"रामदेव पीर": अवतरणों में अंतर
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'''इन्होंने सातलमेर में जा कर अपनी बहिन सुगना बाई का विवाह किया था और पोकरण दहेज में दे दिया''' |
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'''नोट:- राणा कुम्भा कि पुत्री रम्मा बाई का विवाह भी सातलमेर में हुआ था''' |
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और वहां उन्होंने एक पंथ की शुरुआत की जिसे कामडीया पंथ के नाम से जानते है (जो हिन्दू बने मुस्लिमों को वापिस हिन्दू बनाने के लिए किया गया था ) |
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रामदेवजी का जन्म भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को हुआ था जिसे बाबे री बीज के नाम से जानते है और इसे अवतार की तिथि के नाम से भी जानते है |
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रामदेवजी की ध्वजा के रंगों की सख्या 5 होती है ,जिसे नेजा के नाम से जानते है '''रामदेवजी जी कसम खाते है उसे आण कहते है''' |
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⚫ | '''रामदेव'''रुणिचाारा दनी, बा रामदेव, रामसा पीर,रामदेव पीर)<ref>{{Cite web |url=http://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-mahapurush/ramapeer-114102900012_1.html |title=रामदेव जी के पर्चे |access-date=3 जून 2017 |archive-url=https://web.archive.org/web/20170615171217/http://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-mahapurush/ramapeer-114102900012_1.html |archive-date=15 जून 2017 |url-status=live }}</ref> [[राजस्थान]] के एक लोक देवता हैं जिनकी पूजा सम्पूर्ण राजस्थान व गुजरात समेत कई भारतीय राज्यों में की जाती है। इनके समाधि-स्थल [[रामदेवरा]] ([[जैसलमेर जिला|जैसलमेर]]) पर भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष द्वितीया को भव्य मेला लगता है, जहाँ पर देश भर से लाखों श्रद्धालु पहुँचते है। |
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वे चौदहवीं सदी के एक शासक थे, जिनके पास मान्यतानुसार चमत्कारी शक्तियां थीं। उन्होंने अपना सारा जीवन गरीबों तथा दलितों के उत्थान के लिए समर्पित किया। भारत में कई समाज उन्हें अपने इष्टदेव के रूप में पूजते हैं। उन्हें [[श्रीकृष्ण]] का अवतार माना जाता है। |
वे चौदहवीं सदी के एक शासक थे, जिनके पास मान्यतानुसार चमत्कारी शक्तियां थीं। उन्होंने अपना सारा जीवन गरीबों तथा दलितों के उत्थान के लिए समर्पित किया। भारत में कई समाज उन्हें अपने इष्टदेव के रूप में पूजते हैं। उन्हें [[श्रीकृष्ण]] का अवतार माना जाता है। |
15:27, 21 जुलाई 2020 का अवतरण
रामदेव जी | |
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रुणिचा के शासक तथा समाज सुधारक | |
उत्तरवर्ती | अजमल जी |
जन्म | भाद्रपद शुक्लदूज वि.स. 1462 उण्डू काश्मीर, तहसील शिव जिला बाड़मेर |
निधन | वि.स. 1498 रामदेवरा |
समाधि | रामदेवरा |
पिता | अजमलजी तंवर |
माता | मैणादेवी |
धर्म | हिन्दू |
रामदेवजी के मंदिर को रामदेवरा के नाम से जानते है,
रामदेवजी की सगी बहन का नाम सुगना बाई और धर्म बहिन का नाम डाली बाई था
इन्होंने सातलमेर में जा कर अपनी बहिन सुगना बाई का विवाह किया था और पोकरण दहेज में दे दिया
नोट:- राणा कुम्भा कि पुत्री रम्मा बाई का विवाह भी सातलमेर में हुआ था
उसके बाद ये रुणिचा गए और वहां इन्होंने एक धर्म बहिन बनाई जिसका नाम डाली बाई था जो मेगवाल जाती की थी
जिनके साथ रुणिचा में भेदभाव होता था ,
और वहां उन्होंने एक पंथ की शुरुआत की जिसे कामडीया पंथ के नाम से जानते है (जो हिन्दू बने मुस्लिमों को वापिस हिन्दू बनाने के लिए किया गया था )
रामदेवजी के मंंदिर को रामदेवरा के
रामदेवजी का जन्म भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को हुआ था जिसे बाबे री बीज के नाम से जानते है और इसे अवतार की तिथि के नाम से भी जानते है
रामदेवजी की ध्वजा के रंगों की सख्या 5 होती है ,जिसे नेजा के नाम से जानते है रामदेवजी जी कसम खाते है उसे आण कहते है
रामदेव
रामदेवरुणिचाारा दनी, बा रामदेव, रामसा पीर,रामदेव पीर)[1] राजस्थान के एक लोक देवता हैं जिनकी पूजा सम्पूर्ण राजस्थान व गुजरात समेत कई भारतीय राज्यों में की जाती है। इनके समाधि-स्थल रामदेवरा (जैसलमेर) पर भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष द्वितीया को भव्य मेला लगता है, जहाँ पर देश भर से लाखों श्रद्धालु पहुँचते है।
वे चौदहवीं सदी के एक शासक थे, जिनके पास मान्यतानुसार चमत्कारी शक्तियां थीं। उन्होंने अपना सारा जीवन गरीबों तथा दलितों के उत्थान के लिए समर्पित किया। भारत में कई समाज उन्हें अपने इष्टदेव के रूप में पूजते हैं। उन्हें श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है।
पृष्ठभूमि
उन्हें भगवान विष्णु का कल्कि अवतार माना जाता है। राजा अजमल ने रानी मिनलदेवी से विवाह किया। राजा अजमल निःसंतान होने से दुखी थे। उन्होंने द्वारका जाकर श्रीकृष्ण से प्रार्थना की कि उन्हें उनके जैसी संतान प्राप्त हो। उनके दो पुत्र हुए, बड़े बिरमदेव और छोटे पुत्र रामदेव। रामदेव का जन्म वि.स. १४०५ में भाद्र शुक्ल दूज को बाड़मेर जिले के रामदेरिया, उंडू-काश्मीर में एक राजपूत परिवार में हुआ।
बाबा रामदेव मुस्लिमों के भी आराध्य हैं और वे उन्हें रामसा पीर या रामशाह पीर के नाम से पूजते हैं। रामदेवजी के पास चमत्कारी शक्तियां थी तथा उनकी ख्याति दूर दूर तक फैली। किंवदंती के अनुसार मक्का से पांच पीर रामदेव की शक्तियों का परीक्षण करने आए। रामदेवजी ने उनका स्वागत किया तथा उनसे भोजन करने का आग्रह किया। पीरों ने मना करते हुए कहा वे सिर्फ अपने निजी बर्तनों में भोजन करते हैं, जो कि इस समय मक्का में हैं। इस पर रामदेव मुस्कुराए और उनसे कहा कि देखिए आपके बर्तन आ रहे हैं और जब पीरों ने देखा तो उनके बर्तन मक्का से उड़ते हुए आ रहे थे। रामदेवजी की क्षमताओं और शक्तियों से संतुष्ट होकर उन्होंने उन्हें प्रणाम किया तथा उन्हें राम शाह पीर का नाम दिया। रामदेव की शक्तियों से प्राभावित होकर पांचों पीरों ने उनके साथ रहने का निश्चय किया। उनकी मज़ारें भी रामदेव की समाधि के निकट स्थित हैं।[2]
रामदेव सभी मनुष्यों की समानता में विश्वास करते थे, चाहे वह उच्च या निम्न हो, अमीर या गरीब हो। उन्होंने दलितों को उनकी इच्छानुसार फल देकर उनकी मदद की। उन्हें अक्सर घोड़े पर सवार दर्शाया जाता है। उनके अनुयायी राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, मुंबई, दिल्ली के साथ पाकिस्तान के सिंध तक फैले हुए हैं। राजस्थान में कई मेले आयोजित किए जाते हैं। उनके मंदिर भारत के कई राज्यों में स्थित हैं।
समाधि
बाबा रामदेव ने वि.स. १४४२ में भाद्रपद शुक्ल एकादशी को राजस्थान के रामदेवरा (पोकरण से 10 कि.मी.) में जीवित समाधि ले ली।
रामदेव जयंती
रामदेव जयंती, अर्थात् बाबा का जन्मदिवस प्रतिवर्ष उनके भक्तों द्वारा सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है। यह तिथि हिन्दू पंचांग के भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की दूज पर पड़ती है। इस दिन राजस्थान में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाता है और रामदेवरा के मंदिर में एक अंतरप्रांतीय मेले का आयोजन होता है जिसे "भादवा का मेला" कहते हैं। इस मेले में देश के हर कोने से लाखों हिन्दू और मुस्लिम श्रद्धालु यात्रा करते हुए पहुंचते हैं तथा बाबा की समाधि पर नमन करते हैं।[3]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ "रामदेव जी के पर्चे". मूल से 15 जून 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जून 2017.
- ↑ India today, Volume 18, Issues 1-12. लिविंग मीडिया इंडिया प्राइवेट लिमिटेड. 1993. पृ॰ ६१. मूल से 23 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 अप्रैल 2020.
- ↑ "भादवा मेला : दर्शनों के लिए लगी लंबी कतारें माता-पिता की गोद व कंधों पर बच्चे रहे सवार". दैनिक भास्कर. २६ अगस्त २०१९. मूल से 10 अक्तूबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 अप्रैल 2020.