अपवाह तन्त्र

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पंकज वर्मा कारगवाल

हुगली (गंगा), ब्रह्मपुत्र (जमुना), पद्मा और मेघना नदियों का डेल्टाई भाग में अपवाह तंत्र

अपवाह तन्त्र या प्रवाह प्रणाली (drainage system) किसी नदी तथा उसकी सहायक धाराओं द्वारा निर्मित जल प्रवाह की विशेष व्यवस्था है।[1] यह एक तरह का जालतन्त्र या नेटवर्क है जिसमें नदियाँ एक दूसरे से मिलकर जल के एक दिशीय प्रवाह का मार्ग बनती हैं।[1] किसी नदी में मिलने वाली सारी सहायक नदियाँ और उस नदी बेसिन के अन्य लक्षण मिलकर उस नदी का अपवाह तन्त्र बनाते हैं।

अपवाह तन्त्र के प्रतिरुप[संपादित करें]

अपवाह तन्त्र में नदियों का ज्यामितीय विन्यास और उससे निर्मित पैटर्न या प्रतिरूप को अपवाह प्रतिरूप कहा जाता है।[1] ये निम्नवत हैं:

भारत के प्रमुख अपवाह तंत्र[संपादित करें]

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ[संपादित करें]

सिन्धु अपवाह तन्त्र[संपादित करें]

सिन्घु अपवाह तन्त्र की प्रमुख नदी सिन्धु है। इसकी कुल लम्बाई 2770 कि॰ मी॰ है। भारत में इसकी लम्बाई 709 कि॰ मी॰ है। तिब्बत में मानसरोवर के निकट से निकलती है और भारत से होकर बहती है और तत्‍पश्‍चात् पाकिस्तान से हो कर और अंतत: कराची के निकट अरब सागर में मिल जाती है। इसकी सबसे बड़ी सहायक नदी चिनाब है जो हिमाचल प्रदेश के कुल्लु पहाडी से निकलती है। इसकी अन्य सहायक नदियों में सतलज, रावी, व्यास, झेलम, आदि प्रमुख हैं। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी सहायक नदियों में सतलुज (तिब्‍बत से निकलती है), व्‍यास, रावी, चिनाब और झेलम है।

गंगा अपवाह तन्त्र[संपादित करें]

गंगा अपवाह तन्त्र में मुख्य नदी गंगा है। भारत में यमुना इसकी सबसे बड़ी सहायक नदी है। हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बर्फ़ और ग्‍लेशियरों के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्‍तर प्रवाह बना रहता है। मानसून के दौरान हिमालय क्षेत्र में बहुत अधिक वृष्टि होती है और नदियाँ बारिश पर निर्भर हैं अत: इसके आयतन में उतार चढ़ाव होता है। इनमें से कई अस्‍थायी होती हैं। तटवर्ती नदियाँ, विशेषकर पश्चिमी तट पर, लंबाई में छोटी होती हैं और उनका सीमित जलग्रहण क्षेत्र होता है। इनमें से अधिकांश अस्‍थायी होती हैं। पश्चिमी राजस्थान के अंतर्देशीय नाला द्रोणी क्षेत्र की कुछ्‍ नदियाँ हैं। इनमें से अधिकांश अस्‍थायी प्रकृति की हैं। हिमाचल से निकलने वाली नदी की मुख्‍य प्रणाली सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदी की प्रणाली की तरह है।

ब्रह्मपुत्र अपवाह तन्त्र[संपादित करें]

ब्रह्मपुत्र मेघना एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण प्रणाली है जिसका उप द्रोणी क्षेत्र भागीरथी और अलकनंदा में हैं, जो देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती है। यह उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार और प.बंगाल से होकर बहती है। राजमहल की पहाडियों के नीचे भागीरथी नदी, जो पुराने समय में मुख्‍य नदी हुआ करती थी, निकलती है जबकि पद्भा पूरब की ओर बहती है और बांग्लादेश में प्रवेश करती है। ब्रह्मपुत्र नदी विशव की सबसे लम्बी नदियाँ में से एक है। जिसकी लम्बाई २९०० किलोमीटर है। इस ऩदी का उद्गम स्थान मानसरोवर झील के निकट महान हिमनद (आंग्सी ग्लेसियर) से निकलती है। इसका अपवाह तंत्र देशों- तिब्बत (चीन), भारत तथा बंग्लादेश में फैला हुआ है। ब्रह्मपुत्र का अधिकतं विस्तार तिब्बत (चीन) में है यहाँ इसे शांगपॊ (यारलुंग) नाम से जानी जाती है। ब्रह्मपुत्र नदी भारत के अरूणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है और दिहांग नाम से जानी जाती है तथा गारो पहाडी के निकट गोवालपारा के पास बांग्लादेश में प्रवेश करती है और जमुना नाम से जानी जाती है। यहाँ ब्रह्मपुत्र में तिस्ता आदि नदियाँ मिलकर अन्त में पद्मा (गंगा) नदी में मिल जाती है। ब्रह्मपुत्र नदी में ही विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुली है जो संकटग्रस्त स्थिति में है इसे विश्वविरासत में शामिल कराने का प्रयास किया जा रहा है।

ब्रह्मपुत्र तिब्बत से निकलती है, जहाँ इसे सांग-पो कहा जाता है और भारत में अरुणाचल प्रदेश तक प्रवेश करने तक यह काफ़ी लंबी दूरी तय करती है, यहाँ इसे दिहांग कहा जाता है। पासी घाट के निकट देबांग और लोहित ब्रह्मपुत्र नदी से मिल जाती है और यह संयुक्‍त नदी पूरे असम से होकर एक संकीर्ण घाटी में बहती है। यह घुबरी के अनुप्रवाह में बांग्लादेश में प्रवेश करती है।

सहायक नदियाँ[संपादित करें]

यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानदी और सोन; गंगा की महत्‍वपूर्ण सहायक नदियाँ है। चंबल और बेतवा महत्‍वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश में मिलती है और पद्मा अथवा गंगा के रूप में बहती रहती है। भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियाँ सुबसिरी, जिया भरेली, घनसिरी, पुथिभारी, पागलादिया और मानस हैं। बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र तिस्ता नदी के प्रवाह में मिल जाती है और अंतत: गंगा में मिल जाती है। मेघना की मुख्‍य नदी बराक नदी मणिपुर की पहाडियों में से निकलती है। इसकी महत्‍वपूर्ण सहायक नदियाँ मक्‍कू, ट्रांग, तुईवई, जिरी, सोनई, रुक्‍वी, कचरवल, घालरेवरी, लांगाचिनी, महुवा और जातिंगा हैं। बराक नदी बांग्‍लादेश में भैरव बाज़ार के निकट गंगा-‍ब्रह्मपुत्र के मिलने तक बहती रहती है।

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ का अपवाह प्रतिरूप[संपादित करें]

भौतिक दृष्टि से देश में प्रायद्धीपेत्तर तथा प्रायद्धीपीय नदी प्रणालियों का विकास हुआ है, जिन्हे क्रमशः हिमालय की नदियाँ एवं दक्षिण के पठार की नदियाँ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। हिमालय अथवा उत्तर भारत की नदियों द्वारा निम्नलिखित प्रकार के अपवाह प्रतिरूप विकसित किये गये हैं।

पूर्वीवर्ती अपवाह[संपादित करें]

इस प्रकार का अपवाह तब विकसित होता है, जब कोई नदी अपने मार्ग में आने वाली भौतिक बाधाओं को काटते हुए अपनी पुरानी घाटी में ही प्रवाहित होती है। इस अपवाह प्रतिरूप की नदियों द्वारा सरित अपहरण का भी उदाहरण प्रस्तुत किया जाता है। हिमालय से निकलने वाली सिन्धु, सतलुज, ब्रह्मपुत्र, भागीरथी, तिस्ता आदि नदियाँ पूर्ववर्ती अपवाह प्रतिरूप का निर्माण करती हैं।

क्रमहीन अपवाह[संपादित करें]

जब कोई नदी अपनी प्रमुख शाखा से विपरीत दिशा से आकर मिलती है तब क्रमहीन या अक्रमवर्ती अपवाह प्रतिरूप का विकास हो जाता है। ब्रह्मपुत्र में मिलने वाली सहायक नदियाँ - दिहांग, दिवांग तथा लोहित इसी प्रकार का अपवाह बनाती है।

खण्डित अपवाह[संपादित करें]

उत्तर भारत के विशाल मैदान में पहुंचने के पूर्व भाबर क्षेत्र में विलीन हो जाने वाली नदियाँ खण्डित या विलुप्त अपवाह का निर्माण करती हैं।

मालाकार अपवाह[संपादित करें]

देश की अधिकांश नदियाँ समुद्र में मिलने के पूर्व अनेक शाखाओं में विभाजित होकर डेल्टा बनाती हैं, जिससे गुम्फित या मालाकार अपवाह का निर्माण होता है।

समानान्तर अपवाह[संपादित करें]

उत्तर के विशाल मैदान में पहुंचने वाली पर्वतीय नदियों द्वारा समानान्तर अपवाह प्रतिरूप विकसित किया गया है।

आयताकार अपवाह[संपादित करें]

उत्तर भारत के कोसी तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा आयताकार अपवाह प्रतिरूप का विकास किया गया है।

दक्षिण क्षेत्र से निकलने वाली नदियाँ[संपादित करें]

दक्‍कन क्षेत्र में अधिकांश नदी प्रणालियाँ सामान्‍यत पूर्व दिशा में बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं। गोदावरी, कृष्‍णा, कावेरी, महानदी, आदि पूर्व की ओर बहने वाली प्रमुख नदियाँ हैं और नर्मदा, ताप्‍ती पश्चिम की बहने वाली प्रमुख नदियाँ है। दक्षिणी प्रायद्वीप में गोदावरी दूसरी सबसे बड़ी नदी का द्रोणी क्षेत्र है जो भारत के क्षेत्र का दस प्रतिशत भाग है। इसके बाद कृष्‍णा नदी के द्रोणी क्षेत्र का स्‍थान है जबकि महानदी का तीसरा स्‍थान है। डेक्‍कन के ऊपरी भूभाग में नर्मदा का द्रोणी क्षेत्र है, यह अरब सागर की ओर बहती है, बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं दक्षिण में कावेरी के समान आकार की है और परन्‍तु इसकी विशेषताएँ और बनावट अलग है।j

नर्मदा अपवाह तंत्र[संपादित करें]

इस अपवाह तंत्र की मुख्य नदी नर्मदा नदी प्रायद्वीपीय भारत की एक प्रमुख नदी है। यह एक भ्रंश घाटी में होकर बहती है और बाकी प्रायद्वीपीय नदियों के विपरीत अरब सागर में एश्चुअरी बनाते हुए गिरती है जबकि प्रायद्वीपीय भारत की ज्यादातर बड़ी नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं और डेल्टा बनाती हैं। Aaj

दक्षिण क्षेत्र से निकलने वाली नदियाँ का अपवाह प्रतिरूप[संपादित करें]

दक्षिण भारत अथवा प्रायद्वीपीय पठारी भाग पर प्रवाहित होने वाली नदियों द्वारा भी विभिन्न प्रकार के अपवाह प्रतिरूप विकसित किये गये हैं। जिनका विवरण निम्नलिखित हैं।

अनुगामी अपवाह[संपादित करें]

जब कोई नदी धरातलीय ढाल की दिशा में प्रवाहित होती है तब अनुगामी अपवाह का निर्माण होता है। दक्षिण भारत की अधिकांश नदियों का उद्भाव पश्चिमी घाट पर्वत माला में हैं तथा वे ढाल के अनुसार प्रवाहित होकर बंगाल की खाड़ी अथवा अरब सागर में गिरती हैं और अनुगामी अपवाह का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।

परवर्ती अपवाह[संपादित करें]

जब नदियाँ अपनी मुख्य नदी में ढाल का अनुसरण करते हुए समकोण पर आकर मिलती हैं, तब परवर्ती अपवाह निर्मित होता है। दक्षिण प्रायद्वीप के उत्तरी भाग से निकलकर गंगा तथा यमुना नदियों में मिलने वाली नदियाँ - चम्बल, केन, काली, सिन्ध, बेतवा आदि द्वारा परवर्ती अपवाह प्रतिरूप विकसित किया गया है।

आयताकार अपवाह[संपादित करें]

विन्ध्य चट्टानों वाले प्रायद्वीपीय क्षेत्र में नदियों ने आयताकार अपवाह प्रतिरूप का निर्माण किया है, क्योंकि ये मुख्य नदी में मिलते समय चट्टानी संधियों से होकर प्रवाहित होती हैं तथा समकोण पर आकर मिलती है।

जालीनुमा अपवाह[संपादित करें]

जब नदियाँ पूर्णतः ढाल का अनुसरण करते हुए प्रवाहित होती है तथा ढाल में परिवर्तन के अनुसार उनके मार्ग में भी परिवर्तन हो जाता है, जब जालीनुमा अथवा ‘स्वभावोद्भूत’ अपवाह प्रणाली का विकास होता है। पूर्वी सिंहभूमि के प्राचीन वलित पर्वतीय क्षेत्र में इस प्रणाली का विकास हुआ है।

अरीय अपवाह[संपादित करें]

इसे अपकेन्द्रीय अपवाह भी कहा जाता है। इसमें नदियाँ एक स्थान से निकलकर चारों दिशाओं में प्रवाहित कहा जाता है। इसमें नदियाँ एक स्थान से निकलकर चारों दिशाओं में प्रवाहित होती हैं। दक्षिण भारत में अमरकण्टक पर्वत से निकलने वाली नर्मदा, सोन तथा महानदी आदि ने अरीय अपवाह का निर्माण किया है।

पादपाकार अथवा वृक्षाकांर अपवाह[संपादित करें]

जब नदियाँ सपाट तथा चौरस धरातल पर प्रवाहित होते हुए एक मुख्य नदी की धारा में मिलती हैं, तब इस प्रणाली का विकास होता है। दक्षिण भारत की अधिकांश नदियों द्वारा पादपाकार अपवाह का निर्माण किया गया है।

समानान्तर अपवाह[संपादित करें]

पश्चिमी घाट पहाड़ से निकलकर पश्चिम दिशा में तीव्र गति से बढ़कर अरब सागर में गिरने वली नदियों द्वारा समानान्तर अपवाह का निर्माण किया गया है।

तटवर्ती नदियाँ[संपादित करें]

भारत में कई प्रकार की तटवर्ती नदियाँ हैं जो अपेक्षाकृत छोटी हैं। ऐसी नदियों में काफ़ी कम नदियाँ-पूर्वी तट के डेल्‍टा के निकट समुद्र में मिलती है, जबकि पश्चिम तट पर ऐसी 600 नदियाँ है। राजस्थान में ऐसी कुछ नदियाँ है जो समुद्र में नहीं मिलती हैं। ये खारे झीलों में मिल जाती है और रेत में समाप्‍त हो जाती हैं जिसकी समुद्र में कोई निकासी नहीं होती है। इसके अतिरिक्‍त कुछ मरुस्‍थल की नदियाँ होती है जो कुछ दूरी तक बहती हैं और मरुस्‍थल में लुप्‍त हो जाती है। ऐसी नदियों में लुनी और मच्‍छ, स्‍पेन, सरस्‍वती, बानस और घग्‍गर जैसी अन्‍य नदियाँ हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

भारत के प्रमुख अफवाह तंत्र नाम और जानकारी

  1. सोनल गुप्ता - भूगोल कोश

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

भारत की प्रमुख नदियां एवं नदी प्रणाली[मृत कड़ियाँ]