"बिंदेश्वरी दुबे": अवतरणों में अंतर

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'''बिन्देश्वरी दूबे''' (१४ जनवरी, १९२३ - २० जनवरी, १९९३) एक [[भारत|भारतीय]] राजनेता, प्रशासक, स्वतंत्रता सेनानी एवं श्रमिक नेता थे जो [[बिहार के मुख्यमंत्री]], केन्द्रीय काबीना मंत्री (कानून एवं न्याय तथा श्रम एवं रोजगार), इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष, बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष आदि भी रहे। इससे पूर्व ये अखंड बिहार (एवं झारखंड) सरकारों में भी शिक्षा, परिवहन, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री रहे। १९८० से १९८४ तक सातवीं लोक सभा के सदस्य, १९८८ से १९९३ तक राज्य सभा के सदस्य तथा छह बार विधान सभा के सदस्य रहे। इन्होंने देश की कोलियरियों के राष्ट्रीयकरण में अहम् भूमिका निभाई। लोग उन्हें श्रद्धा से 'बाबा' कहकर पुकारते थे तथा जीवनपर्यन्त मजदूरों के अधिकार की बड़ी-बड़ी लड़ाई लड़ने एवं उनको न्याय दिलवाने के कारण इन्हें 'मजदूर मसीहा' भी कहा जाता है।
'''बिन्देश्वरी दूबे''' (१४ जनवरी, १९२३ - २० जनवरी, १९९३) एक [[भारत|भारतीय]] राजनेता, प्रशासक, स्वतंत्रता सेनानी एवं श्रमिक नेता थे जो [[बिहार के मुख्यमंत्री]], केन्द्रीय काबीना मंत्री (कानून एवं न्याय तथा श्रम एवं रोजगार), इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष, बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष आदि भी रहे। इससे पूर्व ये अखंड बिहार (एवं झारखंड) सरकारों में भी शिक्षा, परिवहन, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री रहे। १९८० से १९८४ तक सातवीं लोक सभा के सदस्य, १९८८ से १९९३ तक राज्य सभा के सदस्य तथा छह बार विधान सभा के सदस्य रहे। इन्होंने देश की कोलियरियों के राष्ट्रीयकरण में अहम् भूमिका निभाई। लोग उन्हें श्रद्धा से 'बाबा' कहकर पुकारते थे तथा जीवनपर्यन्त मजदूरों के अधिकार की बड़ी-बड़ी लड़ाई लड़ने एवं उनको न्याय दिलवाने के कारण इन्हें 'मजदूर मसीहा' भी कहा जाता है।<ref>https://livecities.in/arrah/hindi-news-bindeshwari-dubey-remembered-at-arrah-bihar/</ref><ref>https://m.jagran.com/bihar/bhojpur-11978618.html</ref><ref>http://www.univarta.com/news/states/story/343707.html</ref><ref>https://m.livehindustan.com/news/Buxar/article1-Dube-was-the-Messiah-of-the-poor-Bindeshwari:-Tathagata-665027.html</ref>


== व्यक्तिगत जीवन ==
== व्यक्तिगत जीवन ==

18:03, 30 मई 2018 का अवतरण

पण्डित
बिन्देश्वरी दूबे
मजदूर मसीहा

बिहार के २१वें मुख्यमंत्री
कार्यकाल
१२ मार्च १९८५ – १४ फ़रवरी १९८८
प्रधानमंत्री राजीव गांधी
राज्यपाल १)ए•आर• किदवई (२० सितम्बर १९७९ - १५ मार्च १९८५)

२)पेन्डेकान्ति वैन्कट सुबईया (१५ मार्च १९८५ - २५ फ़रवरी १९८८)

अध्यक्ष, बिहार विधान सभा शिव चन्द्र झा

राधानंदन झा (प्रोटेम स्पीकर)

विपक्ष के नेता कर्पूरी ठाकुर
मुख्य सचिव के•के• श्रीवास्तव
पूर्वा धिकारी चंद्रशेखर सिंह
उत्तरा धिकारी भागवत झा आजाद
चुनाव-क्षेत्र शाहपुर

कानून एवं न्याय मंत्री
कार्यकाल
१४ फ़रवरी १९८८ – २६ जून १९८८
प्रधान मंत्री राजीव गाँधी
राज्य मंत्री हंसराज भारद्वाज
पूर्वा धिकारी पी० शिव शंकर
उत्तरा धिकारी बी० शंकरानन्द

श्रम एवं रोजगार मंत्री
कार्यकाल
२६ जून १९८८ – ०१ दिसम्बर १९८९
प्रधान मंत्री राजीव गाँधी
पूर्वा धिकारी रविन्द्र वर्मा
उत्तरा धिकारी रामविलास पासवान

अध्यक्ष, इंटक
कार्यकाल
मई १९८४ - मार्च १९८५
कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी
राजीव गांधी
उत्तरा धिकारी गोपाल रामानुजम

अध्यक्ष, बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी
कार्यकाल
सितम्बर १९८४ - मार्च १९८५
कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी
राजीव गांधी
पूर्वा धिकारी राम शरण सिंह
उत्तरा धिकारी डुमर लाल बैठा

शिक्षा मंत्री, बिहार सरकार
कार्यकाल
(२८ मई १९७३– २ जुलाई १९७३)
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी
राज्यपाल रामचंद्र धोंंडीबा भंडारे
मुख्यमंत्री केदार पांडे
पूर्वा धिकारी राष्ट्रपति शासन
उत्तरा धिकारी विद्याकार कवि
चुनाव-क्षेत्र बेरमो

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री, बिहार सरकार
कार्यकाल
(२८ मई १९७३– २ जुलाई १९७३)
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी
राज्यपाल रामचंद्र धोंंडीबा भंडारे
मुख्यमंत्री केदार पांडे
चुनाव-क्षेत्र बेरमो

परिवहन मंत्री, बिहार सरकार
कार्यकाल
(२५ सितंबर १९७३ – २८ अप्रेल १९७४)
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी
राज्यपाल रामचंद्र धोंंडीबा भंडारे
मुख्य मंत्री अब्दुल गफूर
पूर्वा धिकारी शत्रुघ्न शरण सिंह (परिवहन)
चुनाव-क्षेत्र बेरमो

स्वास्थ एवं परिवार कल्याण मंत्री, बिहार सरकार
कार्यकाल
(११ अप्रेल १९७५ - ३० अप्रेल १९७७)
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी
राज्यपाल १) रामचंद्र धोंंडीबा भंडारे (४ फ़रवरी १९७३ - १५ जून १९७६)

२) जगन्नाथ कौशल (१६ जून १९७६ - ३१ जनवरी १९७९)

मुख्य मंत्री जगन्नाथ मिश्र
पूर्वा धिकारी केदार पांडे
उत्तरा धिकारी प्रो• जाबिर हुसैन
चुनाव-क्षेत्र बेरमो

वित्त मंत्री, बिहार सरकार
कार्यकाल
१२ मार्च १९८५ - १४ फ़रवरी १९८८
प्रधानमंत्री राजीव गांधी
राज्यपाल ए•आर• किदवई

पेंडेकांती वैंकट सुबईया

मुख्यमंत्री बिन्देश्वरी दूबे
पूर्वा धिकारी जगन्नाथ मिश्र
उत्तरा धिकारी जगन्नाथ मिश्र
चुनाव-क्षेत्र शाहपुर

सांसद, लोक सभा
कार्यकाल
(१९८० - १९८४)
पूर्वा धिकारी रामदास सिंह
उत्तरा धिकारी सरफ़राज़ अहमद
चुनाव-क्षेत्र गिरिडीह

सांसद, राज्य सभा
कार्यकाल
(०३ अप्रेल १९८८ - २० जनवरी १९९३)

बिहार विधान सभा
कार्यकाल
(१९५२ - १९५७)
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू
मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह
पूर्वा धिकारी कामख्या नारायण सिंह
चुनाव-क्षेत्र जरीडीह-पेटरवार
कार्यकाल
(१९६२ - १९६७, १९६७ - १९६९, १९६९ - १९७२, १९७२ - १९७७)
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू
लाल बहादुर शास्त्री
इंदिरा गांधी
मुख्यमंत्री बिनोदानंद झा
कृष्ण वल्लभ सहाय
महामाया प्रसाद सिन्हा
सतीश प्रसाद सिंह
बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल
भोला पासवान शास्त्री
हरिहर सिंह
दरोगा प्रसाद राय
कर्पूरी ठाकुर
केदार पांडे
अब्दुल गफूर
जगन्नाथ मिश्र
पूर्वा धिकारी ब्रजेश्वर प्रसाद सिंह
उत्तरा धिकारी मिथिलेश सिन्हा
चुनाव-क्षेत्र बेरमो
कार्यकाल
(मार्च १९८५ - ०३ अप्रेल १९८८)
प्रधानमंत्री राजीव गांधी
मुख्यमंत्री बिन्देश्वरी दूबे
पूर्वा धिकारी आनंद शर्मा
उत्तरा धिकारी धर्मपाल सिंह
चुनाव-क्षेत्र शाहपुर

जन्म १४ जनवरी १९२३
दूबे टोला, महुआँव, भोजपुर, बिहार
मृत्यु २० जनवरी १९९३
लेडी वेलिंगटन हॉस्पिटल, चेन्नई
समाधि स्थल गंगा, वाराणसी
राष्ट्रीयता भारतीय
राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
जीवन संगी शिव शक्ति देवी
बच्चे राजमणि चौबे
मनोरमा चौबे
प्रतिभा चौबे
आशा पांडेय

ऋतेश चौबे (नाती)
शैक्षिक सम्बद्धता बिहार कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग (राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना)
संत माईकल हाई स्कूल, पटना
व्यवसाय राजनीति
धर्म हिन्दू
उपनाम मजदूर मसीहा, बाबा

बिन्देश्वरी दूबे (१४ जनवरी, १९२३ - २० जनवरी, १९९३) एक भारतीय राजनेता, प्रशासक, स्वतंत्रता सेनानी एवं श्रमिक नेता थे जो बिहार के मुख्यमंत्री, केन्द्रीय काबीना मंत्री (कानून एवं न्याय तथा श्रम एवं रोजगार), इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष, बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष आदि भी रहे। इससे पूर्व ये अखंड बिहार (एवं झारखंड) सरकारों में भी शिक्षा, परिवहन, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री रहे। १९८० से १९८४ तक सातवीं लोक सभा के सदस्य, १९८८ से १९९३ तक राज्य सभा के सदस्य तथा छह बार विधान सभा के सदस्य रहे। इन्होंने देश की कोलियरियों के राष्ट्रीयकरण में अहम् भूमिका निभाई। लोग उन्हें श्रद्धा से 'बाबा' कहकर पुकारते थे तथा जीवनपर्यन्त मजदूरों के अधिकार की बड़ी-बड़ी लड़ाई लड़ने एवं उनको न्याय दिलवाने के कारण इन्हें 'मजदूर मसीहा' भी कहा जाता है।[1][2][3][4]

व्यक्तिगत जीवन

बिन्देश्वरी दूबे का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के 'महुआँव' नामक ग्राम में 'दूबे टोला' के एक साधारण कृषक एवं कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके माता-पिता, जानकी देवी एवं शिव नरेश दूबे, को जुड़वां बच्चे हुए थे पर एक की मौत जन्म के साथ ही हो गई थी। दूसरा बच्चा बिन्देश्वरी दूबे था। माता-पिता की गहरी आस्था विंद्याचल की देवी माँ विन्ध्येश्वरी में थी। दूसरे बच्चे के जीवन के लिए उन्होंने देवी की बहुत अराधना की, उनका प्रसाद बच्चे को खिलाया और बच्चा बच गया। उनके द्वारा ऐसा माना गया कि बच्चा माँ विंदेश्वरी के प्रसाद से ही बचा, इसलिए इनका नाम बिन्देश्वरी प्रसाद दूबे रखा गया था जो बाद में बिन्देश्वरी दूबे हो गया। चार भाईयों के बीच यह दूसरे स्थान पर थे। कहा जाता है 'होनहार बीरवान के होत चिकने पात।' दूबे जब बारह साल के थे तो कुछ ही दूर के 'चन्द्रपूरा' नामक ग्राम के नन्द किशोर पाठक की नज़र उन पर पड़ी। पाठक ललाट देखकर इंसान का भविष्य जान जाते थे। वे बालक का ललाट देखकर उससे बहुत प्रभावित हुए और उनको समझने में देर न लगी कि इस बालक के भविष्य में राजयोग है। पाठक पैसे वाले थे पर उन्होंने बालक के पिता शिव नरेश (एक साधारण किसान) से बात कर अपनी बड़ी बेटी शिवशक्ति (बिन्देश्वरी से दो साल बड़ी) का विवाह उससे करवा दिया। बिन्देश्वरी के पिता शिव नरेश दूबे उनको पढ़ाने में अक्षम थे। वह चाहते थे कि बेटा खेती-बाड़ी संभालें। पर पढ़ाई में अत्यधिक रुचि रखने वाले बिन्देश्वरी को यह नागवार गुज़रा और एक दिन अपने पिता के द्वारा विद्यालय जाने के कारण फ़टकार लगाए जाने की वजह से अपने घर से अपने मामा के घर भाग खड़े हुए। मामा ने कम आमदनी होने की वजह से पटना के संत माईकल स्कूल में उनका दाखिला तो करवा दिया पर हॉस्टल का शुल्क नहीं वहन कर पाए जिसके कारण बिन्देश्वरी को हॉस्टल के गार्ड के रुम में ही रहकर पढ़ाई जारी रखनी पड़ी। बाद में छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर तथा एक फैक्ट्री में काम कर के उन्हें अपना खर्च निकालना पड़ता था। साइंस कॉलेज, पटना में इंटर करने के बाद इन्हें पटना इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिला। पर महात्मा गाँधी पर आस्था एवं देशभक्ति की भावना कूट-कूट के भरे होने के कारण इन्होंने अंतिम साल में इंजिनियरिंग की पढ़ाई को तिलांजली दे कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।

परिवार

दूबे के पिता का नाम शिव नरेश दूबे एवं माता का नाम जानकी देवी था। वह चार भाइयों में दूसरे स्थान पर थे। अन्य तीन राजेन्द्र दूबे, नर्भदेश्वर दूबे एवं पद्म देव दूबे थे। उनका विवाह शिव शक्ति देवी से हुआ था तथा उनके श्वसुर का नाम नन्द किशोर पाठक एवं सास का नाम सहोदरा देवी था। बिन्देश्वरी और शिवशक्ति को पुत्र नहीं हुआ। उनकी चार पुत्रियाँ थीं: राजमणी, मनोरमा, प्रतिभा एवं आशा देवी। इनमें से पहली तीन की इनके जीवन काल में ही असमायिक मृत्यू हो गई थी। इनकी द्वितीय पुत्री मनोरमा देवी के कनिष्ठ पुत्र ऋतेश चौबे झारखंड प्रदेश 'कांग्रेस सेवा दल' के संगठक के पद पर हैं एवं 'बिन्देश्वरी दूबे फ़ाउंडेशन' के नाम से समाजसेवी ट्रस्ट चलाते हैं। अपने माता-पिता की सड़क दुर्घटना में आसमयिक मृत्यु के बाद उनका नाती ऋतेश, अपने भाई-बहनों के साथ, अपने नाना-नानी यानि दूबे और उनकी धर्मपत्नी के साथ ही जीवनपर्यन्त उनके पुत्र की तरह रहा।

व्यक्तित्व

पं• बिन्देश्वरी दूबे धार्मिक प्रवृत्ति के थे। नियमित रूप से पूजा-पाठ तो वह नहीं कर पाते थे लेकिन स्नान के बाद पूजा घर में भगवान को एक बार प्रणाम ज़रूर करते थे। फिर जब भी समय मिलता कमरे में ही बैठ कर माला का जाप जरूर करते थे। उन्हें प्रसिद्ध मन्दिरों में जाना बहुत भाता था। गाहे-बगाहे वह विंध्याचल, बनारस, अयोध्या, मथुरा-वृंदावन, हरिद्वार-ऋषिकेश, उज्जैन, देवघर इत्यादि मंदिरों का दौरा करते और पूंजीपतियों से वहाँ दान दिलवाते रहते थे। सिद्धि प्राप्त साधू-संतों पर भी उनका बड़ा भरोसा था। गिरीडीह के लंगटेश्वरी बाबा पर उनका भरोसा इतना ज़यादा था कि उनके नाम पर उन्होंने कई विद्दालय, महाविद्यालय, स्टेडियम इत्यादि बनवा दिया था। वह देश के किसी हिस्से में क्यों न हों हर वर्ष नियमित रूप से चादर चढ़ाने उनके दरबार पहुंच जाते थे। देवराहा बाबा पर भी उनकी बहुत आस्था थी। बाबा भी उन्हें महान आत्मा या बिन्देश्वरी भक्त कहकर पुकारते थे। अघोरी भगवान श्री राम चन्द्र से भी वह गुरुमुख थे। त्रिदंडी स्वामी को भी वह मानते थे। अरविंदो आश्रम पर उनकी आस्था बहुत ज़्यादा थी। वहाँ से हमेशा उनके लिए प्रसाद का लिफ़ाफ़ा आता था। चंद्रा स्वामी पहले उनके इर्दगिर्द घूमते थे। उन्हें इंदिरा गांधी से सर्वप्रथम दूबे ने ही मिलवाया था। पर बाद में उनके राजनीति में रूचि लेता देख नज़रअंदाज़ करने लगे। मीठा खाने के प्रेमी दूबे को बच्चों से बहुत लगाव था। घर लौटते ही वह सर्वप्रथम अपने नाती-नातिनों को बुलाना और उनके साथ समय बिताना उन्हें बहुत प्रिय लगता था। बच्चों के साथ खुद भी वह बच्चा बन जाते थे। जब भी वह अपनी द्वितीय पुत्री मनोरमा के घर जाते तो सबसे पहले चित्रकारी में माहिर उनके कनिष्ठ पुत्र ऋतेश की 'ड्रॉइंग कॉपी' मंगाते और पूछते कि उसने नया क्या बनाया। जो गलती लगती उसमें सुधार करते। माता-पिता की मृत्यु के पश्चात ऋतेश उनके और उनकी धर्मपत्नी (नाना-नानी) के साथ रहने लगा। ऋतेश के साथ उनकी जोड़ी खूब जमती थी क्योंकि दोनों मीठे के शौकीन थे।

स्वतंत्रता आंदोलन

देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरे होने के कारण युवा बिन्देश्वरी ने महात्मा गांधी के आवाह्न पर अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई को मध्य में ही छोड़ भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े। एक बार सचिवालय में तिरंगा फ़हराने के क्रम में अंग्रेज़ों ने बारी-बारी से चार लोगों को गोली से छलनी कर दिया। इस बार बारी युवा बिन्देश्वरी की थी। इस युवा ने आखिरकार सचिवालय में तिरंगा लहरा ही दिया। पर किस्मत से अंग्रेज़ों ने उसपर गोलियाँ नहीं चलाईं और उसे कारावास में डाल दिया। १९४२ से १९४४ तक कारावास में रहने के बाद दूबे ने फिर से आंदोलन शुरु कर दिया। वे जगह-जगह पर युवाओं से मिलकर उनको आज़ादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए प्रेरित करने लगे और उनकी टीम मज़बूत होने लगी। उनकी टीम के साथियों के अभिभावक दूबे के पिता से उसकी शिकायत करते थे। अंग्रेज़ों ने इन पर जिंदा या मुर्दा सुपुर्द करने वाले के लिए इनाम की घोषणा कर रखी थी। एक बार पटना रेलवे स्टेशन पर इनकी मुठभेड़ अंग्रेज़ों से हो गई और दूबे चलती ट्रेन में सवार हो भाग खड़े हुए फिर काफ़ी दूर चलने के बाद, एक अनजान कोलियरी क्षेत्र, दक्षिण बिहार के बेरमो स्टेशन पर उतरे और वहीं के हो कर रह गए। कुछ दिनों तक वहाँ की चंचनी और थापर कोलियरियों में नौकरी करने के बाद उन्होंने आजादी के साथ-साथ मजदूरों की लड़ाई भी शुरू कर दी। केदार पांडे, अब्दुल गफूर, चंद्रशेखर सिंह, भागवत झा आजाद, सत्येन्द्र नारायण सिन्हा, (सभी बिहार के भविष्य मुख्य मंत्री) एवं सीताराम केसरी (भविष्य अध्यक्ष, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) के अलावा बिन्देश्वरी दूबे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बिहार कांग्रेस के विख्यात युवा तुर्क स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे और आज़ादी के पहले से ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पदाधिकारी थे।[5]

राजनीतिक जीवन

बिहार के एक मामूली कृषक परिवार में जन्मे बिन्देश्वरी दूबे का राजनैतिक जीवन संघर्ष और त्याग से भरा था। उन्होंने अपने जीवन में जो भी अर्जित किया वह उनके अपने दम पर था। ऐसा उदाहरण बहुत विरले ही मिलता है जब ऐसे साधारण परिवार में जन्मा व्यक्ति इतने बड़े-बड़े राजनैतिक पदों पर रहा हो। परन्तु एक सच्चे मजदूर नेता होने के नाते उनकी आत्मा सदैव मजदूरों एवं शोषितों में बसती रही।

ग्रहित पद

  • १९४४ : उपाध्यक्ष, कोलियरी मजदूर संघ, ढोरी कोलियरी शाखा
  • १९४५ : महामंत्री, कोलियरी मजदूर संघ, ढोरी कोलियरी शाखा
  • १९४५-४८ : महामंत्री, हजारीबाग जिला कांग्रेस कमिटी
  • १९४६ : महामंत्री, कोलियरी मजदूर संघ, करगली कोलियरी शाखा
  • १९४८-५२ : उपाध्यक्ष, हजारीबाग जिला कांग्रेस कमिटी
  • १९४९ : अध्यक्ष, डी•वी•सी• वर्कर्स यूनियन
  • १९५१ : संगठन मंत्री, कोलियरी मजदूर संघ
  • १९५२-१९५७ : प्रथम बिहार विधानसभा उपचुनाव में निर्वाचित
  • १९५७ : द्वितीय विधानसभा चुनाव लड़े
  • १९५८-१९६८ : अध्यक्ष, हजारीबाग जिला कांग्रेस कमिटी
  • १९६२-६८ : केंद्रीय उपाध्यक्ष, कोलियरी मजदूर संघ
  • १९६२-आजीवन : अध्यक्ष, कोलियरी मजदूर संघ, करगली कोलियरी शाखा
  • १९६२-आजीवन : अध्यक्ष, कोलियरी मजदूर संघ, ढोरी कोलियरी शाखा
  • १९६२-६७ : तृतीय बिहार विधानसभा में निर्वाचित
  • सितंबर-दिसंबर १९६३ : कोलयरी मजदूरों के वेतन में वृद्धि के लिए बना 'वेतन मंडल' (१९७३ से राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता) की पहली बैठक में कोलियरी मजदूर संघ के उपाध्यक्ष के तौर पर शरीक हुए
  • २१ अप्रैल १९६३ - आजीवन : कार्यसमिति सदस्य, भारतीय राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक)
  • जून १९६३-६५ : अध्यक्ष, बोकारो इस्पात मजदूर संघ ('बोकारो स्टील वर्कर्स यूनियन')
  • २९ सितंबर १९६३ - आजीवन : अध्यक्ष, भुरकुंडा कोलियरी शाखा मजदूर संघ
  • १९६५-८४ : महामंत्री, बोकारो इस्पात मजदूर संघ ('बोकारो स्टील वर्कर्स यूनियन')
  • १९६६-आजीवन : अध्यक्ष, एच•एस•सी•एल• वर्कर्स यूनियन
  • १९६७-६९ : चतुर्थ बिहार विधानसभा में निर्वाचित
  • २५ मई १९६८ : प्रधानमंत्री, कोलियरी मजदूर संघ
  • १९६९-७२ : पंचम् बिहार विधानसभा में निर्वाचित
  • १९७२-७७ : छठा बिहार विधानसभा में निर्वाचित
  • २८ मई - २ जुलाई १९७३ : काबीना मंत्री, शिक्षा तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, बिहार सरकार
  • अगस्त १९७३ - आजीवन : केन्द्रीय अध्यक्ष, कोलियरी मजदूर संघ (राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ / आर•सी•एम•एस•)
  • २५ सितम्बर १९७३ - २८ अप्रैल १९७४ : काबीना मंत्री, परिवहन, बिहार सरकार
  • ११ दिसंबर १९७४ - 'राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता-१' (एन•सी•डब्ल्यू•ए•) में मजदूर संघ के प्रतिनिधि के तौर पर शरीक
  • १९७५ - आजीवन : अध्यक्ष, राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक/आई•एन•टी•यू•सी•), बिहार
  • ११ अप्रैल १९७५ - ३० अप्रैल १९७७ : काबीना मंत्री, स्वास्थ्य, बिहार सरकार
  • १९७६ - आजीवन : अध्यक्ष, एच•ई•सी• वर्कर्स यूनियन
  • १९७७ : सातवां बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा
  • १९७८ - आजीवन : केन्द्रीय अध्यक्ष, 'इंडियन नैश्नल माईनवर्कर्स फ़ेडरेशन'
  • मई-जून १९७९ - जेनेवा में अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ (आई•एल•ओ•) के २१०वें संगोष्ठी(सेमिनार) में मजदूर संघ के प्रतिनिधि के तौर पर शरीक
  • ११ अगस्त १९७९ - 'राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता-२' (एन•सी•डब्ल्यू•ए•) में मजदूर संघ के प्रतिनिधि के तौर पर शरीक
  • १९७९ - आजीवन : अध्यक्ष, 'मेकॉन वर्कर्स यूनियन'
  • १९८०-८४ : सातवीं लोकसभा में निर्वाचित
  • १९८१ - आजीवन : अध्यक्ष, माईन्स वर्कर्स एकाडेमी
  • अक्टूबर १९८१ - फ़िलिपींस में अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ (आई•एल•ओ•) के संगोष्ठी(सेमिनार) में मजदूर संघ के प्रतिनिधि के तौर पर शरीक
  • १९८२ - आजीवन : अध्यक्ष, इंडियन इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फ़ेडरेशन
  • १३ - २२ अक्टूबर १९८२ : टोक्यो, जापान में अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ (आई•एल•ओ•) के संगोष्ठी(सेमिनार) में मजदूर संघ के प्रतिनिधि के तौर पर शरीक
  • १९८३ - आजीवन : अध्यक्ष, पी•पी•सी•एल• वर्कर्स यूनियन
  • ११ नवंबर १९८३ - 'राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता-३' (एन•सी•डब्ल्यू•ए•) में मजदूर संघ के प्रतिनिधि के तौर पर शरीक
  • १९८४ : अध्यक्ष, बोकारो इस्पात मजदूर संघ ('बोकारो स्टील वर्कर्स यूनियन')
  • मई १९८४ - मार्च १९८५ : केन्द्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक/आई•एन•टी•यू•सी•)
  • सितंबर १९८४ - मार्च १९८५ : अध्यक्ष, बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी
  • १९८५-८८ : नवीं बिहार विधानसभा में निर्वाचित
  • ११ मार्च १९८५ - १३ फ़रवरी १९८८ : बिहार कांग्रेस विधानमंडल के नेता
  • १२ मार्च १९८५ - १३ फ़रवरी १९८८ : अविभाजित बिहार के मुख्यमंत्री
  • १४ फ़रवरी - २६ जून १९८८ : केंद्रीय मंत्री, कानून एवं न्याय
  • १९८८-९३ : बिहार से राज्यसभा में निर्वाचित
  • २६ जून १९८८ - १ दिसंबर १९८९ : केंद्रीय मंत्री, श्रम् एवं नियोजन
  • १४ - १७ मार्च १९८९ : नई दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ (आई•एल•ओ•), एशिया पैसिफ़िक की मानक संबंधित विषयों पर संगोष्ठी(सेमिनार) में केन्द्रीय श्रम् मंत्री के तौर पर शरीक
  • २७ जूलाई १९८९ : 'राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता-४' (एन•सी•डब्ल्यू•ए•) में मजदूर संघ के प्रतिनिधि के तौर पर शरीक

संबंध

जवाहर, इंदिरा, राजीव विनोदानंद, कृष्ण वल्लभ राव, केसरी, मिश्र कर्पूरी ठाकुर, लालू

चुनाव परिणाम

विधानसभा

वर्ष क्षेत्र विजेता उपविजेता प्रतियोगी (दल/वोट/वोट %)
१९५२ जरीडीह-पेटरवार (उपचुनाव) बिन्देश्वरी दूबे कामाख्या नारायण सिंह
  • बिन्देश्वरी दूबे
  • कामाख्या नारायण सिंह
  • बिन्देश्वरी सिंह

[6]

१९५७ २२१. बेरमो ब्रजेश्वर प्रसाद सिंह बिन्देश्वरी दूबे
  • ब्रजेश्वर प्रसाद सिंह (सी•एन•पी•एस•पी•जे•पी• / ८,७५५ / ४२.७०%)
  • बिन्देश्वरी दूबे (आई•एन•सी• / ५,७२३ / २७.९१%)
  • चतुरानन मिश्र (सी•पी•आई• / २,७८० / १३.५६%)
  • बिन्देश्वरी सिंह (निर्दलीय / २,००७ / ९.७९%)
  • मिथिलेश सिन्हा (पी•एस•पी• / १,२४० / ६.०५%)

[7]

१९६२ २६४. बेरमो बिन्देश्वरी दूबे ठाकुर ब्रजेश्वर प्रसाद सिंह
  • बिन्देश्वरी दूबे (आई•एन•सी• / ११,४३२ / ४४.९१%)
  • ठाकुर ब्रजेश्वर प्रसाद सिंह (एस•डब्लू•ए• / ९,४०४ / ३६.९४%)
  • शफ़ीक़ खान (सी•पी•आई• / २,७४७ / १०.७९%)
  • बिन्देश्वरी सिंह (पी•एस•पी• / १,०७१ / ४.२१%)
  • कृष्ण वल्लभ सहाय (निर्दलीय / ८०१ / ३.१५%)

[8]

१९६७ २६४. बेरमो बिन्देश्वरी दूबे एन•पी•सिंह
  • बिन्देश्वरी दूबे (आई•एन•सी• / १६,६३९ / ३६.७६%)
  • एन•पी•सिंह (निर्दलीय / १५,५२६ / ३४.३०%)
  • बिन्देश्वरी सिंह (पी•एस•पी• / ६,११० / १३.५०%)
  • शफ़ीक़ खान (सी•पी•आई• / ४,८९५ / १०.८२%)
  • जी. प्रसाद (बी•जे•एस• / २,०८९ / ४.६२%)

[9]

१९६९ २६४. बेरमो बिन्देश्वरी दूबे जमुना सिंह
  • बिन्देश्वरी दूबे (आई•एन•सी• / १,५४४६ / ३४.२०%)
  • जमुना सिंह (जे•ए•पी• / १,५०७८ / ३३.२८%)
  • मिथिलेश कुमार सिन्हा (पी•एस•पी• / ७,७७९ / १७.२२%)
  • कैलाश महतो (सी•पी•आई• / २,८९१ / ६.४०%)
  • राम लखन प्रसाद (बी•जे•एस• / १,८३३ / ४.०६%)
  • रूपू महतो (निर्दलीय / १,५९२ / ३.५२%)
  • फाल्गुनी नायक (निर्दलीय / ५४७ / १.२१%)

[10]

१९७२ २६४. बेरमो बिन्देश्वरी दूबे राम दास सिंह
  • बिन्देश्वरी दूबे (आई•एन•सी• / १९,९३७ / ३९.६२%
  • रामदास सिंह (एस•ओ•पी• / १८,३०९ / ३६.३८%
  • जमुना सिंह (बी•जे•एस• / ७,०९८ / १४.१०%
  • शिवा महतो (निर्दलीय / २,५१९ / ५.०१%
  • युगल किशोर महतो (जे•के•डी• / १,२७८ / २.५४%
  • डेगलाल महतो (निर्दलीय / ९७३ / १.९३%)
  • गौरीनाथ मिश्रा (निर्दलीय / २१२ / ०.४२%)

[11]

१९७७ २७८. बेरमो मिथिलेश सिन्हा बिन्देश्वरी दूबे
  • मिथिलेश सिन्हा (जे•एन•पी• / २३,७३१ / ५०.४१%)
  • बिन्देश्वरी दूबे (आई•एन•सी• / ११,८२२ / २५.११%)
  • शिवा महतो (निर्दलीय / ३,७२८ / ७.९२%)
  • ईश्वर चंद्र मिश्रा (निर्दलीय / ३,२८४ / ६.९८%)
  • आओ राम (निर्दलीय / २,४५३ / ५.२१%)
  • ब्रम्ह देव सिंह (निर्दलीय / ६५४ / १.३९%)
  • जैकब चेरियन (निर्दलीय / ५८८ / १.२५%)
  • राजेश्वर दूबे (निर्दलीय / ३६६ / ०.७८%)
  • यमुना सिंह (निर्दलीय / २७७ / ०.५९%)
  • सरस्वती देवी (निर्दलीय / १७५ / ०.३७%)

[12]

१९८५ २१७. शाहपुर बिन्देश्वरी दूबे शिवानंद तिवारी
  • बिन्देश्वरी दूबे (आई•एन•सी• / ४२,७६६ / ५९.०९%)
  • शिवानंद तिवारी (जे•एन•पी• / १३,०८६ / १८.०८%)
  • धर्मपाल सिंह (निर्दलीय / ८,७८२ / १२.१३%)
  • शंभू शरण मिश्रा (बी•जे•पी• / ३,२७३ / ४.५२%)
  • जी•पी• ओझा (निर्दलीय / १,९७० / २.७२%)
  • विनय कुमार चौधरी (निर्दलीय / ७४६ / १.०३%)
  • परशुराम टट्वा (आई•सी•एस• / ७३६ / १.०२%)
  • देव मुनी राय (निर्दलीय / २४४ / ०.३४%)
  • नागेन्द्र प्रसाद (निर्दलीय / १९८ / ०.२७%)
  • विश्वनाथ पांडेय (निर्दलीय / १८१ / ०.२५%)
  • सत्य नारायण मिश्रा (निर्दलीय / १४५ / ०.२०%)
  • भुनेश्वर सिंह (निर्दलीय / १४३ / ०.२०%)
  • रामदेव ठाकुर (निर्दलीय / १०१ / ०.१४%)

[13]

लोकसभा

वर्ष क्षेत्र विजेता उपविजेता प्रतियोगी (दल/वोट/वोट %)
१९८० ४६. गिरिडीह बिन्देश्वरी दूबे रामदास सिंह
  • बिन्देश्वरी दूबे (आई•एन•सी• / १,०५,२८२ / ३५.३९%)
  • रामदास सिंह (जे•एन•पी• / ७९, २५३ / २६.६४%)
  • बिनोद बिहारी महतो (निर्दलीय / ५६,२८७ / १८.९२%)
  • लालचंद महतो (जे•एन•पी-एस / २४,३१६ / ८.१७%)
  • शफ़ीक़ खान (सी•पी•आई•/ १९,४६४ / ६.५४%)
  • मदन मोहन सिंह (जे•के•डी• / ३,१०८ / १.०४%)
  • चपलेंदु भट्टाचार्य (आई•एन•सी-यू / २,६७३ / ०.९०%)
  • राजपूत सिंह (निर्दलीय / २,३७१ / ०.८०%)
  • मटवार सफ़ी (निर्दलीय / २,०९० / ०.७०%)
  • मो• हनीफ़ अन्सारी (निर्दलीय / १,५२१ / ०.५१%
  • हर महेन्द्र सिंह (निर्दलीय / १,१५५ / ०.३९%)

[14]

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

हजारीबाग जिला कांग्रेस कमीटी

दूबे दो दशक से ज़्यादा समय तक बिहार का सबसे बड़े एवं अति महत्वपूर्ण जिला हजारीबाग के कांग्रेस कमीटी में रहे। उस समय के हज़ारीबाग जिले में अभी के हज़ारीबाग के अलावे, गिरिडीह, बोकारो, रामगढ़, कोडरमा और चतरा जिला भी शामिल था। १९४० और ५० के दशक में कमीटी के उपाध्यक्ष और महा सचिव रहने के बाद दूबे १९५८ से ७० तक अध्यक्ष भी रहे।

बिहार प्रदेश कांग्रेस कमीटी

१९७७ के चुनाव में पराजय के बाद कांग्रेस की स्थिति बहुत खराब थी। उसी दौरान दूबे ने इंदिरा गांधी को बिहार के बोकारो (अभी झारखंड) में १९७९ में बुलाकर उनका भव्य स्वागत करवाया। फिर १९८० और १९८४ में गिरीडीह और धनबाद में बुलाकर ऐतिहासिक भीड़ करवाई। इससे प्रसन्न होकर एवं तत्कालीन् मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र के झगड़े के बीच कड़ी के रूप में बनाकर २५ सितम्बर १९८४ को इंदिरा गांधी ने राम शरण सिंह को हटाकर बिन्देश्वरी दूबे को बिहार प्रदेश कांग्रेस कमीटी का अध्यक्ष बनाया था। [15] इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दूबे के कुशल नेतृत्व में कांग्रेस बिहार के १९८४ के लोकसभा चुनाव में ५४ में से ४८ सीट जीती, जो किसी भी पार्टी के लिए अभी तक का रेकॉर्ड है। लोकसभा चुनाव के बाद राजीव गांधी भारत के प्रधान मंत्री बने थे। उनके नेतृत्व में ही १९८५ में हुए बिहार विधान सभा के चुनाव में कांग्रेस ३२४ में से १९६ सीटें जीती। इस चुनाव में दूबे ने बड़े-बड़े भ्रष्ट, अपराधी एवं माफ़िया नेताओं का टिकट कटवा दिया था एवं कई सारे नए युवा नेताओं को टिकट दिया था।[16][17] विधान सभा के चुनाव के बाद दूबे बिहार कांग्रेस विधान मंडल के नेता एवं तत्पश्चात् बिहार के मुख्य मंत्री बने और उन्होंने बिहार कांग्रेस के पद से इस्तीफ़ा दे दिया। उनके बाद स्वर्गीय डुमर लाल बैठा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे। [18] दूबे ने अपने १९८७ में अपने मुख्यमंत्रित्व काल में १७ निर्दलीय विधायकों को पार्टी में शामिल करवा के पार्टी को मजबूती प्रदान की थी। [19]

'सुपर चीफ़ मिनिस्टर'

बिन्देश्वरी दूबे के बिहार प्रदेश कांग्रेस कमीटी का अध्यक्ष बनने के बाद 'माया' पत्रिका में एक कार्टून आया था जिसमें बिन्देश्वरी दूबे को लंगोट पहने वृक्ष के तले ध्यान लगाए बैठे एक जटाधारी साधू एवं बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर सिंह तथा पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को दूबे को प्रणाम करते हुए स्कूल युनिफ़ॉर्म पहने बैठे दिखाया गया था। नीचे लिखा था प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दो बिगड़ैल बच्चों को सुधारने के लिए एक बाबा (दूबे को लोग 'बाबा' कहकर ही पुकारते थे) को अध्यक्ष बनाया है जो 'सुपर चीफ़ मिनिस्टर' के नाम से विख्यात हो गए हैं। इसके अलावा उन दिनों कई और पत्रिकाओं में दूबे को 'सुपर चीफ़ मिनिस्टर' की उपाधि से अलंकृत किया जाता रहा जब तक वह कांग्रेस अध्यक्ष से मुख्यमंत्री नहीं बने।

अखिल भारतीय कांग्रेस कमीटी

दूबे अखिल भारतीय कांग्रेस कमीटी के भी सदस्य रहे थे।

राज्य कार्यालय

विधान सभा

१९४०-५० के दशक में दक्षिण बिहार (अभी का झारखंड) में पद्मा महाराज कामख्या नारायण सिंह और उनकी पार्टी प्रजातांत्रिक सोसियलिस्ट पार्टी (पी•एस•पी•) का बड़ा दबदबा था। १९५१ में हुए पहले बिहार विधानसभा चुनाव में वे खुद पाँच सीटों से चुनाव लड़े और पाँचों से जीते भी थे, जिसमें से एक 'पेटरवार' सीट भी थी। वहाँ से उन्होंने कांग्रेस के काशीश्वर प्रसाद चौबे को हराया था। पाँच सीटों से विधायक निर्वाचित होने के कारण उन्हें चार सीटों से इस्तीफ़ा देना पड़ा। छोड़ी हुई चार सीटों में एक 'पेटरवार' भी थी। इसी बीच 'पेटरवार' सीट का नाम बदल कर 'जरीडीह पेटरवार' रख दिया गया। १९५२ में हुए 'बाई एलेक्शन' में कांग्रेस ने ३१ वर्षीय बिन्देश्वरी दूबे को स्वतंत्रता सेनानी और दिग्गज मजदूर नेता होने के नाते जरीडीह-पेटरवार से टिकट दिया गया। मिला। युवा दूबे ने पी•एस•पी• के अपने निकटतम् प्रतिद्वन्दी को परास्त कर दिया। पर १९५७ के अगले चुनाव के पहले परीसीमन् में जरीडीह-पेटरवार अब बेरमो हो गया और दूबे बहुत मामूली अन्तर से यह चुनाव राजा के संबन्धी पी•एस•पी• उम्मीदवार ठाकुर ब्रजेश्वर प्रसाद सिंह से हार गए। फिर दूबे ने बेरमो से ही १९६२ के चुनाव में ठाकुर ब्रजेश्वर प्रसाद सिंह को हराया, १९६७ में एन• पी• सिंह को, १९६९ में जमुना सिंह तथा १९७२ में रामदास सिंह को हराया। इमरजेंसी की वजह से कांग्रेस विरोधी लहर में १९७७ का चूनाव वह मिथिलेश सिन्हा से हार गए। १९८४ में बिहार प्रदेश कांग्रेस कमीटी का अध्यक्ष बनने के बाद १९८५ के चुनाव उन्होंने अपने गृह क्षेत्र शाहपुर से लड़ा और शिवानंद तिवारी जैसे नेताओं को हराकर भारी अंतर से जीता।

शिक्षा तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री

श्रमिक नेता होने के कारण दूबे को अक्सर अपनी पार्टी की सरकार से ही लड़ने की वजह से उनका कोपभाजन भी बनना पड़ता था। इसी कारण उनके समकक्ष नेताओं को ज़्यादा तरजीह दी जाती थी। पर अंतत:, पाँचवीं बार विधायक बनने के बाद, २८ मई १९७३ को बिहार के तत्कालीन मुख्य मंत्री केदार पांडे ने उन्हें अपने कैबिनेट में शिक्षा तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री बनाया। पर अपनी ही पार्टी के नेताओं के विरोध के कारण कुछ दिन बाद ही पांडे की सरकार गिर गई और दूबे भी २४ जून १९७३ तक ही शिक्षा मंत्री के पद पर काबिज़ रह पाए। इसी दौरान दूबे ने मुख्यमंत्री के आदेश लेकर बिहार के विश्वविद्यालयों के शाषण प्रबंधन को हटाकर आई•ए•एस• रैंक के अधिकारियों को वाईस चांसलर बनवाया था[20]जिससे उनकी बड़ी तारीफ़ हुई थी। इतने कम दिनों में ही उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने के लिए, खासकर बोर्ड परीक्षाओं में नकल पर नकेल कसने के लिए जो आधारशिला तैयार की उसका सुखद परिणाम बाद में देखने में आया।[21]

परिवहन मंत्री

केदार पांडे की सरकार गिरने के बाद २ जुलाई १९७३ को अब्दुल गफूर बिहार के मुख्य मंत्री बनाए गए। कुछ दिनों के बाद अब्दुल गफूर ने २५ सितम्बर १९७३ को शत्रुघ्न शरण सिंह को हटाकर दूबे को परिवहन मंत्री बनाया। इस पद पर वह १८ अप्रेल १९७४ तक काबिज़ रहे। इस कार्यकाल में दूबे ने ट्रान्सपोर्टरों से वसूले जाने वाले रंगदारी टैक्स एवं ओवरलोडिंग पर रोक लगाने जैसे कई उल्लेखनीय कार्य किए थे।

स्वास्थ एवं परिवार कल्याण मंत्री

११ अप्रेल १९७५ को जगन्नाथ मिश्र को बिहार का नया मुख्य मंत्री बनाया गया था। इसी दिन बिन्देश्वरी दूबे ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री के रूप में शपथ ग्रहण किया। स्वास्थ्य मंत्री के रूप में दूबे ने पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (पी•एम•सी•एच) में बिहार का पहला आई सी यू बनवाया। दूबे ने इस दौरान सरकारी डॉक्टरों की प्राईवेट प्रैक्टिस बन्द कराई जिससे डॉक्टर उनसे इस कदर नाराज़ हो गए कि १९७७ के अगले विधानसभा चुनाव में उनको हराने के लिए धनबल सहित सशरीर उनके विधानसभा क्षेत्र बेरमो में कैम्प कर गए थे। दूबे ने अपने कार्यकाल में राज्य के हर प्रखंड में रेफ़रल हॉस्पिटल बनवाए ताकि ग्रामीणों को छोटे-मोटे इलाज के लिए शहर न जाना पड़े। इमरजेंसी के दौरान परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत ऐसे जिन लोगों की गलती से नसबंदी हो गई थी जिनकी कोई औलाद नहीं थी उनको मुआवज़ा देने की ९ नवंबर १९७६ को दूबे ने घोषणा की थी। [22]

वित्त मंत्री

मुख्य मंत्री के कार्यकाल के दौरान दूबे मार्च १९८५ से फ़रवरी १९८८ तक वित्त मंत्री भी थे।[23]

मुख्य मंत्री

पं• बिन्देश्वरी दूबे १२ मार्च १९८५ से १३ फ़रवरी १९८८ तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। जिस समय उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री का कार्यभार अंगीकृत किया था, उस समय बिहार देश के सर्वाधिक पिछड़े राज्यों में एक था। किन्तु, अपनी कुशाग्र बुद्धि और सुदक्ष प्रशासन-कौशल से उन्होंने बिहार को प्रगति के मार्ग पर ला खड़ा किया। राज्य के विकास के लिए उनके समर्थ मार्गदर्शन में अनेक योजनाएँ बनाई गईं तथा उन्हें सम्यकरीत्या कार्यान्वित भी किया गया। मुख्य मंत्री बनते ही सबसे पहले उन्होंने अपराध एवं भ्रष्टाचार पर काबू पाने के लिए कई सारे कदम उठाए। बिन्देश्वरी दूबे का नाम कृष्ण सिंह एवं नितीश कुमार के साथ बिहार के 'टॉप ३' मुख्य मंत्रियों में लिया जाता है।[24] दूबे दल के दलदल से परे थे। यही वजह थी कि उन्होंने पटना में जयप्रकाश नारायण की प्रतिमा के लिए मुफ़्त में ही जमीन आवंटित कर दी थी। [25] तत्कालीन विपक्ष के नेता कर्पूरी ठाकुर से भी उनके मधुर संबंध थे। कर्पूरी भी अंदर से उन्हें बहुत मानते थे। उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि ऐसा बिरले ही किसी के साथ हुआ होगा कि केन्द्रीय नेतृत्व उन्हें केन्द्रीय मंत्री बनाए और सूबे के विपक्षी दल के नेता कहे कि वे बिहार में ही मुख्य मंत्री बने रहें। पर बिन्देश्वरी दूबे के साथ ऐसा ही हुआ। जब तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने उन्हें केन्द्र में मंत्री बनाया तो विपक्षी दल के नेता कर्पूरी ठाकुर चाहते थे कि दूबे मख्य मंत्री बने रहें। कर्पूरी राजीव से अनुरोध करने दिल्ली तक पहुँच गए थे।[26]

उद्दोगों का विकास

दूबे सरकार ने उद्दोगों के विकास के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किए थे। बिहार में डालमियानगर में बंद पड़ी रोहतास इंडस्ट्रीज़ को पुन: आरम्भ करने के लिए टाटा ग्रुप से बात हुई और उसकी घोषणा भी हुई थी पर टाटा ग्रुप ने बाद में इंकार कर दिया था। [27]

ऑपरेशन फ़्लड

'ऑपरेशन फ़्लड' के तहत बिहार राज्य के ग्रामीण दुग्ध उत्पादकों एवं शहरी उपभोक्ताओं की सेवा हेतु दूबे सरकार ने २४ अप्रैल १९८६ को फ़ीडर बैलेंसिंग डेयरी के नाम से डेयरी उद्दोग का निर्माण किया था।

भ्रष्टाचार के विरुद्ध कदम

बिहार में अपराधी ठेकेदार माफ़ियाओं का दबदबा था। उन्हें नेताओं से लेकर मंत्रियों का वरदहस्त प्राप्त था। नेताओं एवं मंत्रियों के बल पर उन्हें बड़े-बड़े ठेके मिल जाते थे। बंदूक की नोक पर बिहार इंजीनियरिंग सर्विस एसोसिएशन (बीईएसए) के इंजीनियरों से फर्जी बिल बनवा लिए जाते थे। बिहार को उन ठेकेदारों के चंगुल से निकालने के लिए दूबे ने राज्य की बड़ी परियोजनाओं को, खासकर बिजली एवं सिंचाई के क्षेत्र, सार्वजनिक क्षेत्रों, एच•एस•सी•एल• एवं बी•सी•सी•, के द्वारा निष्पादित करवाने का काम किया था। एचएससीएल को सालाना ८० करोड़ रुपये के निर्माण के ठेके मिले, ताकि १३,००० बिहारियों के बड़े कार्यबल को बनाए रखा जा सके। बोकारो में आधारित, एचएससीएल ने पहले बिहार से बाहर जाने का फैसला किया था क्योंकि बोकारो स्टील प्लांट की नियुक्ति के कार्यक्रम के पूरा होने के बाद से कोई अनुबंध नहीं मिला था। बी•सी•सी• को ४० करोड़ रुपये के निर्माण के ठेके मिले थे।[28]

शिक्षा में सुधार

बिहार बोर्ड मेट्रिक परीक्षा में नकल एक बहुत बड़ी समस्या है जिसके कारण शिक्षा के क्षेत्र में बिहार का मज़ाक बनता रहता है। इस विषम परिस्थिति से उबरने के लिए दूबे सरकार ने नकल करने के विरुद्ध अभियान चलाया था जिसकी वजह से उत्तीर्ण छात्रों के प्रतिशत में काफ़ी गिरावट आई थी।

'ऑपरेशन क्लीन अप'

शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए दूबे सरकार ने 'ऑपरेशन क्लीन अप' चलाया जिसके तहत कई युनिवर्सिटीज़ के 'वाईस चांसलर्स' को बदला गया था। इसके अलावा कई शिक्षकों की 'एड हॉक' पर बहाली पर भी रोक लगा दिया गया जिस पर बहुत हंगामा भी हुआ पर दूबे डटे रहे।[29][30][31]

'ऑपरेशन टेक ओवर'

दूबे सरकार ने १९८६ में व्यवसायी संसथानों को सुव्यवस्थित करने के लिए 'ऑपरेशन टेक ओवर' लॉन्च किया था। ऑपरेशन के तहत अध्यादेश जारी किया गया था संसथानों को निजी हाथों से मुक्त करवा कर सरकार के कब्ज़े में ले लिया जाए ताकि उनकी गतिविधियों में सुधार एवं विविधता लाया जा सके। कुछ संस्थानों का कुछ राजनैतिक कारणों से राजनेताओं द्वारा दुरुपयोग भी किया जाना भी इस ऑपरेशन की बड़ी वजह रही। इस ऑपरेशन के तहत कई सारे संस्थानों जैसे कि दरभंगा का 'मिथिला संस्कृत रिसर्च इंस्टीट्यूट' नालन्दा का 'नव नालन्दा महावीर' एवं पटना का 'ए•एन•सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस', 'के•पी•जयसवाल इंस्टीट्यूट' तथा 'एल•एन•मिश्रा इंस्टीट्यूट ऑफ इकॉनॉमिक डेवलपमेंट ऐंड सोशल चेन्जेज़' को सरकार के अधीन कर दिया गया। 'एल•एन•मिश्रा इंस्टीट्यूट ऑफ इकॉनॉमिक डेवलपमेंट ऐंड सोशल चेन्जेज़', जिसके 'चेयरमैन' एवं मुख्य निदेशक बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र थे, को 'द प्राईवेट एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस (टेकिंग ओवर) ऑरडिनैन्स १९८६' नामक अध्यादेश के द्वारा सरकार के अधीन किया गया। इस अध्यादेश से दूबे सरकार ने बहुत सुर्खियाँ बटोरी पर मिश्र से दूबे की खुल कर ठन गई।[32]

संस्कृति को बढ़ावा

राजगीर महोत्सव

दूबे सरकार ने बिहार की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए राजगीर महोत्सव की शुरुआत राजगीर के स्वर्ण भद्र इलाके में राजगीर नृत्य महोत्सव के नाम से, तत्कालीन केन्द्रीय पर्यटन मंत्री एच•के•एल•भगत की मौजूदगी में, की थी जिसका उद्घाटन खुद दूबे ने ४ अप्रैल, १९८६ में किया था। [33][34][35] राजगीर चंद्र गुप्त काल में मगध की राजधानी हुआ करती थी एवं उसका प्राचीन नाम राजगृह था।

पटना-पाटलिपुत्र

राजधानी पटना, जो सम्राट अशोक के काल में पाटलिपुत्र के नाम से मगध की राजधानी हुआ करती थी, का गौरव वापस लाने के लिए उन्होंने १९८६ में पाटलिपुत्र फ़ूड फ़ेस्टिवल का बड़े धूमधाम से आयोजन किया था। उसमें पाटलिपुत्र के गौरव चाणक्य, चंद्रगुप्त, अशोक, बुद्ध इत्यादि के बड़े-बड़े कट-आऊट लगे थे। कार्यक्रम में पाटलीग्राम-पाटलिपुत्र-पटना का ४८७ ईसा पुर्व (487 बी•सी•) से १५ अगस्त १९४७ तक के इतिहास की डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई थी एवं उसमें प्रासंगिक सजावट, संगीत, प्रासंगिक वेटर विद्दमान थे। कार्यक्रम में शहर की ऐतिहासिक संस्कृति से जुड़ी मौर्य वंश काल की भारतीय, युनानी, चीनी, मुगलई एवं यूरोपीय वयंजनों से सजी ढकी हुई खाद्य स्टॉल विद्दमान थी। मौर्य सटॉल के आगे चाणक्य का अर्थशास्त्र के साथ, युनानी स्टॉल के आगे मेगस्थनीज (यूनान का एक राजदूत था जो चन्द्रगुप्त के दरबार में आया था) अपनी पुस्तक इंडिका के साथ, चीनी स्टॉल के आगे चीनी बौद्ध भिक्षु, यात्री, लेखक एवं अनुवादक फ़ाहियान अपने उद्धरण देवता पाटलिपुत्र बनाने के लिए स्वर्ग से उतरे होंगे के साथ, मुगलई स्टॉल के आगे औरंगज़ेब के पोते अज़ीम शाह एवं यूरोपीय स्टॉल के आगे १६ वर्ष तक पटना में रहे 'ईस्ट इंडिया कंपनी' के एजेंट जॉब चार्नक का कट-आउट सुशोभित हुआ था। दूबे सरकार ने पटना का नाम बदलकर दोबारा उसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नाम पाटलिपुत्र रखने के लिए विधानसभा में सर्वसम्मति से बिल पास करवा कर संसद में भेज दिया था। प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इसके समर्थन में संसद में बिल पेश किया पर कम्युनिस्ट पार्टियों ने यह कह कर विरोध कर दिया कि ऐसा करना हिंदुवाद को बढ़ावा देना होगा और हंगामे की वजह से बिल पास न हो सका। उनके बाद की राज्य एवं केंद्र सरकारों ने नाम बदलने में रुचि नहीं दिखाई। बाद में लालू यादव सरकार ने, मुस्लिम तुष्टिकरण हेतु, पटना का नाम अज़ीमाबाद करने पर जोर दिया था। [36]

स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार

दूबे ने सरकारी अस्पतालों में इलाज के स्तर को ऊँचा करने के लिए १९७५-७७ में स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए सरकारी डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस पर रोक लगाई थी। मुख्यमंत्री बनने के बाद फिर से उन्होंने बिहार के कुल ९ मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस पर रोक लगा दी थी।[37]मेडिकल कॉलेज एवं अस्पतालों के रखरखाव के लिए दूबे सरकार ने अलग से ५ करोड़ रुपए का कोष सृजित किया था।[38]

अपराध के विरुद्ध कदम

दूबे सरकार ने अपराध पर बहुत सख्त कदम उठाया था। मुख्यमंत्री बनने के सौ दिन के अन्दर हजारों अपराधियों को पुलिस द्वारा धर-दबोचा गया एवं अनेकों अपराधी पुलिस एन्काउंटर में मारे गए।[39] इसके अलावा वर्ष १९८५ में हजारों डकैत पकड़े गए थे।[40]

'ऑपरेशन ब्लैक पैन्थर'

चंपारण के डकैतों एवं अपहरणकर्ताओं से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने सत्ता में आने के तुरंत बाद 'ऑपरेशन ब्लैक पैन्थर' लॉंच किया। भारत एवं नेपाल सीमा पर ४० 'आउटपोस्ट' बने ताकि डाकू इधर से उधर ना भाग पाए या उधर से इधर ना घुस पाए। इस ऑपरेशन के तहत कई सारे डाकू पकड़े गए थे।  [41][42]

'ऑपरेशन ब्लैक पैन्थर-२'

'ऑपरेशन ब्लैक पैन्थर' के बाद अप्रैल १९८५ में ही दूबे सरकार ने रोहतास जिले के कैमूर एवं उससे सटे हुए भोजपुर जिला क्षेत्रों के अपराधियों एवं डकैतों को खत्म करने के लिए 'ऑपरेशन ब्लैक पैन्थर-२' लॉन्च किया था। परिणामस्वरूप खूंखार डकैत एवं कैमूर का बेताज बादशाह मोहन बिंद मारा गया। इस ऑपरेशन के बाद तीन और छोटे-छोटे ऑपरेशन हुए। इनमें छह एनकाउंटर में २० डकैत मारे गए थे।[40]

'ऑपरेशन कैमूर'

'ऑपरेशन ब्लैक पैंथर-२' के बाद सिर्फ़ कैमूर के डकैतों को मारने के लिए दूबे सरकार ने 'ऑपरेशन कैमूर' लॉन्च किया था। इन ऑपरेशनों के तहत पूरे जिले में ८९२ अपराधियों को पकड़ा गया। इनकी दो लाख से ऊपर की कीमत की संपत्ति जब्त हुई। अनेकों हथियार जब्त किए गए जिसमें १८ राईफ़ल, २५ बंदूकें, ६५ देसी बंदूकें, ६० देसी कट्टे इत्यादि पकड़े गए। पर सरकार संतुष्ट नहीं हुई। एस•पी अरुण चौधरी का तबादला कर दिया गया।[40]

'ऑपरेशन टास्क फ़ोर्स'

'ऑपरेशन ब्लैक पैन्थर' के तुरंत बाद दूबे सरकार ने दक्षिण-मध्य बिहार के पटना-नालन्दा-गया-जहानाबाद-औरंगाबाद-नवादा-भोजपुर क्षेत्रों में और खासकर मसौढ़ी, जहानाबाद और हिलसा और इन क्षेत्रों के निकटवर्ती गाँवों में चल रही जातिय हिंसा पर काबू पाने के लिए 'ऑपरेशन टास्क फ़ोर्स' लॉन्च किया था। उस वक्त माहौल इतना बिगड़ा हुआ था कि अलग-अलग जाति के लोगों ने अपनी-अपनी जातियों की हथियारबंद सेनाएँ बनाई हुई थीं। हरिजन ज़्यादातर माओईस्ट कम्युनिस्ट सेन्टर (एम•सी•सी•) और सी•पी•आई•(माले) से जुड़े थे। सी•पी•आई•(माले) की कई सारी सेनाएँ थीं जैसे कि बिहार प्रदेश किसान सभा, मजदूर किसान संघर्ष समिति, पार्टी युनिटी ग्रुप, इंडियन पीपल्स फ़्रंट इत्यादि कई सेनाएँ थीं। इसके अलावा यादवों की लौरिक सेना एवं श्रीकृष्ण सेना, भुमिहारों की ब्रम्हर्षि सेना, राजपूतों की कुँवर सेना, समाजवादी क्रांतिकारी सेना एवं शोषित समाजवादी सेना और ब्राम्हणों की आज़ाद सेना एवं गंगा सेना, कुर्मियों की भूमि सेना बनी हुई थी। खून की होली चरम पर थी। इस ऑपरेशन के तहत छह महीने में ही मध्य बिहार में १११ में से ४५ चरमपंथियों तथा चन्देश्वर दुसाध जैसे हज़ारों खूखांर उग्रवादियों की गिरफ्तारियाँ हुई थी, नेपाली यादव जैसे कई चरमपंथी नक्सली पुलिस एनकाउंटर में मारे गए थे और अनेकों हथियार बरामद हुए थे। पर मुख्यमंत्री दुबे ने महसूस किया कि यह समस्या कानून और व्यवस्था से परे है। उनके अनुसार, इसकी जड़ें इस क्षेत्र की लगातार खराब हो रही सामाजिक-आर्थिक स्थिति से जुड़ी हैं। और चीज़ों में तब तक बदलाव नहीं आएगा जब तक वहाँ की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं होगा। ऐसा सोच कर दूबे ने इस क्षेत्र के लिए 5 करोड़ रुपये सालाना की विकास योजना सैंकशन किया और भूमि सुधार उपायों में तेजी लाई।[42][43]

'ऑपरेशन सिद्धार्थ'

माओवादियों पर लगाम कसने के लिए 'एम सी सी' को बैन किया तथा 'ऑपरेशन सिद्धार्थ' चलाया। जिस गाँवों या क्षेत्र में 'एम•सी•सी' एवं 'एम•के•एस•एस•' सक्रिय थे वहाँ के सर्वांगीण विकास करने की तरफ़ कदम बढ़ाया गया ताकि लोगों का भरोसा 'एम•सी•सी' एवं 'एम•के•एस•एस•' से उठ जाए। शिक्षा, चिकित्सा, सड़क, बिजली इत्यादि के क्षेत्र में बहुत विकास हुआ।[44][45]

'माफ़िया ट्रायल'

दूबे सरकार द्वारा कोलियरियों में व्याप्त आतंक-भय-शोषण समाप्त करने के लिए तथा धनबाद के सुर्य देव सिंह, सत्यदेव सिंह, सकलदेव सिंह, नौरंग देव सिंह, रघुनाथ सिंह तथा विनोद सिंह जैसे कोयला माफ़ियाओं पर शिकंजा कसने के लिए 'माफ़िया ट्रायल' के द्वारा उनके ६४ पुराने 'केसेज़' में से ४० को 'री ओपन' करवा दिया गया। इस काम में धनबाद के उपायुक्त मदन मोहन झा (वर्तमान मंत्री, बिहार सरकार) एवं आरक्षी अधीक्षक विष्णु दयाल राम (वर्तमान पलामू सांसद) को लगाया गया था। दूबे देश के विख्यात मजदूर नेता होने के नाते मजदूरों के दुख-दर्द समझते थे और इसी कारण वे 'मजदूर मसीहा' भी कहे जाते रहे। ४५ वर्षों से वह उस छोटानागपुर क्षेत्र में मजदूर राजनीति कर रहे थे। कोल इंडिया में एक परंपरा थी। इलाका बंटा था। इस इलाके में फलां बाबू काम करेंगे। उस इलाके में दूसरा कोई नहीं जा सकता था। टेंडर भरने कोई नहीं जाता था। ‘सपोर्टिंग टेंडर’ वे ही लोग देते थे। कोई दूसरा देने की हिम्मत नहीं करता था। इस एरिया का महाप्रबंधक इतना आतंकित रहता था कि माफिया सरगना के आदेश पर वह काम करता था। इस पर लगाम कसा गया। कोयला माफ़िया मजदूरों की कमाई एवं लोगों की संपत्ति हड़प जाते थे। फिर उस धन से अपराधकर्मियों को इकट्ठा कर मजदूरों, गरीबों एवं आम लोगों का शोषण करते थे। दूबे ने माफ़ियाओं के गैरकानूनी पैसा अर्जित करने के स्त्रोतों को सर्वप्रथम बंद करवाया। मजदूरों की तन्ख्वाह नगद की जगह चेकों के द्वारा भुगतान की जाने लगी। शराब के धंधे से भी इनकी बड़ी कमाई होती थी। दूबे सरकार ने शराब में नीलामी की व्यवस्था को ही बंद करवा दिया। शराब दूकानों में छापा भी पड़वाया। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद पर रहते हुए दूबे ने पार्टी के माफ़िया नेताओं का टिकट भी कटवा दिया था। माफ़िया रंगदारी टैक्स वसूल करते थे। जितनी ट्रकें चलेंगी, कोयला ढोने, बालू ले जानेवाले सभी ट्रांसपोर्ट पर रंगदारी टैक्स देना होता था। अमुक एरिया में किसी भी राह से गुजरे, तो वहां के रंगदार को 50 रुपये प्रति ट्रक देना होता था, जो नहीं दिया, उसकी ट्रक नहीं गुजर सकती थी, उस इलाके से। बाहर के लोगों के अलावा वहां के प्रतिष्ठित लोगों को भी देना पड़ता था। यानी एक ट्रक पर 50 रुपये देने का अर्थ उपभोक्ताओं को महंगा सामान प्राप्त होगा। इसका प्रतिकूल असर उद्योग पर पड़ता था। बीच में कुछ लोग बंदूक ले कर बैठते थे, बिना काम किये वसूली करना उनका धर्म था। इन चीज़ों पर दूबे ने सख्ती से कदम उठाया। इन सब वजहों से धनबाद के सभी माफ़िया एक हो गए और उन सबों को वरदहस्त प्राप्त था दूबे के धुरविरोधी पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र का। मिश्र ने सभी माफ़ियाओं को गोलबंद करके दूबे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और उन्हें परेशान करने की भरसक कोशिश की। दूबे के खासमखास मजदूर नेता जगदीश नारायण पाण्डेय को भी मरवा दिया गया। उनकी गैरहाजिरी में उनके धनबाद स्थित 'राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ' के कार्यालय में जबरन घुस कर उसपर कब्जा करने की कोशिश भी की गई। यहाँ तक कि बाद में, १ फ़रवरी १९८८ को कुछ अपराधियों ने उस कार्यालय में घुसकर ३ लोगों की हत्या एवं ५ लोगों को घायल भी कर दिया जिसका शक़ माफ़िया सूर्य देव सिंह पर गया था। हालांकि इस प्रकार के माफ़िया गिरीडीह, हज़ारीबाग इत्यादि जिलों में भी थे पर इनके सरगना धनबाद के ही थे। उनको कमज़ोर करने से उनके शागिर्द खुद ही कमजोर हो जाते। इसलिए 'माफिया ट्रायल' का केन्द्र धनबाद ही रहा।[46][47][48]

'माफ़िया ट्रायल' का दुष्परिणाम

'माफ़िया ट्रायल' के तहत दूबे ने अपराध से मुक्ति के लिए माफ़ियाओं से लोहा लेने की हिम्मत तो ज़रूर दिखाई पर उसका परिणाम बहुत दुखद रहा। मई १९८५ में 'ऐम्बैसैडर' कार से धनबाद से पटना आ रहे दूबे के दामाद (चंद्रेश्वर चौबे, बी•सी•सी•एल• धनबाद के उप कार्मिक प्रबंधक), पुत्री (मनोरमा चौबे) एवं २ नातियों का ट्रक से 'ऐक्सिडेंट' करवा दिया गया। दूबे का सिर्फ़ एक नाती, आठ वर्षीय बालक, ऋतेश चौबे बच पाया। ड्राइवर सहित बाकी सबों की दुर्घटना स्थल पर ही मौत हो गई। शक धनबाद के माफ़ियाओं पर गया। उसकी दो वजह थी। एक वजह थी कि ट्रक कोयला से लदी थी और पटना से धनबाद की दिशा में थी। जबकि कोयला तो धनबाद में होता है। उसको तो विपरीत दिशा में होना चाहिये था। दूसरी वजह यह थी कि दुर्घटनाग्रस्त 'ऐम्बैसडर' के ठीक सामने ट्रक लगी थी जबकि कार कि साईड बुरी तरह से पिचका हुआ था। कोई बच्चा भी देखकर कह देता कि यह कोई दुर्घटना नहीं, कुछ और है। पर किस वजह से जाँच रुक गई यह कोई नहीं जानता। पर चट्टान की तरह मजबूत राजनेता होने के कारण दूबे के मुख्यमंत्रित्वकाल में इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ा और राज्य के प्रगतिशील होता रहा।

हरिजनों एवं आदिवासियों का विकास

हरिजनों एवं आदिवासियों के विकास के लिए दूबे सरकार ने पंचायत चुनाव में जिलों में इनकी जनसंख्या के अनुसार ११,३७८ पंचायत में से करीब एक चौथाई सीट आरक्षित करवाई थी।[49]दूबे जी अपने समकालीन नेताओं से ज़्यादा अच्छे से झारखंड के दर्द को समझते थे। यही वजह थी कि उन्होंने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में आदिवासी भाषाओं एवं संस्कृतियों को बढ़ावा देने के लिए एक आदिवासी रामदयाल मुंडा को राँची विश्वविद्यालय का 'वाईस चांसलर' बनाया था।[50] उन्होंने १९८७ में, अपने मुख्यमंत्रित्व काल में, राँची, दक्षिण बिहार (अभी के झारखंड) के 'आदिवासी बालक छात्रावास' परिसर में युवा आदिवासी छात्रों की भलाई के लिए 'भगवान बिरसा मुंडा वाचनालय' नाम के एक पुस्तकालय के निर्माण के लिए ५० लाख रुपये का आवंटन किया था। [51]

झारखंड क्षेत्र का विकास

दूबे रहने वाले बिहार के भोजपुर जिले के थे लेकिन आजादी से पहले से ही उनका कर्मक्षेत्र दक्षिण बिहार, यानि कि आज का झारखंड, रहा। यहाँ की कोलियरियों एवं कारखानाओं के शोषित मजदूर ज़्यादातर इस क्षेत्र के मूलनिवासी या आदिवासी ही हुआ करते थे जिनके लिए दूबे सदैव लड़ते रहे। जबकि शोषक वर्ग ज़्यादातर अभी के बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात इत्यादि क्षेत्रों से थे। दूबे इस क्षेत्र के बेरमो विधानसभा से जीतते थे। वह इस क्षेत्र से छह बार विधायक एवं एक बार गिरिडीह से सांसद रहे। गिरिडीह शहर में, जिले के खेल प्रेमियों के आग्रह पर, उन्होंने सी•सी•एल• से जमीन दान करवा कर एक क्रिकेट और फ़ुटबॉल का स्टेडियम बनवाया था, जिसकी क्षमता २५ हज़ार लोगों की है एवं उसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर का बड़ा मैदान भी है। आज वहाँ पर अनेकों क्रिकेट और फ़ुटबॉल टूर्नामेंट होते हैं। [52] गुमला के शंख नदी पर पुल उन्हीं की देन है। [53] वह वहाँ के स्थानीय लोगों से इस कदर घुल-मिल गए थे कि उन्होंने अपनी चार में से तीन बेटियों का विवाह दक्षिण बिहार (झारखंड) के कसमार नामक ग्राम के एक स्थानीय परिवार में कर दिया था।

कीर्तिमान

दूबे सरकार ने १९८५-८८ के लगभग तीन साल के अपने छोटे से कार्यकाल के दौरान अनेकों कीर्तिमान बनाए जो न सिर्फ़ अपने समय तक सर्वोच्च रहे बल्कि कुछ तो आगे के बीसों साल तक तोड़ा न जा सका और कुछ तो आज तक के सर्वोच्च हैं। ये कुछ कीर्तिमान कुछ इस प्रकार हैं:

  • बिहार का 'प्रति व्यक्ति आय' (Per Capita Income) ९२९ रु• (१९८०-८१) एवं १,२८५ रु• (१९८४-८५) से बढ़कर १,५४७ रु• (१९८५-८६) दर्ज की गई।[54]
  • 'योजना व्यय' (Plan Outlays) ८५१ करोड़ रु• (१९८५-८६) से बढ़कर १,१५० करोड़ रु• (१९८६-८७) दर्ज की गई।[54]
  • 'राज्य संसाधन' (State Resources) ६५०.८ करोड़ रु• (१९८५-८६) से बढ़कर ८९१.६ करोड़ रु• (१९८६-८७) दर्ज की गई।[54]
  • दूबे के कार्यकाल के दौरान राज्य के 'ऋण जमा अनुपात' (Credit Deposit Ratio) 35% की उच्चतम रेकॉर्ड दर्ज की गई थी और इस सीमा को कई वर्षों बाद नीतीश कुमार के कार्यकाल के दौरान बाद में पार किया गया।[55]
  • उनके कार्यकाल के दौरान बीस सूत्री कार्यक्रम को कार्यान्वित करने के मामले में बिहार चौथे स्थान पर रहा।[56]
  • खाद्य उत्पादन के मामले में बिहार पंजाब और हरियाणा को पीछे छोड़ा।[56]
  • ग्रामीण विकास के मामले में देश के राज्यों में वर्ष १९८६-८७ में बिहार दूसरे स्थान पर आया।[57]
  • एक भी संप्रदायिक हिंसा नहीं हुई।[58]

मंत्रीमंडल

काबीना मंत्री

मंत्री विभाग
लहटन चौधरी [59][60] बीस सूत्री कार्यक्रम एवं कृषि
रामाश्रय प्रसाद सिंह [61][62] सिंचाई एवं ऊर्जा
मो• हिदायतुल्लाह खान[63] खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति
राजेन्द्र प्रसाद सिंह (खड़गपुर) [64] ...
हरिहर महतो [65] पथ निर्माण एवं परिवहन
उमा पांडेय [66] पर्यटन/शिक्षा
लोकेश नाथ झा [67] शिक्षा
दिनेश सिंह[68] स्वास्थ्य
विजय कुमार सिंह [69] विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी/भवन निर्माण
महावीर चौधरी [59] शहरी विकास एवं आवास
इन्द्रनाथ भगत [59] उत्पाद शुल्क
अमरेंद्र मिश्रा [59]
सरयु उपाध्याय [59] सहकारिता
सरयु मिश्रा [59] लघु सिंचाई, विशेष कृषि कार्यक्रम, धार्मिक न्यास
एस• एम• ईसा लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण (पी• एच• ई• डी•)

राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)

मंत्री विभाग
ओ• पी• लाल [59][70] खान एवं सूचना

राज्य मंत्री

मंत्री विभाग
जीतन राम मांझी कल्याण, जमीन एवं राजस्व
विजय कुमार सिंह [71] वित्त
विजय शंकर दूबे [61] पथ निर्माण एवं परिवहन
ईश्वर चन्द्र पांडेय [72] कृषि
अर्जुन प्रताप देव युवा मामले एवं खेल
थॉमस हांसदा उत्पाद शुल्क
करमचन्द भगत ...
अनुग्रह नारायण सिंह ...
गिरीश नारायण मिश्रा ...
बैजनाथ प्रसाद
नवल किशोर शर्मा

उप मंत्री

मंत्री विभाग
सुशीला केरकेट्टा सिंचाई
सुरेन्द्र प्रसाद तरुण[73] शिक्षा

अधिकारी

अधिकारी पद
के• के• श्रीवास्तव मुख्य सचिव[74]

राष्ट्रीय कार्यालय

लोक सभा

बिन्देश्वरी दूबे बिहार के गिरीडीह क्षेत्र से १९८० में सातवीं लोक सभा चुनाव रामदास सिंह, विनोद बिहारी महतो, चपलेंदु भट्टाचार्य जैसे राजनैतिक दिग्गजों को पटखनी देकर जीते थे।

राज्य सभा

दूबे ३ अप्रेल १९८८ से २० जनवरी १९९३ तक आजीवन राज्य सभा के सदस्य रहे।

कानून एवं न्याय मंत्री

१४ जनवरी १९८८ की सुबह बिहार के मुख्य मंत्री पद से इस्तीफ़ा देते ही कुछ ही देर में उन्हें केन्द्रीय कानून एवं न्याय का काबीना मंत्री घोषित कर दिया गया। वह इस पद पर २६ जून १९८८ तक रहे। कानून मंत्री रहते हुए दूबे ने कई उल्लेखनीय काम किए।

श्रम एवं रोजगार मंत्री

कानून एवं न्याय मंत्री बिन्देश्वरी दूबे के आग्रह पर तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गाँधी ने उन्हें २६ जून १९८८ को केन्द्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री बनाया। वह इस पद पर १ दिसम्बर १९८९ तक काबिज़ रहे। वी•वी• गिरी के अलावे किसी मजदूर नेता को पहली बार श्रम मंत्री बनाया गया था। श्रम मंत्री रहते हुए दूबे ने मजदूर हित में लेबर लॉ में कई संशोधन किये जो आज भी मील के पत्थर हैं।

श्रमिक आंदोलन

बिन्देश्वरी दूबे ने स्वतंत्रता आंदोलन के ही दौरान १९४४ में जेल से छूटने के बाद अपनी आजीविका के लिए दक्षिण बिहार के बेरमो में चंचनी और थापर जैसी कोलियरियों में नौकरी कर ली। पर कोलियरियों में मजदूरों का शोषण उनसे देखा नहीं गया और वह उनकी आवाज़ प्रबंधन के समक्ष उठाने लगे। नौकरी करते हुए यह सब संभव न था इसलिए कुछ समय के पश्चात् उन्होंने अपनी नौकरी की भी तिलांजली दे दी। सर्वप्रथम् उन्होंने ट्रेड यूनियन ऐक्टिविटी एक ब्रिटिश मैनेजर द्वारा चलाई जा रही 'सर लिन्सन पैकिन्सन ऐन्ड कं•' से शुरु की। तत्पश्चात उन्हीं के हमनाम बिन्देश्वरी सिंह ने उन्हें कोलियरी मजदूर संघ की ढोरी शाखा का उपाध्यक्ष नियुक्त किया। इसी दौरान भारत को आज़ादी मिली। आज़ादी के बाद दूबे निरंतर ट्रेड यूनियन में मजबूत होते चले गए। १९५१ में उन्हें इंटक से संबद्ध कोलियरी मजदूर संघ का राष्ट्रीय संगठन मंत्री बनाया गया। मुख्यमंत्री बनते ही दूबे ने गरीब मजदूरों के आँसू पोछने का फ़ैसला कर लिया था। [75]

राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक)

मई १९८४ में धनबाद में हुए कांग्रेस पार्टी से संबद्ध राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक) के अधिवेशन में पं• बिन्देश्वरी दूबे को सर्वसम्मति से इंटक का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया था। अधिवेशन का उद्घाटन तत्कालीन् प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने किया था। मार्च १९८५ में बिहार के मुख्यमंत्री बनने के बाद दूबे ने इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। प्रदेश इंटक के अध्यक्ष पद पर दूबे १९७५ से अंतिम साँस तक काबिज रहे। इसके अलावा इंटक से संबद्ध इंडियन नेश्नल माईनवर्कर्स फ़ेडेरेशन, राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ, इंडियन एलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फ़ेडेरेशन, माईन्स वर्कर्स एकाडेमी, एच•एस•सी•एल• वर्कर्स यूनियन, पी•पी•सी•एल• वर्कर्स यूनियन, बोकारो स्टील वर्कर्स यूनियन, टेल्को वर्कर्स यूनियन, डी•वी•सी• वर्कर्स यूनियन, एच•ई•सी• वर्कर्स यूनियन, मेकॉन वर्कर्स यूनियन इत्यादि अनेकों यूनियनों के अध्यक्ष रहे।

राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ

'इंटक' से संबद्ध 'राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ', जो पहले 'कोलियरी मजदूर संघ' कहलाता था, के दूबे निर्विवाद नेता थे। १९५० और ६० के दशक में संघ के संगठन मंत्री, मंत्री, उपाध्यक्ष और फिर प्रधानमंत्री बनने के बाद १९७० के दशक में अध्यक्ष भी बने और अंतिम साँस तक (२० जनवरी, १९९३) इस पद पर बने रहे। इनके देहांत के बाद कांति मेहता संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।

२४ अक्तूबर, १९६२ को दूबे जी की अध्यक्ष्ता में डी•वी•सी• कोलियरी में केन्द्रीय श्रम विभाग के पार्लियामेन्ट्री सेक्रेटरी श्री आर• एल• मालवीय के हस्तक्षेप पर ठेकेदारी प्रथा पर रोक लगा दी गई। ऐसा किसी सरकारी कोलियरी में पहली बार हुआ था। १९६२-६३ में ही पद्मा महाराज की ढोरी कोलियरी में भी बिन्देश्वरी दूबे की पहल पर ठेकेदारी प्रथा को समाप्त कर दिया गया।

१७ जून १९६८ को राष्ट्रीय खान मजदूर फ़ेडरेशन के प्रधान मंत्री कांती मेहता और कोलियरी मजदूर संघ के प्रधान मंत्री बिन्देश्वरी दूबे की अपील पर वेतन मंडल की सिफ़ारिशों को सही ढंग से लागू कराने तथा १ रू• ४७ पैसे के रेट से महंगाई भत्ता दिलाने के लिए ऐतिहासिक हड़ताल हुई थी जिसमें तत्कालीन बिहार के धनबाद एवं हजारीबाग जिले के करीब डेढ़ लाख कोलियरी मजदूर घनघोर बारिश में हड़ताल पर रहे और प्राय: ७० हजार कोयले का उत्पादन ठप हुआ। चूंकि टाटा कं•, एन•सी•डी•सी• एवं डी•वी•सी• की कोलियरियों में महंगाई भत्ता का भुगतान कर दिया गया था इसलिए वहाँ हड़ताल नहीं करवाया गया। झरिया फ़ील्ड की प्राय: सभी कोलियरियाँ बंद रही क्योंकि वे समझौता करने को तैयार नहीं हो रहे थे। इसके अलावा बिहार, बंगाल, उड़ीसा आदि की करमचंद थापर, चंचनी, बर्ड, के• बोरा, टर्नर कोरिशन, न्यू तेतुलिया, बैजना, मधुबन, अमलाबाद, पुटकी, कनकनी, बागाडीगी, होहना, भौंरा और श्रीपुर, निंघागना, शिवडागा, वास्तकोला, रानीगंज जैसी कोलियरियों को भी भुगतान नहीं करने पर हड़ताल की नोटिस दी गई जिसके फलस्वरूप उनके साथ समझौता हो गया। हड़ताल अलग-अलग जगहों पर लंबे समय तक चलती रही। बाद में नवम्बर १९६९ में एन•सी•डी•सी• के साथ समझौता हुआ और बाकी की कोलियरियों को भी झुकना पड़ा। समझौते में एक अतिरिक्त सालाना बढ़ोत्तरी तथा मकान भाड़ा सिर्फ़ दो रुपया भी मंजूर हुआ। समझौते में संघ की ओर से प्रधानमंत्री बिन्देश्वरी दूबे, मंत्री एस•दासगुप्ता एवं संगठन मंत्री दामोदर पांडेय तथा एन•सी•डी•सी• की ओर से एरिया जेनेरल मैनेजर आर•जी• महेन्द्रु और चीफ़ पर्सनल अफ़सर आई•बी• सान्याल ने हस्ताक्षर किया।

राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता

१९५६ में चीज़ों के दाम में जिस तरह वृद्धि हुई थी, उसके फलस्वरूप मजदूरी में उन्हें जो वृद्धि दी गई थी, वह नगण्य साबित हुई। राष्ट्रीय खान मजदूर फ़ेडरेशन के तत्वावधान मजदूरी में वृद्धि के लिए मालिकों के समक्ष माँगें पेश की गई और सरकार से वेतन मंडल बैठाने की माँग की गई। २३-३० जनवरी, १९६२ तक फ़ेडरेशन के निर्णयानुसार कोलियरी मजदूर संघ की शाखाओं में माँग सप्ताह मनाया गया तथा अनुकूल वातावरण तैयार किया गया। आम हड़ताल की नोटिसें भी दी गईं, मगर सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने पर हड़ताल की नौबत नहीं आई। अन्त में वेतन मंडल की घोषणा की गई जिसकी प्रथम बैठक कोलकाता में २५ और २६ अक्तूबर को हुई। अन्तरिम राहत के लिए वेतन मंडल की दूसरी बैठक कोलकाता में ६ दिसम्बर १९६२ तक हुई जिसमें कोलियरी मजदूर संघ के प्रधान मंत्री राम नारायण शर्मा, मंत्री एस• दासगुप्ता, उपाध्यक्ष बिन्देश्वरी दूबे एवं कांती मेहता उपस्थित थे। फलत: अन्तरिम राहत के रूप में हर कोयला खदान मजदूरों को महीने में पौने दस रू• की वृद्धि १ मार्च १९६३ से मिलने लगी। संघ के प्रयास से १ अप्रेल १९६३ से मजदूरों को दी जाने वाली महंगाई भत्ते में भी ३ आना रोजाना या ४ रू• १४ आने प्रति माह की बढ़त मिली। दूबे कोयला वेतन समझौता-१, २, ३ और ४ के सदस्य रहे।

कोलियरियों का राष्ट्रीयकरण

दूबे ने कोयला मजदूरों की आवाज़ को तत्कालीन् प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी और तत्कालीन कोयला मंत्री कुमारमंगलम् तक पहुँचा कर भारत की कोलियरियों के राष्ट्रीयकरण में अहम् भूमिका निभाई। सर्वप्रथम् धनबाद के कोकिंग कोल कोलियरियों का राष्ट्रीयकरण हुआ था।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आई•एल•ओ•)

बिन्देश्वरी दूबे ने मजदूरों की समस्याओं को और करीब से समझने और उसके निदान के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के कई सारे कान्फ़रेनसों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए कई सारे देशों जैसे अमेरिका, जर्मनी, यू•के•, बेल्जियम, नीदरलैंड, फ़्रांस, युगोस्लाविया, स्वीट्ज़रलैंड, जापान इत्यादि का दौरा किया।

संबंध

देश के सुप्रसिद्ध मजदूर नेताओं में माइकल जॉन, गोपाल रामानूजम्, कांति मेहता, राम नारायण शर्मा, बी•पी• सिन्हा, एस• दासगुप्ता, गोपेश्वर दास, संजीवा रेड्डी इत्यादि से उनके मधुर संबंध रहे। तत्कालीन अखंड बिहार (एवं झारखंड) के बेरमो कोलियरी क्षेत्र में रामाधार सिंह एवं फुलेना प्रसाद वर्मा के साथ बिन्देश्वरी दूबे की तिकड़ी मानी जाती थी। १९५० के दशक में दूबे, सिंह और वर्मा के लिए तीन हर्क्युलिस साईकिल आयी थी जिसमें चढ़कर तीनों मजदूर धौड़ों के चक्कर लगाया करते थे। मजदूर नेता जॉर्ज फ़र्नांडिस (पूर्व केंद्रीय मंत्री), चतुरानन मिश्र (पूर्व केंद्रीय मंत्री), रमेन्द्र कुमार (पूर्व सांसद), बसावन सिंह, बिन्देश्वरी सिंह, रामदास सिंह (पूर्व सांसद), मिथिलेश सिंह (पूर्व विधायक), शफ़ीक़ खान, सुर्य देव सिंह (पूर्व विधायक), शंकर दयाल सिंह (पूर्व सांसद एवं मंत्री) इत्यादि एवं पद्मा महाराज कामख्या नारायण सिंह (पूर्व मंत्री) के साथ उनकी प्रतिद्वंदिता रही।

कहानियाँ

शीर्षक: "बिहार, बिन्देश्वरी और बेरमो"

१९४४ मेंं स्तंत्रता आंदोलन के दौरान २ वर्ष की जेल की सजा काटने के बाद दूबे ने फिर से आंदोलन को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया था। इसी क्रम मेंं एक बार अंग्रेज़ों से मुठभेड़ के दौरान उन्हेंं पटना स्टेशन पर एक चलती ट्रेन में चढ़ कर भागना पड़ा। उन्हेंं नहीं पता था ट्रेन कहाँ जा रही थी। अंतत: चलते-चलते वह दक्षिण बिहार (अभी का झारखंड) के एक स्टेशन पर उतर गए। नाम पढ़ा तो उसका नाम बेरमो था। बेरमो कोलियरी के एक चाय की कैंंटीन के बाहर वो बैठ गए। कैंंटीन मालिक झा जी बहुत देर से धोती, कुर्ता एवं गांधी टोपी मेंं २१ वर्षीय युवा दूबे को देख रहे थे। वेष-भूषा देख वह समझ गए थे कि निश्चित ही यह बालक कोई स्वतंत्रता सेनानी है। वो बालक के करीब आए और पूछे कि वो कौन हैं। बालक दूबे ने कोई जवाब नहीं दिया और उठ कर जाने लगे। झा जी ने युवा दूबे का हाथ पकड़ा और कहा कि कुछ खा लीजिए। दूबे ने कहा मुझे भूख नहीं है। झा जी ने कहा भूख नहीं है या पैसा नहीं है? आइए कुछ खा लीजिए। उन्होंंने उन्हेंं सिर्फ़ खाना ही नहीं खिलाया बल्कि कुछ महीने अपने घर में भी शरण दिया जबतक कोलियरी मेंं दूबे की नौकरी नहीं लग गई। कुछ समय चंचनी और थापड़ की कोलियरी मेंं नौकरी करने के बाद दूबे ट्रेड यूनियन करने लगे।

शीर्षक: बिन्देश्वरी एवं राजेंद्र

१९४० के दशक में जब बिन्देश्वरी मजदूर राजनीति करते थे तो उनके पिता अक्सर उनसे कहते थे, "नेतागिरी से उन्हें क्या मिलता है। कोई नौकरी करो। अपने बड़े भाई राजेन्द्र को देखो वह दरोगा है।" वर्षों बाद बात १९७५ की है जब राजेंद्र मुंगेर थाने में दरोगा थे और बिन्देश्वरी बिहार के शिक्षा मंत्री थे। उसी दौरान एक बार बिन्देश्वरी का मुंगेर दौरे हुआ। बड़े भाई राजेन्द्र ने छोटे भाई बिन्देश्वरी को शिक्षा मंत्री होने की हैसियत से सलामी दी। बिन्देश्वरी झट से आगे बढ़े और बड़े भाई को सम्मान देते हुए उनके पैर छू लिए और उन्हीं के साथ खाना खाया। लोग हक्के-बक्के हो कर देखते रह गए।

शीर्षक:"आँखों से कम दिखाई देता है और कानों से कम सुनाई देता है!"

बात सन् १९८० की है। आम चुनाव में 'गरीबी हटाओ' का नारा रंग लाया और इंदिरा गांधी की पुनर्वापसी हुई। बिहार विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस की जीत हुई। नए मुख्यमंत्री के चयन के लिए दिल्ली में बैठक चल रही थी। मुख्यमंत्री की दौड़ में बिन्देश्वरी दूबे का नाम अव्वल था। अन्य में जगन्नाथ मिश्र, केदार पांडेय, एल•पी• शाही इत्यादि का नाम था। इंदिरा गांधी के करीबी सीताराम केसरी ने दूबे को अपना समर्थन देने का वादा किया था पर बैठक में वह मुकर गए। उन्होंने इंदिरा गांधी के समक्ष जगन्नाथ मिश्र का समर्थन कर दलील दी कि दूबे जी अच्छे नेता हैं पर अब बूढ़े हो गए हैं। उन्हें आँखों से कम दिखाई देता है और कानों से कम सुनाई देता है। अंततः मुख्यमंत्री जगन्नाथ ही बने। दूबे जी बदला लेने में यकीन नहीं करते थे पर प्रतिद्वंद्वी को गलती का एहसास अपने खास अंदाज़ में ज़रूर करवाते थे। ६ साल बाद उन्हें भी मौका मिला। १९८६ में दूबे मुख्यमंत्री थे तथा उस वक्त उनकी बड़ी चलती थी। मौका राज्यसभा की कुछ सीटों के चुनाव का था। प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कुछ समय पहले पार्टी के बड़े नेताओं के समक्ष इच्छा जताई थी कि ऐसे नेता जिन्हें पार्टी ने लगातार दो बार राज्यसभा का सांसद बनवाया है इस बार उनको लोक सभा चुनाव में जीतकर जनता में अपनी लोकप्रियता साबित करनी चाहिए।[76]उनकी इसी बात का हवाला देकर दूबे ने सीताराम केसरी का टिकट कटवा दिया।[77]हालांकि दूबे ने केसरी को टिकट दिलवाने का वादा किया था। केसरी भागे-भागे दूबे के तत्कालीन आवास १ अणे मार्ग, पटना, में आए और उनके पैर के पास बैठ गए और बोले मुझसे क्या गलती हुई है। मुझे सज़ा दीजिए। दूबे ने केसरी को अपना अभिन्न मित्र कहते हुए उनको अपने बगल में बैठने को कहा पर केसरी नहीं माने। दूबे के जोर देने पर अंततः केसरी ने कहा 'बाबा, आपने मेरा टिकट क्यों कटवाया? दूबे जी ने जानबूझकर कहा 'नहीं लिस्ट में तो आपका नाम है। मैं अभी आपको दिखाता हूँ।' यह कहकर दूबे ने सेक्रेटरी को लिस्ट लाने को कहा। लिस्ट आने पर दूबे ने लिस्ट देखा, फिर मंद मुस्कान के साथ अफ़सोस जताते हुए कहा -'केसरी जी गलती हो गई लिखने में। दरअसल बूढ़ा हो गया हूँ न! आँखों से कम दिखाई देता है और कानों से कम सुनाई देता है!" केसरी शर्मिंदा हो गए और बात समझ गए। दूबे ने कहा वैसे आप उम्र में मुझसे थोड़े बड़े हैं और आपको भी कम दिखाई और सुनाई पड़ता होगा, इसलिए बेहतर होगा कि आप अब पार्टी का कामकाज देखें। वर्षों पहले लगभग १९८०, दिल्ली, में केसरी एवं दूबे का एक साथ कार ऐक्सिडेंट हुआ था। इंदिरा गांधी उन्हें देखने अस्पताल आई थीं।

राव एवं दूबे

बिन्देश्वरी एवं रामदास

बिन्देश्वरी एवं कामाख्या

दूबे और चतुर्वेदी

दूबे एवं शत्रु

दूबे एवं मिश्र

दूबे, वोरा एवं जोशी

दूबे एवं लालू

आवास

  • दूबे टोला, महुआँव, शाहपुर, भोजपुर, बिहार (जन्म एवं बचपन)
  • सेंट माईकल्स स्कूल हॉस्टल, पटना
  • संडे बाजार, बेरमो
  • फ्राईडे बाजार, बेरमो
  • विधायक आवास, पटना
  • पोलो रोड, पटना (बिहार सरकार में मंत्री रहते हुए
  • बोकारो स्टील वर्कर्स यूनियन ऑफ़िस, सेक्टर ३, बोकारो स्टील सिटी
  • बी-४, सिटी सेन्टर, बोकारो स्टील सिटी (व्यक्तिगत आवास)
  • गुरुद्वारा रकाबगंज रोड, नई दिल्ली (जब लोकसभा एम•पी• थे।
  • सदाकत आश्रम, पटना (बी•पी•सी•सी• अध्यक्ष कार्यालय एवं आवास)
  • १ अणे मार्ग, पटना (मुख्यमंत्री आवास)
  • १८ स्ट्रैंड रोड, पटना (जब केन्द्रीय मंत्री थे)
  • १ तीनमूर्ति मार्ग, नई दिल्ली (जब केन्द्रीय मंत्री थे)
  • २१, वेलिंग्टन क्रीसेंट, नई दिल्ली (जब अंतिम साँस ली इसी आवास में रहते थे/ राज्यसभा एम•पी• थे।

वाहन

  • हरक्यूलिस साईकिल
  • फ़ीयट/ बी•एच•ए•-६९६९
  • ऐम्बैसडर/ बी•आर•एम•-१५८/ रंग-काला/ (१९६० के दशक में)
  • ऐम्बैसडर/ बी•एच•वी•-१८१८/ रंग-सफ़ेद/ १९७० के दशक में
  • ऐम्बैसडर/ ६९६९/ रंग-सफ़ेद/ १९८० के दशक में
  • ऐम्बैसडर/ ७९७९/ रंग-चॉकलेट/ १९८० के दशक में
  • प्रीमियर एन•ई•११८/ डी•एल•४ सी•ए•१९७२/ रंग-सफ़ेद/ १९९० के दशक में

विरासत

बिन्देश्वरी दूबे के सम्मान में ये प्रतिमाएँ एवं संस्थान बने हैं:

• कलेक्ट्री तालाब (आरा, भोजपुर, बिहार) के निकट इनकी प्रतिमा विराजमान है।[78][79]

• बिन्देश्वरी दूबे आवासीय महाविद्यालय, पिछरी, पेटरवार, बोकारो[80]

• बिन्देश्वरी दूबे इंटर कॉलेज, बिहियाँ, जिला भोजपुर, बिहार[81]

• बिन्देश्वरी दूबे ब्रिज, भरौली पुल रोड, शाहपुर, जिला भोजपुर, बिहार

• बिन्देश्वरी दूबे स्मारक कॉम्प्लेक्स, भोजपुर, बिहार[82]

• बिन्देश्वरी दूबे फ़ाउंडेशन, बोकारो, झारखंड[83][84]

सन्दर्भ

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  2. https://m.jagran.com/bihar/bhojpur-11978618.html
  3. http://www.univarta.com/news/states/story/343707.html
  4. https://m.livehindustan.com/news/Buxar/article1-Dube-was-the-Messiah-of-the-poor-Bindeshwari:-Tathagata-665027.html
  5. https://wikivisually.com/wiki/User:Shockwave643/Books/Freedom_Fighters
  6. https://m.facebook.com/PtBindeshwariDubey/photos/a.160461550760315.38607.146725348800602/199647910175012/?type=3&source=54
  7. http://www.elections.in/bihar/assembly-constituencies/1957-election-results.html
  8. http://www.elections.in/bihar/1962.html
  9. http://www.elections.in/bihar/1967.html
  10. http://www.elections.in/bihar/1969.html
  11. http://www.elections.in/bihar/1972.html
  12. http://www.elections.in/bihar/assembly-constituencies/1977-election-results.html
  13. http://www.elections.in/bihar/1985.html
  14. http://eci.nic.in/eci_main/statisticalreports/LS_1980/Vol_I_LS_80.pdf
  15. http://m.indiatoday.in/story/indira-gandhi-personally-constitutes-super-cabinet-in-bihar-to-refurbish-congressi-image/1/361012.html
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  17. https://en.m.wikipedia.org/wiki/Elections_in_Bihar
  18. https://en.m.wikipedia.org/wiki/Bihar_Pradesh_Congress_Committee
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  21. https://www.financialexpress.com/education-2/bihar-board-12th-results-64-75-students-fail-in-worst-result-in-almost-two-decades/694063/
  22. http://indianexpress.com/article/opinion/editorials/desterilisation-plan-bihar-health-minister-indira-gandhi-west-bengal-4364895/
  23. https://en.m.wikipedia.org/wiki/List_of_Finance_Ministers_of_Bihar
  24. http://m.economictimes.com/PDAET/articleshow/msid-6984428,curpg-2.cms
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बाहरी कड़ियाँ