मागधी
मागधी उस प्राकृत भाषा का नाम है जो प्राचीन काल में मगध (दक्षिण बिहार) प्रदेश में प्रचलित थी। इस भाषा के उल्लेख महावीर और बुद्ध के काल से मिलते हैं। जैन आगमों के अनुसार तीर्थकर महावीर का उपदेश इसी भाषा अथवा उसी के रूपांतर अर्धमागधी प्राकृत में होता था। पालि त्रिपिटक में भी भगवान बुद्ध के उपदेशों की भाषा को मागधी कहा गया है।
विशेषताएँ
[संपादित करें]प्राकृत व्याकरणों के अनुसार मागधी प्राकृत के तीन विशेष लक्षण थे--
- (१) र के स्थान पर ल का उच्चारण, जैसे राजा > लाजा ;
- (२) स श ष इन तीनों के स्थान पर श का उच्चारण, जैसे परुष > पुलिश, दासी > दाशी, यासि > याशि ;
- (३) अकारांत शब्दों के कर्ताकारक एकवचन की विभक्ति 'ए', जैसे नर > नले।
- नाटकीय भाषा के उदाहरण ; कधं अपावे चालुदत्ते वावादीअदि । हगे णिअलेण शामिणा बंधिदे । भोदु आक्कंडामी । शुणध ,अय्या ,शुणध । अस्ति दाणिं मए पावेण पवहण – पडिवत्तेण पुप्फ –कलंडय– यिण्णुय्याणं वशंतशेणा णीदा ।।
सम्राट अशोक की पूर्वय प्रदेशवर्ती कालसी और जौगढ़ की धर्मलिपियों में पूर्वोक्त तीन लक्षणों में से प्रथम और तृतीय ये दो लक्षण प्रचुरता से पाए जाते हैं, किंतु दूसरा नहीं। जैनागमों में तीसरी प्रवृत्ति बहुलता से पाई जाती है, तथा प्रथम प्रवृति अल्प मात्रा में; दूसरी प्रवृत्ति यहाँ भी नहीं है। इसी कारण विद्वान अशोक की पूर्व प्रादेशीय लिपियों की भाषा को जैन आगमों के समान अर्धमागधी मानने के पक्ष में हैं। कुछ प्राचीन लेखों में, जैसे रागढ़ पर्वतश्रेणी की जोगीमारा गुफा के लेख में, मागधी की उक्त तीनों प्रवृत्तियाँ पर्याप्त रूप से पाई जाती है। किंतु जिस पालि त्रिपिटक में भगवान बुद्ध के उपदेशों की भाषा को मागधी कहा गया है, उन ग्रंथों में स्वयं कुछ अपवादों को छोड़कर मागधी के उक्त तीन लक्षणों में से कोई भी नहीं मिलता। इसीलिये पालि ग्रंथों की आधारभूत भाषा को मागधी न मानकर शौरसेनी मानने की ओर विद्वानों का झुकाव है।
मगधी प्राकृत में लिखा हुआ कोई स्वतंत्र साहित्य उपलब्ध नहीं है, किंतु खंडश: उसके उदाहरण हमें प्राकृत व्याकरणों एवं संस्कृत नाटकों जैसे शकुतंला, मुद्राराक्षस, मृच्छकटिक आदि में मिलते हैं। भरत नाट्यशास्त्र के अनुसार गंगासागर अर्थात् गंगा से लेकर समुद्र तक के पूर्वीय प्रदेशों में एकारबहुल भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा है कि राजाओं के अंत:पुर निवासी मागधी बोलें, तथा राजपुत्र सेठ चेट अर्धमागधी। मृच्छकटिक में शकार, वसंतसेना और चारुदत्त इन तीनों के चेटक, तथा संवाहक, भिक्षु और चारुदत्त का पुत्र ये छह पात्र मागधी बोलते हैं।
सन्दर्भ ग्रन्थ
[संपादित करें]- पिशल कृत ग्रंथ का हिंदी अनुवाद--प्राकृत भाषाओं का व्याकरण;
- दिनेशचंद्र सरकार : ग्रामर ऑव दि प्राकृत लैंग्वेज;
- वूलवर : इंट्रोडक्शन टु प्राकृत
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- Magadhi at The Rosetta Project Archived 2008-05-07 at the वेबैक मशीन
- Jain Agams Archived 2015-02-14 at the वेबैक मशीन
- An Illustrated Ardha-Magadhi Dictionary
- Jainism in Buddhist Literature
- प्रोफेसर महावीर सरन जैन का आलेख - साहित्यिक प्राकृतों (शौरसेनी, महाराष्ट्री, मागधी, अर्द्ध-मागधी, पैशाची) को भिन्न भाषाएँ मानने की परम्परागत मान्यताः पुनर्विचार