दृढ़ पिण्ड

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
चिरसम्मत यांत्रिकी

न्यूटन का गति का द्वितीय नियम
इतिहास · समयरेखा
इस संदूक को: देखें  संवाद  संपादन
दृढ़ पिण्ड की स्थिति इसके द्रव्यमान केन्द्र और अभिविन्यास (कम से कम छ: प्राचल) से निर्धारित की जाती है।[1]

भौतिक विज्ञान में दृढ़ पिण्ड, ठोस की उस आदर्श अवस्था को कहा जाता है जिसमें कोई विरूपण नहीं होता। अन्य शब्दों में, दृढ़ पिण्ड के दिए गए किसी दो कणों के मध्य दूरी समय के साथ नियत रहती है चाहे इस पर कोई भी बाह्य बल आरोपित किया जाये।

शुद्धगतिकी[संपादित करें]

रेखीक व कोणीय स्थिति[संपादित करें]

दृढ़ पिण्ड की स्थिति उसमें समाहित सभी कणों की स्थिति को निरुपित करती है।

रेखीक व कोणीय वेग[संपादित करें]

वेग (जिसे रेखीय वेग भी कहा जाता है) व कोणीय वेग का मापन निर्देश तन्त्र के सापेक्ष किया जाता है।

गतिकी समीकरण[संपादित करें]

कोणीय वेग के लिए योजक प्रमेय[संपादित करें]

दृढ़ पिण्ड B का निर्देश तन्त्र N में कोणीय वेग, N, में दृढ़ पिण्ड D के कोणीय वेग व D के सापेक्ष B के कोणीय वेग के जोड़ के समान होता है।[2]

.

बलगतिकी[संपादित करें]

ज्यामिति[संपादित करें]

दिक्-विन्यास[संपादित करें]

ये भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. लोरेंजो सेविक्को, ब्रूनो सिकिलिनो (2000). "§2.4.2 रोल पिच य़ॉ एंगल्स (रोल पिच विचलन कोण)". मॉडलिंग एंड कण्ट्रोल ऑफ़ रोबोट मेनीपुलेटोर्स (यंत्रमानव साधक का प्रतिरूपण एवं संचालन) (2nd संस्करण). स्प्रिंगर. पृ॰ 32. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1-85233-221-2. मूल से 18 जून 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 अप्रैल 2013.
  2. केन, थॉमस; लेविंसन, डेविड (1996). "2-4 सहायक संदर्भ तन्त्र". डायनेमिक्स ऑनलाइन. सनीवेल, कैलिफोर्निया: डायनेमिक्स ऑनलाइन, Inc.