मंडल ३

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ऋग्वेद के तीसरे मंडल में 62 ऋचाएँ हैं, मुख्यतः अग्नि और इंद्र की। यह "पारिवारिक पुस्तकों" (मंडल 2-7) में से एक है, जो ऋग्वेद का सबसे पुराना मूल है, जिसकी रचना प्रारंभिक वैदिक काल (१५०० - १००० ईसा पूर्व) में की गई थी। [1] इस पुस्तक के अधिकांश भजनों का श्रेय viśvāmitra gāthinaḥ को दिया जाता है

श्लोक ३.६२.१० को हिंदू धर्म में गायत्री मंत्र के रूप में बहुत महत्व मिला।

प्रारंभिकों की सूची[संपादित करें]

ग्रिफ़िथ द्वारा दिया गया समर्पण वर्गाकार कोष्ठकों में है

3.1 (२३५) [ अग्नि.] सोमस्य मा तवसं वाक्षि अग्ने
3.2 (२३६) [अग्नि.] वैश्वानराय धिषणां ऋतावृधे
3.3 (२३७) [अग्नि.] वैश्वानराय पृथुपाजसे विपो
3.4 (२३८) [ अप्रिस्.] समित्-समित् सुमना बोधि अस्मे
3.5 (२३९) [अग्नि.] प्रति अग्निर् उषसः चेकितानो
3.6 (२४०) [अग्नि.] प्र कारवो मनना वच्यमाना
3.7 (२४१) [अग्नि.] प्र या आरुः शितिपृष्ठस्य धासेर्
3.8 (२४२) [हवनकुण्ड।] अञ्जन्ति त्वां अध्वरे देवयन्तो
3.9 (२४३) [अग्नि.] साखायस् त्वा ववृमहे
3.10 (२४४) [अग्नि.] तुवां अग्ने मनीषिणः
3.11 (२४५) [अग्नि.] अग्निर् होता पुरोहितो
3.12 (२४६) [ इन्द्र-अग्नि.] इन्द्राग्नी आ गतं सुतं
3.13 (२४७) [अग्नि.] प्र वो देवाय अग्नये
3.14 (२४८) [अग्नि.] आ होता मन्द्रो विदथानि अस्थात्
3.15 (२४९) [अग्नि.] वि पाजसा पृथुना शोशुचानो
3.16 (२५०) [अग्नि.] अयं अग्निः सुवीर्यस्य
3.17 (२५१) [अग्नि.] समिध्यमानः प्रथमानु धर्मा
3.18 (२५२) [अग्नि.] भवा नो अग्ने सुमना उपेतौ
3.19 (२५३) [अग्नि.] अग्निं होतारं प्र वृणे मियेधे
3.20 (२५४) [अग्नि.] अग्निं उषसम् अश्विना दधिक्राम्
3.21 (२५५) [अग्नि.] इमाम् नो यज्ञं अमृतेषु धेहि
3.22 (२५६) [अग्नि.] अयं सो अग्निर् यस्मिन् सोमम् इन्द्रः
3.23 (२५७) [अग्नि.] निर्मथितः सुधित आ सधस्थे
3.24 (२५८) [अग्नि.] अग्ने सहस्व पृतना
3.25 (२५९) [अग्नि.] अग्ने दिवः सूनुर् असि प्रचेतास्
3.26 (२६०) [अग्नि.] वैश्वानरं मनसाग्निं निचायिया
3.27 (२६१) [अग्नि.] प्र वो वाजा अभिद्यवो
3.28 (२६२) [अग्नि.] अग्ने जुषस्व नो हविः
3.29 (२६३) [अग्नि.] आस्तीदम् अधिमन्थनम्
3.30 (२६४) [इन्द्र.] इच्छनति त्वां सोमियासः साखायः
3.31 (२६५) [इन्द्र.] शासद्वाह्निर् दुहितुर्नप्तियं गात्
3.32 (२६६) [इन्द्र.] इन्द्र सोमं सोमपते पिबेमम्
3.33 (२६७) [इन्द्र.] प्र पर्वतानां उशती उपस्थाद्
3.34 (२६८) [इन्द्र.] इन्द्रः पूर्भिदातिरद् दासमर्कैः
3.35 (२६९) [इन्द्र.] तिष्ठा हरी रथा आ युज्यमाना
3.36 (२७०) [इन्द्र.] इमाम् उ षु प्रभृतिं सातये धाḥ
3.37 (२७१) [इन्द्र.] वृत्रहत्याय शवसे
3.38 (२७२) [इन्द्र.] अभि ताष्टेव दीधया मनीषाम्
3.39 (२७३) [इन्द्र.] इन्द्रं मतीर् हृदा आ वच्यमाना
3.40 (२७४) [इन्द्र.] इन्द्र त्वां वृषभं वयं
3.41 (२७५) [इन्द्र.] आ तू न इन्द्र मद्रियग्
3.42 (२७६) [इन्द्र.] उप नः सुतम् आ गहि
3.43 (२७७) [इन्द्र.] आ याहि अर्वाङ् उप वन्धुरेष्ठास्
3.44 (२७८) [इन्द्र.] अयं ते अस्तु हर्यततः
3.45 (२७९) [इन्द्र.] आ मन्द्रैर् इन्द्र हारिभिर्
3.46 (२८०) [इन्द्र.] युध्मस्य ते वृषभस्य स्वराज
3.47 (२८१) [इन्द्र.] मरुत्वाँ इन्द्र वृषभो रणाय
3.48 (२८२) [इन्द्र.] सद्यो ह जातो वृषभः कणीनः
3.49 (२८३) [इन्द्र.] शंसा महाम् इन्दरम् यस्मि विश्वा
3.50 (२८४) [इन्द्र.] इन्द्रः स्वाहा पिबतु यस्य सोम
3.51 (२८५) [इन्द्र.] चर्षणीधृतम् मघावानम् उक्थियम्
3.52 (२८६) [इन्द्र.] धानावन्तं करम्भिणम्
3.53 (२८७) [इन्द्र, पर्वत, एत्च.] इन्द्रापर्वता बृहता रथेन
3.54 (२८८) [ विश्वेदेव.] इमाम् महे विदथियाय शूषम्
3.55 (२८९) [विश्वेदेवाः] उषसः पूर्वा अध याद् विउषुर्
3.56 (२९०) [विश्वेदेवाः] न ता मिनन्ति मायिनो न धीरा
3.57 (२९१) [विश्वेदेवाः] प्र मे विविक्वां अविदन् मनीषाम्
3.58 (२९२) [ अश्विन्स्.] धेनुः प्रत्नस्य कामियम् दुहाना
3.59 (२९३) [ [[मित्र (वैदिक)|मित्र
3.60 (२९४) [ Rbhus.] इहेह वो मनसा बन्धुता नर
3.61 (२९५) [ Uṣas.] उषो वाजेन वाजिनि प्रचेता
3.62 (२९६) [इन्द्र एवं अन्याः] इमा उ वाम् भृमयो मन्यमानाः

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Dahiya, Poonam Dalal (2017-09-15). ANCIENT AND MEDIEVAL INDIA EBOOK (अंग्रेज़ी में). McGraw-Hill Education. पृ॰ 95. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5260-673-3.

बाहरी संबंध[संपादित करें]