पुष्प

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पुष्प, फूल (तद्भव) या फुल्ल (तत्सम) सपुष्पक पौधों में एक बहुत महत्वपूर्ण ध्यानाकर्षक रचना है। यह एक रूपान्तरित प्ररोह है जो लैंगिक जनन हेतु अभिप्रेत होता है। एक प्ररूपी पुष्प में विभिन्न प्रकार के विन्यास होते हैं जो क्रमानुसार फूले हुए वृन्त, जिसे पुष्पासन या पुष्पधानी कहते हैं, पर लगे रहते हैं। ये हैं: बाह्य दलपुंज, दलपुंज, पुमंग तथा जायांग

बाह्य दलपुंज तथा दलपुंज सहायक अंग है जबकि पुमंग तथा जायांग जननांग हैं। कुछ पुष्पों जैसे प्याज में बाह्य दलपुंज तथा दलपुंज में कोई अन्तर नहीं होता। इन्हें परिदलपुंज कहते हैं। जब पुष्प में पुमंग और जायांग दोनों ही होते हैं तब उसे द्विलिंगी अथवा उभयलिंगी कहते हैं। यदि किसी पुष्प में केवल एक पुमंग अथवा जायांग हो तो उसे एकलिंगी कहते हैं। जब पुष्प के परागकोश से परागकण वर्तिकाग्र पर जमा हो जाते हैं तो इसे परागण कहते हैं।

पुष्पों को दीर्घ समय से मनुष्यों द्वारा उनकी सौन्दर्य और सुखद सुगन्ध हेतु किया सराहा गया है, और धार्मिक, अनुष्ठान, या प्रतीकात्मक वस्त्वों, या औषध और भोजन के स्रोतों के रूप में सांस्कृतिक महत्व भी रखते हैं।

विशेषज्ञता[संपादित करें]

पराग (pollen) को प्रोत्साहित करने के लिए प्रत्यक पुष्प की अपनी विशेष प्रकार की संरचना होती है। किलिएसटोगैमस फूल (Cleistogamous flower) स्वपरागित होते हैं, जिसके बाद वे खुल भी सकते हैं या शायद नहीं भी.कई प्रकार के विओला और साल्वी प्रजातियों में इस प्रकार के फूल होते हैं।

कीटप्रेमी फूल (Entomophilous flower) कीटों, चमगादडों, पक्षियों और जानवरों को आकर्षित करते हैं और एक फूल से दुसरे को पराग स्थानांतरित करने के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं। सामान्यतः फूलों के अनेक भागों में एक ग्रंथि होती है जिसे पराग (nectar) कहा जाता है जो इन कीटों को आकर्षित करती हैं। कुछ फूलों में संरचनायें होते हैं जिन्हें मधुरस निर्देश (nectar guides) कहते हैं जो कि परागण करने वालों को बताते हैं कि मधु कहाँ ढूँढना है। फूल परागकों को खुशबू और रंग से भी आकर्षित करते हैं। फिर भी कूछ फूल परागकों को आकर्षित करने के लिए नक़ल या अनुकरण करते हैं। उदाहरण के लिए कुछ ऑर्किड की प्रजातियाँ फूल सृजित करती हैं जो की मादा मधुमक्खी के रंग, आकार और खुशबू से मेल खाते हैं। फूल रूपों में भी विशेषज्ञ होते हैं और पुंकेशर (stamen) की ऐसी व्यवस्था होती है कि यह सुनिश्चित हो जाता है कि पराग के दानें परागक पर स्थानांतरित हो जायें जब वह अपने आकर्षित वास्तु पर उतरता है (जैसे की मधुरस, पराग, या साथी) कई फूलों की एक ही प्रजाति के इस आकर्षनीय वस्तु को पाने के लिए, परागक उन सभी फूलों में पराग को स्त्रीकेशर (stigma) में स्थानांतरित कर देता है जो की बिल्कुल सटीक रूप से समान रूप में व्यवस्थित होते हैं।

वातपरागीत फूल (Anemophilous flower) वायु का इस्तेमाल पराग को एक फूल से अगले फूल तक ले जाने में करते हैं उदहारण के लिए घासें, संटी वृक्ष, एम्बोर्सिया जाति की रैग घांस और एसर जाति के पेड़ और झाडियाँ. उन्हें परागकों को आकर्षित करने की जरुरत नहीं पड़ती जिस कारण उनकी प्रवृति "दिखावटी फूलों" की नहीं होती. आमतौर पर नर और मादा प्रजनन अंग अलग-अलग फूलों में पाए जाते हैं, नर फूलों में लंबे लंबे पुंकेसर रेशे होते हैं जो की अन्तक में खुले होते हैं और मादा फलों में लंबे-लंबे पंख जैसे स्त्रीकेसर होते हैं। जहाँ कि कीटप्रागीय फूलों के पराग बड़े और लसलसे दानों कि प्रवृति लिए हुए रहते हैं जो कि प्रोटीन (protein) में धनी होते हैं (परागाकों के लिए एक पुरस्कार), वातपरागित फूलों के पराग ज्यादातर छोटे दाने लिए हुए रहते हैं, बहुत हल्के और कीटों के लिए इतने पोषक भी नही.

आकारिकी[संपादित करें]

पुष्प को एक रूपान्तरित प्ररोह को कहा जाता है, छोटे इंटरनोडों और बेयरिंग के साथ, इसके गाँठ ऐसे संरचित होते हैं जो की अति रूपान्तरित पत्र हो सकते हैं।[1] संक्षेप में, एक पुष्प की संरचना एक रूपान्तरित प्ररोह पर एक अग्र विभज्योतक पर होती है, जो की लगातार बढ़ते नहीं रहता (वृद्धि नियत होती है) पुष्प कुछ वृन्त से पौधे से जुड़े रहते हैं। यदि पुष्प तने से जुड़े नहीं होते और उनका निर्माण पुष्पवृन्त पर होता है। जब पुष्पक्रम होता है, तो उसे एक पुष्पाक्ष कहा जाता है। पुष्पक्रम वाला तना एक अन्तक रूप सृजित करता हैं जिसे फूल की कुर्सी या उसका पत्र कहते हैं फूल के हिस्से पत्र के ऊपर चक्र में व्यवस्थित होते हैं। चक्र के चार मुख्य भाग (जड़ से प्रारम्भ करके या न्यूनतम आसंथी से लेकर ऊपर तक चलते हुए) इस प्रकार हैं:

रेखा चित्र एक परिपक्व फूल के भागों को दिखाते हुए
सार्रसीनिया (Sarracenia) जाति के
छत्री के शैली में फूल
पूर्ण पुष्प का एक उदहारण, क्रेटेवा रेलीजिओसा (Crateva religiosa) फूल में पुंकेसर (बाह्य वृताकार में) और एक जायांग (केन्द्र में).
  • बाह्यदलपुंज: बाह्यदलों का बाह्य वोर्ल; आदर्श रूप में ये हरे होते हैं, पर कुछ नस्लों में पंखुडी रूपी भी होते हैं।
  • दलचक्र: दलपुंज का चक्र, जो कि अधिकांशतः पतले, कोमल और रंगीन होते हैं ताकि परागण की प्रक्रिया की मदद के लिए कीटों को आकर्षित कर सकें.
  • पुमंग: पुंकेशर के एक या दो चक्र, प्रत्येक एक तन्तु होता है जिसके ऊपर परागकोष होता है जो जिसमें पराग का उत्पादन होता है। पराग में पुरूष युग्मक कोशिका विद्यमान होते हैं
  • जायांग: जो कि एक या उससे अधिक स्त्रीकेशर होते हैं। स्त्रीकेशर मादा प्रजनन अंग हैं, जिसमे अण्डाशय के साथ पूर्वबीज (जिनमें मादा जननकोष होते हैं) भी होते हैं। एक जायांग में कई स्त्रीकेशर एक दुसर में सलग्न हो सकते हैं, ऐसे मामलो में प्रत्येक पुष्प का एक स्त्रीकेशर, या एक युक्ताण्डप होता है (तब फूल को युक्ताण्डपी कहा जाता है) स्त्रीकेशर का लसलसा अग्र भाग- वर्त्तिकाग्र पराग का ग्राही होता है, वर्त्तिका पराग नली के लिए रास्ता बन जाती है ताकि वे पराग के कणों से अण्डकोष के लिए प्रजनन के सामान को ले जाते हुए निर्मित हो सकें।

यद्यपि ऊपर वर्णित फूलों की संरचना को 'आदर्श' संरचनात्मक योजना माना जा सकता है, परन्तु पौधों की जाति इस योजना से हटकर बदलाव के व्यापक भिन्नता को दिखाते हैं। ये बदलाव फूल-पौधों के विकास में बहुत मायने रखते हैं और वनस्पतिज्ञ इसका गहन प्रयोग पौधों की नस्ल के संबंधों को स्थापित करने के लिए करते हैं। मसलन फूल-पौधों कि दो उपजातियां का भेद उनके प्रत्येक चक्र के पुष्पांगो को लेकर हो सकता है: एक द्विबीजपत्री के चक्र में आदर्श रूप में चार या पाँच अंग होते हैं (या चार या पाँच के गुणांक वाले) और एकबीजपत्री में तीन या तीन के गुणांक वाले अंग होते हैं। एक युक्ताण्डप में केवल दो स्त्रीकेशर हो सकते हैं, या फिर ऊपर दिए गए एकबीजपत्री और द्विबीजपत्री के सामान्यीकरण से सम्बन्धित न हों।

जैसा कि ऊपर वर्णित किया गया है कि व्यक्तिक फूलों के ज्यादातर नस्लों में जायांग (pistil) और पुंकेसर दोना होते हैं। वनस्पतिज्ञ इन फूलों का वर्णन पूर्ण, उभयलैंगीय, हरमाफ्रोडाइट (hermaphrodite) के रूप में करते हैं। फिर भी कुछ पौधों कि नस्लों में फूल अपूर्ण या एक लिंगीय होते हैं: या तो केवल पुंकेसर या स्त्रीकेसर अंगों को धारण किया हुए.पहले मामले में अगर एक विशेष पौधा जो कि या तो मादा या पुरूष है तो ऐसी नस्ल को डायोइसिअस (dioecious) माना जाता है। लेकिन अगर एक लिंगीय पुरूष या मादा फूल एक ही पौधे पर दीखते हैं तो ऐसे नस्ल को मोनोइसिअस (monoecious) कहा जाता है।

मूल योजना से फूलों के बदलाव पर अतिरिक्त विचार-विमर्श का उल्लेख फूलों के मूल भागों वाले लेखों में किया गया है। उन प्रजातियों में जहाँ एक ही शिखर पर एक से ज्यादा फूल होते हैं जिसे तथाकथित रूप से सयुंक्त फुल भी कहा जाता हैं-ऐसे फूलों के संग्रह को इनफ्लोरोसेंस (inflorescence) भी कहा जाता है, इस शब्द को फूलों की तने पर एक विशिष्ट व्यवस्था को लेकर भी किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में ध्यान देने का अभ्यास किया जाना चाहिए कि "फूल" क्या है। उदहारण के लिए वनस्पतिशास्त्र की शब्दावली में एक डेजी (daisy) या सूर्यमुखी (sunflower) एक फूल नहीं है पर एक फूल शीर्ष (head) है-एक पुष्पण जो कि कई छोटे फूलों को धारण किए हुए रहते हैं (कभी कभी इन्हें फ्लोरेट्स भी कहा जाता है) इनमे से प्रत्येक फूल का वर्णन शारीरिक रूप में वैसे ही होंगे जैसा कि इनका वर्णन ऊपर किया जा चुका है। बहुत से फूलों में अवयव संयोग होता है, अगर बाह्य भाग केंद्रीय शिखर से किसी भी बिन्दु पर विभाजीत होता है, तो दो सुमेल आधे हिस्से सृजित होते हैं- तो उन्हें नियत या समानधर्मी कहा जाता है। उदा गुलाब या ट्रीलियम. जब फूल विभाजित होते हैं और केवल एक रेखा का निर्माण करते हैं जो कि अवयव संयोंग का निर्माण करते हैं ऐसे फूलों को अनियमित या जाइगोमोर्फिक उदा स्नैपड्रैगन/माजुस या ज्यादातर ओर्किड्स.

वनस्पति सूत्र/पुष्प सम्बन्धी सूत्र[संपादित करें]

एक फूल का फार्मूला, एक तरीका है जिससे एक फूल की संरचना का प्रतिनिधित्व एक विशेष अक्षर, अंक या प्रतीक के द्वारा किया जाता है। बजाय एक विशेष प्रजाति के, एक सामान्य फार्मूले का इस्तेमाल एक पौधे के परिवार (family) के फुलीय संरचना को इंगित करने के लिए किया जाता है। निम्नलिखित प्रतिनिधियों का इस्तेमाल किया जाता है।

Ca = बाह्यदलपुंज (बाह्यदल वोर्ल; उदाहरण Ca = ५ बाह्यदलें)
Ca = दलपुंज (पंखुडी वोर्ल; उदाहरण, Co ३(x) = पंखुडियां कुछ तीन के गुणांक में)
और ऍनबीएसपी; और ऍनबीएसपी; और ऍनबीएसपी; और ऍनबीएसपी; Z यदि जोड़े जाईगोमोर्फिक (उदाहरण, CoZ = जाईगोमोर्फिक ६ पंखुडियों के साथ)
A = पुंकेसर (वोर्ल के पुंकेसर; उदाहरण, A = कई पुंकेसर)
G = जायांग (कार्पेल या अन्ड़प; उदाहरण, G1 = एक अंडकोषधारी)

x: "चर संख्या"
का प्रतिनिधित्व करना ∞: अनेकों
का प्रतिनिधित्व करना

पुष्प सूत्र कुछ इस प्रकार से दिखाई देगा:

CaCoA१० - ∞G

कई अतिरिक्त चिन्हों का इस्तेमाल किया जाता है (पुष्प सूत्रों की कुंजी देखें)

परागण[संपादित करें]

पराग के दाने जो इस मधुमक्खी को लग चुके हैं उनका स्थान्तरण जो जाएगा जब वह अगले फूल पर जाएगा

फूल का प्राथमिक उद्देश्य प्रजनन है फूल प्रजनन अंग होते हैं जो कि शुक्राणुओं को पराग से बीजांड/अंडकोष से जोड़ने में मध्यस्तता करते हैं, सामान्य रूप से एक पौधे से दुसरे को, पर कई पौधे स्वयं के फूलों को परागित कर सकते हैं। उर्वर पर्यंड बीजों का निर्माण करते हैं जो की आगे की पुश्त/पीढी हैं। यौन प्रजनन ऐसे अनोखे संतान की उत्पति करते हैं, जो की अनुकूलन (adaptation) के लिए तैयार हो। फूलों की एक विशिष्ट संरचना होती है जो की उन्हें एक ही नस्ल के पराग को एक पौधे से दुसरे पौधे में स्थान्तरित करने के लिए प्रेरित करती है। फूलों के बीच परागों के स्थानान्तरण के लिए कई पौधे बाह्य कारकों पर निर्भर करते हैं जिनमे वायु और पशु शामिल हैं, ख़ासकर कीट (insect). बहुत बड़े पशु जैसे कि पक्षी, चमगादड़ और बौने पोसम (pygmy possum) को भी नियुक्त/नियोजित किया जा सकता है /प्रयोग में लाया जा सकता है वह समय कि अवधि जिसमे यह प्रक्रिया स्थान लेती है (फूल पुरी तरह विस्तृत और कार्यान्वित) हो जाती है उसे ऍनथीसिस कहते हैं।

आकर्षित करने के तरीके[संपादित करें]

मधुमक्खी ऑर्किड (Bee orchid) जो कि मादा मधुमक्खी की नक़ल के रूप में विकसित (evolved) होती है नर मधुमक्खी परागनकर्ताओं

को आकर्षित करती हैं। पौधे एक स्थान से दुसरे स्थान के लिए हिल नहीं सकते, ऐसे में कई फूल छिटकी हुई आबादी में प्रत्येक फूल (व्यक्ति) में पराग को स्थान्तरित करने के लिए जानवरों को आकर्षित करने के लिए विकसित होते हैं। फूल जो कि किट-परागित होते हैं उन्हें किटपरगीय कहा जाता हैं जो की लैटिन में किट-प्रेमी के रूप में लिया जाता है। सह विकास के द्वारा परागित कीटों के साथ इनमे काफ़ी संशोधन (co-evolution) किए जा सकते हैंआमतौर फूलों के विभिन्न भागों में ग्रंथियां होती हैं जिन्हें मधुरसीय अंग कहा जाता है जो कि जानवरों को आकर्षित करते हैं जो पोषक मधुरस (nectar) की तलाश में रहते हैं। पक्षियों और मधुमक्खियों (bee) में रंग दृष्टि होती है, जो कि उन्हें "रंगीले" फूल ढूँढने में योग्य बनाते हैं। कुछ फूलों में मधुरस निर्देशक/निर्देशन होते हैं जो कि परगनकर्ताओं (nectar guide) को मधुरस कि तलाश करना दिखाते हैं ये सिर्फ़ पराबैगनी रौशनी में ही देखी जा सकती है, जो कि मधुमक्खियों और कीटों को ही दिखाई देती हैं। फूल परागन कर्ताओं को गंध (scent) और कुछ गंध हमारे सूंघने की शक्ति के लिए भी सुखद होते हैं। सभी फूलों कि गंध मनुष्यों को अपील नहीं करतीं, कई फूल ऐसे कीटों से परागित होते हैं जो कि सड़े मांस से आकर्षित होते हैं और फूल जो कि मृत पशु कि तरह गंध मारते हैं, जिन्हें अक्सर कैर्रियन फूल (Carrion flower) कहा जाता हैं जिसमे रेफलेशिया (Rafflesia), टाईटनऐरम (titan arum) और उत्तरी अमेरिका का पौपौ (pawpaw) (असेमिना ट्राईलोबा) शामिल हैं। फूल जो कि रात के आगंतुकों द्वारा परागित होते हैं, संभावित है को वे परागन कर्ताओं को आकर्षित करने के लिए अपने गंध पर ध्यान केंद्रित करते हैं ऐसे फूल ज्यादातर सफ़ेद होते हैं।

फिर भी दुसरे फूल परागनों को आकर्षित करने के लिए नक़ल का इस्तेमाल करते हैं उदहारण के लिए कुछ ऑर्किड की कुछ प्रजातियों के फूल मधुमखी के रंग, आकार और खूशबू से मेल खाते है। नर मधुमक्खी ऐसे ही फूलों में से एक फूल से दुसरे फूल पर साथी की तलाश में घूमते रहते हैं।

परागण तंत्र[संपादित करें]

पौधे द्वारा परागन की व्यवस्था इस बात पर निर्भर करती है कि किस तरह से परागन को इस्तेमाल किया जाता है।

अधिकांश फूल अपने परागन के तरीके को लेकर मोटे तौर पर दो समूहों में विभाजित किए जा सकते हैं।

कीटपरागीय: फूल कीटों, चमगादडों, पक्षियों और जानवरों को आकर्षित करते हैं और एक फूल से दुसरे को पराग स्थान्तरित करने के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं। ज्यादातर वे आकारों/रूपों में विशेषज्ञ होते हैं और पुंकेसर की ऐसी व्यवस्था होती है कि यह सुनिश्चित हो जाता है कि पराग के दानें परागन पर स्थानान्तरित हो जायें जब वह अपने आकर्षित वस्तु पर उतरता है (जैसे की मधुरस, पराग, या साथी) कई फूलों की एक ही प्रजाति के इस आकर्षनीय वस्तु को पाने के लिए, परागनकर्ता उन सभी फूलों में पराग को स्टिग्मा में स्थान्तरित कर देता है जो की बिल्कुल सटीक रूप से समान रूप में व्यवस्थित होते हैं।


कई फूल परागन के लिए मात्र फूलों के हिस्सों के बीच निकटता पर निर्भर/भरोसा करते हैं। अन्य जैसे की सारसेनिया (Sarracenia) या मादा स्लीपर ऑर्किड (lady-slipper orchid) के पास ऐ सुनिश्चित ढांचा होता है जो कि आत्मपरागन (self-pollination) का नीरोध करते हुए परागन को निश्चित करता है।

प्रजनन अंग जो कि चारागहीय फाक्सटेल फूल से अलग हो गए हैं।
एक घासीय फूल का शीर्ष (चारागहीय फॉक्सटेल फूल) सादे/मैदानी रंग के फूलों को दिखाते हुए जो कि बड़े प्रजननीय अंगों को लिए हुए हैं।

वातपरागित फूल: वायु का इस्तेमाल पराग को एक फूल से अगले फूल तक ले जाने में करते हैं उदाहरण के लिए घासें (grasses), संटी वृक्ष, एम्बोर्सिया जाति की रैग घांस और एसर जाति के पेड़ और झाडियाँ. उन्हें परागनों को आकर्षित करने की जरुरत नहीं पड़ती जिस कारण उनकी प्रवृति 'दिखावटी फूलों' की नहीं होती. जहाँ कि कीटप्रागीय फूलों के पराग बड़े और लसलसे दानों कि प्रवृति लिए हुए रहते हैं जो कि प्रोटीन (protein) में धनी होते हैं (परागनकर्ताओं के लिए एक पुरुस्कार), वातपरागित फूलों के पराग ज्यादातर छोटे दाने लिए हुए रहते हैं, बहुत हल्के और कीटों (insect) के लिए इतने पोषक भी नही. मधुमक्खी और बम्बल मक्खी सक्रिय रूप से वातपरागित पराग कोर्न (मक्के) जो जमा करते हैं हालाँकि ये उनके ज्यादा महत्त्व के नहीं होते.

कुछ फूल स्वपरागित होते हैं और उन फूलों का इस्तेमाल करते हैं जो कभी नहीं खिलते, या फूल खिलने से पहले स्वपरागित जो जाते हैं, इन फूलों को क्लीसटोगैमस कहा जाता है कई प्रकार के विओला और सालविया प्रजातियों में इस प्रकार के फूल होते हैं।

फूल-परागनों का सम्बन्ध[संपादित करें]

बहुत से फूलों में एक या कुछ विशिष्ट प्रकार के जीवाणुओं से निकट सम्बन्ध होते हैं। उदहारण के लिए कई फूल एक विशिष्ट कीट जाति से केवल एक कीट को ही आकर्षित करते हैं, अतः सफल प्रजनन के लिए केवल उस कीट पर निर्भर करते हैं। इस घनिष्ट सम्बन्ध जो अक्सर सहविकास (coevolution) के उदाहरण के रूप में लिया जाता है, जैसा की माना जाता है कि फूल और परागणकर्ता एक लम्बी अवधि से एक दुसरे कि जरूरतों से मेल खाने के लिए विकास कर रहे हैं

ये घनिष्ट सम्बन्ध विलोपन (extinction) के नकारात्मक प्रभाव के रूप में यौगिक हो जाते हैं। इस तरह के सम्बन्ध में एक के भी विलोपन का मतलब होता है कि लगभग दुसरे सदस्य का भी विलोपन. कुछ लुप्तप्रायः पौधे जातियों (endangered plant species) का कारण ख़त्म होते परागणकर्ताओं की जनसँख्या में कमी है (shrinking pollinator populations).

निषेचन और विसर्जन[संपादित करें]

इस चित्र में फूल के पुंकेसर स्पष्ट दृश्यमान हैं।

कुछ फूलों में पुंकेसर और स्त्रीकेसर दोनों स्वनिषेचन में सक्षम होते हैं, जो कि बीजों के उत्पादन के अवसर बढ़ा देता है परन्तु आनुवंशिक विविधता को सीमित कर देता है। स्वनिषेचन के अतिवादी मामले उन फूलों में होते हैं जो कि हमेश स्वनिषेचित होते हैं, जैसे कि कई कुक्रौंधे (dandelion). इसके विपरीत, कई पौधों कि नस्लों में स्वनिषेचन को रोकने के अपने तरीके होते हैं। एक ही पौधे पर एक लैंगीय नर और मादा फूल एक ही समय पर दिखलाई नहीं पड़ते अथवा परिपक्व नहीं होते पिछले प्रकार के फूल, जिनमें स्वयं के पराग में रासायनिक अवरोध होते हैं, ऐसे फूलों को आत्ममृत अथवा बाँझ के रूप में सन्दर्भित किया जाता है (पौधे की कामुकता (Plant sexuality), भी देखें)

विकास[संपादित करें]

कामाकुरा, कानागावा (Kamakura, Kanagawa), जापान में

फूल

हालाँकि जमीनी/धरती पर के पौधे ४२५ मिलियन साल तक अस्तित्व (reproduced) में रहे हैं, प्रथम जो की अपने समकक्षों स्पोर्स (spore) से एक साधारण अनुकूलन द्वारा पैदा हुए थे। समुद्री पौधे और कुछ जानवर स्वयं के अनुवांशिक नकलों (clones) को बिखेर सकते हैं जो की बह के कहीं और सृजित हो सकें/विकास कर सकें. इस प्रकार शुरू के पौधे प्रजनित होते थे। परन्तु शीघ्र ही पौधों ने अपनी नकलों को सुरक्षित रखने के तरीकों को विकसित कर लिया ताकि सूखने और दुसरे कष्टों/अपप्रयोग/अनुचित व्यवहार का सामना कर सकें जो की समुद्री पौधों के मुकाबले जमीनी पौधों में ज्यादा है। ये सुरक्षा बीज बन गयी, जो कि अभी तक फूल में विकसित नहीं हो पाई है। प्रथम बीज धारक पौधों में गिंगको (ginkgo) और शंकुवृक्ष (conifer) शामिल हैं। फूल-पौधे का प्रारंभिक जीवाश्म आर्काफ्रुक्टुस लिआओनिंगजेनिसिस (Archaefructus liaoningensis), को १२५ मिलियन साल पहले दिनांकित किया गया है।[2] गाइमनोस्पर्म्स के कई समूह, ख़ासकर बीज फर्न (seed fern) को फूल-पौधों के पूर्वज के रूप में प्रस्तावित किया जाता है पर सतत जीवाश्मों के सबूत नहीं हैं जो यह दिखा सकें कि फूलों का विकास कैसे हुआ था। जाहिर तौर पर अपेक्षाकृत नविन पौधों का जीवाश्म इतिहास में अचानक दिखाई देना ने विकास के सिद्धांत के सामने एक समस्या खड़ी कर दी, जिसे चार्ल्स डार्विन द्वारा "घिनौना रहस्य" कहा गया। हाल हीं में खोजे गए ऐन्गियोस्पर्म जीवाश्म जैसे कि आर्काफ्रुक्टुस, साथ ही में आगे कि खोजो में गाइमनोस्पर्म्स के जीवाश्म यह सुझाव देते हैं कि किस तरह ऐन्गियोस्पर्म के चरित्र एक के बाद एक श्रृंखला को हासिल कर प्राप्त हुए होंगे।

हाल ही में हुए DNA (DNA) विश्लेषण (आण्विक यथाक्रम (molecular systematics))[3][4] दिखाते हैं कि एम्बोरेला ट्राईकोपोडा" (Amborella trichopoda) जो कि न्यू कैलेडोनिया (New Caledonia), के प्रशांतीय द्वीपों में पाए जाते हैं, अन्य फूल-पौधों (sister group) के समूह से ही है और आकृति विज्ञान के अध्ययन[5] से सुझावित होता है कि इसके चरित्र में वे सारी विशेषताएं/गुण हैं जो की प्रारंभिक फूल-पौधों में थीं।

विभिन्न फूल रंग और रूप
एक साइरफिड मक्खी (Syrphid fly) एक अंगूर रूपी जल-कुम्भी पर (Grape hyacinth)

आम धारणा यह है कि प्रारम्भ से ही फूलों का कार्य, पशुओं को प्रजनन प्रक्रिया में शामिल करना रहा है। पराग चमकीले/सुनहरे और स्पष्ट रूप के बगैर भी बिखर सकते हैं, अतः यह एक दायित्व बन जाता है, पौधे के संसाधनों का प्रयोग जब तक कि वह अन्य कोई लाभ न प्रदान करे. अचानक पूर्ण रूप से विकसित फूलों कि उपस्थिति का एक प्रस्तावित कारण यह भी है कि ये एक पृथक वातावरण जैसे कि एक द्वीप अथवा द्वीपों कि श्रंखला में में विकसित हुए हैं, जहाँ पर पौधे जो उनपर धारण होते थे ने एक उच्च विशेष सम्बन्ध कुछ विशिष्ट जानवरों (उदाहरण के लिए एक ततैया) से विकसित कर लिए हैं, जैसा कि वर्तमान में/आज द्वीपीय नस्लें/जातीय विकसित होती हैं। एक परिकल्पित ततैये का पराग के साथ काल्पनिक सम्बन्ध जो कि एक पौधे से दुसरे पौधे तक पराग ले जाता है, आज के अंजीर ततैये (fig wasp) के जैसा है, हो सकता है कि यह पौधे और उसके साथी के बीच उच्च स्तर कि विशेषता का परिणाम हो। विशेषता के आम स्रोत के रूप में द्वीप अनुवांशिकी (Island genetics) को माना जाता है, खासकर जब मौलिक/आरंभिक अनुकूलन/रूपांतर कि बात आती है तो आंतरिक संक्रमण के रूपों की आवश्यकता पड़ती है। ध्यान दे कि ततैये का उदहारण आकस्मिक नहीं है, जाहिर तौर पर मधुमक्खियाँ, जो कि काल्पनिक/प्रतीकात्मक पौधों के संबंधों के लिए विकसित हुयी हैं, ततैयों के परवर्ती के रूप में विकसित हुए हैं।

इसी तरह, कई फल जो कि पौधे के प्रजनन में इस्तेमाल किए जाते हैं फूल के भागों के विस्तार से ही आते हैं, अक्सर फल एक उपकरण है जो उन जानवरों पर निर्भर करता है जो उसे खाने के इच्छुक, इस प्रकार उन बीजों को बिखेरते हैं जो उस फल में हैं।

जबकि इस प्रकार के प्रतीकात्मक सम्बन्ध (symbiotic relationship) मूल भूमी पर अपने अस्तित्व को बचाए रखने और फैलने में बहुत नाज़ुक होते हैं, फूल असाधारण रूप से उत्पादन का एक कारगर साधन बन जाते हैं, फैलाते हुए/प्रसार करते हुए (जो भी उनका वास्तविक रूप/उद्गम रहा हो) ताकि वे जमीनी पौधों के जीवन में सबसे ज्यादा प्रबल हों.

जबकि इस बात का मुश्किल से सबूत है कि ऐसे फूल १३० मिलियन साल पहले अस्तित्व में थे, कुछ परस्थितिजनक सबूत हिं जो कि ये बताते हैं कि ये २५० मिलियन साल पहले अस्तित्व में थे। ओलीयनेन, एक रसायन ओलियन (oleanane) जो कि पौधों द्वारा पाने फूलों की रक्षा के लिए किया जाता है, पुराने पौधों के जीवाश्म में पाया गया है, जिसमें जाईगेंटोपेट्रिड (gigantopterid)[6] शामिल है जो कि उस समय विकसित थे और कई आधुनिक फूल-पौधों के गुण धारण किए हुए हैं, हालाँकि वे फूल-पौधों के रूप में नहीं जाने जाते, क्योंकि उनके तने और कांटे ही पूर्णरूप से संरक्षित हो पाए हैं, जो कि प्रारंभिक जीवाश्मीकरण (petrification) का एक उदाहरण है।

पत्ते (leaf) और तने (stem) की संरचना में समानता बहुत आवश्यक है, क्योंकि फूल आनुवंशिक रूप से सामान्य पत्ते और तने के घटकों का ही अनुकूलन है, जींस का संयोजन सामान्य रूप से नए अंकुर को सृजित करते हैं।[7] अति प्राचीन फूलों में माना जाता हैं कि उनमे फूल के भागों के परिवर्तनशील अंग होते है जो कि ज्यादातर अलग होते थे (परन्तु एक दुसरे से संपर्क में) फूल शायद घुमावदार रूप से बढे होंगे ताकि वे उभयलिंगी (bisexual) हो सकें (पौधों में इसका मतलब होता हैं कि नर और मादा भाग दोना एकही फूल में) और जिसका अंडाशय (ovary) (मादा हिस्सा) द्वारा वर्चस्व किया जाता है। जैसे-जैसे फूल बढ़ते बढ़ते और उन्नत हुए, उनमें भागों के आपस में जुड़ जाने के कारण विविधता का विकास हुआ और भी विशिष्ट संख्या और ढांचे के साथ, या प्रति फूल या पौधे के विशिष्ट लिंग के साथ, या कम से कम "अंडाशय अवर"

फूलों का आज तक जारी है, आधुनिक फूल इतना ज्यादा मनुष्यों द्वारा प्रभावित हुए हैं कि कई तो प्रकृति में परागनित नहीं हो सकते. कई आधुनिक, पालतू फूल जंगली घांस-फूंस हुआ करते थे, जो कि उसी समय खिलते थे जब भूतल में कम्पन होती थी/जब भूमि हिलती थी। कुछ मानव फसलों के साथ उगने कि प्रवृति रखते थे और जो सबसे सुंदर होता था उन्हें अपनी खूबसूरती के कारण उखाडा नहीं जाता था, जिससे मानवीय स्नेह के ऊपर निर्भर करना और विशेष अनुकूलन का विकास होने लगा। [8]

विकास[संपादित करें]

फूल के विकास का ऐ बी सी नमूना

फुलीय अंग कि पहचान के निर्धारण के लिए आणविक नियंत्रण पूरी तरह से समझ लिया गया है। एक साधारण मॉडल में, तीन जीनों की गतिविधियाँ संयोजी रूप से एक दुसरे से जुड़ती रहती हैं ताकि फुलीय मेरिस्टेम (meristem) के मूल अंग के विकाशशील पहचान का निर्धारण किया जा सके। इन जीन की क्रियाओं को अ/ऐ, ब/बी, और स/सी- जीन क्रिया कहा जाता है। पहले फुलीय वोर्ल में केवल ऐ-जींस ही व्यक्त होते हैं, जो की सेपल्स के निर्माण का नेतृत्व करते हैं। दुसरे वोर्ल में ऐ- और बी- जींस ब्यक्त होते हैं, जो की पंखुडियों के निर्माण का नेतृत्व करते हैं। तीसरे वोर्ल में बी और सी जींस एक दुसरे से जुड़ते हैं ताने और फूल के मध्य के निर्माण के लिए, अकेले सी जींस कार्पेल्स को जन्म देते हैं। मॉडल [[होमीयोटिक/जानवरों और पौधों में शरीर अथवा किसी अंग के बदले दूसरे शरीर या अंग का सामान्य सृजन/निर्माण|होमोटिक]] (homeotic) मिऊटन्ट्स [[अराबिडोपेसिस/ फूल-पौधों की एक जाति जो की उत्तर समशीतोष्ण इलाकों में पाई जाती हैं, इन पौधों का इस्तेमाल वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए अधिक किया जाता है|अरबीडोप्सिस]] (Arabidopsis) थालियाना और स्नैपड्रैगन, [[एंटीर्रिनियम माजुस/ एंटीर्रिनियम जाति में से कोई भी एक पौधा, खासकर जो की भूमध्यसागरीय प्रदेश में एक बूटी के रूप में उगाये जाते हैं।|एंटीर्र्हिनुम माजुस]] (Antirrhinum majus) के अध्यन पर आधारित है। उदहारण के लिए जब बी-जीन की क्रिया में कमी होती है, मिऊटन्ट फूल सेपल्स के साथ प्रथम वोर्ल में हमेशा की तरह उत्पन्न होते हैं, पर सामान्य पंखुडियों के निर्माण के बजाय दुसरे वोर्ल में भी उत्पन्न होते हैं। तीसरे वोर्ल में बी क्रिया की कमी परन्तु सी क्रिया की उपस्थिति चौथे वोर्ल की नक़ल कर देती है, जो कि तीसरे वोर्ल में भी कर्पेल्स के निर्माण का नेतृत्व करती है। फूल के विकास का एबीसी मॉडल भी देखें (The ABC Model of Flower Development).

अधिकांश जींस जो कि मॉडल के केन्द्र में हैं MADS-बक्से (MADS-box) जींस की सम्पत्ति हैं और प्रतिलेखन कारक (transcription factors) हैं जो कि प्रत्येक फुलीय अंग के विशिष्ट जीन कि अभिव्यक्ति को विनियमित करते हैं।

पुष्पण संक्रमण[संपादित करें]

अपने जीवन चक्र में पुष्पण के लिए संक्रमण (transition) पौधे द्वारा बदलाव का एक महान चरण होता है। संक्रमण उसी समय होना चाहिए जब अधिकतम प्रजनन की सफलता कि सुनिश्चितता होगी। इन जरुरतो को पुरा करने के लिए पौधे महत्वपूर्ण अन्तर्जातीय और पर्यावरणिक सूत्रों को जैसे कि पौधे के हारमोनों (plant hormones) के स्तर में परिवर्तन और मौसमी तापमान और [[फोटो अवधि/ वह समय जब एक जीव प्रतिदिन रौशनी को पाता है/धूप पाता है जो की खासकर उस जीव के सृजन और विकास के लिए जरूरी होता है|फोटोसमय]] (photoperiod) परिवर्तन को समझने में सक्षम होते हैं। कई बारहमासी पौधों और द्विवार्षिक पौधों को फूलों के [[वर्नालाईजेशन/ बीज या बीजांकुर को कम तापमान में रखना ताकि पौधे की पुष्पण की प्रक्रिया त्वरित हो सके|वेर्नालाइजेशन]] (vernalization) की जरुरत पड़ती है। कुछ जींसों जैसे CONSTANS और FLC के आण्विक व्याख्याएँ इस बात का निश्चयन करती हैं कि पुष्पण तभी होगा जब निषेचन (fertilization) और बीज गठन के लिए अनुकूल समय होगा। [9] फुलीय गठन तने के अन्तक से शुरू होती है और इसमे कई शारीरिक और आकृति सम्बन्धी परिवर्तन होते हैं। पहला कदम सब्जीय पराईमोर्डिया का फुलीय पराईमोर्डिया में बदलाव है यह रासायनिक रूप में होता हैं जो कि पत्तों, कली (bud) और तने के उत्तकों की कोशिकीय भिन्नता को दिखाने के लिए होता हैं जो कि प्रजनन अंगों के रूप में विकसित होंगे। तने के मध्य/केन्द्र भाग के अग्रभाग का बढ़ना रुक जाता है अथवा चपटे हो जाते हैं जिसके कारण तने के अंत के बाह्य में लच्छेदार या गोलाकार रूप में कोने फूल जाते हैं। ये विकसन सेपलों, पंखुडियों, तने और कार्पेल (carpel) में होते हैं। ज्यादातर पौधों में जब एक बार यह प्रक्रिया शुरू हो जाती है तो उस वापिस लेना नामुमकिन है और तना फूल विकसित कर लेता हैं, भले ही फूल के गठन का प्रारंभिक क्षण पर्यावरण श्रृंखला (cue) पर ही निर्भर क्यों न हो। [10] एक बार यह प्रक्रिया शुरू होती है और श्रृंखला को अगर निकाल भी दिया जाता है तब भी फूल का विकास होगा।

Small Text== प्रतीकवाद ==

लिली का प्रयोग ज्यादातर जीवन के पुनरुत्थान को निरुपित करने के लिए किया जाता है
सजावटी उद्देश्य के लिए फूल प्रेरित करते हैं
जड़ जीवन में फूल एक आम विषय है, जैसे कि यह एक एम्ब्रोसिउस बॉसकेयेर्ट (Ambrosius Bosschaert the Elder) वरिष्ठ
चीनी जेड़ फूलों के डीजाइन के साथ, जिन वंश (Jin Dynasty), (१११५-१२३४ ई.), शंघाई संग्रहालय (Shanghai Museum).
अपने भिन्न सुगंधों के लिए फूल चहेते रहे हैं

पाश्चात्य संस्कृति में कई फूलों के महत्वपूर्ण प्रतीक (symbol) हैं। फूलों को अर्थ अधिमानित करने की प्रथा को फ्लोरोग्राफी (floriography) कहा जाता है। सबसे आम उदाहरणों में शामिल हैं:

  • लाल गुलाब (rose) प्रेम, सौंदर्य और चाहत के प्रतीक के रूप में दिया जाता है
  • खसखस (Poppies) मृत्यु के समय सांत्वना का प्रतीक है यु के, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में लाल खसखस युद्ध के दौरान मरे गए सैनिकों की श्रधांजलि में पहना जाता है।
  • आईरिश (Irises)/लिली (Lily) का उपयोग दफ़नाने के समय जीवन के पुनरुत्थान के रूप में किया जाता है यह सितारों (सूरज) से भी जोड़ कर देखी जाती हैं और उसकी पंखुडियां भी खिलती हुयी/ चमकती हुयी
  • डेसी (Daisies) के फूल मासूमियत के प्रतीक हैं

कला में भी फूल जननांग (female genitalia) का प्रतिनिधित्व करते हैं जैसा कि जार्जिया ओ'कीफी (Georgia O'Keefe), इमोगन कनिंगहम (Imogen Cunningham), वेरोनिका रुइज़ डे वेलअस्को (Veronica Ruiz de Velasco) और जूडी चिकागो (Judy Chicago) जैसे कलाकारों के कामो में दीखता हैं, हकीकत में एशियाई और पश्चिमी शास्त्रीय कला में भी यह दिखाई देता है। दुनिया भर की कई संस्कृतियों में फूलों को स्त्रीत्व (femininity) के साथ जोड़ने की चिन्हित प्रवृति दिखाई देती है।

भिन्न प्रकार के नाजुक और सुंदर फूलों की विशालता ने कई कवियों की सृजनात्मकता को प्रेरित किया हैं, विशेषतः रोमांटिक (Romantic) युग के १८वी-१९वी शताब्दी में. प्रसिद्ध उदहारण विलियम वर्डस्वर्थ का I Wandered Lonely as a Cloud (I Wandered Lonely as a Cloud) और विलियम ब्लेक (William Blake) का Ah! है। सूर्य-मूखी.

अपनी विविधता और रंगीन उपस्थिति के कारण, फूल दृश्य कलाकारों के भी पसंदीदा विषय रहे हैं। मशहूर चित्रकारों द्वारा कुछ प्रख्यात चित्रों में फूलों के चित्र हैं, उदहारण के लिए वैन गो (Van Gogh) का सूर्यमुखी (sunflowers) का श्रृंखला और मोनेट के पानी के लिली. फूलों को सुखाया भी जाता है, सूखे रूप में फ्रीज़ किया जाता हैं और दबाया जाता है ताकि फूल कला (flower art) के तीन-आयामी स्थायी हिस्से हों.

रोमन फूलों, बगीचों और वसंत के मौसम की देवी फ्लोरा है। वसंत, फूलों और प्रकृति की यूनानी देवी क्लोरिस (Chloris) है।

हिंदू पौराणिक कथाओं में फूलों का महत्वपूर्ण स्थान है। विष्णु जो कि हिंदू प्रणाली में तीन मुख्य देवताओं में से एक हैं, को अधिकतर कमल (lotus) के फूल पर सीधा खड़ा चित्रित किया जाता है।[11] विष्णु से जुड़े होने के अलावा भी हिंदू परम्परा कमल के अध्यात्मिक महत्ता को मानती है।[12] उदहारण के लिए, यह हिंदू कथाओं में सृजन के लिए वर्णित की जाति है।[13]

उपयोग[संपादित करें]

आधुनिक समय में लोगों ने खेती करने, खरीदने, पहनने या फूलों के इर्द-गिर्द रहने के तरीके ढूंढ लिए हैं, आंशिक रूप से इसलिए कि वे मनचाहे दिखाई देते हैं और उनकी गंध (smell) भी मनचाही होती है। दुनिया भर में लोग फूलों का इस्तेमाल नानविध उपलक्ष्यों और समारोहों में करते हैं जो कि एक के जीवन काल में जमा होकर उसे घेरे रहती है।

  • नवजात शिशु के अथवा इसाईकरण (Christening) के लिए
  • पुष्प आभूषण (corsage) अथवा बटनियर (boutonniere) के रूप में सामाजिक समारोहों और छुट्टियों/अवकाशों में पहनते हैं।
  • प्रेम और अभिमान/सम्मान के चिह्न के रूप में/की निशानी के रूप में
  • वधु की पार्टी/दावत/समारोह के लिए शादी के फूल और भवन/हॉल की सजावट के लिए
  • जैस कि घर के अन्दर रोशनी की सजावट
  • शुभ यात्रा पार्टियों और घर-वापसी की पार्टियों में यादगार उपहार के रूप में अथवा "आप के बारे में सोचते हुए' उपहार.
  • अंत्येष्ठी (funeral) के लिए फूल और शोक करने वालों के लिए अभिव्यक्ति (sympathy)

इसलिए लोग अपने घर के चारों ओर फूल उगाते हैं, अपना बैठक का कमरे का पुरा भाग पुष्प उद्यान (flower garden) के लिए समर्पित कर देते हैं, जंगली फूलों को चुनते हैं नहीं तो फूलवाले (florist) से फूल खरीदते हैं जो की व्यावसायिक उत्पादको और जहाजियों पर पूर्ण रूप से निर्भर करता है।

फूल, पौधे के मुख्य भागों (बीज, फल, जड़ (root), तना (stem) और पत्तों (leaves) के मुकाबले कम आहार उपलब्ध करा पाते हैं, पर वे कई दुसरे महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ और मसाले उपलब्ध करा पाते हैं। फूलों की सब्जियों में शामिल है ब्रोकोली (broccoli), फूलगोबी और हाथीचक्र (artichoke). सबसे महंगा मसाला, जाफरानी (saffron), जाफरानी (crocus) के फूल के स्टिग्मा धारण किए हुए रहता है। दुसरे फूलों की नस्लें हैं लौंग (clove) और केपर्स (caper).होप (Hops) फूलों का प्रयोग बियर (beer) में सुगंध के लिए उपयोग किया जाता है। मुर्गियों (chicken) को गेंदे (Marigold) का फूल खिलाया जाता है ताकि अंडे का पीला भाग और सुनहरा पीला हो सके, जो की उपभोक्ताओं को पसंद है। कुक्रौंधे (Dandelion) के फूलों से अक्सर शराब/वाइन बनाई जाती है। मधुमक्खी पराग (Pollen), मधुमक्खियों द्वारा एकत्रित पराग को कुछ लोगों द्वारा स्वास्थ्यवर्धक आहार कहा जाता है। शहद (Honey) में मधुमक्खी द्वारा संसाधित फूल का रस होता है और ज्यादातर उनका नाम फूलों के नाम पर रखा जाता है, उदाहरण के लिए नारंगी (orange) शहद फूल, बनमेथी (clover) शहद, टुपेलो (tupelo) शहद.

सैंकडों फूल भक्षनीय/खाने योग्य होते हैं पर कुछ ही हैं जिन्हें खाद्य के रूप में व्यापक तौर पर बेचा/विपणन किया जाता है। ये अक्सर सलादों में रंग और स्वाद बढ़ाने के लिए किए जाते हैं। स्क्वैश (Squash) फूलों को ब्रेडक्रम्बस में डुबोकर तला जाता है। खाद्य फूलों में शामिल हैं जलइंदुशुर (nasturtium), गुलदाउदी (chrysanthemum), गुलनार (carnation), [[कात्तैल/कटैल/टैफा जाति की कोई भी बारहमासी बूटी जो की किसी भी दलदल वाले इलाकों में पाए जाते हैं, इन्हें रीड मेज़ भी कहा जाता है|कटैल]] (cattail), शहद्चुसक (honeysuckle), कासनी (chicory), [[कोर्नफ्लावर/कोर्नपुष्प/ एक वार्षिक यूरेशियाई पौधा जिसकी खेती उत्तर अमेरिका में की जाती है। इसे कुंवारे का बटन भी कहा जाता है/ इसे बैचलर बटन भी कहा जाता है|मकई का फूल]] (cornflower), देवकली (Canna) और सूर्यमुखी (sunflower). कुछ खाद्य फूल कभी-कभी खुसामद भरे भी होतें हैं जैसे डेसी (daisy) और गुलाब (rose) (हो सकता है आपका किसी बनफशा (pansy) से भी साबिका पड़ जाए)

फूलो को औषधीय चाय (herbal tea) भी बनाया जा सकता है। सुगंध और औषधीय गुण, दोनों के लिए सूखे फूल जैसे की गुलदाउदी, गुलाब और चमेली, कर्पुरपुष्प को चाय में डाला जाता है। कभी-कभी उन्हें भी चाय (tea) पत्ती के साथ सुगंध के लिए मिलाया जाता है।

यह भी देखें/इसे भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  • एम्स.ऐ जे.(१९६१) एग्नियोस्पर्म का शारीरिक गठन एमसी ग्रा-हिल पुस्तक कंपनी, न्यू यार्क.
  • एसाऊ, केथरीन (१९६५)पौधे की एनाटोमी (द्वि.सं.) जॉन विले एंड संस, न्यू यार्क


सूत्र[संपादित करें]

  1. ईएम्स. ऐ जे एग्निओस्पर्म का आकृति विज्ञान (१९६१), एमसी ग्रो-हिल बुक कंपनी, न्यू यार्क.
  2. "आधुनिक और प्राचीन फूल". मूल से 29 अक्तूबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 नवंबर 2008.
  3. "प्रथम पुष्प". मूल से 5 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 नवंबर 2008.
  4. "एम्बोरेला एक "बेसल ऐन्गिओस्पर्म" नहीं है? तेज़ी से नही". मूल से 26 जून 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 नवंबर 2008.
  5. "दक्षिण प्रशांतीय पौधे शायद फूल-पौधे के विकास की कड़ी में खो गए होंगे". मूल से 14 मई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 नवंबर 2008.
  6. "फूलों का पता केवल तैलीय जीवश्मो से प्राप्त होता है". मूल से 3 जुलाई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 नवंबर 2008.
  7. फूलों के विकास पर सदियों पुराने सवाल का जवाब दिया गया Archived 2010-06-10 at the वेबैक मशीन.
  8. "मानवीय स्नेह ने फूलों के विकास में वदलाव किए". मूल से 16 मई 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 नवंबर 2008.
  9. औसिन एट आल (२००५), पुष्पण का पर्यावरणिक विनियमन. आईऍनटी जे डेव बिओल. २००५;४९(५-६):६८९-७०५
  10. http://www.genesdev.org/cgi/content/abstract/20/7/898?ck=nck
  11. "विष्णु". मूल से 14 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 नवंबर 2008.
  12. "वर्तमान हिंदू धर्म: इश्वर का प्रिय पुष्प". मूल से 13 अप्रैल 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 नवंबर 2008.
  13. "कमल". मूल से 10 सितंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 नवंबर 2008.

Br.%k(5)C1+2+2 A(9)+1 G1

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]