एकाधिकार प्रतियोगिता
एकाधिकार प्रतियोगिता (monopolistic competition) अपूर्ण प्रतिस्पर्धा/प्रतियोगिता है जिसमें उत्पादक बाजार में एक दूसरे के साथ ऐसे उत्पादों को बेचने की प्रतियोगिता रखते हैं जिनमें उत्पाद विभेदन किया जा सके। ये विभेद उनकी ब्रांडिंग, गुणवता और अपूर्ण स्थानापन्न के आधार पर किया जा सकता है। एकाधिकार प्रतियोगिता में एक कंपनी अपने स्पर्धि द्वारा दी गयी कीमतें वसूलती है और अन्य कंपनियों एवं अपनी स्वयं की कीमतों पर इसके प्रभाव को अनदेखा करती है।[1][2] यदि ऐसा दमनकारी सरकार की उपस्थिति में होता है तो ये स्पर्धा सरकार-प्रदत्त एकाधिकार में आती है। पूर्ण प्रतियोगिता के विपरीत कंपनी अतिरिक्त क्षमता बनाये रखती है। एकाधिकार प्रतियोगिता के मॉडल अक्सर उद्योगों के मॉडल बनाने में काम आते हैं। इसके कुछ मोटे उदाहरणों में कुछ समानार्थी उदाहरण रेस्तरां, खाद्यान्न, वस्त्र उद्योग, जूता निर्माण और बड़े शहरों में सेवा आदि हैं। एकाधिकार प्रतियोगिता सिद्धान्त के संस्थापक एडवर्ड चेम्बरलिन थे जिन्होंने इस विषय पर सन् 1933 में थियोरी ऑफ़ मोनोपोलिस्टिक कंपीटिशन नाम से पहली पुस्तक लिखी।[3] ब्रितानी अर्थशास्त्री जोन रॉबिन्सन की पुस्तक द इकोनॉमिक्स ऑफ़ इम्पर्फेक्ट कम्पीटीशन में अपूर्ण प्रतियोगिता और पूर्ण प्रतियोगिता में अन्तर को स्पष्ट किया गया है। एकाधिकार प्रतियोगिता पर आगे का काम दीक्षित और स्टिग्लिट्ज़ ने किया और दीक्षित-स्टिग्लिट्ज़ मॉडल दिया। इस मॉडल से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धांत, समष्टि अर्थशास्त्र और आर्थिक भूगोल में काम में लिया जाता है।
एकाधिकारिक प्रतियोगी बाज़ारों के निम्नलिखित गुणधर्म होते हैं:
- बाजार में कई उत्पादक और कई उपभोक्ता हैं, और किसी भी व्यवसाय का बाजार मूल्य पर पूर्ण नियंत्रण नहीं है।
- उपभोक्ताओं को लगता है कि प्रतिस्पर्धियों के उत्पादों में गैर-मूल्य अंतर है।
- कंपनियां इस सोच के साथ काम करती हैं कि उनके कार्यों से अन्य कंपनियों के कार्यों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
- नई कंपनियों के प्रवेश और निकास में कुछ बाधाएं हैं।[4]
- उत्पादकों का मूल्य पर कुछ हद तक नियंत्रण होता है।
- कंपनी का मुख्य लक्ष्य अपने लाभ को अधिकतम करना है।
- कारक मूल्य और प्रौद्योगिकी दी गई है।
- यह माना जाता है कि एक कंपनी इस प्रकार व्यवहार करती है मानो उसे अपनी मांग और लागत वक्रों के बारे में निश्चित रूप से जानकारी हो।
- कीमत और उत्पाद के बारे में किसी एक कंपनी का निर्णय समूह की अन्य कंपनियों के व्यवहार को प्रभावित नहीं करता, उदाहरण के लिए किसी एक कंपनी द्वारा लिया गया निर्णय पूरे समूह में समान रूप से फैलता है। अतः कंपनी की कोई सक्रिय प्रतिस्पर्धा नहीं होती।
- प्रत्येक कंपनी दीर्घकाल में केवल सामान्य लाभ ही अर्जित करती है।
- प्रत्येक कंपनी विज्ञापन पर काफी राशि खर्च करती है। प्रचार और विज्ञापन लागत को विक्रय लागत के रूप में जाना जाता है।
एकाधिकार प्रतियोगी बाज़ार के दीर्घकालिक गुणधर्म लगभग पूर्ण प्रतियोगी बाज़ार के समान ही होते हैं।
उदाहरण
[संपादित करें]दन्तमंजन, साबुन, वातानुकूलन, स्मार्टफ़ोन, टिसू पेपर जैसे विभिन्न बाज़ारों में उत्पादों को अलग दिखाने के लिए कुछ समान्य परिवर्तन करते हैं जैसे उत्पाद के भौतिक घटकों में बदलाव, विशेष पैकेजिंग या केवल ब्रांड के नाम को आधार बनाकर अपने उत्पाद को सर्वश्रेष्ठ बताना अथवा प्रचार करने से के इस्तेमाल करना आदि।[5]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ क्रूगमैन, पॉल; ओब्स्टफेल्ड, मौरिस (2008). International Economics: Theory and Policy [अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र: सिद्धांत और नीति] (अंग्रेज़ी में). एडिसन-वेस्ले. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-321-55398-0.
- ↑ पोइज़्ज़, थीयो बी.सी. (2004). "The Free Market Illusion Psychological Limitations of Consumer Choice" [मुक्त बाज़ार का भ्रम उपभोक्ता की पसंद की मनोवैज्ञानिक सीमाएँ]. ताइड्सरिफ्ट वूर इकोनोमी एन मैनेजमेंट (अंग्रेज़ी में). 49 (2): 309–338.
- ↑ "Monopolistic Competition (एकाधिकार प्रतियोगिता)". एनसाइकलोपीडिया ब्रिटनिका (अंग्रेज़ी में). 30 अप्रैल 2024.
- ↑ गन्स, जोशुआ; किंग, स्टीफन; स्टोनकैश, रॉबिन; मैन्क्यू, एन. ग्रेगरी (2003). Principles of Economics [अर्थशास्त्र के सिद्धांत] (अंग्रेज़ी में). थॉमसन लर्निंग. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-17-011441-4.
- ↑ बैन, जौ एस॰ (1 सितम्बर 2021). "Monopoly and Competition" [एकाधिकार और प्रतियोगिता]. ब्रिटनिका (अंग्रेज़ी में). एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटनिका. अभिगमन तिथि 18 जुलाई 2024.