केन्द्रीय हिन्दी संस्थान
केंद्रीय हिंदी संस्थान | |
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स्थापित | 1960 |
प्रकार: | हिंदी भाषा शिक्षण-प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान |
निदेशक: | प्रो॰ सुनील बाबुराव कुलकर्णी |
अवस्थिति: | आगरा, भारत |
जालपृष्ठ: | https://www.hindisansthan.in/home |
केंद्रीय हिंदी संस्थान भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन एक उच्चतर शैक्षणिक एवं शोध संस्थान है। इसका मुख्यालय आगरा में है। इसके आठ केंद्र- दिल्ली, हैदराबाद, गुवाहाटी, शिलांग, मैसूर, दीमापुर, भुवनेश्वर तथा अहमदाबाद हैं।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 351 में निहित दिशानिर्देशों के अनुरूप हिंदी को अपनी विविध भूमिकाएं निभाने में समर्थ और सक्रिय बनाने के उद्देश्य से और विविध शैक्षिक, सांस्कृतिक और व्यावहारिक स्तरों पर सुनियोजित अनुसंधान द्वारा शिक्षण-प्रशिक्षण, भाषाविश्लेषण, भाषा का तुलनात्मक अध्ययन तथा शिक्षण सामग्री निर्माण आदि को विकसित करने के लिए सन् 1960 में भारत सरकार के तत्कालीन शिक्षा एवं समाज कल्याण मंत्रालय द्वारा केंद्रीय हिंदी संस्थान की स्थापना उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में की गई।
संस्थान का मुख्य कार्य हिंदी भाषा से संबंधित क्षैक्षणिक कार्यक्रम चलाना, शोध कार्य संपन्न करना एवं हिन्दी के प्रचार प्रसार में अग्रणी भूमिका निभाना है। प्रारंभ में संस्थान का प्रमुख कार्य अहिंदी भाषी क्षेत्रों के लिए योग्य, सक्षम एवं प्रभावकारी हिंदी अध्यापकों को ट्रेनिंग कॉलेज और स्कूली स्तरों पर पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित करना था। परंतु बाद में हिंदी के शैक्षिक प्रचार-प्रसार और विकास को ध्यान में रखते हुए संस्थान ने अपने कार्य क्षेत्रों और प्रकार्यों को विस्तृत किया, जिसके अंतर्गत हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण, हिंदी भाषा-परक शोध, भाषाविज्ञान तथा तुलनात्मक साहित्य आदि विषयों से संबंधित मूलभूत वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यक्रमों को संचालित करना प्रारंभ किया तथा विविध स्तरीय पाठ्यक्रमों, शैक्षिक सामग्री, अध्यापक निर्देशिकाएँ इत्यादि तैयार करने का कार्य भी प्रारंभ किया।
यह संस्थान हिंदी अध्ययन-अध्यापन और अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। संस्थान को उच्च स्तरीय शैक्षिक संस्थान के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता प्राप्त है। हिंदी भारत की सामासिक संस्कृति की संवाहिका के रूप में अपनी सार्थक भूमिका निभा सके, इस उद्देश्य एवं संकल्प के साथ संस्थान निरंतर कार्यरत है। अखिल भारतीय स्तर पर हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए भी संस्थान अथक प्रयास कर रहा है। संस्थान का मूलभूत उद्देश्य है कि भारतीय भाषाएँ एक दूसरे के निकट आएँ और सामान्य बोधगम्यता की दृष्टि से हिंदी इनके बीच सेतु का कार्य करे तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय चेतना, संस्कृति एवं उससे संबद्ध मूल तत्त्व हिंदी के माध्यम से प्रसारित ही न हों, बल्कि सुग्राह्य भी बनें।[1]
स्थापना की पृष्ठभूमि
[संपादित करें]15 मार्च, 1951 को हिन्दी के प्रचार-प्रसार को व्यापक बनाने के उद्देश्य से भाषायी तथा सांस्कृतिक समस्याओं पर विस्तृत चर्चा के लिए भारत के प्रथम राष्ट्रपति बाबू राजेन्द्र प्रसाद के मार्गदर्शन में दिल्ली के लालकिले में अखिल भारतीय संस्कृति सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमें सर्वसम्मति से निश्चय किया गया कि संविधान में निर्दिष्ट हिंदी को प्रशासनिक-माध्यम तथा सामाजिक-संस्कृति की वाहिका के रूप में विकसित करने के लिए अखिल भारतीय स्तर की एक संस्था स्थापित की जाए। तदनुसार मोटूरि सत्यनारायण तथा अन्य हिंदी सेवियों के प्रयत्न से सन् 1952 में 'अखिल भारतीय हिंदी परिषद्' की स्थापना आगरा में की गयी। पं. देवदूत विद्यार्थी संस्था के संचालक और श्री एम. सुब्रह्मण्यम् उनके सहायक थे।[2]
परिषद् ने अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अखिल भारतीय हिंदी महाविद्यालय की स्थापना की। महाविद्यालय के प्राचार्य के रूप में प्रो. सत्येन्द्र की नियुक्ति की गई। महाविद्यालय में हिंदीतर राज्यों के सेवारत हिंदी प्रचारकों को हिंदी वातावरण में रखकर उन्हें हिंदी शिक्षण का विशेष प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए हिंदी पारंगत पाठ्यक्रम प्रारम्भ किया गया। भवन न होने के कारण प्रारम्भ में शिक्षण कार्य नागरी प्रचारिणी सभा के भवन में शुरू हुआ और छात्रों के रहने का प्रबन्ध भी वहीं किया गया। आगरा विश्वविद्यालय के प्राध्यापक सेवाभाव से महाविद्यालय में अध्यापन करते थे। बाद में तत्कालीन शिक्षा मंत्रालय के सचिव श्री रमाप्रसन्न नायक द्वारा महाविद्यालय का अनुदान स्वीकृत कराया। इसके बाद परिषद् और महाविद्यालय विजय नगर कॉलोनी में किराए के भवन में कार्यरत हुए।
1959 में महाविद्यालय के वार्षिक समारोह में राज्यसभा के तत्कालीन उपाध्यक्ष श्री एस.वी. कृष्णमूर्ति ने अपने अध्यक्षीय भाषण में परिषद् के कार्यो की प्रशंसा की और उसे राष्ट्रीय शिक्षा का गुरूकुल बताते हुए कहा कि इस संस्थान को देश की शिक्षा व्यवस्था में महत्त्व मिलना चाहिए। उन्होंने ही तत्कालीन केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री श्री के.एल. श्रीमाली को इस संस्था के विकास की सलाह दी।
19 मार्च, 1960 को शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार ने केंद्रीय हिंदी शिक्षण महाविद्यालय की स्थापना की और उसके संचालन के लिए 'केंद्रीय शिक्षण मंडल' नाम से एक स्वायत्त संस्था का गठन किया। केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल का पंजीकरण लखनऊ में 1 नवम्बर, 1960 को हुआ। केंद्रीय हिंदी मंडल के प्रथम अध्यक्ष श्री मो. सत्यनारायण मनोनीत किए गए।
मंडल के प्रमुख कार्य इस प्रकार निर्धारित किए गए-
- हिंदी शिक्षकों को प्रशिक्षित करना।
- हिंदी शिक्षण के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए सुविधाएँ उपलब्ध करवाना।
- उच्चतर हिंदी भाषा एवं साहित्य और भारतीय भाषाओं के साथ हिंदी के तुलनात्मक भाषाशास्त्रीय अध्ययन के लिए सुविधाएँ उपलब्ध करवाना।
- हिंदीतर प्रदेशो के हिंदी अध्येताओं की समस्याओं को सुलझाना।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 351 में उल्लिखित हिंदी भाषा के अखिल भारतीय स्वरूप के विकास के लिए प्रदत्त निर्देशों के अनुसार हिंदी को अखिल भारतीय भाषा के रूप में विकसित करने के लिए समुचित कार्यवाही करना।
भारत सरकार द्वारा केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल को अखिल भारतीय हिंदी प्रशिक्षण महाविद्यालय के संचालन का दायित्व सौंपा गया। 30 अप्रैल, 1961 को केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल की बैठक में निर्णय किया गया कि अखिल भारतीय हिंदी शिक्षण महाविद्यालय में हाईस्कूल, हायर सैकेण्डरी स्कूल और कॉलेजों तथा प्रशिक्षण-महाविद्यालयों के अध्यापकों के लिए तीन पाठ्यक्रम (१) हिंदी शिक्षण प्रवीण, (२) हिंदी शिक्षण पारंगत और (३) हिंदी शिक्षण निष्णात संचालित किए जाएं। साथ ही महाविद्यालय के निदेशक की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव पारित किया। मई, 1962 में महाविद्यालय के प्रथम निदेशक के रूप में डॉ. विनय मोहन शर्मा की नियुक्ति हुई।
इस महाविद्यालय का नाम 1 जनवरी 1963 को केंद्रीय हिंदी शिक्षण महाविद्यालय रखा गया जिसे दिनांक 29 अक्टूबर 1963 को संपन्न शासी परिषद् की बैठक में केंद्रीय हिंदी संस्थान कर दिया गया।
कार्यक्षेत्र और दायित्व
[संपादित करें]भारत सरकार ने 'मंडल' के गठन के समय जो प्रमुख प्रकार्य निर्धारित किए थे उन्हें तब से आज तक सतत कार्यनिष्ठा से संपन्न किया जा रहा है। केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के दिशा निर्देशन में संस्थान प्रमुखतः निम्नलिखित क्षेत्रों में कार्य करता हैः [3]
- हिंदी शिक्षण की अधुनातन प्रविधियों का विकास।
- हिंदीतर क्षेत्रों के हिंदी अध्यापकों का प्रशिक्षण।
- हिंदी भाषा और साहित्य का उच्चतर अध्ययन।
- हिंदी का अन्य भारतीय भाषाओं तथा उनके साहित्यों के साथ तुलनात्मक और व्यतिरेकी अध्ययन।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 351 में उल्लिखित निर्देशों के अनुसार हिंदी का अखिल भारतीय भाषा के रूप में विकास और प्रचार-प्रसार।
- शिक्षण-प्रशिक्षण कार्यक्रमों का ब्यौराः
- हिंदीतर क्षेत्रों के हिंदी अध्यापकों के लिए शिक्षण-प्रशिक्षण।
- हिंदीतर क्षेत्रों के हिंदी अध्यापकों के लिए पत्राचार द्वारा (दूरस्थ) शिक्षण-प्रशिक्षण।
- विदेशी छात्रों के लिए द्वितीय एवं विदेशी भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी का प्रचार-प्रसार।
- सांध्यकालीन परास्नातकोत्तर अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान, जनसंचार एवं हिंदी पत्रकारिता और अनुवाद विज्ञान पाठ्यक्रम।
- नवीकरण एवं पुनश्चर्या पाठ्यक्रम।
- हिंदीतर क्षेत्रों में स्थित विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के सेवारत हिंदी अध्यापकों के लिए नवीकरण, उच्च नवीकरण एवं पुनश्चर्या पाठ्यक्रम।
- केंद्र/राज्य सरकार के तथा बैंकों आदि के अधिकारियों/कर्मचारियों के लिए नवीकरण, संवर्धनात्मक, कौशलपरक कार्यक्रम और कार्यालयीन हिंदी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम।
- भाषा प्रयोगशाला एवं दृश्य - श्रव्य उपकरणों के माध्यम से हिंदी के उच्चारण का सुधारात्मक अभ्यास।
- कंप्यूटर साधित हिंदी भाषा शिक्षण।
अन्य कार्य
[संपादित करें]- संगोष्ठी, कार्यगोष्ठी, विशेष व्याख्यान, प्रसार व्याख्यान माला आदि का आयोजन।
- संस्थान द्वारा प्रणीत, संपादित एवं संकलित पाठ्य सामग्री, आलेख, पाठ्य पुस्तकों
- आदि का प्रकाशन।
- हिंदी भाषा, अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान, तुलनात्मक साहित्य आदि से संबंधित शोधपूर्ण पुस्तक, पत्रिका का प्रकाशन।
- हिंदी भाषा तथा साहित्य का अध्ययन - अध्यापन तथा अनुसंधान में सहायतार्थ समृद्ध पुस्तकालय।
- हिंदी के प्रोत्साहन के लिए अखिल भारतीय प्रतियोगिताएँ। हिंदी सेवियों का सम्मान (हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार, शैक्षिक अनुसंधान, जनसंचार, विज्ञान आदि क्षेत्रों में कार्यरत हिंदी विद्वानों के लिए)।
- समय - समय पर भारत सरकार द्वारा सौंपी जाने वाली हिंदी संबंधी परियोजनाएँ तथा राजभाषा विषयक अन्य कार्य।
अकादमिक विभाग
[संपादित करें]हिंदी के अंतर्राष्ट्रीय प्रचार-प्रसार की दिशा में पूर्वोक्त विभिन्न उद्देश्यों को पूरा करने के लिये संस्थान के आगरा मुख्यालय में समय समय पर के विभिन्न विभागों की स्थापना की गई। वर्तमान में यहाँ निम्नलिखित अकादमिक विभाग स्थापित हैं-
अध्यापक शिक्षा विभाग
[संपादित करें]इस विभाग द्वारा हिंदीतरभाषी भारतीय शिक्षार्थियों और शिक्षण-प्रशिक्षणार्थियों के लिए निम्नलिखित पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैंः
- हिंदी शिक्षण निष्णात (एम.एड. स्तरीय)
- हिंदी शिक्षण पारंगत (बी.एड. स्तरीय)
- हिंदी शिक्षण प्रवीण (डी.एड. स्तरीय)
- त्रिवर्षीय हिंदी शिक्षण डिप्लोमा (नागालैंड के लिए)
- विशेष गहन हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण पाठ्यक्रम
अंतरराष्ट्रीय हिंदी शिक्षण विभाग
[संपादित करें]इस विभाग द्वारा हिंदीतरभाषी विदेशी शिक्षार्थियों के लिए निम्नलिखित पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैंः
- (क) हिंदी भाषा दक्षता प्रमाण-पत्र
- (ख) हिंदी भाषा दक्षता डिप्लोमा
- (ग) हिंदी भाषा दक्षता एडवांस डिप्लोमा
- (घ) हिंदी भाषिक अनुप्रयोग दक्षता डिप्लोमा
- (ङ) हिंदी शोध डिप्लोमा
अनुसंधान एवं भाषा विकास विभाग
[संपादित करें]इस विभाग द्वारा हिंदीतरभाषी विदेशी शिक्षार्थियों के लिए निम्नलिखित कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैंः
- हिंदी शिक्षण की अधुनातन प्रविधियों का विकास।
- हिंदी भाषा और साहित्य में मूलभूत और अनप्रयुक्त अनुसंधान।
- हिंदी भाषा और अन्य भारतीय भाषाओं का व्यतिरेकी और तुलनात्मक अध्ययन।
- प्रयोजनमूलक हिंदी संबंधी शोध कार्य।
- हिंदी का समाज भाषावैज्ञानिक सर्वेक्षण और अध्ययन।
- हिंदी भाषा तथा साहित्य के क्षेत्र में अनुसंधान संचेतना का विकास।
- विशेषज्ञतापूर्ण शोधोन्मुखी शिक्षण परामर्श।
पत्राचार विभाग
[संपादित करें]नवीकरण एवं भाषा प्रसार विभाग
[संपादित करें]इस विभाग द्वारा हिंदीतरभाषी विदेशी शिक्षार्थियों के लिए निम्नलिखित पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैंः
- उच्चनवीकरण पाठ्यक्रम
- शिक्षक नवीकरण पाठ्यक्रम
- प्रचारक नवीकरण पाठ्यक्रम
- भाषा संचेतना विकास शिविर पाठ्यक्रम
- संवर्धनात्मक पाठ्यक्रम
- कौशलपरक पाठ्यक्रम
- प्रयोजनमूलक हिंदी नवीकरण पाठ्यक्रम
- दक्षतापरक नवीकरण कार्यक्रम
सूचना एवं भाषा प्रौद्योगिकी विभाग
[संपादित करें]सांध्यकालीन पाठ्यक्रम विभाग
[संपादित करें]- परास्नातकोत्तर अनुप्रयुक्त हिंदी भाषा विज्ञान डिप्लोमा
- परास्नातकोत्तर अनुवाद सिद्धांत एवं व्यवहार डिप्लोमा
- परास्नातकोत्तर अनुप्रयुक्त हिंदी भाषाविज्ञान एडवांस डिप्लोमा
- परास्नातकोत्तर जनसंचार एवं पत्रकारिता डिप्लोमा
पूर्वोत्तर शिक्षण-सामग्री निर्माण विभाग
[संपादित करें]क्षेत्रीय-केंद्र
[संपादित करें]दिल्ली केंद्र
[संपादित करें]दिल्ली केंद्र की स्थापना वर्ष 1970 में हुई। सर्वप्रथम राजभाषा क्रियान्वयन योजना के लिए केंद्रीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए गहन हिंदी शिक्षण कार्यक्रम और विदेशों में हिंदी प्रचार-प्रसार के अंतर्गत विदेशियों के लिए हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए गए। कार्य की अधिकता के कारण वर्ष 1993 में विदेशियों के लिए शिक्षण-प्रशिक्षण कार्यक्रम की छात्रवृत्ति आधारित योजना आगरा मुख्यालय में स्थानांतरित कर दी गई।
वर्तमान में दिल्ली केंद्र में स्ववित्त पोषित योजना के अंर्तगत विदेशियों के लिए हिंदी पाठ्यक्रम, सांध्यकालीन पोस्ट एम.ए. अनुप्रयुक्त हिंदी भाषाविज्ञान डिप्लोमा, पोस्ट एम.ए. अनुवाद सिद्धांत एवं व्यवहार डिप्लोमा तथा पोस्ट एम.ए. जनसंचार एवं पत्रकारिता पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं और पंजाब एवं जम्मू-कश्मीर राज्यों के स्कूल एवं कॉलेज स्तर के हिंदी अध्यापकों के लिए 3 से 4 सप्ताह के नवीकरण पाठ्यक्रमों का आयोजन भी दिल्ली केंद्र द्वारा किया जाता है।
हैदराबाद केंद्र
[संपादित करें]हैदराबाद केंद्र की स्थापना वर्ष 1976 में हुई। शिक्षण-प्रशिक्षण कार्यक्रमों के अंतर्गत यह केंद्र स्कूलों/कॉलेजों एवं स्वैच्छिक हिंदी संस्थाओं के हिंदी अध्यापकों के लिए 1 से 4 सप्ताह के लघु अवधीय नवीकरण कार्यक्रमों का आयोजन करता है, जिसमें हिंदी अध्यापकों को हिंदी के वर्तमान परिवेश के अंतर्गत भाषाशिक्षण की आधुनिक तकनीकों का व्यावहारिक ज्ञान कराया जाता है। वर्तमान में हैदराबाद केंद्र का कार्यक्षेत्र आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गोवा, महाराष्ट्र एवं केंद्र शासित प्रदेश पांडिचेरी एवं अण्डमान निकोबार द्वीप समूह हैं। हैदराबाद केंद्र पर हिंदी शिक्षण पारंगत पाठ्यक्रम भी संचालित किया जाता है।
गुवाहाटी केंद्र
[संपादित करें]इस केंद्र की स्थापना वर्ष 1978 में हुई। इस केंद्र का उद्देश्य पूर्वांचल में हिंदी के प्रचार-प्रसार एवं हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण के क्षेत्र में कार्यरत हिंदी के अध्यापकों एवं प्रचारकों के लिए हिंदी भाषा शिक्षण की आधुनिक तकनीकों का व्यावहारिक ज्ञान कराने के लिए 1 से 4 सप्ताह के लघु अवधीय नवीकरण पाठ्यक्रमों का संचालन करना है। इस केंद्र का कार्य क्षेत्र असम, अरूणाचल प्रदेश, सिक्किम एवं नागालैंड राज्य है। इस केंद्र में इस शैक्षिक वर्ष से स्नातकोत्तर अनुवाद सिद्धांत एवं व्यवहार डिप्लोमा के अतिरिक्त 'हिंदी शिक्षण प्रवीण' भी प्रारंभ किये गये हैं।
शिलांग केंद्र
[संपादित करें]इस केंद्र की स्थापना 1976 में हुई थी। 1978 में केंद्र गुवाहाटी स्थानांतरित कर दिया गया। पुन: इसकी स्थापना वर्ष 1987 में की गई। हिंदी के प्रचार-प्रसार के अंतर्गत शिलांग केंद्र हिंदी शिक्षकों के लिए नवीकरण (तीन सप्ताह का) पाठ्यक्रम और असम रायफ़ल्स के विद्यालयों के हिंदी शिक्षकों, केंद्र सरकार के कर्मचारियों एवं अधिकारियों को हिंदी का कार्य साधक ज्ञान कराने के लिए 2-3 सप्ताह का हिंदी शिक्षणपरक कार्यक्रम संचालित करता है। इस केंद्र के कार्य क्षेत्र मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम राज्य हैं।
मैसूर केंद्र
[संपादित करें]मैसूर केंद्र की स्थापना वर्ष 1988 में हुई। केंद्र का प्रमुख कार्य हिंदी का शिक्षण-प्रशिक्षण एवं हिंदी का प्रचार-प्रसार करना है। मैसूर केंद्र हिंदी के शिक्षण-प्रशिक्षण के अंतर्गत, प्राइमरी, हाईस्कूल, इण्टरमीडिएट के हिंदी शिक्षकों के लिए हिंदी शिक्षण की आधुनिक तकनीकों का व्यावहारिक ज्ञान कराने के लिए 3-4 सप्ताह के लघुअवधीय नवीकरण पाठ्यक्रमों का आयोजन तथा विश्वविद्यालय और महाविद्यालय के हिंदी अध्यापकों के लिए 2 सप्ताह के प्रयोजनमूलक पाठ्यक्रमों का संचालन करता है। केंद्र द्वारा प्रचार-प्रसार के अंतर्गत सरकारी अधिकारियों, अनुवादकों और वैज्ञानिकों के लिए 1 सप्ताह के राजभाषा, अनुवाद एवं तकनीकी पाठ्यक्रम भी चलाए जाते हैं। केंद्र का कार्यक्षेत्र पहले केवल कर्नाटक राज्य था। 1992 से इसके कार्यक्षेत्र में कर्नाटक राज्य के साथ केरल और केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप भी शामिल कर दिए गए हैं।
दीमापुर केंद्र
[संपादित करें]इस केंद्र की स्थापना वर्ष 2003 में हुई। दीमापुर केंद्र को पूर्णसत्रीय पाठ्यक्रम के अंतर्गत हिंदी शिक्षण प्रवीण व हिंदी शिक्षण विशेष गहन पाठ्यक्रमों के संचालन एवं मणिपुर व नागालैंड राज्य के हिंदी अध्यापकों के लिए नवीकरण कार्यक्रमों के संचालन का उत्तरदायित्व सौंपा गया है। इस केंद्र का कार्यक्षेत्र नागालैंड एवं मणिपुर राज्य है।
भुवनेश्वर केंद्र
[संपादित करें]इस केंद्र की स्थापना नवम्बर, 2003 में हुई। यहाँ नवीकरण पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं।
अहमदाबाद केंद्र
[संपादित करें]अहमदाबाद केंद्र की स्थापना वर्ष 2006 में हुई थी। राज्य में सेवारत हिंदी शिक्षकों के लिए लघुअवधीय नवीकरण कार्यक्रम आयोजित किए जाते है।
संबद्ध प्रशिक्षण महाविद्यालय
[संपादित करें]हिंदी शिक्षक-प्रशिक्षण के स्तर को समुन्नत करने और राष्ट्रीय स्तर पर उसमें एकरूपता लाने के प्रयास में भारत सरकार के निर्देश पर देश के कई राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में अपने-अपने क्षेत्रों में हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण महाविद्यालयों, संस्थाओं को स्थापित किया गया है और उन्हें संस्थान से संबद्ध किया है। इन संबद्ध महाविद्यालयों/संस्थाओं में प्रांतीय आवश्यकताओं के अनुरूप संस्थान के पाठ्यक्रम संचालित एवं आयोजित किए जाते हैं और संस्थान ही इन पाठ्यक्रमों की परीक्षाएँ नियंत्रित करता है। कुछ प्रमुख महाविद्यालयों/संस्थाओं के नाम इस प्रकार हैं-[4]
- राजकीय हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण महाविद्यालय, उत्तर गुवाहाटी (असम)
- मिज़ोरम हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थान, आईजोल (मिज़ोरम)
- राजकीय हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण महाविद्यालय, मैसूर (कर्नाटक)
- राजकीय हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थान, दीमापुर (नागालैंड)
परियोजनाएं
[संपादित करें]- भाषा-साहित्य (सी.डी.) निर्माण परियोजना
- अंतर्राष्ट्रीय मानक हिंदी पाठ्यक्रम परियोजना
- हिंदी कार्पोरा परियोजना
- हिंदी लोक शब्दकोश परियोजना
- हिंदी विश्वकोश परियोजना
- पूर्वोत्तर लोक साहित्य परियोजना
- पूर्वोत्तर एवं अन्य हिंदीतर भारतीय भाषाओं के अध्येताकोशों का निर्माण
- ऑनलाइन हिंदी शिक्षण
- हिंदी भाषा सेतु
- हिंदी विद्वान डेटाबेस
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]- हिन्दी
- भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी
- केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय
- वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग
- महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय
- अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "केन्द्रीय हिन्दी संस्थान : परिचय". मूल से 6 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 अगस्त 2015.
- ↑ "संस्थान - एक परिचय". मूल से 10 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 दिसंबर 2021.
- ↑ "मंडल के प्रमुख कार्य". मूल से 24 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 मार्च 2016.
- ↑ "संबद्ध प्रशिक्षण महाविद्यालय". मूल से 24 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 मार्च 2016.