 3. Harvard University. पृ॰ 16.
  22. Shyam Manohar Mishra 1977, पृ॰ 48.
  23. Topsfield, Andrew (2001). Court Painting at Udaipur Art Under the Patronage of the Maharanas of Mewar. Artibus Asiae Publishers. पृ॰ 17. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9783907077030.
  24. Calcutta Sanskrit College Research Series, Calcutta Sanskrit College Research Series (1965). Calcutta Sanskrit College Research Series. The University of California. पृ॰ 52.
  25. "मानमोरी अभिलेख - भारतकोश, ज्ञान का हिन्दी महासागर". bharatdiscovery.org. अभिगमन तिथि 2023-10-06.
  26. Harish (2021-03-03). "राजस्थान के प्रमुख शिलालेख". StudyPillar (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-10-06.
  27. link, Get; Facebook; Twitter; Pinterest; Email; Apps, Other (2012-06-11). "कोटा के कंसुआ का प्राचीन शिव मंदिर है भरत की स्थली और कण्व ऋषि का आश्रम" (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-08-13.
  28. "आइये जाने Kota में चंबल नदी के तट पर स्थित Kansua Temple के इतिहास के बारे में". aapkarajasthan.com. 2022-01-01. अभिगमन तिथि 2023-08-13.
  29. "KANSWA TEMPLE | ARCHAEOLOGICAL SURVEY OF INDIA JAIPUR CIRCLE". asijaipurcircle.nic.in. अभिगमन तिथि 2023-08-13.
  30. Thakurdas (1914). Shri Bharat Varsiya Digamber Jain Directory.
  31. Vats, Parveen (2018-08-19). RPSC RAJASTHAN EVAM BHARAT KA ITIHAS: Bestseller Book by Parveen Vats: RPSC RAJASTHAN EVAM BHARAT KA ITIHAS. Prabhat Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5322-490-5.
  32. Admin (2022-09-30). "राजस्थान के इतिहास के प्रमुख स्त्रोत". Raj Gyan Education (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-08-13.
  33. "चालुक्य घराणे". मराठी विश्वकोश प्रथमावृत्ती (मराठी में). 2019-07-04. अभिगमन तिथि 2023-08-17.
  34. R. C. Majumdar 1977, पृ॰ 298-299.
  35. Ram Vallabh Somani 1976, पृ॰ 45.
  36. Khalid Yahya Blankinship 1994, पृ॰ 188.
  37. Tod, James (1873). Annals and Antiquities of Rajast'han, Or, The Central and Western Rajpoot States of India Part 36, Volume 1. Higginbotham and Company. पपृ॰ 180–189.
  38. "चित्रांगद मौर्य कौन थे? Great Chitrangada Maurya का इतिहास और चित्तौड़गढ़ दुर्ग निर्माण की कहानी। - History in Hindi" (अंग्रेज़ी में). 2021-05-30. मूल से 15 अक्तूबर 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2023-10-06.
  39. www.gotra.co https://www.gotra.co/history. अभिगमन तिथि 2023-10-06. गायब अथवा खाली |title= (मदद)
  40. "राजा मान मोरी Raja Maan Mori- जिन्हें बप्पा रावल ने धोखे से मारा? - History in Hindi" (अंग्रेज़ी में). 2021-05-29. मूल से 25 जुलाई 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2023-10-06.
  41. Mahaamahopaadhyaay Raay Bahaadur (1937). Raajapuutaane Kaa Itihaas Jilda Pahalii.

ग्रन्थसूची

[संपादित करें]