रसा

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रसा ऋग्वेद में सिंधु की एक पश्चिमी सहायक नदी का नाम है (पद 5.53.9)। वैदिक संस्कृत में रस शब्द का अर्थ "नमी, आर्द्रता" होता है।

ऋग्वेद के नवम मण्डल में ४१.६, एवं दशम मण्डल १०.१०८ और यास्क की निरुक्त के अनुसार, यह वह कल्पित धारा है, जो पृथ्वी और वातावरण के इर्द-गिर्द घूमती है (इसकी तुलना ग्रीक पौराणिक कथाओं में वर्णित ओसियेनस/Oceanus धारा से की जाती है ), इसके अतिरिक्त इस संदर्भ में महाभारत और पुराणों में पाताल की भी चर्चा की गई है (ग्रीक कथाओं की स्टिक्स/ Styx से तुलना करें)।

अवस्ताई भाषा में इसे रन्ह या रन्हा कहा गया है। वेंदीदाद में, रन्ह का उल्लेख ठीक हप्त-हेंदु (सप्त-सिंधु) के बाद में किया गया है, और संभवतः यह महासागर को संदर्भित करता है।[1]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Sethna, K D (1992). The problem of Aryan origins from an Indian point of view. New Delhi: Aditya Prakasana. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788185179674.