गोपीकृष्ण गोस्वामी

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शिवानन्द गोस्वामी के वंशज आत्रेय गोत्र में जन्मे गोपीकृष्ण गोस्वामी एक पौराणिक-याज्ञिक, ज्योतिर्विद, पंचकर्मकांडी श्रीमद्भागवतानुष्ठानी संत-पुरुष थे। अपनी साधना के बल पर आपने सहस्त्र चंडी यज्ञादि योगानुष्ठान से फल-सिद्धियां प्राप्त की थीं । यह अपने समय में जयपुर में जैमिनीय ज्योतिष के आधार पर जातक की सटीक आयु गणना करने वाले ज्योतिषाचार्य माने जाते थे ! आपने बद्रीनाथ धाम में निराहार रह कर सम्पूर्ण भागवत पुराण का पाठ केवल ढाई दिनों में करके पुराणवक्ता की उपाधि प्राप्त की तथा वहां पधारे विद्वानों में श्रेष्ठ सम्मान प्राप्त किया। पुष्टिमार्गीय आचार्य श्रीगोकुलनाथ गोस्वामी ने 'पंडित-सभा’ में आपको ‘पंडितराज’ व ‘पौराणिक मार्तण्ड’ की उपाधि प्रदान कीं थी ।

गोपीकृष्ण गोस्वामी
जन्म गोपीकृष्ण
१८६४ ईस्वी)
महापुरा (
मौत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा सं. 2000 (25 अप्रैल 1944)
महापुरा
मौत की वजह जजमान को आयुदान के कारण (इच्छा-मृत्यु )
आवास महापुरा जयपुर कुछ अज्ञात अन्य नगर
राष्ट्रीयता भारतीय
नागरिकता भारतीय
शिक्षा पारम्परिक पद्धति से संस्कृत, ज्योतिष, खगोलशास्त्र, तन्त्र-मंत्र, आयुर्वेद, धर्मशास्त्र, व्याकरण आदि
शिक्षा की जगह गुरुकुल में
पेशा जागीरदार
कार्यकाल विक्रम संवत १९२१ से देहावसान तक
गृह-नगर महापुरा
पदवी पुराणवक्ता / पंडितराज / पौराणिक-मार्तंड
प्रसिद्धि का कारण संस्कृत कविता तंत्रसाधना अनुष्ठानकर्ता याग्निक
धर्म हिन्दू
जीवनसाथी श्रीमती काशी देवी
बच्चे दो-पुत्रियाँ : श्रीमती कृष्णादेवी / श्रीमती रामादेवी तीन पुत्र : गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री / श्री रामस्वरूप गोस्वामी / श्री रत्नाकर गोस्वामी

जन्म और परिवार:[संपादित करें]

वर्ष १९४०/ गोस्वामी जी अपनी पत्नी काशीदेवी /पीछे खड़ी : पुत्री रामादेवी / पुत्र रत्नाकर और दौहित्र [[कलानाथ शास्त्री]] दौहित्रियों [[जया गोस्वामी]] और विजया तैलंग के साथ

पौराणिक-मार्तण्ड, शास्त्री एवं पंडितराज की उपाधि से समादृत गोपीकृष्ण गोस्वामी स्व. श्री रामचंद्र गोस्वामी के ज्येष्ठ पुत्र थे। आपका जन्म माघ मास सं 1921 (सन 1864) में महापुरा में हुआ| इनका विवाह सागर मध्य प्रदेश निवासी श्री श्रीकृष्ण शास्त्री (श्रीमती गुलाब देवी) की सुपुत्री काशीदेवी के साथ हुआ। ‘ऐना भाभू’ के नाम से स्वजनों में विख्यात काशी देवी भागवतपाठिनी थीं तथा अहर्निश अष्टाक्षर मंत्र ‘’श्रीकृष्णः शरणम् मम’ का जाप किया करतीं थीं। आपके तीन पुत्र- गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री, रामस्वरूप तथा रत्नाकर और दो पुत्रियां – कृष्णादेवी व रामादेवी हुईं। कृष्णादेवी का विवाह आघ्यात्मिक मासिक पत्रिका कल्याण एवं ‘कल्याण कल्पतरु’ (अंग्रेजी)[1] के सम्पादक श्री चिम्मन लाल गोस्वामी [2] तथा रामादेवी का विवाह संस्कृत साहित्य के मूर्धन्य विद्वान भट्ट श्री मथुरानाथ शास्त्री के साथ हुआ था ।

शास्त्र-ज्ञान :[संपादित करें]

वाल्मिकी रामायण के सुसिद्ध मंत्र-योग करके अनेक तरह के सांसारिक-सिद्ध उपाय आप जानते थे। धरती में छिपी जलराशि की जानकारी में आप पारंगत थे जिसके चलते महापुरा व आसपास के गांवों में कई कुएं, बगीचे आपने विकसित करवाए।

गोपीकृष्ण जी के पौत्र प्रो. वसुधाकर गोस्वामी के संग्रहालय में

एक अनन्य प्रकृति-प्रेमी, पर्यावरणविद और वृक्ष-मित्र  :'[संपादित करें]

उनके बगीचे में उन्होंने सीताफल, आंवला, फालसा, नारंगी, जामुन, अमरूद, पपीता, आम, चीकू, करोंदा, संतरा, नींबू आदि के फलदार पेड़ तथा कामिनी, चमेली, गेंदा, जूही, चंपा, गुलाब, चांदनी, रातरानी, (रजनी गंधा), मोगरा, सुदर्शन आदि सुगंधित फूलों वाले अनगिनत बेलें और वृक्ष लगाए थे। जागीरदार हो कर भी वात्सल्य भाव से वे स्वयं अपने कुएं से बाल्टियों से पानी निकाल कर इन वृक्षों को खुद सींचा करते थे। इनकी भूमियों पर इन्होने दो मन्दिर बनाए थे उनमें एक मन्दिर में राधाकृष्ण के विग्रह तथा दूसरे में शिव पंचायत विराजित थी। राधाकृष्ण के मन्दिर में गहरे नीले, पीले, लाल रंग में बहुत सुन्दर भित्तिचित्र बने हुए थे जो उन्होंने स्वयं ही देशज रंगों से बनाए थे। यहां वे भगवत-भजन के अलावा मन्त्र-साधना, सृजन और स्वाध्याय किया करते। जयपुर के कई राजपुरुष, श्रेष्ठी, आदि अपनी कार्यसिद्धि के लिए गोपीकृष्ण गोस्वामीजी को स-सम्मान बुलवाते और उनकी कही गई बातों का अनुसरण कर सुखी व रोगमुक्त जीवन बिताते थे । एक घटना का जिक्र हरिकृष्ण शास्त्री जी की पुस्तक ‘वंश-प्रशस्ति’ [3] में भी शब्दबद्ध मिलता है जहां आपने सिद्धचंडी के तांत्रिक प्रयोग से जटिल रोग से ग्रस्त चंदालाल नामक किसी सेठ को स्वस्थ करके सम्मान प्राप्त किया !


रचना कर्म और धार्मिक मान्यताएं :[संपादित करें]

आपको संस्कृत, व्रजभाषाहिंदी का ज्ञान था जिसके चलते आपने छंदों में कई रचनाएं की। संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान देवर्षि कलानाथ शास्त्री जो कि उनके दौहित्र हैं, ने बताया कि, “जब नानाजी का निधन हुआ तब वे लगभग 9-10 साल के थे, और उन दिनों ननिहाल के गांव महापुरा में ही थे। शिवानन्द गोस्वामी जी की वंश परम्परानुसार वे भी शाक्त धर्मानुयायी थे किन्तु, घर में वैष्णव परम्परानुसार राधा-कृष्ण की पूजा भी करते थे। वे कवित्त, सवैया तथा दोहा आदि छन्दों में पद-रचना किया करते थे । इसके चलते प्रौढ़ कवियों में भी उनका अग्रिम स्थान रहा। अनेक सुंदर वर्णन वाली रसयुक्त श्रीकृष्णश्रीराम के गुणगान की पुष्पावली सद्भक्तियुक्त बहुत सी काव्यमालाएं भी आपने लिखीं।“ [4]


पांडुलिपियाँ अब अप्राप्य  :[संपादित करें]

विद्वान गोपीकृष्ण शास्त्री जी द्वारा कई अचूक प्रयोग, काव्य-पुष्पांजलियां व बहुपयोगी उपाय, सिद्धियां कागज पर लिपिबद्ध की गईं थीं । बहुत से लेख इनके महापुरा स्थित निवास पर कई वर्षों तक सुरक्षित रहे, लेकिन गोस्वामी-वंशजों के महापुरा से प्रस्थान के साथ ही इनकी लिखी पांडुलिपियों की आज कोई भी जानकारी नहीं बची है । यद्यपि प्रो. वसुधाकर गोस्वामी जयपुर के निजी संकलन में इनकी हस्तलिपि में जैमिनीसूत्र ज्योतिष सम्बन्धी बस एक ही पांडुलिपि सुरक्षित है! (देखें : चित्र)

निधन और तांत्रिक चमत्कार की घटनाएं :[संपादित करें]

कई ठाकुर घराने उन्हें प्रतिवर्ष अनुष्ठान एवं भागवत सप्ताह के लिए बुलाया करते थे। उन्होंने अपनी मंत्र सिद्धि एवं अनुष्ठानों के जरिए अपने यजमानों की अनेक इच्छित कामनाएं पूरी कीं। लेखक और तैलंग कुलम संपादक भानु भारवि के शब्दों में- "मेरे पिता स्मृतिशेष रामस्वरूप गोस्वामी (गोपीकृष्ण जी गोस्वामी के मंझले पुत्र जिनका निधन 102 वर्ष की आयु में हुआ था), ने बताया कि ‘दाज्जी’ (वे पिता को दाज्जी संबोधित किया करते थे) ने किसी दौसा जिले के सांठा ठिकाने के राजपूत ठाकुर को अपनी आयु के दो माह दे दिए थे। घटना कुछ यों बताई गई कि एक बार मोती डूंगरी के पास मुख्य जे एल एन मार्ग जयपुर पर बने सांठा हाउस ठिकाने के किसी पूर्वज ठाकुर साहब ने उन्हें अपनी जन्मकुण्डली दिखाते हुए अपनी पूर्णायु की जिज्ञासा गोस्वामीजी के समक्ष रखी। गोपीकृष्ण जी ने फलादेश निकालकर उनकी मृत्यु की तारीख एक पर्ची पर लिखकर सौंप दी तथा उसे उनके वहां से चले जाने के बाद खोलने के निर्देश दिए। उनके चले जाने पर जिज्ञासावश जब ठाकुर साहब ने पर्ची खोली तो उनके निधन की तारीख पढ़कर अत्यन्त हताश हुए। उनका कोई अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य था जो गोस्वामीजी द्वारा बताई गई निधन तिथि के दो माह बाद पूरा होता [और यह उनकी उत्कट इच्छा थी कि वह कार्य उनकी मौजूदगी में ही हो]। लिहाजा उन्होंने पुनः गोस्वामी गोपीकृष्ण जी को बुलवा भेजा और इस समस्या के निदान के लिए कोई अनुष्ठान करने का निवेदन किया। कहते हैं, गोस्वामीजी ने चंडी अनुष्ठान के जरिए अपनी आयु के दो माह ठाकुर साहब को दे दिए। इस अनुष्ठान से इन्हें दस हज़ार कलदार झाड़साही रुपयों की बड़ी दक्षिणा प्राप्त ज़रूर हुई जिसका आज मूल्य शायद कुछ लाख तो अवश्य ही है पर अनुष्ठान करके जब वे घर लौटे तो एकाएक बीमार पड़ गए। वैद्यों से इलाज करवाए जाने के बावजूद वे स्वस्थ नहीं हुए तो उनकी जन्मकुडली भी दिखाई गई जिसमें उनका निधन दो माह बाद होने का उल्लेख था। इसी दौरान उनकी तबियत जब ज्यादा ही बिगड़ गई तो वे मेरे पिताजी से यों बोले, “रामस्वरूप! बस मैं अब कोने बचूँ लो। म्हारी उमर पूरी होगी।“

बहुत पूछने पर उन्होंने अपनी आयु के दो माह अपने जजमान सांठा के ठाकुर को दे देने की सचाई बताई। यह बात उनके ज्येष्ठ पुत्र तथा उद्भट विद्वान गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री जो स्वयं एक मंत्रशास्त्री थे, ने भी कई अवसरों पर परिवारजनों को बताई थी। " इस प्रकार उन्होंने आनुष्ठानिक मंत्रसिद्धि के जरिए अपनी आयु के दो महीने उक्त ठाकुर को देकर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा सं. 2000 (25 अप्रैल 1944) को सांसारिक जगत से प्रयाण किया |

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

महापुरा भट्ट मथुरानाथ शास्त्री गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री‎ कलानाथ शास्त्री जनार्दन गोस्वामी

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

https://issuu.com/telangkulampatrika/docs/feb-april_2017

सन्दर्भ[संपादित करें]

[5]


आंशिक-सूचना स्रोत : भानु भारवि

  1. https://www.gitapress.org/kalyana-kalpatru/
  2. https://www.scribd.com/document/28408497/Bio-Shri-Chiman-Lal-Ji-Goswami
  3. पुस्तक : "वंश-प्रशस्ति" : गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री :
  4. Tailangkulam Magazine
  5. https://issuu.com/telangkulampatrika