"चन्द्रगुप्त मौर्य": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
minor correction
टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 183: पंक्ति 183:
== शासनव्यवस्था ==
== शासनव्यवस्था ==


[[चित्र:EasternSatrapsAfterAlexander.jpg|thumb|317 ईसापूर्व तक चन्द्रगुप्त ने भारत के उत्तर-पश्चिम में बचे हुए मकदुनियाई (Macedonian) छत्रपों को भी पराजित कर दिया था।]]
[[चित्र:Seleucid Mauryan War.jpg|thumb|317 ईसापूर्व तक चन्द्रगुप्त ने भारत के उत्तर-पश्चिम में बचे हुए मकदुनियाई छत्रपों पीथोन और यूडेमोस को भी पराजित कर दिया था, जिससे वो बेबीलोन वापस लौट गए।]]


चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य की शासनव्यवस्था का ज्ञान प्रधान रूप से [[मेगस्थनीज़]] के वर्णन के अवशिष्ट अंशों और [[कौटिल्य]] के [[अर्थशास्त्र (ग्रन्थ)|अर्थशास्त्र]] से होता है। अर्थशास्त्र में यद्यपि कुछ परिवर्तनों के तीसरी शताब्दी के अन्त तक होने की सम्भावना प्रतीत होती है, यही मूल रूप से चन्द्रगुप्त मौर्य के मन्त्री की कृति थी।
चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य की शासनव्यवस्था का ज्ञान प्रधान रूप से [[मेगस्थनीज़]] के वर्णन के अवशिष्ट अंशों और [[कौटिल्य]] के [[अर्थशास्त्र (ग्रन्थ)|अर्थशास्त्र]] से होता है। अर्थशास्त्र में यद्यपि कुछ परिवर्तनों के तीसरी शताब्दी के अन्त तक होने की सम्भावना प्रतीत होती है, यही मूल रूप से चन्द्रगुप्त मौर्य के मन्त्री की कृति थी।

01:53, 22 मई 2024 का अवतरण

चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य

बिरला मन्दिर, दिल्ली में एक शैल-चित्र
जन्म 345 ईसा पूर्व
पिप्पलिवन गणराज्य, (वर्तमान गोरखपुर क्षेत्र), उत्तर प्रदेश
मौत 298 ईसा पूर्व (आयु 47–48)
श्रवणबेलगोला, कर्नाटक
पदवी सम्राट
उत्तराधिकारी सम्राट बिन्दुसार
धर्म
जीवनसाथी दुर्धरा महापदमनंद की बेटी और हेलेना (सेल्यूकस निकटर की पुत्री)
बच्चे बिन्दुसार
माता-पिता महारानी धर्मा और महाराज चंद्रवर्धन
समाधि श्रवणबेलगोला कर्नाटक मैसूर चन्द्रगिरि पर्वत

चन्द्रगुप्त मौर्य (जन्म : ३४५ ई॰पु॰, राज ३२१[3]-२९७ई॰पु॰[4]) में भारत के महान सम्राट थे। इन्होंने मौर्य राजवंश की स्थापना की थी। चन्द्रगुप्त पूरे भारत को एक साम्राज्य के अधीन लाने में सफल रहे। चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण की तिथि साधारणतया ३२१ ई.पू. निर्धारित की जाती है। उन्होंने लगभग २४ वर्ष तक शासन किया और इस प्रकार उनके शासन का अन्त प्रायः २८५ ई.पू. में हुआ। भारतीय तिथिक्रम के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य का शासन ईपू १५३४ से आरम्भ होता है।[5][6][7][8][9]

मेगस्थनीज ने चार साल तक चन्द्रगुप्त की सभा में एक यूनानी राजदूत के रूप में सेवाएँ दी। ग्रीक और लैटिन लेखों में, चन्द्रगुप्त को क्रमशः सैण्ड्रोकोट्स और एण्डोकॉटस के नाम से जाना जाता है।

चन्द्रगुप्त मौर्य प्राचीन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण सम्राट है । चन्द्रगुप्त के सिहासन सम्भालने से पहले, सिकंदर ने उत्तर पश्चिमी भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण किया था, और ३२४ ईसा पूर्व में उसकी सेना में विद्रोह की वजह से आगे का अभियान छोड़ दिया, जिससे भारत-ग्रीक और स्थानीय शासकों द्वारा शासित भारतीय उपमहाद्वीप वाले क्षेत्रों की विरासत सीधे तौर पर चन्द्रगुप्त ने सम्भाली। चन्द्रगुप्त ने अपने गुरु चाणक्य (जिसे कौटिल्य और विष्णु गुप्त के नाम से भी जाना जाता है,जो चन्द्र गुप्त के प्रधानमन्त्री भी थे) के साथ, एक नया साम्राज्य बनाया, राज्यचक्र के सिद्धान्तों को लागू किया, एक बड़ी सेना का निर्माण किया और अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार करना जारी रखा।

सिकंदर के आक्रमण के समय लगभग समस्त उत्तर भारत धनानन्द द्वारा शासित था। चाणक्य तथा चन्द्रगुप्त ने नन्द वंश को समाप्त करने का निश्चय किया। अपनी उद्देश्यसिद्धि के निमित्त चाणक्य और चन्द्रगुप्त ने एक विशाल विजयवाहिनी का प्रबन्ध किया। हिंदू ग्रंथो में 'नन्दोन्मूलन' का श्रेय चाणक्य को दिया गया है। अर्थशास्त्र में कहा है कि सैनिकों की भरती चोरों, म्लेच्छों, आटविकों तथा शस्त्रोपजीवी श्रेणियों से करनी चाहिए। मुद्राराक्षस से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त ने हिमालय प्रदेश के राजा पर्वतक से सन्धि की। चन्द्रगुप्त की सेना में शक, यवन, किरात, कम्बोज, पारसीक तथा वह्लीक भी रहे होंगे। प्लूटार्क के अनुसार सान्द्रोकोत्तस ने सम्पूर्ण भारत को 6,00,000 सैनिकों की विशाल वाहिनी द्वारा जीतकर अपने अधीन कर लिया। जस्टिन के मत से भारत चन्द्रगुप्त के अधिकार में था।

चन्द्रगुप्त ने सर्वप्रथम अपनी स्थिति पंजाब में सदृढ़ की। उसका यवनों के विरुद्ध स्वातन्त्यय युद्ध सम्भवतः सिकंदर की मृत्यु के कुछ ही समय बाद आरम्भ हो गया था। जस्टिन के अनुसार सिकन्दर की मृत्यु के उपरान्त भारत ने सान्द्रोकोत्तस के नेतृत्व में दासता के बन्धन को तोड़ फेंका तथा यवन राज्यपालों को मार डाला। चन्द्रगुप्त ने यवनों के विरुद्ध अभियान लगभग 323 ई.पू. में आरम्भ किया होगा, किन्तु उन्हें इस अभियान में पूर्ण सफलता 317 ई.पू. या उसके बाद मिली होगी, क्योंकि इसी वर्ष पश्चिम पंजाब के शासक क्षत्रप यूदेमस (Eudemus) ने अपनी सेनाओं सहित, भारत छोड़ा। चन्द्रगुप्त के यवनयुद्ध के बारे में विस्तारपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। इस सफलता से उन्हें पंजाब और सिन्ध के प्रान्त मिल गए।

चन्द्रगुप्त मौर्य का महत्वपूर्ण युद्ध धनानन्द के साथ उत्तराधिकार के लिए हुआ। जस्टिन एवं प्लूटार्क के वृत्तों में स्पष्ट है कि सिकंदर के भारत अभियान के समय चन्द्रगुप्त ने उसे नन्दों के विरुद्ध युद्ध के लिये भड़काया था, किन्तु किशोर चन्द्रगुप्त के व्यवहार ने यवनविजेता को क्रुद्ध कर दिया। भारतीय साहित्यिक परम्पराओं से लगता है कि चन्द्रगुप्त और चाणक्य के प्रति भी नन्दराजा अत्यन्त असहिष्णु रह चुके थे। महावंश टीका के एक उल्लेख से लगता है कि चन्द्रगुप्त ने आरम्भ में नन्दसाम्राज्य के मध्य भाग पर आक्रमण किया, किन्तु उन्हें शीघ्र ही अपनी त्रुटि का पता चल गया और नए आक्रमण सीमान्त प्रदेशों से आरम्भ हुए। अन्ततः उन्होंने पाटलिपुत्र घेर लिया और धनानन्द को मार डाला।

इसके बाद, ऐसा प्रतीत होता है कि चन्द्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का विस्तार दक्षिण में भी किया। मामुलनार नामक प्राचीन तमिल लेखक ने तिनेवेल्लि जिले की पोदियिल पहाड़ियों तक हुए मौर्य आक्रमणों का उल्लेख किया है। इसकी पुष्टि अन्य प्राचीन तमिल लेखकों एवं ग्रन्थों से होती है। आक्रामक सेना में युद्धप्रिय कोशर लोग सम्मिलित थे। आक्रामक कोंकण से एलिलमलै पहाड़ियों से होते हुए कोंगु (कोयम्बटूर) जिले में आए और यहाँ से पोदियिल पहाड़ियों तक पहुँचे। दुर्भाग्यवश उपर्युक्त उल्लेखों में इस मौर्यवाहिनी के नायक का नाम प्राप्त नहीं होता। किन्तु, 'वम्ब मोरियर' से प्रथम मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त का ही अनुमान अधिक संगत लगता है।

मैसूर से उपलब्ध कुछ अभिलेखों से चन्द्रगुप्त द्वारा शिकारपुर तालुक के अन्तर्गत नागरखण्ड की रक्षा करने का उल्लेख मिलता है। उक्त अभिलेख 14वीं शताब्दी का है किन्तु ग्रीक, तमिल लेखकों आदि के साक्ष्यों के आधार पर इसकी ऐतिहासिकता एकदम अस्वीकृत नहीं की जा सकती।

चन्द्रगुप्त ने सौराष्टकी विजय भी की थी। महाक्षत्रप रुद्रदामन्‌ के जूनागढ़ अभिलेख से प्रमाणित है कि वैश्य पुष्यगुप्त यहाँ के राज्यपाल थे।

चन्द्रगुप्त का अन्तिम युद्ध सिकंदर के पूर्व सेनापति तथा उनके समकालीन सीरिया के ग्रीक सम्राट सेल्यूकस के साथ हुआ। ग्रीक इतिहासकार जस्टिन के उल्लेखों से प्रमाणित होता है कि सिकंदर की मृत्यु के बाद सेल्यूकस को उसके स्वामी के सुविस्तृत साम्राज्य का पूर्वी भाग उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ। सेल्यूकस, सिकंदर की भारतीय विजय पूरी करने के लिये आगे बढ़ा, किन्तु भारत की राजनीतिक स्थिति अब तक परिवर्तित हो चुकी थी। लगभग सारा क्षेत्र एक शक्तिशाली शासक के नेतृत्व में था। सेल्यूकस 305 ई.पू. के लगभग सिन्धु के किनारे आ उपस्थित हुआ। ग्रीक लेखक इस युद्ध का ब्योरेवार वर्णन नहीं करते। किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि चन्द्रगुप्त की शक्ति के सम्मुख सेल्यूकस को झुकना पड़ा। फलतः सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त को विवाह में एक यवनकुमारी (हेलेना) तथा एरिया (हेरात), एराकोसिया (कंदहार), परोपनिसदाइ (काबुल) और जेद्रोसिया (बलूचिस्तान) के प्रान्त देकर संधि क्रय की। इसके बदले चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी भेंट किए। उपरिलिखित प्रान्तों का चन्द्रगुप्त मौर्य एवं उसके उत्तराधिकारियों के शासनान्तर्गत होना, कन्दहार से प्राप्त अशोक के द्विभाषी लेख से सिद्ध हो गया है। इस प्रकार स्थापित हुए मैत्री सम्बन्ध को स्थायित्व प्रदान करने की दृष्टि से सेल्यूकस ने मेगस्थनीज नाम का एक दूत चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा। यह वृत्तान्त इस बात का प्रमाण है कि चन्द्रगुप्त का प्रायः सम्पूर्ण राज्यकाल युद्धों द्वारा साम्राज्य विस्तार करने में बीता होगा।

चंद्रगुप्त के सोलह सपने, श्री महावीर जी मंदिर।
अंतिम श्रुतकेवाली भद्रबाहु स्वामी और सम्राट चंद्रगुप्त का आगमन दर्शाता शिलालेख (श्रवणबेलगोला)[10]
चंद्रगुप्त के 16 स्वप्न, तिजारा जैन मंदिर का चित्रित चित्र।

श्रवणबेलगोला से मिले शिलालेखों के अनुसार, चन्द्रगुप्त अपने अन्तिम दिनों में पितृ मतानुसार जैन-मुनि हो गए। चन्द्र-गुप्त अन्तिम मुकुट-धारी मुनि हुए, उनके बाद और कोई मुकुट-धारी (शासक) दिगंबर-मुनि नहीं हुए | अतः चन्द्र-गुप्त का जैन धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है। स्वामी भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोल चले गए। वहीं उन्होंने उपवास द्वारा शरीर त्याग किया। श्रवणबेलगोल में जिस पहाड़ी पर वे रहते थे, उसका नाम चन्द्रगिरी है और वहीं उनका बनवाया हुआ 'चन्द्रगुप्तबस्ति' नामक मन्दिर भी है।

चन्द्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस

सेल्युकस-चंद्रगुप्त युद्ध में सम्राट चंद्रगुप्त द्वारा जीते हुवे 4 प्रांत (जेड्रोशिया, आरिया, परोपामिसाडे-हिंदुकुश और आर्कोशिया)[11]

सेल्युकस एक्सजाइट निकेटर एलेग्जेंडर (सिकन्दर) के सबसे योग्य सेनापतियों में से एक था जो उसकी मृत्यु के बाद भारत के विजित क्षेत्रों पर उसका उत्तराधिकारी बना। वह सिकन्दर द्वारा जीता हुआ भू-भाग प्राप्त करने के लिए उत्सुक था। इस उद्देश्य से ३०५ ई. पू. उसने भारत पर पुनः चढ़ाई की। सम्राट चन्द्रगुप्त ने पश्‍चिमोत्तर भारत के यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को पराजित कर एरिया (हेरात), अराकोसिया (कंधार), जेद्रोसिया(काबुल),पेरिस(मकराना),पेमियाई के भू-भाग को अधिकृत कर विशाल मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। चंद्रगुप्त से 500 हाथी लेने के बाद,सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलन का विवाह चन्द्रगुप्त से कर दिया। उसने मेगस्थनीज को राजदूत के रूप में चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में नियुक्‍त किया। कुछ समय पश्चात सेल्यूकस ने अपने राजदूत मेगास्टेनिस को पाटलिपुत्र में रहने और चंद्रगुप्त मौर्य कि शासन के बारे में इंडिका नाम की एक किताब लिखने के लिए भेजा।[12]

विवाह

ग्रीक इतिहासकार एपियन और स्ट्रैबों के मुताबिक़ चंद्रगुप्त का विवाह सेल्यूकस की बेटी से हुआ था।यूनानी और भारतीय साहित्य दोनो में विवाह का वर्णन मिलता है।[13]

२०वीं सदी की हचिंसन कहानियों में प्रकाशित चित्र, चंद्रगुप्त मौर्य जो अपनी विवाहिता, सेल्युकस की पुत्री को बेबिलोन में मनोरंजन करा रहे हैं।[14]
सेल्यूकस ने सिंधु नदी को पार किया और भारतीयों के राजा सैंड्रोकोटस [चंद्रगुप्त] के साथ युद्ध किया, जो उस धारा के दूसरी तरफ थे, जब तक कि वे एक-दूसरे के साथ समझ में नहीं आए और विवाह संबंध स्थापित नहीं किए।
एपियन हिस्ट्री ऑफ रोम, द सीरियन वार, 55

सेल्यूकस निकेटर ने सैंड्रोकोटस [चंद्रगुप्त] से अंतर्विवाह और बदले में पांच सौ हाथी प्राप्त करने की शर्तों को माना।
स्ट्रैबो 15.2.9 [15]

चंद्रगुप्त और हेलेना की शादी का चित्रित विवाह मण्डप। मण्डप चित्रित नई दिल्ली के लक्ष्मी नारायण मंदिर में ।

एक भारतीय पौराणिक स्रोत, भविष्य पुराण का प्रतिसर्ग पर्व, चंद्रगुप्त की शादी को एक यवन ("यवन") राजकुमारी के साथ, सेल्युकस की पुत्री, के साथ वर्णन किया है। [16]

चन्द्रगुप्त, जिसने पोरसाधिपति सुलुवस [सेल्यूकस] की पुत्री, उस यवनी के साथ विवाह करके उसने बौद्ध पत्नी समेत साठ वर्ष तक राज्य किया। चन्द्रगुप्त के वंशज बिन्दुसार हुआ अपने पिता के काल तक राज्य किया। बिन्दुसार के वंशज अशोक हुए।
—भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व: अध्याय 6, श्लोक 43,44[17][16]

सैन्य शक्ति

मौर्यो का साम्राज्य मे भारत सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक सम्पन्नता के नजरिए से काफी मजबूत हो गया था।

मगध की मौर्य सेना जिसमें शमिल पैदल सेना , हाथी सेना , धनुषधारी, घुड़सवार , रथ और दाएं तरफ रथ पर सम्राट अशोक। अशोक निर्मित सांची स्तूप में उकेरी कलाकृति जो ग्रीक इतिहासकरों की बात को पुष्ट करता है।
सेल्युकस-चंद्रगुप्त युद्ध के पश्चात् का पश्चिमी जगत

यूनानी इतिहासकार प्लिनी के अनुसार:

सबसे बड़ा और सबसे धनी शहर पालिबोत्रा ​​(पाटलिपुत्र), जहां से कुछ लोगों ने इस राष्ट्र का नाम रखा है, हां, और आमतौर पर गंगा से परे पालिबोत्रा (पाटलिपुत्र) है। उनके राजा (चंद्रगुप्त मौर्य) 6,00,000 पैदल सैनिक, 30,000 घुड़सवार और 9,000 हाथी के सैन्यदल को प्रतिदिन वेतन देते थे।
—प्लिनी, नेचुरल हिस्ट्री, बुक VI, चैप्टर XIX

प्लूटार्क के अनुसार सेल्यूकस से युद्ध विजय के बाद चंद्रगुप्त मौर्य विशाल सेना के साथ अपने साम्राज्य के और विस्तार के लिए सेना लेकर दक्षिणी भारत की ओर चले गये :

कुछ ही समय बाद सैंड्रोकोट्टोस(चंद्रगुप्त), जो उस समय सिंहासन पर बैठा था, उसने सेल्युकस को 500 हाथी प्रदान की और 600,000 की पैदल सेना के साथ पूरे भारत रौंदकर कब्ज़ा कर लिया।

— प्लूटार्क, लाइफ ऑफ अलेक्जेंडर, चैप्टर LXII

यूनानी इतिहासकार एरियन के अनुसार:

भारतीय राजा के प्रत्येक रथ में चालक के अलावा दो सैनिक होते थे, और एक हाथी में महावत के अलावा तीन तीरंदाज होते थे।
—एरियन, अनाबासिस ऑफ अलेक्जेंडर [18][19]

चंद्रगुप्त सेना में 9000 हाथियों में प्रत्येक हाथी पर 4 सैनिक सवार थे, जो कुल 36,000 का सैन्यदल था और 8000 रथों में प्रत्येक रथ पर 3 सैनिक सवार थे, जो कुल मिलाकर 24000 का सैन्यदल था।[20]

ग्रीक इतिहासकार प्लिनी , एरियन और प्लूटार्क के लेखों के आधार पर इतिहासकार विंसेंट स्मिथ, राधाकुमुद मुखर्जी, आशिरबादी लाल श्रीवास्तव ने निष्कर्ष निकाला की चंद्रगुप्त की सेना में कुल 6,00,000 होगी पैदल सेना थी, 30,000 घुड़सवार सैनिक, 36,000 सैनिक 9,000 हाथियों के साथ, और 24,000 सैनिक 8,000 रथों के साथ थे, सहयोगी सैनिक और परिचारकों को छोड़कर, कुल मिलाकर सेना 6,90,000 थी जो लगभग 7,00,000 के अनुपातित संख्या में थी।[21][22][23] इसी तथ्य का समर्थन ज्ञानचंद्र महाजन जैसे भारतविदों वा अन्य इतिहासकारों ने किया है।[24]

अभियान और संघर्ष

तिथियाँ

संघर्ष पक्ष विपक्ष स्थान परिणाम
305–315 ईसा पूर्व चंद्रगुप्त मौर्य के मैसेडोनियन अभियान मौर्य साम्राज्य मैसेडोनियन साम्राज्य दक्षिण एशिया मौर्य विजय[25]
  • चंद्रगुप्त मौर्य ने सिंधू घाटी और उत्तर पश्चिम भारत में मैसेडोनियन स्ट्रैपीज को जीत लिया।[26]
  • चंद्रगुप्त मौर्य ने पंजाब छेत्र के मैसेडोनियन स्ट्रैपीज को जीत लिया।[26]
  • उसने जिन सिकंदर के 4 क्षत्रपों से लड़ाई की उनमें यूडेमस शामिल था। जो 317 ईसा पूर्व में अपने प्रस्थान तक पश्चिमी पंजाब का शासक था। पीथॉन (एजेनोर का पुत्र), प्रथम यूनानी उपनिवेशों का शासक 316 ईसा पूर्व में बेबीलोन के लिए उनके प्रस्थान तक सिंधु नदी के किनारे यूनानी उपनिवेश थे। दोनों पीथॉन और यूडेमस को चंद्रगुप्त ने हराया और इन्होंने चंद्रगुप्त के सामने आत्मसमर्पण कर दिया ।[27]
315-317 ईसा पूर्व यूनानी गवर्नर्स पर कार्रवाई
पूर्वी सात्राप
317 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त ने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर पश्चिम में शेष मैसेडोनियन क्षत्रपों को हराया था।
मौर्य साम्राज्य मैसेडोनियन साम्राज्य दक्षिण एशिया मौर्य विजय[25]
  • जस्टिन बताते हैं कि अलेक्जेंडर के मौत के बाद, चंद्रगुप्त ने भारतीय क्षेत्रों को यूनानियों से मुक्त किया और कुछ यूनानी गवर्नर्स को फांसी पर लटका दिया।[28]
  • चंद्रगुप्त ने अपना ध्यान उत्तर-पश्चिमी भारत (आधुनिक पाकिस्तान) की ओर लगाया, जहां उन्होंने सिकंदर द्वारा छोड़े गए 4 क्षत्रपों (पश्चिमी स्रोतों में "प्रीफेक्ट्स" के रूप में वर्णित) से लड़ाई की और दो क्षत्रप, निकानोर और फिलिप की हत्या कर दी। अन्य दो यूडेमस और पीथॉन ने पहले ही आत्म समर्पण कर वापस बेबीलोन लौट गए थे।[29]
322-320 ईसा पूर्व नंद साम्राज्य पर विजय
चंद्रगुप्त मौर्य नंद साम्राज्य के धननंद दक्षिण एशिया मौर्य विजय[30][31]
  • चंद्रगुप्त ने नंदों को हराकर मगध आधारित मौर्य साम्राज्य स्थापित किया।[32]
  • उन्होंने नंद राजकुमारी दुर्धरा से विवाह किया।[33][34][35]
305–303 ईसा पूर्व सेल्युकस-चंद्रगुप्त युद्ध मौर्य साम्राज्य सेल्युकस साम्राज्य उत्तर पश्चिम भारत, सिन्धु घाटी और अफगानिस्तान मौर्य विजय[36]
  • सिन्धु संधि[27]
  • सेल्युकस साम्राज्य के पूर्वी सैत्रेपियों ने मौर्य साम्राज्य को समर्पित किया
  • सेल्युकस ने अपनी बेटी को चंद्रगुप्त को दी, जिससे एक वंशवादी साझेदारी की शुरुआत हुई
  • चंद्रगुप्त ने सेल्युकस को 500 युद्ध हाथी दिए
  • राजनयिक संबंध की स्थापना

साम्राज्य

मेगास्थेनीज़ ने चंद्रगुप्त द्वारा सेलेयुकस से जीते गए क्षेत्र को पश्चिमी ओर जेद्रोसिया के रूप में परिभाषित किया, जिसकी सीमाएँ यूफ्रेट्स नदी के साथ साझा होती हैं, और पूर्वी ओर आरकोसिया जो कि इंडस (सिंधू) के साथ साझा करती है। उत्तरी सीमा सीमा हिन्दुकुश पर्वत श्रृंग से बनी होती है:

संद्रोकोट्टोस (चंद्रगुप्त), भारत के राजा, उसका राज्य भूमध्य एशिया के चार भागों में से सबसे बड़ा भाग बनाता है, जबकि सबसे छोटा भाग वह क्षेत्र है जो यूफ्रेट्स नदी और हमारी खुद की समुद्र के बीच आता है। दो बचे हुए भाग, जो यूफ्रेट्स और इंडस से अलग हैं, और इन नदियों के बीच स्थित हैं... भारत की पूर्वी सीमा, दक्षिण की ओर अंत होती है, महासागर द्वारा; कि इसकी उत्तरी सीमा को कॉकोसस रेंज (हिन्दुकुश) तक है, उस सीमा के संग संग कॉकोसस रेंज का मिलन; और वह सीमा।

- मेगस्थनीज़ , इंडिका : पुस्तक I अंश II, [2]


चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य 290 ईशापूर्व

चन्द्रगुप्त का साम्राज्य अत्यन्त विस्तृत था। इसमें लगभग सम्पूर्ण उत्तरी और पूर्वी भारत के साथ साथ उत्तर में बलूचिस्तान, दक्षिण में मैसूर तथा दक्षिण-पश्चिम में सौराष्ट्र तक का विस्तृत भूप्रदेश सम्मिलित था। इनका साम्राज्य विस्तार उत्तर में हिन्द्कुश तक दक्षिण में कर्नाटकतक पूर्व में बंगाल तथा पश्चिम में सौराष्ट्र तक था साम्राज्य का सबसे बड़ा अधिकारी सम्राट स्वयं था। शासन की सुविधा की दृष्टि से सम्पूर्ण साम्राज्य को विभिन्न प्रान्तों में विभाजित कर दिया गया था। प्रान्तों के शासक सम्राट् के प्रति उत्तरदायी होते थे। राज्यपालों की सहायता के लिये एक मन्त्रिपरिषद् हुआ करती थी। केन्द्रीय तथा प्रान्तीय शासन के विभिन्न विभाग थे और सबके सब एक अध्यक्ष के निरीक्षण में कार्य करते थे। साम्राज्य के दूरस्थ प्रदेश सड़कों एवं राजमार्गों द्वारा एक दूसरे से जुड़े हुए थे।

पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) चन्द्रगुप्त की राजधानी थी जिसके विषय में यूनानी राजदूत मेगस्थनीज़ ने विस्तृत विवरण दिए हैं।[37] नगर के प्रशासनिक वृत्तान्तों से हमें उस युग के सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों को समझने में अच्छी सहायता मिलती है।

मौर्य शासन प्रबन्ध की प्रशंसा आधुनिक राजनीतिज्ञों ने भी की है जिसका आधार 'कौटिलीय अर्थशास्त्र' एवं उसमें स्थापित की गई राज्य विषयक मान्यताएँ हैं। चन्द्रगुप्त के समय में शासनव्यवस्था के सूत्र अत्यन्त सुदृढ़ थे।

आर्थिक स्थिति

मौर्यकाल में आर्थिक दशा का विस्तार हुआ। चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल से लेकर अशोक के शासनकाल तक आर्थिक दशा में काफी सुधार हुआ। इस समय मुख्य आजीविका का साधन कृषि थी।

चंद्रगुप्त मौर्य कालीन सिक्का[38]
चन्द्रगुप्त मौर्य की जनपद शासन का नमूना, सहगौरा (जिला गोरखपुर) से पाये गये इस ताम्रपत्र पर यह लेख है-
श्रावस्ती के महामात्यों का मानवसोति शिविर से आदेश - अमुक गाँवों के ये अनाज के कोष्ठागार केवल सूखा पड़ने पर किसानों को बाँटने के लिए है; अकाल के समय ये रोके न जाँय ।[39]
यह ताम्रपत्र चंद्रगुप्त के काल में पड़े अकाल में किए गए व्यवस्था पर प्रकाश डालता है ।

सहगौरा की तरह बांग्लादेश के पुन्द्रवर्धन नगर (महास्थान) से भी एक अभिलेख प्राप्त हुवा जिससे पड़े अकाल के विषय में जानकारी मिलती है ।[40]

मौर्य दरवार में आया सुप्रसिद्ध विद्वान मेगस्थनीज यह मानता है कि भारतवर्ष में अनाज कभी मंहगे नहीं हुये। कृषि की प्रगति के लिये शासन ने एक नीति बनायी थी। कृषि की रक्षा के लिये चरवाहे नियुक्त किये जाते थे। सिंचाई की सुविधा के लिये चन्द्रगुप्त मौर्य ने जूनागढ़ के निकट सुदर्शन झील का निर्माण कराया था।[41] गिरनार के जूनागढ़ अभिलेख में इस सन्दर्भ में कहा गया है-

रुद्रदमन के गिरनार शिलालेख का एक भाग

पंक्ति ९ : "मौर्यस्य राज्ञः चन्द्रगुप्तस्य राष्ट्रियेण वैश्येन पुष्यगुप्तेन कारितम अशोकस्य मौर्यस्य कृते यवनराजेन तुषाष्फेनाधिष्ठाय प्रणालीभिरलं कृतम्" [42][43]

–रुद्रदामन, जूनागढ़ अभिलेख (गुजरात)

अनुवाद: यह (झील) जनपद के लिए मौर्यवंशी राजा चन्द्रगुप्त के प्रांतीय (सामंत) वैश्य पुष्यगुप्त के द्वारा बनवाया गया, मौर्यवंशी अशोक के प्रांतीय सामंत यवनराज तुषास्फ के द्वारा जल निकास की नहरों से अलंडक़ृत किया गया और उसी के द्वारा बनवाई हुई राजोचित व्यवस्था वाली, उस दरार में देखी गई प्रणाली से विस्तृत बांध.......का निर्माण किया गया था।[44]

शासनव्यवस्था

317 ईसापूर्व तक चन्द्रगुप्त ने भारत के उत्तर-पश्चिम में बचे हुए मकदुनियाई छत्रपों पीथोन और यूडेमोस को भी पराजित कर दिया था, जिससे वो बेबीलोन वापस लौट गए।

चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य की शासनव्यवस्था का ज्ञान प्रधान रूप से मेगस्थनीज़ के वर्णन के अवशिष्ट अंशों और कौटिल्य के अर्थशास्त्र से होता है। अर्थशास्त्र में यद्यपि कुछ परिवर्तनों के तीसरी शताब्दी के अन्त तक होने की सम्भावना प्रतीत होती है, यही मूल रूप से चन्द्रगुप्त मौर्य के मन्त्री की कृति थी।

राजा शासन के विभिन्न अंगों का प्रधान था। शासन के कार्यों में वह अथक रूप से व्यस्त रहता था। अर्थशास्त्र में राजा की दैनिक चर्या का आदर्श कालविभाजन दिया गया है। मेगेस्थनीज के अनुसार राजा दिन में नहीं सोता वरन्‌ दिनभर न्याय और शासन के अन्य कार्यों के लिये दरबार में ही रहता है, मालिश कराते समय भी इन कार्यों में व्यवधान नहीं होता, केशप्रसाधन के समय वह दूतों से मिलता है। स्मृतियों की परम्परा के विरुद्ध अर्थशास्त्र में राजाज्ञा को धर्म, व्यवहार और चरित्र से अधिक महत्व दिया गया है। मेगेस्थनीज और कौटिल्य दोनों से ही ज्ञात होता है कि राजा के प्राणों की रक्षा के लिये समुचित व्यवस्था थी। राजा के शरीर की रक्षा अस्त्रधारी स्त्रियाँ करती थीं। मेगेस्थनीज का कथन है कि राजा को निरन्तर प्राणभ्य लगा रहता है जिससे हर रात वह अपना शयनकक्ष बदलता है। राजा केवल युद्धयात्रा, यज्ञानुष्ठान, न्याय और आखेट के लिये ही अपने प्रासाद से बाहर आता था। आखेट के समय राजा का मार्ग रस्सियों से घिरा होता था जिनकों लाँघने पर प्राणदण्ड मिलता था।

अर्थशास्त्र में राजा की सहायता के लिये मन्त्रिपरिषद् की व्यवस्था है। कौटिल्य के अनुसार राजा को बहुमत मानना चाहिए और आवश्यक प्रश्नों पर अनुपस्थित मन्त्रियों का विचार जानने का उपाय करना चाहिए। मन्त्रिपरिषद् की मन्त्रणा को गुप्त रखते का विशेष ध्यान रखा जाता था। मेगेस्थनीज ने दो प्रकार के अधिकारियों का उल्लेख किया है - मन्त्री और सचिव। इनकी सख्या अधिक नहीं थी किन्तु ये बड़े महत्वपूर्ण थे और राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त होते थे। अर्थशास्त्र में शासन के अधिकारियों के रूप में 18 तीर्थों का उल्लेख है। शासन के विभिन्न कार्यों के लिये पृथक्‌ विभाग थे, जैसे कोष, आकर, लक्षण, लवण, सुवर्ण, कोष्ठागार, पण्य, कुप्य, आयुधागार, पौतव, मान, शुल्क, सूत्र, सीता, सुरा, सून, मुद्रा, विवीत, द्यूत, वन्धनागार, गौ, नौ, पत्तन, गणिका, सेना, संस्था, देवता आदि, जो अपने अपने अध्यक्षों के अधीन थे।

मेगस्थनीज के अनुसार राजा की सेवा में गुप्तचरों की एक बड़ी सेना होती थी। ये अन्य कर्मचारियों पर कड़ी दृष्टि रखते थे और राजा को प्रत्येक बात की सूचना देते थे। अर्थशास्त्र में भी चरों की नियुक्ति और उनके कार्यों को विशेष महत्व दिया गया है।

मेगस्थनीज ने पाटलिपुत्र के नगरशासन का वर्णन किया है जो संभवत: किसी न किसी रूप में अन्य नगरों में भी प्रचलित रही होगी। अर्थशास्त्र में नगर का शसक नागरिक कहलाता है औरउसके अधीन स्थानिक और गोप होते थे।

शासन की इकाई ग्राम थे जिनका शासन ग्रामिक ग्रामवृद्धों की सहायता से करता था। ग्रामिक के ऊपर क्रमश: गोप और स्थानिक होते थे।

अर्थशास्त्र में दो प्रकार की न्यायसभाओं का उल्लेख है और उनकी कार्यविधि तथा अधिकारक्षेत्र का विस्तृत विवरण है। साधारण प्रकार धर्मस्थीय को दीवानी और कण्टकशोधन को फौजदारी की अदालत कह सकते हैं। दण्डविधान कठोर था। शिल्पियों का अंगभंग करने और जानबूझकर विक्रय पर राजकर न देने पर प्राणदण्ड का विधान था। विश्वासघात और व्यभिचार के लिये अंगच्छेद का दण्ड था।

मेगस्थनीज ने राजा को भूमि का स्वामी कहा है। भूमि के स्वामी कृषक थे। राज्य की जो आय अपनी निजी भूमि से होती थी उसे सीता और शेष से प्राप्त भूमिकर को भाग कहते थे। इसके अतिरिक्त सीमाओं पर चुंगी, तटकर, विक्रयकर, तोल और माप के साधनों पर कर, द्यूतकर, वेश्याओं, उद्योगों और शिल्पों पर कर, दण्ड तथा आकर और वन से भी राज्य को आय थी।

अर्थशास्त्र का आदर्श है कि प्रजा के सुख और भलाई में ही राजा का सुख और भलाई है। अर्थशास्त्र में राजा के द्वारा अनेक प्रकार के जनहित कार्यों का निर्देश है जैसे बेकारों के लिये काम की व्यवस्था करना, विधवाओं और अनाथों के पालन का प्रबन्ध करना, मजदूरी और मूल्य पर नियन्त्रण रखना। मेगस्थनीज ऐसे अधिकारियों का उल्लेख करता है जो भूमि को नापते थे और, सभी को सिंचाई के लिये नहरों के पानी का उचित भाग मिले, इसलिये नहरों को प्रणालियों का निरीक्षण करते थे। सिंचाई की व्यवस्था के लिये चन्द्रगुप्त ने विशेष प्रयत्न किया, इस बात का समर्थन रुद्रदामन्‌ के जूनागढ़ के अभिलेख से होता है। इस लेख में चन्द्रगुप्त के द्वारा सौराष्ट्र में एक पहाड़ी नदी के जल को रोककर सुदर्शन झील के निर्माण का उल्लेख है।

मेगस्थनीज ने चन्द्रगुप्त के सैन्यसंगठन का भी विस्तार के साथ वर्णन किया है। चन्द्रगुप्त की विशाल सेना में छ: लाख से भी अधिक सैनिक थे। सेना का प्रबन्ध युद्धपरिषद् करती थी जिसमें पाँच पाँच सदस्यों की छ: समितियाँ थीं। इनमें से पाँच समितियाँ क्रमश: नौ, पदाति, अश्व, रथ और गज सेना के लिये थीं। एक समिति सेना के यातायात और आवश्यक युद्धसामग्री के विभाग का प्रबंध देखती थी। मेगेस्थनीज के अनुसार समाज में कृषकों के बाद सबसे अधिक संख्या सैनिकों की ही थी। सैनिकों को वेतन के अतिरिक्त राज्य से अस्त्रशस्त्र और दूसरी सामग्री मिलती थीं। उनका जीवन सम्पन्न और सुखी था।

चन्द्रगुप्त मौर्य की शासनव्यवस्था की विशेषता सुसंगठित नौकरशाही थी जो राज्य में विभिन्न प्रकार के आँकड़ों को शासन की सुविधा के लिये एकत्र करती थी। केन्द्र का शासन के विभिन्न विभागों और राज्य के विभिन्न प्रदेशों पर गहरा नियन्त्रण था। आर्थिक और सामाजिक जीवन की विभिन्न दिशाओं में राज्य के इतने गहन और कठोर नियन्त्रण की प्राचीन भारतीय इतिहास के किसी अन्य काल में हमें कोई सूचना नहीं मिलती। ऐसी व्यवस्था की उत्पत्ति का हमें पूर्ण ज्ञान नहीं है। कुछ विद्वान हेलेनिस्टिक राज्यों के माध्यम से शाखामनी ईरान का प्रभाव देखते हैं। इस व्यवस्था के निर्माण में कौटिल्य ओर चन्द्रगुप्त की मौलिकता को भी उचित महत्व मिलना चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है कि यह व्यवस्था नितान्त नवीन नहीं थी। सम्भवत: पूर्ववर्ती मगध के शासकों, विशेष रूप से नन्दवंशीय नरेशों ने इस व्यवस्था की नींव किसी रूप में डाली थी।

कला और वास्तुकला

चंद्रगुप्त के समय की कला और वास्तुकला के साक्ष्य ज्यादातर मेगस्थनीज और कौटिल्य जैसे ग्रंथों तक ही सीमित हैं। स्मारकीय स्तंभों पर शिलालेख और नक्काशी का श्रेय उनके पोते अशोक को दिया जाता है।[45]

Statue
चंद्रगुप्त मौर्य कालीन तीसरी शताब्दी ईसापूर्व में निर्मित दीदारगंज यक्षी की प्रतिमा, 1917 में गंगा के तट पर उत्खनन में खोजी गई।[46][47]
Statue
सातवहनों द्वारा निर्मित अशोक की पहली शताब्दी ईसापूर्व की मूर्ति अमरावती स्तूप से मिली, बगल में दीदारगंज यक्षी से मिलती जुलती प्रतिमा।

आधुनिक युग में पुरातात्विक खोजें, जैसे कि 1917 में गंगा के किनारे दबी हुई दीदारगंज यक्षी की खोज असाधारण कारीगरी की उपलब्धि का संकेत देती है।[48][49] लगभग सभी विद्वानों द्वारा इस मूर्ती का समय ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी बताया गया है।[48][49] लेकिन फ्रेडरिक आशेर ने इस पर निराधार सवाल उठाया।[50]

मौर्य का वंश

चन्द्रगुप्त मौर्य , पुराणों और धर्मसाहित्यग्रंथों, के अनुसार क्षत्रिय हैं और पिप्पलिवन के राजा चंद्रवर्द्धन मोरिया के पुत्र हैं। गुप्त वंश कालीन मुद्राराक्षस नामक संस्कृत नाटक चन्द्रगुप्त को "वृषल" कहता है। 'वृषल' का अर्थ "सर्वश्रेष्ठ राजा" होता है। इतिहासकार राधा कुमुद मुखर्जी का विचार है कि इसमें वृषल का अर्थ (सर्वश्रेष्ठ राजा) ही उपयुक्त है। जैन परिसिष्टपर्वन् के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य मयूरपोषकों के एक ग्राम के मुखिया की पुत्री से उत्पन्न थे। मध्यकालीन अभिलेखों के साक्ष्य के अनुसार वे मौर्य सूर्यवंशी मान्धाता से उत्पन्न थे।[51] बौद्ध साहित्य में वे मौर्य क्षत्रिय कहे गए हैं। महावंश चन्द्रगुप्त मौर्य को क्षत्रियों से पैदा हुआ बताता है। दिव्यावदान में बिन्दुसार स्वयं को "मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय" कहते हैं। अशोक भी स्वयं को क्षत्रिय बताते हैं। महापरिनिब्बान सुत्त से मोरिय पिप्पलिवन के शासक, गणतान्त्रिक व्यवस्थावाली जाति सिद्ध होते हैं। "पिप्पलिवन" ई.पू. छठी शताब्दी में नेपाल की तराई में स्थित रुम्मिनदेई से लेकर आधुनिक कुशीनगर जिले के कसया प्रदेश तक को कहते थे।

मगध साम्राज्य की प्रसारनीति के कारण इनकी स्वतन्त्र स्थिति शीघ्र ही समाप्त हो गई। यही कारण था कि चन्द्रगुप्त का मयूरपोषकों, चरवाहों तथा लुब्धकों के सम्पर्क में पालन हुआ। परम्परा के अनुसार वह बचपन में अत्यन्त तीक्ष्णबुद्धि था, एवं समवयस्क बालकों का सम्राट् बनकर उनपर शासन करता था। ऐसे ही किसी अवसर पर चाणक्य की दृष्टि उसपर पड़ी, फलतः चन्द्रगुप्त तक्षशिला गए जहाँ उन्हें राजोचित शिक्षा दी गई। ग्रीक इतिहासकार जस्टिन के अनुसार सेन्ड्रोकोट्स (चन्द्रगुप्त) साधारणजन्मा था।

तेषामभावे मौर्याः पृथ्वीं भोक्ष्यन्ति ॥२७॥
कौटिल्य एवं चन्द्रगुप्तमुत्पन्नं राज्येऽभिक्ष्यति ॥२८॥ (विष्णु पुराण)[52]

हिन्दी अर्थ---तदन्तर इन नव नन्दो को कौटिल्य नामक एक ब्राह्मण मरवा देगा। उसके अन्त होने के बाद मौर्य नृप राजा पृथ्वी पर राज्य भोगेंगे। कौटिल्य ही मौर्य से उत्पन्न चन्द्रगुप्त को राज्या-अभिषिक्त करेगा।

बौध्य ग्रन्थो के अनुसार चन्द्रगुप्त क्षत्रिय और चाणक्य ब्राह्मण थे।

मोरियान खत्तियान वसजात सिरीधर।
चन्दगुत्तो ति पञ्ञात चणक्को ब्रह्मणा ततो ॥१६॥
नवामं घनान्दं तं घातेत्वा चणडकोधसा।
सकल जम्बुद्वीपस्मि रज्जे समिभिसिच्ञ सो १७॥ (महावंश)[53]

हिन्दी अर्थ- मौर्यवंश नाम के क्षत्रियों में उत्पन्न श्री चन्द्रगुप्त को चाणक्य नामक ब्राह्मण ने नवे घनानन्द को चन्द्रगुप्त के हाथों मरवाकर सम्पूर्ण जम्मू दीप का राजा अभिषिक्त किया।

इसके अतिरिक्त भविष्य पुराण भी चन्द्रगुप्त मौर्य को बुद्ध का वंसज घोषित करता है :

एतस्मित्रेव काले तु कलिना संस्मृतो हरिः । काश्यपादुद्भवो देवो गौतमो नाम विश्रुतः।। बौद्धधर्मं च संस्कृत्य पट्टणे प्राप्तवान्हरिः । दशवर्ष कृतं राज्य तस्माच्छाक्यमुनिः स्मृतः ।। चन्द्रगुप्तस्तस्य सुतः पौरसाधिपतेः सुताम्। सुलूवस्य तथोद्वह्य यावनीबौद्धतत्परः ।। षष्ठिवर्ष कृतं राज्यं बिन्दुसारस्ततोऽभवत्। पितृस्तुल्यं कृतं राज्यमशोकस्तनयोऽभवत्।।

( भविष्य पुराण प्रतिसर्गपर्व, प्रथम खंड, षष्ठम अध्याय, श्लोक 36,37 ,43,44)[54]

हिन्दी अर्थ- उसी समय कलि ने प्रार्थना करके भगवान को प्रसन्न किया। प्रसन्न होकर हरि ने काश्यप द्वारा गौतम के नाम से जन्म ग्रहण किया ऐसा कहा गया है। उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाकर पाटलिपुत्र जाकर दशवर्ष तक राज्य किया, पश्चात उनके शाक्य मुनि हुए। भगवान बुद्ध के वंशज चन्द्रगुप्त हुए, जिसने पोरसाधिपति की पुत्री और सेलुकस की पुत्री उस यवनी के साथ पाणिग्रहण करके उसने बौद्ध पत्नी समेत साठ वर्ष तक राज्य किया। चन्द्रगुप्त के बिन्दुसार हुआ अपने पिता के समान काल तक राज्य किया। बिन्दुसार के अशोक हुए।

मौर्य इतिहास के स्रोत

मौर्य इतिहास स्रोत प्रामाणिक नाम
जैन ग्रंथ

1 - बृहतकल्प सूत्र

2 - बृहत्कथाकोश

3 - आराधना सत्कथाप्रबंध

4 - श्रीचंद्रविरचित कथाकोश

5 - नेमिचंद्रकृत कथाकोश

6 - परिशिष्टपर्वन्

7 - विविधतीर्थकल्प

8 - पुण्याश्रवकथाकोश

9 - निशीथ सूत्र

बौद्ध ग्रंथ

1 - महावंश

2‌‌ - दीपवंश

3‌‌ - महाबोधिवंश

4 - त्रिपिटक

5 - दिव्यावदान

6 - अशोकावदान

7 ‌- विनयपितक

8 - महावंसटीका (वंसत्थप्पकासिनी)

9 - उत्तरविहार अट्ठकथा

वैदिक ग्रंथ

1 - मत्स्य पुराण

2 - विष्णु पुराण

3‌ - भागवत पुराण

4 - भविष्य पुराण

5 - ब्रह्मांड पुराण

6 - वायु पुराण

7 - कामंदक नीतिसार

अभिलेख / शिलालेख प्रमाण

1 - अशोक के शिलालेख , गुफ़ा अभिलेख , स्तंभ अभिलेख

2 - खारवेल के हाथीगुम्फा शिलालेख

3‌ - रुद्रदामन् का गिरनार शिलालेख

प्राचीन ऐतिहासिक पुस्तक

1 - अर्थशास्त्र , कौटिल्य

2 - मुद्रा राक्षस , विशाखादत्त

3 - महाभाष्य , पतंजलि

4 - मालविकाग्निमित्रम् , कालीदास

5 - हर्षचरित , बाणभट्ट

6 - राजतरंगिणी , कल्हण

7 - Indica , मेगास्थेनेस

8 - Naturalis Historia ,प्लिनी

9 - Epitome of Trogus , जस्टिन

10 - Geographica , स्ट्रैबो

11 - Anabasis Alexandri , एरियन

12 - The travels of Fa-Hian, फ़ा हियान

13 - Si-yu-ki , ह्वेन त्सांग

14 - Life of Alexander, प्लूटार्क

लोकप्रिय संस्कृति में

  • मुद्राराक्षस एक राजनीतिक नाटक है संस्कृत में, विशाखदत्त द्वारा रचित, जो चंद्रगुप्त के विजय के 600 वर्ष बाद संग्रहीत हुआ - शायद 300 ईसा पूर्व और 700 ईसा के बीच।[55]
  • डी. एल. राय ने चंद्रगुप्त के जीवन पर आधारित एक बंगाली नाटक लिखा था चंद्रगुप्त नामक। नाटक की कहानी पुराणों और यूनानी इतिहास से उधारी गई है।[56]
  • मौर्य साम्राज्य के गठन में चाणक्य की भूमिका डॉ. मैसूर एन. प्रकाश द्वारा लिखी गई ऐतिहासिक/आध्यात्मिक उपन्यास द कोर्टिज़न एंड द साधु की सार है।[57]
  • चंद्रगुप्त एक 1920 की भारतीय नैर्मल फिल्म है जो मौर्य सम्राट के बारे में है।[58]
  • चंद्रगुप्त एक 1934 की भारतीय फ़िल्म है, जिसका निर्देशन अब्दुर रशीद कारदार ने किया।
  • चंद्रगुप्त चाणक्य एक भारतीय तमिल-भाषा का ऐतिहासिक नाटक फ़िल्म है जिसका निर्देशन सी. के. साची ने किया, जिसमें भवानी के. संबमुर्थी ने चंद्रगुप्त की भूमिका निभाई।
  • सम्राट चंद्रगुप्त एक 1945 की भारतीय ऐतिहासिक फ़िल्म है जयंत देसाई द्वारा।[59]
  • सम्राट चंद्रगुप्त एक 1958 की भारतीय ऐतिहासिक काल्पनिक फ़िल्म है बाबूभाई मिस्त्री द्वारा, 1945 की फ़िल्म का पुनः निर्माण। इसमें मुख्य भूमिका में भारत भूषण नजर आते हैं।[60]
  • चाणक्य और चंद्रगुप्त की कहानी को 1977 में तेलुगू में एक फ़िल्म बनाई गई जिसका नाम था चाणक्य चंद्रगुप्त[61]
  • टेलीविजन धारावाहिक चाणक्य चाणक्य के जीवन और काल का वर्णन है, जो नाटक मुद्रा रक्षस (राक्षस की चिन्हित अंगूठी) पर आधारित है।[62]
  • 2011 में, एक टेलीविजन धारावाहिक नामक चंद्रगुप्त मौर्य इमेज़िन TV पर प्रसारित हुआ।[63][64][65]
  • 2016 में, टेलीविजन धारावाहिक चंद्र नंदिनी एक काल्पनिक रोमांस उपाख्यान था।[66]
  • 2018 में, एक टेलीविजन धारावाहिक नामक चंद्रगुप्त मौर्य चंद्रगुप्त मौर्य की जीवन का चित्रण करता है।[67]
  • सिविलाइजेशन VI: राइज एंड फॉल एक्सपेंशन में भारतीय नागरिकता के लिए चंद्रगुप्त नेतृत्व करते हैं।[68]
  • नोबुनागा द फूल, एक जापानी स्टेज प्ले और एनिमे, में चंद्रगुप्त नामक एक चरित्र शामिल है।
  • 2001 की फिल्म अशोक, जिसका निर्देशन संतोष सिवन ने किया, बॉलीवुड निर्माता उमेश मेहरा ने चंद्रगुप्त मौर्य की भूमिका निभाई।

विरासत

२००१ में भारतीय डाक सेवा ने चंद्रगुप्त मौर्य को समर्पित एक यादगार डाक टिकट जारी किया।[70]
२००१ में भारतीय डाक सेवा ने चंद्रगुप्त मौर्य को समर्पित एक यादगार डाक टिकट जारी किया।[70] 

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ ग्रन्थ

  • राधा कुमुद मुकर्जी : चंद्रगुप्तमौर्य ऐंड हिज टाइम्स;
  • सत्यकेतु विद्यालंकार : मौर्य साम्राज्य का इतिहास;
  • मैक्रिंडिल : एंश्येंट इंडिया ऐज़ डिस्क्राइब्ड बाइ मेगस्थनीज़ ऐंड एरिअन;
  • कौटिल्य का अर्थशास्त्र
  • हेमचंद्र रायचौधुरी : पोलिटिकल हिस्ट्री ऑव ऐशेंट इंडिया, पृ. 264-295, (षष्ठ संस्करण) कलकत्ता, 1953;
  • दि एज ऑव इम्पीरीयल यूनिटी (र.च. मजूमदार एवं अ.द. पुसालकर संपादित) पृ. 5469, बंबई, 1960;
  • एज ऑव नंदाज ऐंड दि मौर्याज (के.ए. नीलकंठ शास्त्री संपादित), पृ. 132-165, बनारस, 1952;
  • द केंब्रिज हिस्ट्री ऑव इंडिया (ई.आर. रैप्सन संपादित), भाग 1, पृ. 467-473, कैंब्रिज, 1922
  • (महापरिनिब्बानसुत्त)
  • विष्णु-पुराण
  • "चन्द्रगुप्त मौर्य और उसका वंश"[71] - डॉ. आज्ञाराम शाक्य (ISBN: ‎9789390894840) पृ. 247 - राजमंगल प्रकाशन, 2021
  • लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।

सन्दर्भ

  1. Sastri 1988, पृ॰प॰ 163–164.
  2. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  3. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  4. Kulke and Rothermund १९९८:६२
  5. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  6. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  7. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  8. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  9. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  10. Dikshitar 1993, पृ॰प॰ 264–266.
  11. "Pg.105 : Net result of the expedition, however, clearly indicate that Seleucus met with a miserable failure. For he had not only to finally abandon the idea of reconquering the Panjab, but had to buy peace by ceding Paropanisadai, Arachosia, and Aria, three rich provinces with the cities now known as Kabul, Kandähär and Herät respectively as their capitals, and also Gedrosia (Baluchistan), or at least a part of it." लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  12. "Pg.60 : Seleucus had to purchase peace by ceding to Chandragupta territories then known as Aria, Arachosia, and Paropanisadae (the capitals of which were respectively the cities now known as Herat, Kandahar and Kabul), and probably also a part of Gedrosia (Baluchistan). In return Chandragupta presented him with 500 war elephants. The terms of the peace leave no doubt that the Greek ruler fared badly at the hands of Chandragupta. His defeat and discomfiture at the hands of an Indian ruler would naturally be passed over by Greek writers, and their silence goes decidedly against Seleucus. The peace was ratified by a matrimonial alliance between the rival parties. This has been generally taken to mean that Chandragupta married a daughter of Seleucus, but this is not warranted by known facts. Henceforth Seleucus maintained friendly relations with the Mauryan Court and sent Megasthanes as his ambassador who lived in Pataliputra for a long time and wrote a book on India." लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  13. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  14. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  15. Strabo, Geography, xv.2.9
  16. विदेशी प्रभाव द्वारा प्राचीन भारत, कृष्ण चंद्र सागर, नॉर्दर्न बुक सेंटर, 1992, पृ॰83 [1]
  17. Original Sanskrit of the first two verses given in Foreign Influence on Ancient India, Krishna Chandra Sagar, Northern Book Centre, 1992, p.83: "Chandragupta Sutah Paursadhipateh Sutam. Suluvasya Tathodwahya Yavani Baudhtatapar".
  18. Radhakumud Mukharjee 1940, पृ॰ 165.
  19. Vincent Smith 1924, पृ॰ 132.
  20. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  21. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  22. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  23. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  24. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  25. Mookerji 1988, पृ॰प॰ 6–8, 31–33.
  26. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  27. Kosmin 2014, पृ॰ 33–34.
  28. Justin XV.4.12-13
  29. Radha Kumud Mookerji, Chandragupta Maurya and His Times, 4th ed. (Delhi: Motilal Banarsidass, 1988 [1966]), 31, 28–33.
  30. Thapar 2013, पृ॰प॰ 362–364.
  31. Sen 1895, पृ॰प॰ 26–32.
  32. Upinder Singh 2008, पृ॰ 272.
  33. Hemacandra 1998, पृ॰प॰ 175–188.
  34. Malalasekera 2002, पृ॰ 383.
  35. Mookerji 1988, पृ॰प॰ 33-34.
  36. " Pg.106 - Seleucid Kingdom Another Hellenistic monarchy was founded by the general Seleucus (suh-LOO-kuss), who established the Seleucid dynasty of Syria. This was the largest of the Hellenistic kingdoms and controlled much of the old Persian Empire from Turkey in the west to India in the east, although the Seleucids found it increasingly difficult to maintain control of the eastern territories. In fact, an Indian ruler named Chandragupta Maurya (chundruh-GOOP-tuh MOWR-yuh) (324-301 B.c.E.) created a new Indian state, the Mauryan Empire, and drove out the Seleucid forces. ... The Seleucid rulers maintained relations with the Mauryan Empire. Trade was fostered, especially in such luxuries as spices and jewels. Seleucus also sent Greek and Macedonian ambassadors to the Mauryan court. Best known of these was Megasthenes (muh-GAS-thuh-neez), whose report on the people of India remained one of the Western best sources of information on India until the Middle Ages. " लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  37. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  38. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  39. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  40. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  41. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  42. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  43. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  44. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  45. Harrison 2009, पृ॰प॰ 234–235.
  46. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  47. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  48. Guha-Thakurta 2006, पृ॰प॰ 51–53, 58–59.
  49. Varadpande 2006, पृ॰प॰ 32–34 with Figure 11.
  50. Asher 2015, पृ॰प॰ 421–423.
  51. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  52. https://www.google.co.in/books/edition/The_critical_edition_of_the_Viṣṇupur/cTwqAAAAYAAJ?hl=en&gbpv=1&bsq=तेषामभावे+मौर्याः+पृथ्वीं+भोक्ष्यन्ति&dq=तेषामभावे+मौर्याः+पृथ्वीं+भोक्ष्यन्ति&printsec=frontcover
  53. https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.408278/page/n201/mode/2up
  54. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  55. Roy 2012, पृ॰प॰ 61–62.
  56. Ghosh 2001, पृ॰प॰ 44–46.
  57. The Courtesan and the Sadhu, A Novel about Maya, Dharma, and God, अक्टूबर 2008, धर्म विज़न एलएलसी., ISBN 978-0-9818237-0-6, पुस्तकालय कंट्रोल संख्या: 2008934274
  58. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  59. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  60. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  61. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  62. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  63. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  64. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  65. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  66. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  67. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  68. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।
  69. Vallely 2018, पृ॰प॰ 182–183.
  70. चंद्रगुप्त मौर्य पर यादगार डाक टिकट, प्रेस जानकारी ब्यूरो, भारत सरकार
  71. लुआ त्रुटि Module:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 44 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।