कल्याण कल्पतरु
कल्याण कल्पतरु गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी भाषा की पत्रिका है। यह पहली बार जनवरी 1934 में चिम्मनलाल गोस्वामी के संपादन में प्रकाशित हुई थी ।
एक उद्देश्यात्मक प्रकाशन
[संपादित करें]गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित "कल्याण" (हिंदी) के अलावा "कल्याण-कल्पतरु" (अंग्रेज़ी) की ऐसी विलक्षण मासिक पत्रिका है जो जीवन में आस्तिकता के संस्कार विकसित करने के लिए ही समर्पित है। गीता प्रेस की मान्यता है पत्रकारिता एक व्यवसाय नहीं बल्कि एक पुनीत मिशन है और इन पत्रिकाओं में प्रकाशित सामग्री से पाठकों को अपने आध्यात्मिक उन्नयन में सहायता मिल सकती है। इनमें भक्ति, ज्ञान, योग, धर्म, वैराग्य, अध्यात्म, ध्यान, बेहतर जीवन-उद्देश्य, सात्विक-विचार, श्रेष्ठ कर्म आदि अनेकानेक विषय शामिल हैं। इन पत्रिकाओं के एक विषय या एक शास्त्र पर केन्द्रित विशेषांक भी सालाना रूप से निकाले जाते हैं। पत्रिका का सदस्यता वर्ष अक्टूबर से सितंबर तक है। इस पत्रिका में विभिन्न संतों और विद्वानों के लेख शामिल रहते हैं।
संपादन
[संपादित करें]कृष्णदास बंगाली (सतीशचंद्र बनर्जी के शिष्य) और एम.ए. शास्त्री ने भी इस पत्रिका को संपादित करने में मदद की। पत्रिका का मूल उद्देश्य हिंदी भाषा की पत्रिका कल्याण की सफलता का अनुसरण करना था और भारत के अंग्रेजी भाषी जनता और विदेशों में रुचि रखने वाले पाठकों के बीच हिंदू धर्म का संदेश फैलाना था। इसकी उत्पत्ति के बारे में बात करते हुए, पत्रिका की वेबसाइट में निम्नलिखित का उल्लेख है: 'कल्याण' के प्रकाशन के बाद यह महसूस किया गया कि एक अंग्रेजी मासिक भी प्रकाशित किया जाना आवश्यक था, जनवरी, 1934 से कल्पतरु का प्रकाशन शुरू किया गया था। वेबसाइट बताती है कि 'श्रीमद्भागवत, श्रीमद्भगवद्गीता, वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस, मनुस्मृति और अध्यात्म रामायण का अंग्रेजी अनुवाद कल्याण-कल्पतरु के वार्षिक अंक में प्रकाशित हुए हैं। प्रत्येक वर्ष जनवरी में प्रकाशित होने वाला पहला अंक एक विशेष विषय के लिए समर्पित एक विशेष अंक होता है। अतीत में, कई पुराणों के हिंदी अनुवाद विशेष अंक के रूप में प्रकाशित हुए हैं।
पत्रिका की एक दिलचस्प विशेषता विज्ञापनों को छापने से इनकार करना था, जो महात्मा गांधी के एक सुझाव पर आधारित नीति थी।
प्रकाशन की प्रसार संख्या
[संपादित करें]प्रकाशन के पहले कुछ वर्षों के बाद पत्रिका की 5000 प्रतियाँ छपतीं थीं । 1968 से 1988 तक 'कल्याण कल्पतरु' का प्रकाशन बंद कर दिया गया । कल्याण कल्पतरु ने कल्याण से अपनी अलग पहचान बनाए रखी, लेकिन अपनी बहन-पत्रिका की तरह इसे भी मासिक रूप से प्रकाशित किया गया और प्रति वर्ष एक थीम 'विशेष अंक' था।
कल्याण कल्पतरु अभी भी अस्तित्व में है और वर्तमान में केशोराम अग्रवाल द्वारा संपादित किया जाता है। पत्रिका में गीता प्रेस के तीन आध्यात्मिक नेताओं (हनुमान प्रसाद पोद्दार, जयदयाल गोयंदका, स्वामी रामसुखदास) के लेखन के अनुवादों के साथ-साथ अन्य लेखकों के अनुवाद और मूल लेख शामिल हैं।
विशेषांक
[संपादित करें]1934 और 1943 के बीच प्रकाशित पहले 10 विशेष अंक इस प्रकार थे: 'ईश्वर अंक ' (1934), 'गीता अंक ' (1935), 'वेदांत अंक ' (1936), 'श्री कृष्ण अंक ' (1937), 'दिव्य नाम' अंक ' (1938), 'धर्म तत्व अंक ' (1939), 'योग अंक ' (1940), 'भक्त अंक ' (1941), 'श्री कृष्ण लीला अंक 1 ' (1942) और 'श्री कृष्ण लीला अंक 2' ( 1943)। अत्यंत कम मूल्य पर बेची जाने वाली इस अव्यावसायिक धार्मिक पत्रिका कल्याण कल्पतरु में पुराने और समकालीन, प्रख्यात भारतीय संतों और विद्वानों के अंग्रेज़ी मूल या अनुवादित लेख छपे हैं। इसके अलावा यहाँ विशेष स्तम्भ भी हैं जैसे--"पढो समझो और करो ", "टू थिंक अबाउट" आदि। इसके विश्व भर में लगभग 2,50,000 ग्राहक हैं।
बाहरी कड़ियाँ =
[संपादित करें]https://gitaseva.org/kalyanskalpataru
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