विकिपीडिया:पृष्ठ हटाने हेतु चर्चा/लेख/राजेन्द्ररंजन चतुर्वेदी
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- निम्न चर्चा नीचे लिखे पृष्ठ के प्रस्तावित विलोपन का पुरालेख है। कृपया इसमें बदलाव न करें। अनुवर्ती टिप्पणियाँ उपयुक्त वार्ता पृष्ठ पर करनी चाहिए (जैसे कि लेख का वार्ता पृष्ठ)। इस पृष्ठ पर किसी भी प्रकार का कोई संपादन नहीं होना चाहिए।
परिणाम: हटाया। अजीत कुमार तिवारी बातचीत 18:10, 25 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- राजेन्द्ररंजन चतुर्वेदी (संपादन|वार्ता|इतिहास|कड़ियाँ|ध्यान रखें|लॉग)
- राजेन्द्ररंजन चतुर्वेदी -विकिपीडिया -wikipedia के लिये गूगल परिणाम: खोज • समाचार • पुस्तक • विद्वान •
नामांकन के लिये कारण:
उल्लेखनीयता संदिग्ध रोहितबातचीत 08:34, 17 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- इस लेख को साफ़ प्रचार होने के कारण नहीं हटाया जाना चाहिये क्योंकि... (यहाँ अपना कारण बताएँ) --Anurag R Chaturvedi (वार्ता) 08:48, 17 जनवरी 2022 (UTC)श्री रोहित साव27 , राजेन्द्ररंजन चतुर्वेदी पेज को पृष्ठों को हटाने की नीति के अंतर्गत शीघ्र हटाने के लिये आपने किस आधार पर नामांकित किया है। क्या इस पृष्ठ पर कोई गलत सूचना या व्यक्ति विशेष का प्रचार है , अगर है तो कृपया सूचित करें, क्या आप ने इसे पढ़ा है ? अगर आप किसी विषय या व्यक्ति से अनिभिज्ञ है तो आप सन्दर्भ के लिए कह सकते हैं, वह सन्दर्भ आप को प्रेषित किया जा सकता है,उल्लेखनीयता संदिग्ध से आप का क्या अभिप्राय है , लोकवार्ता, तंत्रशास्त्र और ब्रजभाषा साहित्य के बारे में आप का क्या योगदान है ? More reference and links added .Kindly refer all before concluding. Working arbitrarily is neither expected nor appreciated . Anurag R Chaturvedi (वार्ता) 15:49, 17 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- लोकवार्ता विज्ञान भारत की विषेशतः मौखिक ज्ञान परंपरा को सहेजने की कोशिश है । पूरे भारत वर्ष के लोकवार्ता सम्बन्धी कार्य की बिबलियोग्राफी बनाना और इस क्षेत्र में कार्य करने वाले सभी छोटे बड़े लेखकों और उनके कार्यों को एक स्थान पर लाना भारत के सांस्कृतिक और भाषायी लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करेगा । राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी ने इसी कोशिश को और आगे बढ़ाया है, वे भारत सरकार के अंतर्गत इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र जैसी महत्वपूर्ण संस्था से नब्बे के दशक से जुड़े हुए प्रोफेसर हैं, और लोक वार्ता विषय के शोध कर्ताओं के लिए एक एनसाइक्लोपीडिया हैं । इस पेज को डिलीट नहीं किया जाना चाहिए , अपितु भारतीय लोकवार्ता विषय को और अधिक विस्तार देने हेतु विकिपीडिया पर एक पेज बनाया जा सकता है - भारतीय लोकशास्त्र - लोकवार्ताविद और लोक वार्ता सन्दर्भ। भारतीय लोकवार्ता विज्ञान सम्बन्धी कार्य ,लेख , पुस्तक , पत्रिका (जैसे लोक कहानी, लोक गीत, लोकगाथा , लोकनृत्य, लोकसंगीत , कहावतें इत्यादि का संकलन और विवेचना ) और इस क्षेत्र में कार्य करने वाले सभी छोटे बड़े लेखकों के कार्यों को एक स्थान पर एकत्र करने के उद्देश्य से । भारत के सभी विषय सम्बन्धी विद्वान् उस पेज को अपडेट करते रहे। मैं इस पेज को क्रिएट कर सकता हूँ । यह भारत के सांस्कृतिक और भाषायी लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करेगा और एक बिबलियोग्राफी सभी के सहयोग से तैयार हो जाएगी। मैं एक सामान्य भारतीय नागरिक हूँ , और मूलतः वाणिज्य , अर्थशास्त्र और लेखांकन से सम्बद्ध हूँ । परन्तु भारतीय साहित्य , संगीत और राजनीति में रूचि रखता हूँ। मैं विकिपीडिया पर एक नया सदस्य हूँ इसलिए सभी सन्दर्भ एकसाथ न डाल पाने की विवशता हैं, और समय का अभाव है। आशा है आप समझेंगे , आपकी टिपण्णी और सहयोग अपेक्षित है ।कृपया दिशा दें ताकि मैं इस मंच को अधिक योगदान दे सकूं। Anurag R Chaturvedi (वार्ता) 12:12, 18 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- ना हटाएँ : लेखक ने लेख में कई संदर्भ उपलब्ध करा दिये हैं। अब इसे हटाने की आवश्यकता नहीं है। लेखक से अपेक्षा है कि और स्वत्नत्र संदर्भ उपलब्ध करा पाएंगें और लेख विकिपीडिया मानको पर खरा उतरेगा। मैंने {{स्रोत कम}} साँचा लगा दिया है, जो संदर्भ ढूंढने में सहायता करेगा। जब पर्याप्त संदर्भ उपलब्ध हो जाएँ तो ये साँचा हटा दें। --चंद्र शेखर/Shekhar 13:35, 18 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- @चंद्र शेखर जी, अनेक धन्यवाद । मैंने सन्दर्भ जोड़ दिए हैं जो मेरे ध्यान में हैं , तथापि मेरी सहायता करें - क्या अगर अमर उजाला, नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान, दैनिक जागरण,दैनिक ट्रिब्यून, कादिम्बनी, कल्याण,साहित्य अमृत, वैचारिकी , मढ़ई, इंद्रपस्थ भारती, हरिगंधा , भोजपुरी लोक इत्यादि की दिनांक या लेख को कैसे जोड़ा जा सकता है, यह सूची लम्बी है। Anurag R Chaturvedi (वार्ता) 18:24, 20 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- @चंद्र शेखर: जी कृपया संदर्भों की गिनती मात्र न देखें बल्कि उन्हें खोल कर पढ़ें और तत्पश्चात मत व्यक्त करें कि किस संदर्भ में ऐसा महत्वपूर्ण और विस्तृत विवरण उपलब्ध है जिससे विषय की उल्लेखनीयता साबित की जा सकती है।--SM7--बातचीत-- 17:29, 18 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- SM7 जी, मैं सिर्फ संख्या के आधार पर नहीं कह रहा हूं। इसमें कई ऐसे संदर्भ अखबारों और पुस्तकों के हैं जो उल्लेखनीयता साबित करते हैं जैसे कि विद्यनिवास पुरस्कार का मिलना, संस्कृति मंत्रालय की वेबसाइट पर गोष्ठी की सूचना, उप्र संगीत नाट्य अकादमी की वेबसाइट पर इनकी पुस्तक का विमोचन, कई अन्य पुस्तकों की ISBN के साथ जानकारी और कुछ और संदर्भ, इनमें मैं यूट्यूब के लिंक को नहीं गिन रहा। हो सकता है कि यह बहुत मज़बूत संदर्भ ना हों लेकिन इन्हें कम से कम कुछ तो उल्लेखनीय बनाते हैं, कम से कम इतना की इनके बारे में एक लेख विकी पर रह सके। मानता हूँ कि और भी संदर्भों की आवश्यकता है खासकर लेख में जो भी दावे किए गए हैं उनके लिए, इसलिए {{स्रोत कम}} साँचा लगा दिया था। मुझे लगता है कि लेख को ना मिटाकर लेखक को कुछ और समय देना चाहिए ताकि वो और स्वतन्त्र संदर्भ जुटा सके।--चंद्र शेखर/Shekhar 16:39, 19 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- @चंद्र शेखर: जी, फिर मुझे लगता है कि आपको नीति ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिये। आप जिन स्रोतों को उल्लेखनीयता के लिए गिना रहे वे केवल फैक्ट वेरिफिकेशन भर के लिए उपयुक्त हैं। --SM7--बातचीत-- 17:11, 19 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- हाँ नीतियों के हिसाब से तो ये बिल्कुल सर्वश्रेष्ठ नहीं है, लेकिन SM7 जी, मैं उल्लेखनीयता के लिए लिबरल अप्रोच रख रहा था। खैर। चंद्र शेखर/Shekhar 06:53, 20 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- @चंद्र शेखर: जी, फिर मुझे लगता है कि आपको नीति ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिये। आप जिन स्रोतों को उल्लेखनीयता के लिए गिना रहे वे केवल फैक्ट वेरिफिकेशन भर के लिए उपयुक्त हैं। --SM7--बातचीत-- 17:11, 19 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- @SM7 जी, विमर्श के लिए अनेक धन्यवाद । लोकप्रिय और लोक साहित्य में अंतर है, अभिनेता लोकप्रिय तो होते हैं, पर वो लोक की अभिव्यक्ति कम ही करते हैं, शासक वर्ग आज भी लोक साहित्य और जनता की वाचिक और ज्ञान परंपरा को और उनके सहेजने वाले विद्वानों को महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय मान ने को तैयार नहीं है । जरूरी नहीं, जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल वाले ही साहित्य कार कहे जाते हों, और भोजपुरी लोक निकालने वाली राजेश्वरी शांडिल्य और विद्या निवास मिश्र कुछ कम साहित्यकार हों । क्योंकि उनके पास संसाधन उपलब्ध नहीं । लोक साहित्य जनता का साहित्य है , भारतीय भाषाओं का साहित्य है, आप स्वयं भोजपुरी भाषा से जुड़े हैं, कितने लोग हैं जो लोक साहित्य को आदर दे पाते हैं ।अच्छे साहित्य को पढ़ने वाले लोग ही कितने हैं ? धरती और बीज अपने आप में एक संदर्भ ग्रन्थ है । क्या आपने पढ़ा या पुस्तक का लिंक खोलने का प्रयास किया ?? रसदेश के पहले खंड की भूमिका श्री करन सिंह और दूसरे खंड की भूमिका श्री इंद्रनाथ चौधरी ने लिखी है, क्या आप बनारसीदास चतुर्वेदी और इंद्रनाथ चौधरी जी के व्यक्तित्व से परिचित हैं ? क्या आपने भारत सरकार द्वारा उनके पत्रों को प्रकाशित की गयी १००० पृष्ठों की पुस्तक देखी हैं? क्या आपने स्वामी हरिदास का नाम सुना हैं ? और उनके ग्रन्थ केलिमाल से परिचित हैं ? या बिना किसी ग्रन्थ को देखे ही उल्लेखनीयता पर आदेश पारित कर दिया गया । धरती और बीज भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के आर नारायणन को भेंट की गयी थी , हिंदी की इंडिया टुडे और हिंदुस्तान ने लिखा , भारत के राष्ट्रपति के ग्रंथागार की शोभा बनी और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने पुरूस्कार दिया । आपको शायद ही विदित हो - ब्रज साहित्य मंडल के अध्यक्ष स्वयं भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद थे ,परन्तु पुराने साहित्यकारों को और लोक साहित्य को जानने में शायद ही किसी की रूचि हो । तो ठीक है, ऐसे में जो लोग दूर कोने में कार्य कर रहे हैं उनको इसी तरह की उपेक्षा स्वीकार करनी होती है । आशा है आप मेरी टिप्पड़ी को अन्यथा न लेंगे और विषय को समझेंगे । अधिक सन्दर्भ धीरे धीरे ही सम्मिलित किये जा सकते हैं । Anurag R Chaturvedi (वार्ता) 19:17, 20 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- SM7 जी, मैं सिर्फ संख्या के आधार पर नहीं कह रहा हूं। इसमें कई ऐसे संदर्भ अखबारों और पुस्तकों के हैं जो उल्लेखनीयता साबित करते हैं जैसे कि विद्यनिवास पुरस्कार का मिलना, संस्कृति मंत्रालय की वेबसाइट पर गोष्ठी की सूचना, उप्र संगीत नाट्य अकादमी की वेबसाइट पर इनकी पुस्तक का विमोचन, कई अन्य पुस्तकों की ISBN के साथ जानकारी और कुछ और संदर्भ, इनमें मैं यूट्यूब के लिंक को नहीं गिन रहा। हो सकता है कि यह बहुत मज़बूत संदर्भ ना हों लेकिन इन्हें कम से कम कुछ तो उल्लेखनीय बनाते हैं, कम से कम इतना की इनके बारे में एक लेख विकी पर रह सके। मानता हूँ कि और भी संदर्भों की आवश्यकता है खासकर लेख में जो भी दावे किए गए हैं उनके लिए, इसलिए {{स्रोत कम}} साँचा लगा दिया था। मुझे लगता है कि लेख को ना मिटाकर लेखक को कुछ और समय देना चाहिए ताकि वो और स्वतन्त्र संदर्भ जुटा सके।--चंद्र शेखर/Shekhar 16:39, 19 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- हटायें - लेख में एक भी ऐसा स्रोत नहीं संदर्भित है जहाँ लेख के विषय के बारे में सविस्तार विवरण उपलब्ध हो। ज्यादातर स्रोत संदर्भ ऐसे हैं जो किसी तथ्य विशेष को प्रमाणित करने के लिए उचित हैं लेकिन कोई भी उल्लेखनीयता साबित करने योग्य स्रोत नहीं उपलब्ध है। ऐसे संदर्भों के संश्लेषण से उल्लेखनीयता नहीं साबित की जा सकती; अतः लेख हटाने योग्य है। --SM7--बातचीत-- 17:25, 18 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- @SM7 @चंद्र शेखर जी, विमर्श के लिए अनेक धन्यवाद । मैं यहाँ नया हूँ, इस विषय पर उल्लेखनीयता साबित करने योग्य स्रोत क्या हो सकता हैं , अगर बताएं तो में जोड़ दूँ । मैंने सन्दर्भ जोड़ दिए हैं जो मेरे ध्यान में हैं , तथापि मेरी सहायता करें - क्या अगर अमर उजाला, नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान, दैनिक जागरण,दैनिक ट्रिब्यून, कादिम्बनी, कल्याण,साहित्य अमृत, वैचारिकी , मढ़ई, इंद्रपस्थ भारती, हरिगंधा , भोजपुरी लोक इत्यादि की दिनांक या लेख को कैसे जोड़ा जा सकता है, यह सूची लम्बी है।मेरे पास केवल PDF या JPG में ही उपलब्ध हैं , वो कॉपीराइट की वजह से शायद नहीं जोड़ी जा सकेगी । लोकप्रिय और लोक साहित्य में अंतर है, अभिनेता लोकप्रिय तो होते हैं, पर वो लोक की अभिव्यक्ति कम ही करते हैं, शासक वर्ग आज भी लोक साहित्य और जनता की वाचिक और ज्ञान परंपरा को और उनके सहेजने वाले विद्वानों को महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय मान ने को तैयार नहीं है । जरूरी नहीं, जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल वाले ही साहित्य कार कहे जाते हों, और भोजपुरी लोक निकालने वाली राजेश्वरी शांडिल्य और विद्या निवास मिश्र कुछ कम साहित्यकार हों । क्योंकि उनके पास संसाधन उपलब्ध नहीं । लोक साहित्य जनता का साहित्य है , भारतीय भाषाओं का साहित्य है, आप स्वयं भोजपुरी भाषा से जुड़े हैं, कितने लोग हैं जो लोक साहित्य को आदर दे पाते हैं ।अच्छे साहित्य को पढ़ने वाले लोग ही कितने हैं ? धरती और बीज अपने आप में एक संदर्भ ग्रन्थ है । क्या आपने पढ़ा या पुस्तक का लिंक खोलने का प्रयास किया ?? रसदेश के पहले खंड की भूमिका श्री करन सिंह और दूसरे खंड की भूमिका श्री इंद्रनाथ चौधरी ने लिखी है, क्या आप बनारसीदास चतुर्वेदी और इंद्रनाथ चौधरी जी के व्यक्तित्व से परिचित हैं ? क्या आपने भारत सरकार द्वारा उनके पत्रों को प्रकाशित की गयी 1000 पृष्ठों की पुस्तक देखी हैं? क्या आपने स्वामी हरिदास का नाम सुना हैं ? और उनके ग्रन्थ केलिमाल से परिचित हैं ? या बिना किसी ग्रन्थ को देखे ही उल्लेखनीयता पर आदेश पारित कर दिया गया । धरती और बीज भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के आर नारायणन को भेंट की गयी थी , हिंदी की इंडिया टुडे और हिंदुस्तान ने लिखा , भारत के राष्ट्रपति के ग्रंथागार की शोभा बनी और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने पुरूस्कार दिया । आपको शायद ही विदित हो - ब्रज साहित्य मंडल के अध्यक्ष स्वयं भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद थे ,परन्तु पुराने साहित्यकारों को और लोक साहित्य को जानने में शायद ही किसी की रूचि हो । तो ठीक है, ऐसे में जो लोग दूर कोने में कार्य कर रहे हैं उनको इसी तरह की उपेक्षा स्वीकार करनी होती है । आशा है आप मेरी टिप्पड़ी को अन्यथा न लेंगे और विषय को समझेंगे । अधिक सन्दर्भ धीरे धीरे ही सम्मिलित किये जा सकते हैं । Anurag R Chaturvedi (वार्ता) 19:35, 20 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- @Anurag R Chaturvedi अनुराग जी कृप्या आप उल्लेखनीयता नीति पढें। संदर्भ लगाने के लिए आप {{cite web}} {{cite book}} जैसे साँचों का उपयोग कर सकते हैं। आप इन साँचों को खोल कर देखें तो आपको इनके उपयोग की विधि मिल जाएगी जो यहाँ लिख पाना संभव नहीं होगा। अभी तक आपने लेख में जिस तरह से संदर्भ दिए हैं वो ठीक तरीके से ही दिए हैं। लेकिन वो संदर्भ उल्लेखनीयता साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। आप अधिक समझने के लिए अन्य साहित्यकारों या व्यक्तिओं पर बने लेखों को भी देख सकते हैं। फ़िर भी ना समझ आए तो मेरे वार्ता पृष्ठ पर वार्ता करें मैं समझाने की कोशिश करूँगा।
- विकी पर उल्लेखनीयता एक कठिन विषय है। मैंने राजीव रंजन के बारे गूगल पर ढूंढने की कोशिश की मुझे कोई बहुत स्वतन्त्र स्त्रोत नहीं मिले। फिर भी अगर आपके पास हैं तो आप उल्लेखित साँचों का इस्तेमाल कर के लेख में डालें। इसमें कॉपीराइट की कोई समस्या नहीं है। सिर्फ़ उल्ल्लेख करना है सामग्री नहीं डालनी है। स्वयं की लिखी पुस्तकें बनाए हुए यूट्युब वीडियो स्वतन्त्र स्रोत नहीं माने जाते। जब तक तमाम स्वतन्त्र संस्थाओं, वृहद मीडिया ने विषय पर टिप्पणी ना की हो, उनके या उनके कार्यों के बारे में आलोचनात्मक दृष्टि से ना लिखा या कहा हो उन्हें आप कैसे उल्लेखनीय या प्रसिद्ध मानेंगे। जिन्हें कम लोग जानते हैं वो वाकई उल्लेखनीय नहीं है भले ही वो बहुत अच्छा कार्य कर रहे हों। अगर श्री इंद्रनाथ चौधरी, बनारसीदास चतुर्वेदी या राजीव जी के बारे में अधिकांश पुस्तकों, शोध पत्रों या फिर समाचार पत्रों में स्वतन्त्र व आलोचनात्मक दृष्टिकोण से लिखा होगा तो उसे उल्लेखनीय माना जा सकता है। आप एक बार नीति पढें। महादेवी वर्मा, फणिश्वरनाथ रेणु पर्याप्त रूप से उल्लेखनीय साहित्यकार हैं लेकिन हर कोई व्यक्ति जिसने कोई पुस्तक या साहित्य लिखा हो यह जरूरी नहीं कि वो वाकई प्रसिद्ध और उल्लेखनीय हो।
- क्या आपने पढ़ा या पुस्तक का लिंक खोलने का प्रयास किया ?? यकीन मानिए मैंने आपके अभी तक दिये संदर्भ पढे और इन्हीं पर SM7 जी से चर्चा हुई जो आप उपर पढ सकते हैं। यह वाकई सिर्फ तथ्य स्थापित करने वाले ही हैं यानि कि सिर्फ़ खबर की तरह। इनकी पुस्तक पर रसदेश के खंड जिन्होंने भी लिखे हों वो स्वयं कितने भी उल्लेखनीय हों वो उनका स्वतन्त्र लेखन नहीं माना जाएगा। हो सकता है वो इन्होंने इनकी पुस्तक में इनके कहने पर लिखे हों, यह कैसे साबित करेंगे। भारत के राष्ट्रपति उल्लेखनीय व्यक्ति हैं लेकिन अगर वह कहीं किसी मंच या सम्मेलन में मेरा नाम ले लें तो मैं उल्लेखनीय नहीं हो जाता।
- आपने कहा तो ठीक है, ऐसे में जो लोग दूर कोने में कार्य कर रहे हैं उनको इसी तरह की उपेक्षा स्वीकार करनी होती है लेकिन माफ करिएगा विकिपीडिया ऐसे लोगों को मंच देने के लिये या उनका प्रचार करने के लिये नहीं है। यह एक ज्ञानकोष है जो उल्लेखनीय वय्क्तियो और विषयों के बारे में ही है। अगर लोगों मे साहित्य या साहित्यकारों में रूचि कम है तो इसके प्रचार के लिए विकिपीडिया को इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और यह सभी विषयों पर लागू होता है, सिर्फ़ साहित्य पर नहीं। चंद्र शेखर/Shekhar 13:47, 21 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- @चंद्र शेखर@रोहित साव27@SM7 दो तीन चीजें हैं - पहली बात तो, ठीक नाम है राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी (Rajendra Ranjan Chaturvedi) नाकि राजीव रंजन इत्यादि । दूसरी बात, जहाँ तक मुझे समझ आया है Wikipedia ज्ञान को सरंक्षित करने और बढ़ाने का मंच है,नहीं तो विकि को बनाने की जरूरत ही नहीं होती वो भी donation से , गूगल तो था ही , जहाँ तक उल्लेखनीयता समबन्धी आर्टिकल मैंने पढ़ा , वह मुझे बहुत स्तरीय नहीं लगा । तीसरी बात , जहाँ तक प्रचार की बात है - किसी ७५-८० साल के व्यक्ति को उसकी आवश्यकता शायद ही हो, वह भी तब, जब खुद भारत की जनता , भारत सरकार और भारत के कई राष्ट्रपति यथा शंकर दयाल शर्मा, के आर नारायणन, भैरो सिंह शेखावत और अन्य सम्मानीय यथा जवाहरलाल नेहरू, मोरारजी भाई, गुलजारी लाल नंदा, करन सिंह आदि सम्मानित करते रहे हों (ये लोग कोई पार्टी या गली के नेता नहीं है )। विकी भारत सरकार या भारत के राष्ट्रपति से बड़ा तो कदापि नहीं है , लेख हटाना है तो सौ बार हटा दिया जाय, यहाँ पर लेख बना कर न मुझे कुछ मिलना है, नहीं किसी और को । न मेरा कोई Commercial या प्रचार का प्रयोजन है , मात्र प्रयोजन था कि भारत की लोक ज्ञान परम्परा संरक्षित रहे और मैं इस पेज को अधिक विस्तार दे सकूं लेकिन चौथी और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि ज्ञानकोष- मतलब, ज्ञान का सागर, ज्ञान का विस्तार। सर्वज्ञाता होने का भाव नहीं । उल्लेखनीय वय्क्तियो और विषयों (आपके मतानुसार) के बारे में जानकारी Google पर है ही, wikipedia की जरूरत ही क्या थी? यह संपादन अधिकार उन व्यक्तियों को दे देना जिन्हें विषय की समझ ही नहीं, या उल्ल्लेखनीयता गूगल सर्च से ही जान सकते हैं या गिने चुने कुछ विषयों या लोगों को ही जानते हैं ??? तो ये तो बीन बजाना ही हुआ। Google या wikipedia कैसे इतने बड़े और reliable बने ?? हालाकिं मैं और सन्दर्भ बाद में ही जोड़ सकुंगा (अगर पेज रहता है, तो ही) पर क्या आप लोकवार्ता के अभिप्राय से परिचित भी है ? अगर कोई लेखांकन (Double entry system) के जनक Luca Pacioli को नहीं जानता तो ये तो ये उसके ज्ञान का पराभव है , Luca Pacioli का नहीं । अगर कोई देश के वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार और संपादक स्वर्गीय बनारसीदास चतुर्वेदी को नहीं जानता, जिन्होंने महात्मा गाँधी और रविंद्रनाथ टैगोर जैसे लोगों के साथ काम किया और उस ज़माने में पत्रकारिता की धूम मचाई और वो केवल आजतक या NDTV या Zee को ही पत्रकरिता समझे तो ऐसे सम्पादकों के ज्ञान को में क्या कहूँ। नमस्कार ही कह सकता हूँ । Anurag R Chaturvedi (वार्ता) 19:41, 21 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- @Anurag R Chaturvedi अनुराग जी, अगर आपको उल्लेखनीया नीति स्तरीय नहीं लगती तो आप उसके वार्ता पृष्ठ पर अपने विचार रख सकते हैं और समुदाय द्वारा चर्चा और मतदान के बाद बदलवा सकते हैं। विकी सबक है और विकी लगातार समयानुसार और समुदाय (उपयोगकर्ताओं) के मतानुसार बदलता रहता है। यह संपादन अधिकार उन व्यक्तियों को दे देना जिन्हें विषय की समझ ही नहीं -> विकी पर संपादन अधिकार सबको है उनको भी जिनका विकीपर खाता नहीं है। कोई भी लेख बना सकता है लेकिन विषय की उल्लेखनीयता साबित करनी होती है। ऐसा विकी को मुफ्त वेबहोस्ट बनने से बचाने के लिए है। विकी यूट्युब नही हैं जहाँ कोई भी कुछ भी वीडियो बनाकर डाल सकता है और यूट्युब प्रचार दिखाकर अपना खर्च पूरा करता है। विकी के पास सीमित संसाधन हैं और यह प्रचार दिखा कर पैसे भी नहीं कमाता, सिर्फ डोनेशन से चलता है। सिर्फ़ अंदाज ना लगाएँ विकी क्या नहीं है यह पढें।
- सर्वज्ञाता होने का भाव नहीं --> विकी पर एडमिन हर कोई नही होता कुछ लोग ही होते है जो समुदाय द्वारा चुन के आते हैं। यह जरूरी नहीं कि उन्हें हर विषय का संपूर्ण ज्ञान हो, इसीलिए संदर्भ मांगा जाता है। अगर विकी या इसके उपयोगकर्ता सर्वज्ञाताका भाव रखते तो संदर्भ नहीं मांगते। उन्हें पहले ही सब पता होता। मैं आपकी भावना समझ सकता हूँ कि आप लोक परम्परा या भारत की लोक ज्ञान परंपरा को संरचित करना चाहते हैं तो फिर आप पहले उसके बारे में लिखिए, क्या जरूरी है किसी व्यक्ति के ही बारे में लिखना, पहले आप विषय के बारे में तो लिखें। फिर व्यक्तियों के संदर्भ भी निकल आएंगे। उपर जो लाल कडी दिख रही है वह दर्शाती है कि इस विषय पर ही लेख नहीं बना हुआ है और आप उस विषय से संबन्धित व्यक्ति पर लेख बनाने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। यह आपके इस वाक्य की आप लोक परम्परा को संरचित करना चाहते हैं पर प्रश्न चिह्न लगाता है।
- Luca Pacioli को नहीं जानता तो ये तो ये उसके ज्ञान का पराभव है --> बस यही बात आप नहीं समझ पाए कि हर इंसान हर किसी को नहीं जानता। विकी पर सबको यह जनवाने के लिए संदर्भ देने की आवश्यकता होती है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर आप चित्रकला में रूचि नहीं रखते हैं तो आप विन्सेंट वैन गॉग को नहीं जानते होंगे तो क्या मैं यह मानू कि यह आपके ज्ञान का पराभाव है। क्या आप उस व्यक्ति को जानते हैं जिसने छायाचित्रण में उपयोग की जाने वाली रील का आविश्कार किया, शायद नहीं लेकिन जो लोग जानते होंगे उन्होंने उनके बारे में स्वतन्त्र चर्चाएँ की होंगी और वही उनका संदर्भ है और उनकी उल्लेखनीयता साबित करता है ताकि जब आप उनके बारे में विकी पर पढें तो उस लेख पर और इस तथ्य पर भरोसा कर सकें कि जो लिखा गया है वो सही है या उसके सही होने की संभावन सबसे ज्यादा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ इसी लेख की उल्लेखनीयता पर चर्चा हो रही है, ऐसे कई व्यकतियों के लेखों पर यह हो चुकी है।
- आपने महात्मा गाँधी के साथ काम करने वालों का उदाहरण दिया, लेकिन महोदय महात्मा गाँधी को पूरी दुनिया जानती है और उनके साथ काम करने वालों को शायद वही जानते होंगे या सिर्फ कुछ हज़ार लोग। लेकिन अगर उनके बारे में कई पुस्तकों/पत्रिकाओं या वेबसाइटों पर विस्तार से लिखा गया होगा तो उसे कईयों ने पढा होगा और तब उन्हें भी उल्लेखनीय माना जा सकता है, हालांकि किसने क्या लिखा है उसपर चर्चा हो सकती है। Google कोई ज्ञान स्वंय नहीं रखता है, यह विभिन्न वेबसाइटॉं , पुस्तकों , शोध पत्रों इत्यादि को ढूँढने का काम करता है और आपको उनतक पहुंचाता है। इसके विश्वशनीय होने की बात ही नहीं उठती, विश्वसनीयता उस स्रोत के उपर है जिसे गूगल ने हमें ढूंढ के दिया है। मुझे लग रहा है कि आप सिर्फ़ भावनात्मक हो रहे हैं और विषय को समझ नहीं रहे। मेरा मत है कि आप पहले लोक परम्परा पर लेख बनाएँ। राजीव जी के लेख में भी आप सुधार कर सकते हैं और पर्याप्त संदर्भ डाल सकते हैं। हमें उनपर लेख से कोई आपत्ति नहीं अगर उनके बारे में पर्याप्त उल्लेखनीय संदर्भ मिल जाएँ तो। चंद्र शेखर/Shekhar 09:49, 22 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- @चंद्र शेखर ji , I cant exactly remember the page name but I had prepared one page namely
- भारतीय लोक वार्ता सन्दर्भ और लोकवारतविद etc. last week which has immediately been deleted perhaps by shri @SM7 ji .. I am not able to trace it now . यह आपके इस वाक्य की आप लोक परम्परा को संरचित करना चाहते हैं पर प्रश्न चिह्न लगाता है। My intention was that I to request relevant persons including Rajendra Ranjan ji to update this page because I know these people know the subject well. I am not the subject matter expert in this field ... but anyways .... राजीव जी के लेख में भी आप सुधार कर सकते हैं Second thing who is Rajeev, you are referring to again and again ??? Anurag R Chaturvedi (वार्ता) 19:00, 23 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- @चंद्र शेखर Ji , By the way , I have already updated the reference wherever you have put
इस लेख में सत्यापन हेतु अतिरिक्त संदर्भ अथवा स्रोतों की आवश्यकता है।
कृपया विश्वसनीय स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री को चुनौती दी जा सकती है और हटाया भी जा सकता है।
स्रोत खोजें: "राजेन्द्ररंजन चतुर्वेदी" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR)- @Anurag R Chaturvedi अनुराग जी, मैंने तो आपके दिये संदर्भ पढे लेकिन क्या आप ने वह सब पढा जो मैंने दिया था। पढा होता तो आपको अब तक संदर्भ लगाना आ गया होता। अधीर ना होइये, विकी पर बहुत धैर्य की आवश्यकता है। एक बार फिर से {{cite web}}, {{cite journal}} {{cite book}} पढिये और और उपयोग सीखिये। संदर्भ में पत्रिकाओं के नाम नहीं लिखने होते हैं, बल्कि पत्रिकाओं में विषय के बारे में कहाँ लिखा है यह बताना होता है। आप कह रहे हैं कि अमर उजाला में राजेंद्र जी के बारे में छपा था, मैं कैसे मान लूं, कब छापा, क्या छपा, उसका कोई वेब लिंक यह सब {{cite web}} के जरिए देना होता है। पीडीएफ उपलोड करने की आवश्यक्ता नहीं है। उसके बारे में {{cite book}} के जरिए बताइये। पहले अभी आप अपने प्रयोगपृष्ठ पर लेख की सामग्री को कॉपी करिये और वहाँ पर लेख को सुधारिए। वहाँ से इसे कोई नहीं हटाएगा, एक बार जब लेख सुधर जाए तो उसकी @SM7 और अन्य लोगों से समीक्षा कराइये और फिर मंजूर होने पर विकी पर लेख बनाईये।
- आपका पहले बनाया गया पृष्ठ क्यों हटाया गया यह तो मैं नहीं जानता लेकिन संभवत: वह परीक्षण पृष्ठ था। अगर वह ठीक से समस्त संदर्भों सहित बना होता तो शायद नहीं हटाया गया होता। इसीलिए जब आप नए हों तो पहले संपादन और एक अच्छा प्रकाशित करने योग्य लेख बनाना सीखने के लिए अपने प्रयोगपृष्ठ का उपयोग करना चाहिए। यह सब जानकारी आपके वार्ता पृष्ठ पर लिखी होगी, उसे एक बार पढिए। आप उस लेख को एक बार फिर से अपने प्रयोगपृष्ठ को बनाएं। फिर समीक्षा की जायेगी। चंद्र शेखर/Shekhar 09:19, 24 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- @चंद्र शेखर ji But who is Rajeev Ranjan ji - you are referring again and again ... 2409:4040:D18:8AB0:F52F:1225:AA44:888 (वार्ता) 14:51, 24 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- मैं त्रुटिवश राजेंद्र को राजीव लिख रहा था। चंद्र शेखर/Shekhar 15:35, 24 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- @चंद्र शेखर ji But who is Rajeev Ranjan ji - you are referring again and again ... 2409:4040:D18:8AB0:F52F:1225:AA44:888 (वार्ता) 14:51, 24 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
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- @चंद्र शेखर@रोहित साव27@SM7 दो तीन चीजें हैं - पहली बात तो, ठीक नाम है राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी (Rajendra Ranjan Chaturvedi) नाकि राजीव रंजन इत्यादि । दूसरी बात, जहाँ तक मुझे समझ आया है Wikipedia ज्ञान को सरंक्षित करने और बढ़ाने का मंच है,नहीं तो विकि को बनाने की जरूरत ही नहीं होती वो भी donation से , गूगल तो था ही , जहाँ तक उल्लेखनीयता समबन्धी आर्टिकल मैंने पढ़ा , वह मुझे बहुत स्तरीय नहीं लगा । तीसरी बात , जहाँ तक प्रचार की बात है - किसी ७५-८० साल के व्यक्ति को उसकी आवश्यकता शायद ही हो, वह भी तब, जब खुद भारत की जनता , भारत सरकार और भारत के कई राष्ट्रपति यथा शंकर दयाल शर्मा, के आर नारायणन, भैरो सिंह शेखावत और अन्य सम्मानीय यथा जवाहरलाल नेहरू, मोरारजी भाई, गुलजारी लाल नंदा, करन सिंह आदि सम्मानित करते रहे हों (ये लोग कोई पार्टी या गली के नेता नहीं है )। विकी भारत सरकार या भारत के राष्ट्रपति से बड़ा तो कदापि नहीं है , लेख हटाना है तो सौ बार हटा दिया जाय, यहाँ पर लेख बना कर न मुझे कुछ मिलना है, नहीं किसी और को । न मेरा कोई Commercial या प्रचार का प्रयोजन है , मात्र प्रयोजन था कि भारत की लोक ज्ञान परम्परा संरक्षित रहे और मैं इस पेज को अधिक विस्तार दे सकूं लेकिन चौथी और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि ज्ञानकोष- मतलब, ज्ञान का सागर, ज्ञान का विस्तार। सर्वज्ञाता होने का भाव नहीं । उल्लेखनीय वय्क्तियो और विषयों (आपके मतानुसार) के बारे में जानकारी Google पर है ही, wikipedia की जरूरत ही क्या थी? यह संपादन अधिकार उन व्यक्तियों को दे देना जिन्हें विषय की समझ ही नहीं, या उल्ल्लेखनीयता गूगल सर्च से ही जान सकते हैं या गिने चुने कुछ विषयों या लोगों को ही जानते हैं ??? तो ये तो बीन बजाना ही हुआ। Google या wikipedia कैसे इतने बड़े और reliable बने ?? हालाकिं मैं और सन्दर्भ बाद में ही जोड़ सकुंगा (अगर पेज रहता है, तो ही) पर क्या आप लोकवार्ता के अभिप्राय से परिचित भी है ? अगर कोई लेखांकन (Double entry system) के जनक Luca Pacioli को नहीं जानता तो ये तो ये उसके ज्ञान का पराभव है , Luca Pacioli का नहीं । अगर कोई देश के वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार और संपादक स्वर्गीय बनारसीदास चतुर्वेदी को नहीं जानता, जिन्होंने महात्मा गाँधी और रविंद्रनाथ टैगोर जैसे लोगों के साथ काम किया और उस ज़माने में पत्रकारिता की धूम मचाई और वो केवल आजतक या NDTV या Zee को ही पत्रकरिता समझे तो ऐसे सम्पादकों के ज्ञान को में क्या कहूँ। नमस्कार ही कह सकता हूँ । Anurag R Chaturvedi (वार्ता) 19:41, 21 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]
- @Anurag R Chaturvedi अनुराग जी कृप्या आप उल्लेखनीयता नीति पढें। संदर्भ लगाने के लिए आप {{cite web}} {{cite book}} जैसे साँचों का उपयोग कर सकते हैं। आप इन साँचों को खोल कर देखें तो आपको इनके उपयोग की विधि मिल जाएगी जो यहाँ लिख पाना संभव नहीं होगा। अभी तक आपने लेख में जिस तरह से संदर्भ दिए हैं वो ठीक तरीके से ही दिए हैं। लेकिन वो संदर्भ उल्लेखनीयता साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। आप अधिक समझने के लिए अन्य साहित्यकारों या व्यक्तिओं पर बने लेखों को भी देख सकते हैं। फ़िर भी ना समझ आए तो मेरे वार्ता पृष्ठ पर वार्ता करें मैं समझाने की कोशिश करूँगा।
- @SM7 @चंद्र शेखर जी, विमर्श के लिए अनेक धन्यवाद । मैं यहाँ नया हूँ, इस विषय पर उल्लेखनीयता साबित करने योग्य स्रोत क्या हो सकता हैं , अगर बताएं तो में जोड़ दूँ । मैंने सन्दर्भ जोड़ दिए हैं जो मेरे ध्यान में हैं , तथापि मेरी सहायता करें - क्या अगर अमर उजाला, नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान, दैनिक जागरण,दैनिक ट्रिब्यून, कादिम्बनी, कल्याण,साहित्य अमृत, वैचारिकी , मढ़ई, इंद्रपस्थ भारती, हरिगंधा , भोजपुरी लोक इत्यादि की दिनांक या लेख को कैसे जोड़ा जा सकता है, यह सूची लम्बी है।मेरे पास केवल PDF या JPG में ही उपलब्ध हैं , वो कॉपीराइट की वजह से शायद नहीं जोड़ी जा सकेगी । लोकप्रिय और लोक साहित्य में अंतर है, अभिनेता लोकप्रिय तो होते हैं, पर वो लोक की अभिव्यक्ति कम ही करते हैं, शासक वर्ग आज भी लोक साहित्य और जनता की वाचिक और ज्ञान परंपरा को और उनके सहेजने वाले विद्वानों को महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय मान ने को तैयार नहीं है । जरूरी नहीं, जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल वाले ही साहित्य कार कहे जाते हों, और भोजपुरी लोक निकालने वाली राजेश्वरी शांडिल्य और विद्या निवास मिश्र कुछ कम साहित्यकार हों । क्योंकि उनके पास संसाधन उपलब्ध नहीं । लोक साहित्य जनता का साहित्य है , भारतीय भाषाओं का साहित्य है, आप स्वयं भोजपुरी भाषा से जुड़े हैं, कितने लोग हैं जो लोक साहित्य को आदर दे पाते हैं ।अच्छे साहित्य को पढ़ने वाले लोग ही कितने हैं ? धरती और बीज अपने आप में एक संदर्भ ग्रन्थ है । क्या आपने पढ़ा या पुस्तक का लिंक खोलने का प्रयास किया ?? रसदेश के पहले खंड की भूमिका श्री करन सिंह और दूसरे खंड की भूमिका श्री इंद्रनाथ चौधरी ने लिखी है, क्या आप बनारसीदास चतुर्वेदी और इंद्रनाथ चौधरी जी के व्यक्तित्व से परिचित हैं ? क्या आपने भारत सरकार द्वारा उनके पत्रों को प्रकाशित की गयी 1000 पृष्ठों की पुस्तक देखी हैं? क्या आपने स्वामी हरिदास का नाम सुना हैं ? और उनके ग्रन्थ केलिमाल से परिचित हैं ? या बिना किसी ग्रन्थ को देखे ही उल्लेखनीयता पर आदेश पारित कर दिया गया । धरती और बीज भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के आर नारायणन को भेंट की गयी थी , हिंदी की इंडिया टुडे और हिंदुस्तान ने लिखा , भारत के राष्ट्रपति के ग्रंथागार की शोभा बनी और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने पुरूस्कार दिया । आपको शायद ही विदित हो - ब्रज साहित्य मंडल के अध्यक्ष स्वयं भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद थे ,परन्तु पुराने साहित्यकारों को और लोक साहित्य को जानने में शायद ही किसी की रूचि हो । तो ठीक है, ऐसे में जो लोग दूर कोने में कार्य कर रहे हैं उनको इसी तरह की उपेक्षा स्वीकार करनी होती है । आशा है आप मेरी टिप्पड़ी को अन्यथा न लेंगे और विषय को समझेंगे । अधिक सन्दर्भ धीरे धीरे ही सम्मिलित किये जा सकते हैं । Anurag R Chaturvedi (वार्ता) 19:35, 20 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]