घात नियम

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कलन में, घात नियम अथवा घातांक नियम (power rule) रूप के फलनों के अवकलज के लिए काम में लिया जाता है जहाँ एक वास्तविक संख्या है। चूँकि अवकलज अवकलनीय फलनों के लिए रैखिक संक्रिया है, बहुपदों को भी इसी नियम से अवकलित किया जा सकता है। घात नियम टेलर श्रेणी का आधार है क्योंकि इसमें अवकलजों की घात श्रेणी से सम्बंधित है।

घात नियम का कथन[संपादित करें]

किसी वास्तविक संख्या [a] और के लिए कोई फलन इस प्रकार है तब

समाकलन के घात नियम के अनुसार, सभी वास्तविक संख्याओं के लिए

यह अवकलज के घात नियम को व्युत्क्रमित करके प्राप्त किया जा सकता है। यहाँ C एक समाकलन नियतांक है।

उपपत्ति[संपादित करें]

वास्तविक घातांकों के लिए उपपत्ति[संपादित करें]

इसे आरम्भ करने के लिए पहले हमें के मान के लिए एक कार्यकारी परिभाषा का चयन करना होगा जहाँ कोई भी वास्तविक संख्या है। यद्यपि घातांक का मान अपरिमेय होने की स्थिति में इसे परिमेय घातांकों के अनुक्रम की सीमा अथवा दी गयी घात की परिमेय घातांक के किसी समुच्चय की न्यूनतम उपरी सीमा के रूप में परिभाषित करना आसान रहता है। इस तरह की परिभाषा अवकलज के लिए मान्य नहीं है। अतः फलनीय परिभाषा अधिक उपयुक्त रहती है जिसके अनुसार सभी मानों के लिए लिख सकते हैं जहाँ प्राकृतिक चरघातांकी फलन है और आयलर संख्या है।[1][2] सर्वप्रथम हमें यह प्रदर्शित करना चाहिए कि का अवकजल होगा है।

यदि है तो होगा जहाँ आयलर द्वारा प्रदर्शित चरघातांकी फलन का व्यूत्क्रम फलन है जिसे प्राकृतिक लघुगणक फलन कहते हैं।[3] चूँकि बाद के दोनों फलन के लिए समान रहते हैं और उनका अवकलज भी समान रहता है। अतः शृंखला नियम से,

या , अतः पर शृंखला नियम लगाने पर
जिसे सरल रूप में लिख सकते हैं।

जब हो तब हम समान परिभाषा के साथ काम में ले सकते हैं जहाँ है। यह आवश्यक रूप से समान परिणाम पर पहुँचता है। ध्यान रहे चूँकि के परिमेय नहीं होने की स्थिति में की परिभाषा सामान्य अर्थों के अनुसार नहीं होती। ऋणात्मक आधार वाले अपरिमेय घातांक फलनों के लिए परिभाषा सुपरिभाषित नहीं है। इसके अतिरिक्त −1 की अपरिमेय घातांक वास्तविक संख्यायें नहीं होती हैं, ये व्यंजक विषम हरात्मक मानों (न्यूनतम पदों में) के परिमेय होने की स्थिति में ही वास्तविक होंगे।

जब भी फलन पर अवकलनीय है तब अवकल के लिए परिभाषित सीमा

जिसका मान के विषम हरात्मक मान वाली परिमेय संख्याओं और के लिए शून्य होगा। इस व्यंजक का मान के लिए 1 होगा। के सभी मानों के लिए की स्थिति में व्यंजक सु-परिभाषित नहीं है, उपर वर्णित परिभाषा के अनुसार यह वास्तविक संख्या नहीं है अतः इसके वास्तविक मान अवकलज की सीमा प्राप्त नहीं की जा सकती।

व्यंजक ( की स्थिति में) इसका अपवाद है।


पूर्णांक घातांक के लिए उपपत्ति[संपादित करें]

आगमन विधि द्वारा उपपत्ति (प्राकृतिक संख्याएँ)[संपादित करें]

माना तब हमें इसके लिए सिद्ध करना है कि होता है। इसमें शुरूआती संख्यायें या हो सकती हैं जो प्राकृतिक संख्याओं के समुच्चय की परिभाषा पर निर्भर करता है।

जब ,

जब ,

अतः शुरूआती संख्याओं के लिए दोनों के लिए सही है।

माना कि उपरोक्त कथन किसी प्राकृतिक संख्या k के लिए सत्य है अर्थात्

जब ,

अतः गणितीय आगमन विधि से सिद्ध होता है कि कथन सभी प्राकृतिक संख्याओं n के लिए सत्य है।

द्विपद प्रमेय द्वारा उपपत्ति (प्राकृतिक संख्या)[संपादित करें]

माना , जहाँ .

तब

ऋणात्मक पूर्णांक घातांकों का व्यापकीकरण[संपादित करें]

ऋणात्मक पूर्णांक n के लिए माना अतः m एक धनात्मक पूर्णांक है। व्युत्क्रम नियम के अनुसार

परिणामस्वरूप किसी भी पूर्णांक के लिए सिद्ध होता है।

परिमेय घातांकों के लिए व्यापकीकरण[संपादित करें]

पूर्णांक घातांक के लिए घातांक नियम सिद्ध करने के बाद अब इसे परिमेय संख्यायें के लिए विस्तृत किया जा सकता है।

शृंखला नियम द्वारा उपपत्ति[संपादित करें]

यह उपपत्ति दो चरणों में की जाती है जिसमें अवकलन के लिए शृंखला नियम शामिल किया जाता है।

  1. माना , जहाँ है तब प्राप्त होता है। शृंखला नियम से प्राप्त होता है जिसे के लिए हल करने पर
    अतः घात नियम रूप के सभी परिमेय घातांको के लिए लागू होता है जहाँ शून्यत्तर प्राकृतिक संख्या है। इसे घात नियम लागू करते हुये रूप की परिमेय घातांकों के लिए व्यापकीकृत करने के लिए आवश्यक पद को आगे समझाया गया है।
  2. माना , जहाँ अतः , अतः शृंखला नियम से

उपरोक्त परिणामों से हम कह सकते हैं कि परिमेय संख्या के लिए प्राप्त होता है।

अस्पष्ट अवकलन से उपपत्ति[संपादित करें]

परिमेय घातांको के घात नियम का अधिक स्पष्ट व्यापकीकरण, अस्पष्ट अवकलन से माना , जहाँ अतः

तब

समीकरण को के सापेक्ष अवकलित करने पर
के लिए हल करने पर,
चूँकि ,
चरघातांकी नियमानुसार,
अतः मानने पर हमें प्राप्त होता है जहाँ अपरिमेय संख्या है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

टिप्पणी[संपादित करें]

  1. यदि न्यूनतम व्यंजक निरूपण वाली परिमेय संख्या है जिसका हर विषम संख्या है तब का प्रांत होगा। अन्यथा इसका प्रांत होगा।

उद्धरण[संपादित करें]

  1. लैंडाऊ, एडमंड (1951). Differential and Integral Calculus [अवकलन और समाकलन]. न्यूयॉर्क: चेल्सी पब्लिशिंग कंपनी. पृ॰ 45. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0821828304.
  2. स्पिवाक, माइकल (1994). Calculus [कलन] (3 संस्करण). टक्सास: Publish or Perish, Inc. पपृ॰ 336–342. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-914098-89-6.
  3. Maor, Eli (1994). e: The Story of a Number. न्यू जर्सी: प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस. पृ॰ 156. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-691-05854-7.