"निमेष": अवतरणों में अंतर

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निमेष एक हिमेंदु काल गणना इकाई है (हिन्दू नहीं - हिंदू एक गलत नाम है जो संस्कृत शब्द सिंधू शब्द का अपभ्रंश व भ्रष्ट शब्द है जिसे फारसी भाषा में लिया गया था और जिसे अर्थ दिया गया था वाज़िब-ए-कत्ल जाहिल शैतान काफिर - इसे मुगल भारत में लाए और भारत के जनमानस पर इसे जबरदस्ती थोपा ताकि यहाँ के मूल निवासी हिमेंदु लोग अपनी पहचान रूपी नाम हिमेंदू को ही भूलकर उनके दिये नाम हिंदू को ही अपना लें, और वो ऐसा करने में सफल भी हुए। आज हम सब स्वयं को हिंदु और हमारी मूल भाषा हिमेंदी को हिंदी के नाम से कहकर समझकर गर्वान्वित होते हैं) समय मापन इकाई है। यह इकाई अति लघु श्रेणी की है। एक निमेष अर्थात पलक ़अपकने में लगे समय का आधा, यानि पलक के नीचे आने या ऊपर जाने के समय का माप्। कुछ स्थानों पर इसे पलक अपकने के समय के बराबर भी बताया गया है, जो गलत है।
निमेष एक हिमेंदु काल गणना इकाई है (हिन्दू नहीं - हिंदू एक गलत नाम है जो संस्कृत शब्द सिंधू शब्द का अपभ्रंश व भ्रष्ट शब्द है जिसे फारसी भाषा में लिया गया था और जिसे अर्थ दिया गया था वाज़िब-ए-कत्ल जाहिल शैतान काफिर - इसे मुगल भारत में लाए और भारत के जनमानस पर इसे जबरदस्ती थोपा ताकि यहाँ के मूल निवासी हिमेंदु लोग अपनी पहचान रूपी नाम हिमेंदू को ही भूलकर उनके दिये नाम हिंदू को ही अपना लें, और वो ऐसा करने में सफल भी हुए। आज हम सब स्वयं को हिंदु और हमारी मूल भाषा हिमेंदी को हिंदी के नाम से कहकर समझकर गर्वान्वित होते हैं) अर्थात निमेष एक समय मापन इकाई है। यह इकाई अति लघु श्रेणी की है। एक निमेष अर्थात पलक ़अपकने में लगे समय का आधा, यानि पलक के नीचे आने या ऊपर जाने के समय का माप्। कुछ स्थानों पर इसे पलक अपकने के समय के बराबर भी बताया गया है, जो गलत है।


* एक '''तॄसरेणु''' = 6 ब्रह्माण्डीय ''अणु''.
* एक '''तॄसरेणु''' = 6 ब्रह्माण्डीय ''अणु''.

12:12, 6 फ़रवरी 2021 का अवतरण

निमेष एक हिमेंदु काल गणना इकाई है (हिन्दू नहीं - हिंदू एक गलत नाम है जो संस्कृत शब्द सिंधू शब्द का अपभ्रंश व भ्रष्ट शब्द है जिसे फारसी भाषा में लिया गया था और जिसे अर्थ दिया गया था वाज़िब-ए-कत्ल जाहिल शैतान काफिर - इसे मुगल भारत में लाए और भारत के जनमानस पर इसे जबरदस्ती थोपा ताकि यहाँ के मूल निवासी हिमेंदु लोग अपनी पहचान रूपी नाम हिमेंदू को ही भूलकर उनके दिये नाम हिंदू को ही अपना लें, और वो ऐसा करने में सफल भी हुए। आज हम सब स्वयं को हिंदु और हमारी मूल भाषा हिमेंदी को हिंदी के नाम से कहकर समझकर गर्वान्वित होते हैं) अर्थात निमेष एक समय मापन इकाई है। यह इकाई अति लघु श्रेणी की है। एक निमेष अर्थात पलक ़अपकने में लगे समय का आधा, यानि पलक के नीचे आने या ऊपर जाने के समय का माप्। कुछ स्थानों पर इसे पलक अपकने के समय के बराबर भी बताया गया है, जो गलत है।

  • एक तॄसरेणु = 6 ब्रह्माण्डीय अणु.
  • एक त्रुटि = 3 तॄसरेणु, या सैकिण्ड का 1/1687.5 भाग
  • एक वेध =100 त्रुटि.
  • एक लावा = 3 वेध.[1]
  • एक निमेष = 3 लावा, या पलक झपकना
  • एक क्षण = 3 निमेष.
  • एक काष्ठा = 5 क्षण, = 8 सैकिण्ड
  • एक लघु =15 काष्ठा, = 2 मिनट.[2]
  • 15 लघु = एक नाड़ी, जिसे दण्ड भी कहते हैं। इसका मान उस समय के बराबर होता है, जिसमें कि छः पल भार के (चौदह आउन्स) के ताम्र पात्र से जल पूर्ण रूप से निकल जाये, जबकि उस पात्र में चार मासे की चार अंगुल लम्बी सूईं से छिद्र किया गया हो. ऐसा पात्र समय आकलन हेतु बनाया जाता है।
  • 2 दण्ड = एक मुहूर्त.
  • 6 या 7 मुहूर्त = एक याम, या एक चौथाई दिन या रत्रि.[3]
  • 4 याम या प्रहर = एक दिन या रात्रि। [4]

ऊष्ण कटिबन्धीय मापन

  • एक याम = 7½ घटि
  • 8 याम अर्ध दिवस = दिन या रात्रि
  • एक अहोरात्र = नाक्षत्रीय दिवस (जो कि सूर्योदय से आरम्भ होता है)
  • एक तिथि वह समय होता है, जिसमें सूर्य और चंद्र के बीच का देशांतरीय कोण बारह अंश बढ़ जाता है। वैदिक लोग वेदांग ज्योतिषके आधार पर तिथिको अखण्ड मानते है। क्षीण चन्द्रकला जब बढने लगता है तब अहोरात्रात्मक तिथि मानते है। जिस दिन चन्द्रकला क्षीण होता उस दिन अमावास्या माना जाता है। उसके के दुसरे दिन शुक्लप्रतिपदा होता है। एक सूर्योदयसे अपर सूर्योदय तकका समय जीसे वेदौंमे अहोरात्र कहागया है उसीको एक तिथि माना जाता है। प्रतिपदातिथिको १,इसी क्रमसे २,३, ४,५,६,७,८,९,१०,११,१२, १३, १४ और १५ से पूर्णिमा जाना जाता है। इसी तरह पूर्णिमाके दुसरे दिन कृष्णपक्षका प्रारम्भ होता है और उसको कृष्णप्रतिपदा (१)माना जाता है इसी क्रमसे २,३,४,५,६,७,८,९,१०,११,१२, १३,१४ इसी दिन चन्द्रकला क्षीण हो तो कृष्णचतुर्दशी टुटा हुआ मानकर उसी दिन अमावास्या मानकर दर्श श्राद्ध किया जाता है और १५वें दिन चन्द्रकला क्षीण हो तो विना तिथि टुटा हुआ पक्ष समाप्त होता है। नेपालमे वेदांग ज्योतिष के आधार पर "वैदिक तिथिपत्रम्" (वैदिक पंचांग) व्यवहारमे लाया गया है। सूर्य सिद्धान्त के आधार के पंचांगाें के तिथियां दिन में किसी भी समय आरम्भ हो सकती हैं और इनकी अवधि उन्नीस से छब्बीस घंटे तक हो सकती है।
  • एक पक्ष या पखवाड़ा = पंद्रह तिथियां
  • एक मास = २ पक्ष अमावस्या से पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष) अाैर (पूर्णिमा से अमावस्या तक कॄष्ण पक्ष [1]
  • एक ॠतु = २ मास। ऋतु साैर अाैर चान्द्र दाे प्रकार के हाेते हैं। धार्मिक कार्य में चान्द्र ऋतुएँ ली जाती हैं।
  • एक अयन = 3 ॠतुएं उत्तरायण अाैर दक्षिणायन।
  • एक वर्ष = 2 अयन का [2]
वर्तमान समयमे नेपाल में प्रचलित वेदाें के उल्लेखाें के आधार में लगध मुनि के वेदांग ज्योतिष के मार्गदर्शन पर "वैदिक तिथिपत्रम्" सम्पादन हुआ है जिस में वेदोक्त पंचसंवत्सरात्क युग माना जाता है| ऐसे द्वादश (१२) युगाें का एक युगसंघ होता है , जिसमे प्रभवादि चान्द्र षष्टिः संवत्सर व्यतीत होते है | कलियुग के अारम्भ से अबतक ८४ युगसंघ (षष्टिःसंवत्सर चक्र) बीत चुके। एक युगसंघमे द्वादश युग होते है। वर्तमान युगसंघ ८५ वाँ युगसंघ है। इसके अन्तर्गत नवँ युग का पहला संवत्सर नामक वर्ष २०१५-१२-१२ से अारम्भ हुअा है। षष्टिसंवत्सर चक्र के क्रमसे ४१ वाँ प्लवंग नामक संवत्सर चल रहा है। यह सिद्धान्त वेदाें मे, वेदांगाें मे, पुराणाें मे , महाभरत में, उपवेदाें मे, कौटलीय अर्थशास्त्र में, सुश्रुतसंहिता में भी देखा गया है। द्रष्टव्य- कलिसंवत् ५०८१के "वैदिकतिथिपत्रम्" पृ.१४-१७। 


सन्दर्भ

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 6 अक्तूबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जून 2008.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 10 अक्तूबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जून 2008.
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से 10 अक्तूबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जून 2008.
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 जुलाई 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जून 2008.