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कॉकस

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कॉकस या कौकसस यूरोप और एशिया की सीमा पर स्थित एक भौगोलिक और राजनैतिक क्षेत्र है। इस क्षेत्र में कॉकस पर्वत शृंखला भी आती है, जिसमें यूरोप का सबसे ऊंचा पहाड़, एल्ब्रुस पर्वत शामिल है। कॉकस के दो मुख्य खंड बताये जाते हैं: उत्तर कॉकस और दक्षिण कॉकस। उत्तर कॉकस में चेचन्या, इन्गुशेतिया, दाग़िस्तान, आदिगेया, काबारदीनो-बल्कारिया, काराचाए-चरकस्सिया, उत्तर ओसेतिया, क्रास्नोदार क्राय और स्ताव्रोपोल क्राय के क्षेत्र आते हैं। दक्षिण कॉकस में आर्मीनिया, अज़रबैजान और जॉर्जिया आते हैं, जिसमें दक्षिण ओसेतिया, अबख़ज़िया और नागोर्नो-काराबाख़ शामिल हैं।

अन्य भाषाओं में

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  • अंग्रेजी में कॉकस को "कॉकस" (Caucas) या "कौकसस" (Caucasus) कहते हैं।
  • फ़ारसी में कॉकस को "क़फ़क़ाज़" (قفقاز) कहते हैं।
  • रूसी में कॉकस को "कवकाज़" (Кавка́з) कहते हैं।

तुर्की, ईरान और रूस से घिरे इस प्रदेश में इन तीनों देशों के घटनाक्रमों का असर रहा है। हाँलाकि अठारहवीं सदी से पहले रूस और आठवीं सदी से पहले तुर्कों का इस प्रदेश में कोई अस्तित्व या महत्व नहीं था। ईरान के मीदियों ने आठवीं सदी ईसापूर्व में यहाँ अपना सिक्का जमाया। मीदि हाँलाकि एक बड़े राज्य की तरह नहीं थे और असीरियाइयों के सहयोगी थे। ईसा के पूर्व 559 में जब मीदियों के सहयोगी पार्स (दक्षिणी ईरान) के हख़ामनियों ने मीदिया और असीरिया दोनों पर विजय हासिल कर ली तो उसके बाद यह प्रदेश भी हख़ामनी पारसियों के हाश आ गया। सन् 95 ईसापूर्व में यहाँ के अर्मेनियाईयों के साम्राज्य का उदय हुआ और एक स्थानीय शासन ने सत्ता की बागडोर सम्हाली। धीरे-धीरे इसका विस्तार हुआ और एक समय यह मिस्र तक फैल गया था। ध्यान रहे कि अर्मेनियाई आर्य नस्ल के लोग थे लेकिन आज यहाँ सेमेटिक तथा तुर्क नस्ल के लोग भी बसते हैं। ईरान में सासानियों के शासन और रोमन साम्राज्य की स्पर्धा में इस प्रदेश को दोनों ने कई बार अपना अंग बनाया। रोमन इस इलाके को हमेशा अपना अंग बनाने में असफल रहे। लेकिन इसी समय यहाँ ईसाई धर्म का प्रचार भी हुआ। नौवीं सदी में अरबों ने आक्रमण किये पर उनका शासन स्थापित होकर नहीं रह सका। सन् 1045 में बिजैंटिनों ने अरबों को भगा कर जॉर्जिया में एक ईसाई साम्राज्य की स्थापना की। तेरहवीं सदी के मध्य में मंगोलों के आक्रमण की वजह से यह साम्राज्य बिखर गया। उस्मानी तुर्कों और उसके बाद रूसियों और ईरानियों के बीच भी इस प्रदेश का बंटवारा होता रहा।

भूगोल और वातावरण

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कॉकस में बिखरी हुई अनेकों भाषाएँ और जातियाँ

उत्तरी कॉकस के कई प्रदेश रूस के अंग हैं और उत्तर की ओर रूस ही फैला हुआ है। पश्चिम की ओर कॉकस की सीमाएँ कृष्ण सागर और तुर्की को छूती हैं। पूर्व में कैस्पियन सागर कॉकस की सीमा है और दक्षिण में इसकी सीमा ईरान से मिलती है। कॉकस के इलाक़े को कभी यूरोप और कभी एशिया में माना जाता है। इसके निचले इलाक़ों को कुछ लोग मध्य पूर्व का एक दूर-दराज़ अंग भी समझते हैं। कॉकस का क्षेत्र बहुत हद तक एक पहाड़ी इलाक़ा है और इसकी अलग-अलग वादियों और भागों में अलग-अलग संस्कृतियाँ, जातियाँ और भाषाएँ युगों से पनप रहीं हैं और एक-दूसरे से जूझ रही हैं।

यहाँ ६,४०० भिन्न नसलों के पेड़-पौधे और १,६०० प्रकार के जानवर ऐसे हैं जो इसी इलाक़े में पाए जाते हैं।[1] यहाँ पाए जाने जानवरों में तेंदुआ, भूरा रीछ, भेड़िया, जंगली भैसा, कैस्पियन हंगूल (लाल हिरन), सुनहरा महाश्येन (चील) और ओढ़नी (हुडिड) कौवा चर्चित हैं। कॉकस में १,००० अलग नस्लों की मकड़ियाँ भी पाई गयी हैं।[2] वनों के नज़रिए से यहाँ का पर्यावरण मिश्रित है - पहाड़ों पर पेड़ हैं लेकिन वृक्ष रेखा के ऊपर की ज़मीन बंजर और पथरीली दिखती है। कॉकस के पहाड़ों से ओवचरका नाम की एक भेड़ों को चराने में मदद करने वाली कुत्तों की नसल आती है जो विश्व भर में मशहूर है।

कॉकस के क्षेत्र में लगभग ५० भिन्न-भिन्न जातियाँ रहती हैं। इनकी भाषाएँ भी भिन्न हैं और यहाँ तक की इस इलाक़े में तीन ऐसे भाषा परिवार मिलते हैं जो पूरे विश्व में केवल कॉकस में ही हैं। तुलना के लिए ध्यान रखिये के हिन्दी जिस हिन्द यूरोपी भाषा परिवार में है वह एक अकेला ही दसियों हज़ारों मील के रक़बे में फैला हुआ है - भारत के पूर्वी असम राज्य से लेकर अन्ध महासागर के आइसलैंड द्वीप तक। कॉकस की उलझी अनगिनत वादियों में यह अलग-अलग भाषाएँ और जातियाँ बसी हुई हैं। यहाँ की दो भाषाएँ हिन्दी और फ़ारसी की तरह हिन्द-यूरोपी परिवार की हैं - आर्मीनियाई भाषा और औसेती भाषा। यहाँ की अज़ेरी भाषा अल्ताई भाषा परिवार की है, जिसकी सदस्य तुर्की भाषा भी है। धर्म के नज़रिए से यहाँ के लोग भिन्न इसाई और इस्लामी समुदायों के सदस्य हैं। यहाँ के मुसलमान ज़्यादातर सुन्नी मत के हैं, हालांकि अज़रबैजान के इलाक़े में कुछ शिया भी मिलते हैं।

इतिहास में, कॉकस की कुछ जातियों को रंग का बहुत गोरा माना गया है और अंग्रेज़ी में कभी-कभी श्वेतवर्णीय जातियों को "कॉकसी" या "कॉकेशियन" कहा जाता है - हालांकि वैज्ञानिक दृष्टि से कुछ अश्वेत जातियाँ (जैसे के बहुत से भारतीय लोग) भी इसमें सम्मिलित माने जाते हैं। मध्यकाल में यहाँ के बहुत से स्त्री-पुरुष कुछ मिस्र जैसे अरब क्षेत्रों में जाकर बस गए थे (या ग़ुलाम बनाकर ले जाए गए थे) और अक्सर वहाँ पर भूरी या नीली आँखों वाले गोरे रंग के लोगों को कॉकसी लोगों का वंशज माना जाता है। यह गोरापन ख़ासकर चरकस लोगों के बारे में मशहूर है।

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. "Endemic Species of the Caucasus". Archived from the original on 12 अप्रैल 2009.
  2. "A faunistic database on the spiders of the Caucasus". Caucasian Spiders. Archived from the original on 28 मार्च 2009. Retrieved 17 सितंबर 2010.