विजित एवं सत्तांतरित प्रांत

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विजित एवं सत्तान्तरित प्रान्त
कंपनी राज
 

1805 – 1834
राजधानी आगरा
इतिहास
 - स्थापना 1805
 - अस्थापना 1834
क्षेत्रफल
 - 1835 9,479 किमी² (3,660 वर्ग मील)
जनसंख्या
 - 1835 45,00,000 
     घनत्व 474.7 /किमी²  (1,229.6 /वर्ग मील)
वर्तमान भाग उत्तर प्रदेश
उत्तराखण्ड
हरयाणा
दिल्ली

विजित एवं सत्तान्तरित प्रान्त १८०५ से १८३४ तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा शासित उत्तर भारत का एक क्षेत्र था;[1]इसकी सीमाएं वर्तमान उत्तर प्रदेश राज्य के समान थी, हालांकि अवध के लखनऊ और फ़ैज़ाबाद मण्डल इसमें शामिल नहीं थे; इसके अलावा, इसमें दिल्ली क्षेत्र और, १८१६ के बाद, वर्तमान उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ मण्डल और गढ़वाल मंडल का एक बड़ा हिस्सा[2] भी शामिल था।  १८३६ में यह क्षेत्र एक लेफ्टिनेंट-गवर्नर द्वारा प्रशासित उत्तर-पश्चिमी प्रान्त बन गया, और १९०४ में संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध के भीतर आगरा प्रान्त बन गया.

सत्तान्तरित प्रांत[संपादित करें]

१९ वीं शताब्दी के प्रारम्भ में वर्तमान उत्तर प्रदेश राज्य का केवल वाराणसी मंडल और इलाहाबाद का किला ही ब्रिटिश शासन के अधीन था। १८०१ में अवध के नवाब, सआदत अली ने अहमद शाह अब्दाली के पोते, जमन शाह दुर्रानी के हमले से संरक्षण के बदले कुछ क्षेत्र कंपनी को सौंप दिये जिनमें गोरखपुर और रोहिलखंड मण्डल, और इलाहाबाद, फतेहपुर, कानपुर, इटावा, मैनपुरी और एटा जिले; मिर्जापुर का दक्षिणी भाग; और कुमाऊं के तराई परगना शामिल थे। इन्हें ही सत्तान्तरित प्रान्त कहा जाने लगा। एक साल बाद फ़र्रूख़ाबाद के नवाब ने फर्रुखाबाद जिले को भी कंपनी को सौंप दिया।

विजित प्रांत[संपादित करें]

द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध शुरू होते ही जनरल लेक ने मेरठ मंडल (अलीगढ़ सहित) को अपने नियंत्रण में ले लिया, और फिर जल्दी ही, बाकी के आगरा मंडल और क्षेत्र पर भी उसी का अधिकार हो गया। इसके अलावा, यमुनापार के बांदा और हमीरपुर को भी प्रान्त में जोड़ा गया।

१८१४ के गोरखा युद्ध के निष्कर्ष के तहत कंपनी ने सुगौली की संधि द्वारा वर्तमान उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ मण्डल और देहरादून जिले पर भी कब्जा कर लिया।

प्रशासन[संपादित करें]

विजित एवं सत्तांतरित प्रांत गवर्नर-जनरल-इन-काउंसिल के प्रशासन के तहत ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा थे। राजधानी कलकत्ता से काफी दूरी पर स्थित होने के कारण इस क्षेत्र में कई प्रशासनिक अड़चनें आने लगी।[3] इनसे निपटने के लिए बहुत सी अस्थायी व्यवस्थाओं का प्रयास किया गया, लेकिन वे बेहतर परिणाम लाने में असफल रहे; अंत में, १८३१ में इन प्रांतों में एक स्वतंत्र राजस्व बोर्ड और एक अलग सदर दीवानी तथा निज़ामत अदालत बना दिए गए।

१८३३ में ब्रिटिश संसद के एक अधिनियम द्वारा बंगाल प्रेसीडेंसी का विभाजन कर विजित एवं सत्तांतरित प्रांतों को नए राज्यपाल के अंदर आगरा प्रेसीडेंसी में उच्चीकृत कर दिया गया। हालांकि, यह योजना फलीभूत नहीं हो सकी, और १८३५ में संसद के एक अन्य अधिनियम ने इस क्षेत्र को उत्तर पश्चिमी प्रांत नाम दे दिया। १८३६ में नियुक्त सर चार्ल्स मैटकाफ इस प्रान्त के पहले लेफ्टिनेंट-गवर्नर थे।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

नोट[संपादित करें]

  1. Imperial Gazetteer of India vol. XXIV 1908, पृष्ठ 158
  2. इस हिस्से में वर्तमान गढ़वाल मंडल के पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग और देहरादून जिले थे; हरिद्वार जिला १८०५ में ही इस प्रान्त में शामिल हो चुका था। बाकी बचा क्षेत्र (टिहरी तथा उत्तरकाशी जिले) गढ़वाल रियासत का हिस्सा था।
  3. Imperial Gazetteer of India vol. V 1908, पृष्ठ 72

सन्दर्भ[संपादित करें]

  • The makings of Company power: James Skinner in the Ceded and Conquered Provinces, 1802–1840, 1993
  • Rulers, Townsmen, and Bazaars: North Indian Society in the Age of British Expansion 1770–1870, 2002
  • Abāzai to Arcot ("Agra Province" pp. 71–72), 1908
  • Travancore to Zīra ("United Provinces" pp. 132–276), 1908
  • A permanent settlement for the Ceded and Conquered provinces: Revenue administration in north India, 1801-1833, 1995